थोपे हुए सपने – शुभ्रा बैनर्जी : Moral stories in hindi

बारहवीं की परीक्षा समाप्त हो चुकी है। उफ्फ़ आजकल की बोर्ड परीक्षा और परीक्षा देने वाले बच्चे।ये बोर्ड परीक्षा ना हुई, कर्फ्यू लग गया हो।जोर से हंसना मना,बोलना मना,सीरियल बंद,घूमना बंद।हमने भी कभी दी थी बोर्ड की परीक्षा,तब ये ताम झाम बिल्कुल नहीं थे। स्कूल से आते ही घर के कामों में अपनी मां का हांथ बंटाना ज्यादा जरूरी होता था। छोटे-छोटे भाई-बहनों को साथ में लेकर पढ़ाने की जिम्मेदारी भी अलग होती थी।

ना मां को सुबह उठाना पड़ता था,ना पापा को याद रहता था,कब कौन सा पेपर है।अखबार में जब सब देखकर बताते,तब पता चलता था कि रिजल्ट निकल गया।शाम को  मां-पापा के साथ सपरिवार मंदिर जाकर प्रसाद चढ़ा आते थे।रास्ते में गुप्ता जी के यहां से मुंगौड़ी वाली चाट और फुल्की से ट्रीट हो जाया करती थी।

“शिखा ओ शिखा!कहां हो तुम?”निकुंज की आवाज सुनकर शिखा का बड़बड़ाना थमा।दोनों हाथों में बड़े-बड़े पैकेट्स भरे थे।देखते ही शिखा ने झूठी नाराजगी दिखाते हुए कहा”लो,शुरू हो गया पैसा फूंकना।अभी पेपर खत्म हुएं हैं, रिजल्ट नहीं आया है।कुछ उस समय के लिए भी बचाकर रख देते।”

“अरे बाबा,बिटिया का पेपर खत्म हुआ।कितनी मेहनत की है उसने?अब तो सैलिब्रेशन बनता है ना।”निकुंज ने लाड़ से कहा ,तो शिखा मुंह बनाकर बोली”हां,पूरी मेहनत तो तुम्हारी बेटी ने ही की है।मैंने तो कुछ किया ही नहीं।उसके साथ जगी हूं और सोई हूं। तुम्हारी मिज़ाज पुर्सी में कोई कमी होने दी क्या मैंने?एक भी काम नहीं करवाया,निशा से।

सुबह से रात तक गधे जैसी खटी हूं।अब सैलीब्रेशन बेटी के पेपर खत्म होने का हो रहा है।”शिखा की बात सुनकर हमेशा की तरह निकुंज बोले”घर का डिपार्टमेंट तो तुम्हारा है।कैसे क्या करना है,तुम्हीं तय करती हो।बेटी मेरे अकेले की थोड़ी है।तुम क्यों चिढ़ती हो?अभी कुछ दिनों में चली जाएगी कोटा,तब छिपकर रोती फिरोगी।”

शिखा सचमुच भावुक हो गईं।सोचने लगी,अरे हां!!!अगले हफ्ते ही तो जाना है निशा को कोटा।एक साल का ड्राप लेकर कोचिंग करेगी,उन दोनों ने ही तय किया था।सबसे ज्यादा तकलीफ़ तो मां को ही होती है,बेटियों के ना रहने से।अपनी मां की प्रतिनिधि बनकर पापा से मां के मन का सब करवाने का हुनर बस बेटियों के पास ही होता है।मोहल्ले में एक भी घर ऐसा नहीं बचा था,जहां यह खबर ना पहुंची हो।

आखिर शिखा जैसी टॉपर की बेटी थीं निशा।वो तो घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी पापा के जाने के बाद,नहीं तो शिखा आज एक अच्छी डॉक्टर ही होती।रात से ही बेटी के जाने की तैयारी करते हुए लिस्ट मिलाने लगी थी शिखा।निकुंज के मुंह से सुन-सुनकर थक गई थी,अपने ऑफिस के सहकर्मियों के बच्चों के कोटा जाकर तैयारी करने की खबर।इस साल भगवान ने उसकी भी सुन ली आखिर।लगता तो है,निशा का रिजल्ट अच्छा ही आएगा।

