कैसी शिकायत – नेकराम Moral Stories in Hindi

जब मैं 10 वर्ष का था —
बचपन से ही उल्टा सीधा खाने की वजह से मैं अक्सर बीमार पड़ जाया करता था मां मुझे नजदीक के अस्पताल में ले जाती थी मां अस्पताल में जाने से पहले घर में रखी बोतल को पानी से भर लेती थी थैले में दो-चार रोटियां भी रख लेती क्योंकि सरकारी अस्पताल में अगर सुबह गए तो शाम होना तो आम बात थी
कुछ महीने बाद में फिर बीमार पड़ गया मां मुझे अस्पताल ले गई जल्दबाजी में पानी की बोतल साथ ना ले जा सकी अस्पताल पहुंचने के बाद मुझे तेज की प्यास लगी गर्मी के दिन थे मां ने अस्पताल का कोना-कोना छान मारा किंतु पीने के लिए पानी ना मिला कई जगह पर पानी को ठंडा करने वाली मशीन लगी हुई थी किंतु उन मशीनों में तो एक बूंद पानी भी नहीं टपक रहा था
किसी ने बताया अस्पताल के बाहर चली जाओ बहन,, वहां एक रूपए का गिलास पानी से भरा आपको मिल जाएगा मां मुझे लेकर तुरंत अस्पताल के गेट के बाहर पहुंची वहां दो नाबालिक बच्चे एक ठंडे पानी की मशीन से लोगों को कांच के गिलास में पानी दे रहे थे बदले में प्रत्येक गिलास का एक रूपया ले रहे थे पानी की बोतल भरने का आठ रूपया ले रहे थे
गर्मी विकट थी दोपहर का समय था ,,लू ,,चल रही थी प्यास के मारे गला सूख रहा था मां मुझे अस्पताल लाने के लिए बस में पहले ही 20 रूपए खर्च कर चुकी थी
मां ने मेरी शक्ल देखकर तुरंत बटुए से पैसे निकाल कर उन बच्चों के हाथ में थमा दिये मैं तीन गिलास पानी पी गया दो गिलास मां ने पी लिए
5 रूपए उनको देने के बाद मां मुझे अस्पताल ले गई
मैं जब भी बीमार पड़ता मां मुझे अस्पताल ले जाती धीरे-धीरे में बड़ा होता गया अखबारों में टेलीविजन में हमेशा ही सुनता और देखता नेता लोग कहते शहर के अंदर अब कहीं पानी की किल्लत नहीं है
सभी सरकारी अस्पतालों में पानी की पूरी व्यवस्था है
उनके भाषण सुनकर मेरा खून खौल जाता मैं मां से कहता मां देखो नेता लोग कितना झूठ बोल रहे हैं हमारे जैसे कितने हजारों गरीब लोग अस्पताल में दवाई के लिए जाते हैं उन्हें पानी नहीं मिलता पीने के लिए पैसों का खरीदना पड़ता है
मां मेरी बात का कोई जवाब ना देती,,
इस बात को 15 साल बीत गए और मैं हो गया 25 साल का
शादी हुई नहीं थी कुंवारा था घर में बोर हो रहा था टेलीविजन देख देख कर पक चुका था रात के 10:00 बजे का समय था मैं घर से बाहर निकल कर खुले मैदान में आ गया लोगों को आते जाते देखा तो चेहरे पर एक मुस्कान सी आ गई वही हमारे एक मित्र मिले उसने बताया
,,गुरु तेग बहादुर अस्पताल में ,, अपनी गली की रमिया आंटी बालकनी से नीचे गिर गई अस्पताल में भर्ती है सभी लोग देखने जा रहे हैं
दोपहर में तुम्हारी मां भी देखने गई थी क्या तुम नहीं गये
मैं दौड़कर तुरंत घर पहुंचा और मां को सारी बात बताई और अस्पताल चल दिया रमिया आंटी को देखने के लिए
आधे घंटे पैदल चलने के बाद में अस्पताल पहुंच गया रात के 11:00 बज चुके थे अस्पताल के सारे मेंन गेट बंद हो चुके थे बस एक ही द्वार खुला हुआ था जहां पर बहुत से गार्ड खड़े हुए थे जो गेट पास चेक करके ही भीतर जाने दे रहे थे मेरे पास तो कोई गेट पास नहीं था
अब मैं रमिया आंटी से कैसे मिलूं ,, मैंने बहुत मिन्नतें की सुरक्षा गार्ड्स से ,,,
कृपया अंदर जाने दीजिए वहां कुछ दो चार पुलिस की जीपे भी खड़ी हुई थी ,, मुझे अंदर प्रवेश नहीं करने दिया
अब रात के 12:00 बज चुके थे मैं कब तक खड़ा रहता बचपन से ही अस्पताल को मैं अच्छे से पहचानता हूं मैं तुरंत वहां से चल पड़ा अस्पताल के बाहर आया दिल ने कहा अरे नेकराम इतनी दूर तक आया और रमिया आंटी से भी नहीं मिला
