बेटियां मायके मे बेटे का नही एक माँ का फर्ज निभाती है – संगीता अग्रवाल

” माँ एक ऐसा शब्द जो दुनिया का सबसे छोटा शब्द है पर है कितना विशाल । इस एक शब्द मे औलाद की सारी दुनिया समाई होती है और ये शब्द जब है से थी मे बदलता है तो लगता है सारी दुनिया उजड़ गई हो । माँ है से माँ थी तक आना बच्चो … Read more

खूबसूरत रिश्ता – संगीता अग्रवाल

वो बदहवास सी एक दिशा मे दौड़े जा रही थी ना उसे इस बात का पता था कि उसे जाना कहाँ है ना इस बात का भान था कि वो जा कहाँ रही है । डरी सहमी सी थी वो और जहाँ उसके कदम ले जा रहे थे वो भागी जा रही थी बस । … Read more

जिंदगी की जंग – संगीता अग्रवाल 

” अरे कमला काकी तुम यहां कैसे ?” चेताली हैरानी से बोली।

” हां बहुरिया मुझे पता लगा तुम्हारी काम वाली काम छोड़ गई तो सोचा पूछ लूं कि मैं वापिस से आ जाऊं !” कमला काकी बोली।

” पर काकी आप इस उम्र में फिर से काम करने आई हैं सब ठीक तो है ना ?” चेताली बोली।

” हां बहुरिया !” ये कहकर कमला काकी जमीन पर बैठ गई उनकी आंखों में आंसू थे जो चेताली से छिपे नही।

” काकी आप रो रही हो ?” चेताली हैरानी से बोली।

” नही बहुरिया वो क्या है ना की बाहर धूल उड़ रही शायद कोई तिनका गिर गया हो….आप मुझे काम बता दीजिए फिर मुझे घर भी जल्दी जाना है !” कमला काकी उठते हुए बोली।

” रुको कमला काकी बैठो वापिस और मुझे बताओ बात क्या है आखिर ?” चेताली कमला काकी को वापिस बैठाती हुई खुद भी जमीन पर ही बैठ गई।

 

कमला काकी चेताली के यहां कई साल से नौकरी करती थीं। जब चेताली दुल्हन बन इस घर में आई उससे पहले से उम्र में काफी बड़ी होने के कारण चेताली के पति, देवर ननद सब उन्हें काकी बोलते थे चेताली भी काकी ही बोलने लगी। काकी एक किस्म से घर की सदस्य ही थी चेताली की सास की विश्वासपात्र थी वो उनकी मृत्यु के बाद भी काकी चेताली के यहां काम करती रही।

कमला काकी अपने परिवार के बारे में ज्यादा नहीं बताती थी पर हां इतना पता था उनका बस एक बेटा है पति की मृत्यु बेटे के बचपन में ही हो गई थी। आज से चार साल पहले कमला काकी ने ये कहकर नौकरी छोड़ दी थी कि उनके बेटे को दूसरे शहर अच्छी नौकरी मिल गई और वो अपने बेटे बहु पोते पोती के साथ वही जा रही हैं। चेताली को ये सुनकर काकी के जाने का दुख तो हुआ था पर उनके बेटे की तरक्की देख खुशी भी हुई थी कि चलो काकी को अब घर घर काम नही करना पड़ेगा। पर आज ऐसा क्या हुआ जो काकी को वापिस उसी शहर में और अपने उसी काम पर लौटना पड़ा।




” वो बहुरिया…!” काकी कुछ बोलते हुए सकपका रही थी।

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काश मैंने बेटे की जगह पति और पिता बनकर फैसला लिया होता!! – संगीता अग्रवाल  

” माफ कीजिएगा मांजी आपकी बहु के मरी हुई संतान पैदा हुई है !” नर्स बाहर आ उमा जी से बोली। ” क्या ….और मेरी पत्नी कैसी है ?” उमा जी की बजाय उनके बेटे रक्षित ने पूछा। ” वो अभी बेहोश हैं असल में बच्चे की नॉर्मल डिलीवरी करवाने की चक्कर में उन्होंने पहले … Read more

शादी बचाने के नाम पर कब तक जुल्म सहेंगी?? – संगीता अग्रवाल 

स्वाति के कानों में अभी भी अपने पति करण के कहे शब्द गूंज रहे थे ..” तुम हो कौन क्या वजूद है तुम्हारा तुम जो खाना खाती हो या जो महंगे महंगे कपड़े पहनती हो ये सब मेरी बदौलत है वरना तुम्हारे बूढ़े मां बाप की सामर्थ तुम्हे पटरी से सौ रुपए के कपड़े लेकर … Read more

बहू ये तुम्हारा कंगला पीहर नहीं संपन्न ससुराल है – संगीता अग्रवाल

रविवार की सुबह सरगम अपने बालकनी में खड़ी थी क्योंकि आज  पति की छुट्टी रहती हैं इसलिए नाश्ता तैयार  नहीं करना होता है.  आराम से बालकनी में खड़े होकर ठंडी ठंडी हवा का लुत्फ ले रही थी.  तभी उसकी नजर नीचे गली में पड़ी शर्मा जी अपनी बेटी से कह रहे थे, “नहीं बेटा क्यों … Read more

कलयुग नही मतलबी युग चल रहा है – संगीता अग्रवाल

“बेटा तुम्हारी माँ की तबियत सही नहीं है वो हर पल तुम्हे याद करती हैं एक बार तुम आ जाओ गांव वैसे भी दो साल हो गए तुम्हे यहां आए हुए !” हरिहरण जी अपने बेटे सोमेश से फोन पर बोले। “ओहो बाबूजी मां की तबियत खराब है तो उन्हें डॉक्टरको दिखाओ मेरे आने से … Read more

धन्य है तू भारत की नारी- संगीता अग्रवाल

” क्या हुआ प्रीतो तू यहां अंधेरे मे क्या कर रही है ?” रंजीत अपनी पत्नी के पास आ बोला। ” कुछ नही वो मैं बस यूँही !” प्रीति जिसे रंजीत प्यार से प्रीतो बोलता था वो नज़रे चुराती हुई बोली। ” तू रो रही है प्रीतो एक सच्चे सिपाही की बीवी होकर ऐसे रोना … Read more

दिल से बंधा खूबसूरत रिश्ता – संगीता अग्रवाल

“मिताली अगले हफ्ते राखी है तो दीदी आ रही हैं राखी लेकर एक दिन पहले बोल रही थी रात को रुककर राखी वाले दिन सुबह निकल जाएंगी उनकी नन्दों को भी आना है ना इसलिए !” मिताली के पति चेतन ने ऑफिस से आकर कहा। “हम्म …हां कुछ कहा क्या आपने?” मिताली जो कहीं खोई … Read more

वो बदनाम गलियां – संगीता अग्रवाल

क्या ये बदनाम गलियां ही अब मेरा मुकदर होंगी… क्या मैं कभी खुल कर नही जी पाऊंगी….क्या मुझे यहीं घुट घुट कर जीना पड़ेगा । मेरा नाम मेरी पहचान मेरा वजूद सब खो जायेगा..,? कांता बाई के कोठे के अंधेरे कमरे में पड़ी सत्रह साल की वैशाली ये सब सोच रही थी। वो जितना इस … Read more

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