निकुंज से पैसों के बारे में भी चर्चा करती जा रही थी”लोन तो मिल जाएगा ना तुम्हें,समय पर?देखो,इन बैंक वालों का कोई भरोसा नहीं।ऐन वक्त पर घुमा देतें हैं।तुम सब पहले से देख लेना। जरूरत पड़े तो पी एफ से लोन ले लेना।हमारी बेटी पैसों की कमी की वजह से कहीं चूक ना जाए कोटा जाने में।”निकुंज ने निश्चिंत रहने को कहा तो भी सो नहीं पाई शिखा।करवट बदलती रही रात भर।

ये सीने के बाईं तरफ मीठा -मीठा दर्द क्यों महसूस हो रहा है मुझे?गालों पर बेमौसम आंखों से बूंदा-बांदी सी भी हो रही है।मुझे कुछ दुख तो नहीं,फिर मन इतना बेचैन क्यों है?अंदर कुछ टूटता हुआ सा लगने लगा,तो शिखा उठकर अनायास ही निशा के कमरे में गई।अरे नहीं!निशा तो गहरी नींद में सो रही है।आजकल शांत सी लग रही है।दिन भर बकर -बकर करने वाली गुड़िया एकदम से बहुत बड़ी लगने लगी।उसके जाने की इतनी तैयारी कर रहीं हूं कि,उसी से जी भर कर बात भी नहीं कर पाती।छि,कैसी मां हूं मैं?कल से उसे भी अपने साथ लगाकर रखूंगी तैयारी में।कम से कम उसके साथ समय तो बिता पाऊंगी।मन ही मन सोचते हुए शिखा बिस्तर पर आकर लेटी।

सुबह देर से नींद खुली।निकुंज ने फाइनल कागजात आज तैयार करके रखने को कहा था।पिछली मार्क शीट निकालना है।दोपहर को ही निशा के साथ सब निपटा देगी शिखा।आज सुबह से ही निशा की आंखें सूजी हुई देखकर शिखा बोली”निशू,तेरी आंखें क्यों लाल हुई पड़ी हैं?सूज गई हैं।सोई तो थी अच्छे से तुम कल रात,फिर क्यों?”

निशा ने तटस्थ होकर कहा”नहीं तो मम्मी,मैं ठीक हूं।तुम बता देना ना मुझे क्या काम करना है?मैं कर दूंगी।”निशा की बात सुनकर शिखा को फिर कुछ टूटता हुआ लगा अपने अंदर।ये क्या और क्यों हो रहा है?कौन सा दुख बांध तोड़ने को बेकाबू है?”शिखा ने जल्दी से सलोनी के लिए मैदा गूंथते हाथों को धोया और निशा के पीछे लपकी”निशू,तू ठीक तो है ना बेटा?इतनी चुप क्यों रहने लगी आजकल?ना कुछ शिकायत करती है,ना ही कुछ मनुहार।खा भी नहीं रही आजकल अच्छी तरह।कुछ है मन में तो,बोल ना बेटा।मैं मां हूं तेरी।अंदर ही अंदर क्यों घुट रही है तू?तेरी सहेली मीना कोटा नहीं जा रही,यही दुख है ना तुझे?मुझे मालूम है।तू बताएगी नहीं तो क्या मैं समझूंगी नहीं।”

निशा की आंखों से झर-झर मोती बहने लगे तो शिखा डर गई।कुछ ऊंच -नीच हो गई क्या?इस बोर्ड परीक्षा के टैंशन में बच्चे भी कम स्ट्रैस में नहीं रहते।सोचती हुई शिखा ने निशा को घूरते हुए पूछा”निशू, पीरियड्स तो आ रहा है ना समय पर?पी सी ओ डी तो नहीं हो गया।कल डॉक्टर आंटी से मिल लें क्या? वीकनेस लग रही है क्या तुझे?देख बेटा,कुछ छिपाना मत अपनी मां से।अभी की थोड़ी सी लापरवाही बाद में बहुत तकलीफ़ देती है।”निशा शांति से बोली “नहीं मम्मी,मैं ठीक हूं।तुम चिंता मत करो।”