तब मुझे बड़ी गुस्सा आई अस्पताल में घुसने के लिए कोई चोर दरवाजा या खिड़की ढूंढने लगा अस्पताल की 12 फीट ऊंची दीवार को मैंने किसी तरह लांघ लिया और अस्पताल के भीतर कूद गया
अस्पताल काफी बड़ा था रमिया आंटी ना जाने किस वार्ड में किसी कमरे में होगी चेहरा तो मैं पहचान ही लूंगा यही सब सोचते सोचते
मैं अस्पताल के हर एक कमरे के भीतर झांक झांक कर देखने लगा
तभी एक लेडिस गार्ड एक जेंट्स गार्ड के साथ आती है दिखाई दी
वह दोनों आपस में बातें कर रहे थे हमें ऊपर से आदेश मिला है जिनके पास गेट पास नहीं है उन लोगों को ढूंढ ढूंढ कर अस्पताल के बाहर निकालो ,, वहीं पास में एक महिला बाथरूम था मैं उसी में भीतर छुप गया
तभी मुझे आवाज आई ,, लेडिस गार्ड की वह कहने लगी यहां के सफाई कर्मियों का आधा काम तो हमें ही करना पड़ता है अस्पताल में बने हुए डॉक्टर के सभी टॉयलेट बाथरूम घरों पर ताला लगाने की जिम्मेदारी भी हमारी
है और उन्होंने बाहर से ताला लगा दिया मैं समझ गया ताला अब सुबह 6:00 बजे ही खुलेगा
सारी रात इस महिला बाथरूम में ही बितानी पड़ेगी
बाथरूम काफी बड़ा था वहां कोने में कुछ कंबल का गट्ठर रखा हुआ था
मैं जैसे ही उस कंबल के ढेर की तरफ बढ़ा,,
उस कंबल में दोनों नौजवान गहरी नींद में सो रहे थे मैंने ध्यान से उनके चेहरे को देखा ,, अरे यह तो दोनों अस्पताल के बाहर मशीन से ठंडा पानी बेचने का काम करते हैं,, इन्हें तो मैं बचपन से देखता हुआ आ रहा हूं जैसे-जैसे मैं बड़ा होता गया और यह दोनों भी बड़े होते गये
अचानक उन दोनों की आंखें खुली मुझे देखकर वह जरा भी नहीं चौंके
कहने लगे आज से 15 बरस पहले जब हम 10 साल के थे बिहार में अचानक बाढ़ आने की वजह से सब कुछ तबाह हो गया सारा परिवार खत्म हो गया हम दो भाई किसी तरह जान बचाकर दिल्ली चले आए
कई दिनों तक तो भूखे ही सड़कों पर दिन बिताते रहे
जब मरने की कगार पर खड़े थे फिर हमने फैसला ले लिया कोई हमें दो रोटी नहीं देगा अपने पेट की भूख मिटाने के लिए अब हमें कुछ करना ही होगा
ठंडे पानी की मशीन की दुकान पर पहुंचे उनसे बहुत मन्नते करके एक मशीन ले ली और कह दिया आप चिंता मत कीजिए आपके पैसे चुका दिए जाएंगे हम कहीं नहीं भागेंगे दुकानदार ने मेरे घर की मजबूरी समझ कर किस्तों में हमें ठंडे पानी की मशीन दे दी
हम उस मशीन को सुबह अस्पताल के गेट के बाहर खड़ा कर देते मगर पानी कहां से लाएं इसलिए हम अस्पताल में चोरी छिपे सुबह 4:00 बजे ही सभी मशीनों का ठंडा पानी निकाल कर अपनी मशीन में भर लेते
और वही पानी अस्पताल के गेट के बाहर हमनें बेचना शुरू किया
इस काम को करते हुए हमें 15 वर्ष हो चुके हैं अस्पताल के बाहर हमारी मशीन खड़ी होने की हम अस्पताल प्रबंधन को भी रुपए देते हैं
कुछ पैसे पुलिस वाले को और कुछ पैसे एमसीडी दफ्तर में जमा करते हैं जो पैसे बचते हैं उन्हीं से अपना गुजारा कर रहे हैं
आज तक इतनी कमाई नहीं हुई कि शहर में एक छोटा सा घर ले सके इसलिए इस अस्पताल में चोरी छिपे इस महिला बाथरूम में छिपकर हम रात बिताते हैं
इस घटना के बाद मैं जब कभी भी अस्पताल आता और अस्पताल में जब पीने का पानी नहीं मिलता तो अस्पताल के बाहर आकर मशीन का ठंडा पानी पीकर मुस्कुराते हुए सोचता ,, पेट की भूख मिटाने के लिए बहुत से नाबालिक बच्चे अपराध की दुनिया में कदम रख लेते हैं
लेकिन इन दोनों भाइयों ने यह कदम उठाया
,,,,,और इस तरह की जिंदगी जी रहे हैं,,
तब मेरा मन कहता करूं किससे शिकायत और
,,, कैसी शिकायत ,,,
नेकराम सिक्योरिटी गार्ड
स्वरचित रचना मुखर्जी नगर से

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