बदली अहमियत, तो बदला व्यवहार – रोनिता कुंडू: Moral stories in hindi

सलोनी..! अचार की बरनिया जरा उतार देना, शिव्या और ज्योति आ रही है… उन्होंने खास अचार की मांग की है.. शोभा जी ने अपनी बहू सलोनी से कहा

सलोनी:  हां मम्मी जी आपके बनाए हुए अचार होते ही बड़े लाजवाब है.. पिछली बार जब मैं अपने मायके लेकर गई थी, मेरी भाभी ने भी कहा था अगली बार जब भी तुम आओ, फिर से ले आना 

शोभा जी:   हां मैंने यहां अचार की दुकान जो खोल रखी है..! तेल मसाले यह सब तो मुफ्त में मिलते हैं और मेहनत वह भी तो नहीं लगती ना..? हुहहह् अगली बार लेते आना.. अरे अपनी बेटियों के लिए बना रही हूं इसका मतलब यह नहीं के अचार बनाकर बांटती फिरू.. अभी वैसे भी मुझसे इतना काम नहीं होता… 

सलोनी:   मम्मी जी… भाभी भी तो मेरी अपनी ही है ना और आपको मैं अकेले थोड़े ही ना बनाने दूंगी… मैं भी मदद करूंगी..

 शोभा जी:  हां तो यह तुम्हारा फर्ज है… देखो सलोनी मेरे तो अभी आराम करने के दिन है… यह तो बेटियां इतने दिनों बाद आ रही है तो इतना कर ले रही हूं… वरना मैं तो अपने बिस्तर से ना ऊंठू..

सलोनी और कुछ नहीं कहती और वह अपनी सास की मदद करने लगती है… दो दिन बाद सलोनी की दोनों ननदे आ जाती है. दोनों ननंद के आते ही घर में काफी चहल-पहल हो जाती है… दोनों बहने पूरे दिन शोभा जी के साथ गपशप करती और सलोनी को फरमाइशों के दलदल में फंसा कर बाजार भी घूमने चली जाती… सलोनी तो हैरान थी के शोभा जी को तो हमेशा घुटनों में दर्द रहता फिर अभी यह इतनी भाग दौड़ कैसे कर रही है..? उसे पता था कि अभी यह बेटियों के साथ इतना उछल तो रही है फिर उनके जाते ही एक साथ कई सारी बीमारियां लेकर बैठ जाएंगी… अगर वह अभी कुछ भी कहती सभी को लगता कि वह सब की खुशियों से जल रही है… 

एक रात सभी खाने बैठे… आज खाना शिव्या और ज्योति के पसंद का ही बना था… कढ़ी भी बनी थी दोनों बहनों के लिए.. पर कढ़ी सलोनी को बिल्कुल भी पसंद नहीं थी, इसलिए उसने अपने लिए दाल बनाई थी.. 

खाते वक्त शिव्या:   सलोनी सिर्फ कढ़ी बनाया है..?

 सलोनी:   नहीं दीदी मटर पनीर पालक भी है.. यह लीजिए..

 शिव्या:   ठीक है पर आज मुझे कढ़ी खाने का मन बिल्कुल भी नहीं है, तो दाल होती तो अच्छा होता… याद है आप जो काली दाल बनती थी मां… मुझे उसका स्वाद आज भी याद है..

 शोभा जी:   कोई बात नहीं बेटा जो तुझे अभी कढ़ी खाने का मन नहीं, बहू बना देगी काली दाल, जा सलोनी बना ला.. 

सलोनी:  पर मम्मी जी अभी काली दाल बनाने में तो काफी समय चला जाएगा… तब तक सबकी भूख भी मर जाएगी… मुझे कढ़ी पसंद नहीं तो मैं अपने लिए दाल बनाई है, वही दे दूं..?

 शोभा जी:  सलोनी काम चोरी करना तो कोई तुझसे सीखे… अभी अगर काली दाल खाने का मन हो रहा है मेरी बेटी को, तो वह बात मेरे लिए अहमियत रखती है, जैसे तुम्हारे लिए तुम्हारी काम चोरी अहमियत रखती है… तो तुम करो अपनी काम चोरी और मैं बनाती हूं दाल… 

तभी वहां बैठे सलोनी का पति और शोभा जी का बेटा शिवम कहता है… यह क्या कह रही हो मां..? 10:00 बज रहे हैं अभी कब दाल बनेगी और कब खाओगे आप लोग..? ठीक ही तो कह रही है सलोनी, जो है उसी को खा ले दीदी, कल बन जाएगा काली दाल और क्या..? 

ज्योति:   वाह मां… सलोनी तो कितनी लकी है जो उसे मेरे भाई जैसा पति मिला है… एक हमारे पति है जो अपनी मां के आगे सांस तक ना ले उनके मर्जी के खिलाफ… उनके खिलाफ बोलने की तो बात दूर ही रही…

शिव्या:   ज्योति..! अब हमें यहां बड़े सतर्क होकर रहना पड़ेगा… पता चला कि कब सलोनी हमारा यहां आना ही बंद करवा दे.. जो इसके हुकुम ना माने… 

शोभा जी:   तेरी मां मेरी नहीं है अभी तक, जो इसका हुकुम चलेगा यह लाख कर ले मेरे बेटे को अपने वस में, पर मुझे वस में करना इतना आसान नहीं… वैसे भी इस इस घर में इसे अपनी अहमियत पता है… तू रुक मैं बनाकर लाती हूं… अभी मेरे हाथ पैर सही सलामत है… 