“ओह!!!थैंक गॉड।आजकल तो लड़कियों को बात-बात पर नई -नई बीमारियां हो रहीं हैं।हमारे समय में लो प्रैशर,वीकनैस नहीं होती थी।ख़ुद थाली में खाना निकालकर भर पेट खा लेते थे।देख निशू,ऐसे नहीं चलेगा।कोटा में तुझे अपना ध्यान खुद रखना पड़ेगा।पापा या मैं बार-बार तो आ नहीं पाएंगे वहां।देख बेटा,तुझे अपने मम्मी -पापा का सपना पूरा करना है।जब वर्मा अंकल का बेटा सप्लीमेंट्री लाकर कोचिंग कर डॉक्टर बन सकता है,तो तू तो हमारी होशियार बिटिया है।तेरी नानी भी मुझे डॉक्टर बना देखना चाहती थी,पर मेरी किस्मत में नहीं था।

तेरे पापा पर भी इकलौते बेटे होने का दवाब था। दादा-दादी को छोड़कर बाहर जा ही नहीं पाए पढ़ने।तुझे अपने सपने मारने नहीं देंगे हम बेटा।जो भी करना होगा,हम करेंगे।बस तू खुशी-खुशी कोटा जाने की तैयारी कर बाबू।”शिखा पता नहीं क्यों किस ग्लानि में बोलते-बोलते रोने लगी।हां उसका मन अब हल्का हो गया था।अब मन लगाकर बिटिया के जाने की तैयारी कर सकेगी।टिकिट तो ऑनलाइन बुक हो चुकी थी।

थोड़ी बहुत शॉपिंग शाम को कर ली निशा के साथ जाकर।रात को खाने के बाद बाप-बेटी के सोने जाने के बाद बचे हुए काम निपटाने निशा की बुक शैल्फ से जरूरी सर्टिफिकेट निकालते-निकालते पुरानी फोटो एलबम भी निकाल ली।कितनी जल्दी बड़ी हो जातीं हैं बेटियां।चिरैया ठीक ही कहतें हैं लोग।अब कहां बांधकर रख पाएंगी।कोचिंग,फिर सिलेक्शन, कॉलेज,फिर मास्टर डिग्री।

देखते-देखते साल निकल जाएंगे,और अंत में ब्याहना होगा। उफ्फ़।तभी निशा की एक कॉपी (ड्राइंग)हांथ लगी।पेंसिल से उकेरे गए स्केच जीवंत लग रहे थे बिल्कुल।हर स्कैच के नीचे सुंदर लिखावट में निशा ने बाकायदा हस्ताक्षर भी किए थे।शिखा ने जब तारीख देखी,चार साल पुरानी थी।यानि आठवीं में होगी तब निशा।हां ,एक बार बोली थी तब ,जब किसी ने पूछा था क्या बनेगी”इंटीरियर डिजाइनर”।गजब के आत्मविश्वास से दिया था उसने उत्तर अपनी भूरी चमकीली आंखों को मटकाकर।

उसके बाद तो नौंवी से ही उसके दिमाग में बॉयोलॉजी घोल दिया था ,नीट निकालने के लिए।याद नहीं आता कि कभी उससे पूछा भी था कि उसे क्या बनना है।और खंगालने पर कई इंटीरियर डिजाइनर कोर्स वाले कॉलेज के नाम भी मिले।दूसरी कॉपी में एक ड्राइंग मिली जिसमें एक लड़की उड़ने की कोशिश कर रही है,और मां उसके पंखों को फैला रही है।कब रोना आ गया पता ही नहीं चला।बगल में ही निकुंज सो रहे थे।आज दहाड़ मार कर रोए जा रही थी शिखा।एक मां होकर अपनी बेटी के मन को नहीं पढ़ पाईं।धिक्कार है उसके मां होने पर।कोटा जाने की बात पर क्यों निशा उदास हो जाती थी,वह समझ ही नहीं पाई।जो मां अपनी बेटी की आंखों की अनकही बातें ना समझे,मन का दुख ना जाने,उसे मां कहलाने का कोई अधिकार नहीं।

निकुंज स्तब्ध रह गए थे,शिखा को ऐसे रोता देखकर।अपनी मां के जाने पर भी नहीं रोई थी इतना।निकुंज सकते में आ गए थे। हड़बड़ा कर पूछा”क्या हो गया शिखा?तबीयत खराब लग रही है क्या?क्यों रो रही हो?”

“निकुंज,निशा कोटा नहीं जाएगी।कभी नहीं जाएगी।उसे मैं जाने नहीं दूंगी।”

“हैं!!!!!!क्या?क्यों?क्या बोल रही हो तुम?तुम्हारा ही तो सपना था,जिसे तुमने मुझसे वचन में ले लिया था कि बेटी को डॉक्टर बनाना है।तुम अब यह क्या बोल रही हो?”निकुंज अब भी सामान्य नहीं थे।शिखा ने बिलखते हुए कहा”निकुंज,मैं सारी ज़िंदगी अच्छी बेटी बनी रही,अच्छी बहन बनी,बहू बनी,पत्नी की जिम्मेदारी भी ईमानदारी से निभाती।आज मैं शर्मिन्दा हूं अपने आप पर कि अच्छी मां नहीं बन पाई।जिस बेटी ने सबसे पहले मेरी कोख में सांसें लीं,उसकी सांसों की पीड़ा ही समझ ना पाई।

जिसे मर्यादा की शिक्षा देती रही,उसकी वेदना नहीं समझ सकी।जो आसमान से ज्यादा भरोसा अपनी मां पर करती थी उड़ने के लिए,उसे एक तिनका नहीं दे सकी। धिक्कार है मुझ पर।”जोर -जोर से चिल्लाने की आवाज सुनकर निशा भी दौड़कर आ चुकी थी।दरवाजे पर खड़ी होकर मां का विलाप सुनकर ,आकर लिपट गई”नहीं मम्मी,तुम तो बेस्ट मां हो।हमेशा सही और ग़लत में फर्क करना सिखाया है तुमने। ईमानदारी से पढ़ना सिखाया है तुमने।तुम तो मेरी आइडियल हो।

शिखा बेटी को सीने से लगाकर बोली”काहे की आइडियल?ये हम जैसी मांएं ही होतीं हैं जो समाज में अपना दबदबा कायम रखने के लिए अपने बच्चों के भविष्य के फैसले खुद लेने लगतीं हैं।अपने अधूरे सपनों को जबरदस्ती अपने बच्चों की आंखों में काजल की तरह पोत देतीं हैं।पतियों को कम हैसियत के ताने दे-दे कर अपने मन का करवा लेतीं हैं।तू नहीं  जा रही कोटा-वोटा।तुझे इंटीरियर डिजाइनर का कोर्स करना था तो बताना था ना।”

निशा ने फिर आज सीख दी”मम्मी,हमारे मन की बात अगर मां नहीं समझ पाएगी,तो कौन समझेगा?तुम्हारे और पापा के सपनों को पूरा करने का दायित्व भी तो मेरा ही है।”निकुंज भी अब वास्तविकता समझ चुके थे।बेटी के सर पर हांथ रखकर बोले”कोई सपने-वपने नहीं हमारे।जो पूरे हमसे नहीं हुए,उन्हें पूरा करने की जिम्मेदारी लेकर अपने सपनों की चिता जलाएगी क्या?तेरी मां बिल्कुल ठीक कह रही है निशू।ईश्वर से हम यही तो मांगतें रहतें हैं कि बच्चों को सद्बुद्धि दे,वो तुझे मिली है।अब जो तू अच्छे से कर पाए वही अच्छा होगा।”

आज एक बच्ची अपने माता-पिता के सपनों की भेंट चढ़ने से बच गई।लाखों बच्चे ऐसे ही अपने माता-पिता के अधूरे सपने ढूंढ़ते रह जातें हैं नए शहर की भीड़ में,और छिन जाता है उनके अपने सपनों का नीड़।

शुभ्रा बैनर्जी

1 thought on “थोपे हुए सपने – शुभ्रा बैनर्जी : Moral stories in hindi”

  1. बहुत खूबसूरत रचना
    सच में माता पिता को अपने सपने बच्चों पर नहीं थोपने चाहिए
    आपने बहुत ही अच्छा अंत दिखाया कहानी का👍👌

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