उसके बाद शोभा जी दाल बनाने चली जाती है और पूरे 1 घंटे बाद दाल बनाकर तीनों मां बेटी खाना खाती है… शिवम खाकर अपने कमरे में पहले ही जा चुका था और सलोनी सबके साथ खाएगी यह सोचकर अपने कमरे में इंतजार करने लगी… शोभा जी ने गुस्से में उसे रसोई में आने से मना किया था… इसलिए वह अपने कमरे में जाकर इंतजार करने लगी और शिवम को सोता देख उसकी भी आंख लग गई… शिवम ने उसे खा लेने को कहा था, पर इससे शोभा जी और नाराज हो जाती… इसलिए उसने शिवम को मना कर दिया… सलोनी की आंख सीधा-सुबह खुली तो वह हड़बड़ाकर उठी शिवम को जगा कर नहाने चली गई.. 

फिर सलोनी रसोई में चाय बनाने गई और सबके लिए चाय बनाकर उनके कमरे में देने गई, तो देखी है शोभा जी घुटनों के दर्द से कराह रही है और दोनों बेटियां बगल में घोड़े बेचकर सो रही है.. सलोनी ने तुरंत चाय रखी और शोभा जी से पूछा… क्या हुआ मम्मी जी..? दर्द बढ़ गया है क्या..? लाइए में मालिश कर देती हूं.. यह कहकर वह जैसे ही मालिश करने गई उसने देखा शोभा जी का घुटना काफी सूजा हुआ है..

 सलोनी:  मम्मी जी आपके तो घुटनों में काफी सूजन है.. चलिए हम डॉक्टर के पास चलते हैं.. तभी दोनों बहने जाग गई और पूछती है क्या हुआ मां..? 

शोभा जी:   घुटनों में सूजन और दर्द दोनों बढ़ गया है.. बेटा ले चल मुझे डॉक्टर के पास… सलोनी तू रहने दे.. यह ले जाएगी..

 शिव्या:   जा तो रही है सलोनी, तो चली जाओ ना… क्या बच्चों जैसी करती हो..?

 ज्योति:   हां मां हम यहां घूमने फिरने, आराम करने आए हैं, ना कि अस्पताल के चक्कर लगाने और इतनी सुबह-सुबह हमें कहीं नहीं जाना… आप चले जाओ सलोनी के साथ और हां सलोनी डॉक्टर को कहना कोई अच्छा सा पेन किलर दे दे, ताकि घर आते-आते इनका दर्द गायब हो जाए और हम वापस से इधर-उधर घूमने जा सके.. 

शिव्या:   हां दिन ही कितने में रह गए हैं हमारे यहां से जाने के..?

 शोभा जी को अपनी बेटियों की बात सुनकर बड़ा दुख हुआ और वह सोचने लगी इनके लिए ही इन्होंने इतनी भागदौड़ की और आज इन्हें मेरे दर्द से कोई मतलब नहीं… 

फिर सलोनी के साथ शोभा जी डॉक्टर के पास जाकर आती है सलोनी अपने ननदो को कहती है.. इन्हें अभी आराम और देखभाल की काफी जरूरत है… तभी इनके घुटनो का सूजन घटेगा… फिर शिव्या ज्योति ने वह कहा, जिसकी उम्मीद ही शोभा जी को थी… वह दोनों अपने ससुराल चली गई.. पर इस बात से शोभा जी की नजरों में किसी की अहमियत बढ़ गई… सलोनी के सेवा सत्कार से वह जल्द ही स्वस्थ हो गई और इधर सलोनी के मां बनने की खुशखबरी भी सबको मिल गई… समय बितता गया और आज सलोनी की गोद भराई का रस्म चल रही थी… शिव्या और ज्योति भी आई हुई थी..

 शिव्या:   मां बच्चे का बहाना बनाकर यह आराम करना चाहेगी, पर आप बिल्कुल भी मत सुनना.. काम और बच्चे सभी कुछ हर औरत को संभालना पड़ता है..

ज्योति:   हां अपने सेहत का ध्यान रखना इसके चक्कर में आप बीमार मत पड़ जाना… जब से आए हैं हम बस देख रहे हैं आप इसकी खातिरदारी में लगी हो…

 शोभा जी:   तुम दोनों अपना ज्ञान अपने पास रखो.. तुम दोनों के बच्चे भी तो यही में हुए हैं ना..? मेरे पास फिर तुम दोनों ने भी कम खातिरदारी नहीं करवाई अपनी..? पर जब मां को तुम्हारे सेवा की जरूरत थी तब भाग खड़ी हुई.. अब मेरे जीवन में तुम लोगों से ज्यादा सलोनी की अहमियत है.. जो सुख-दुख में मेरे साथ खड़ी रहती है… बहुत प्यार कर लिया अपनी दोनों बेटियों को अब तीसरी बेटी की बारी है… यहां रस्मों में आई हो उन्हें निभाओ और अपने-अपने घर जाओ… यह कहकर शोभा जी जूस का ग्लास सलोनी को थमा कर उसे प्यार से पिलाने लगी और शिव्या, ज्योति वहीं बैठे हुए अपनी मां की बदली अहमियत में बदला हुआ किरदार देखने लगी..

धन्यवाद 

#अहमियत 

रोनिता कुंडू

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!