बेटियां मायके मे बेटे का नही एक माँ का फर्ज निभाती है – संगीता अग्रवाल

” माँ एक ऐसा शब्द जो दुनिया का सबसे छोटा शब्द है पर है कितना विशाल । इस एक शब्द मे औलाद की सारी दुनिया समाई होती है और ये शब्द जब है से थी मे बदलता है तो लगता है सारी दुनिया उजड़ गई हो । माँ है से माँ थी तक आना बच्चो ओर खासकर एक बेटी के लिए बहुत बड़ी क्षति होती है।क्योकि उनका तो मायका ही माँ से होता है !” डायरी लिखती हुई सविता ने अचानक देखा उसकी डायरी का पन्ना तो आंसुओ से भीग गया। ” उफ़ माँ के बाद माँ के बारे मे लिखना ही कितना पीड़दायक है।

” क्या बात है यार तेरे मजे है लड़कियां मायके आने को तरसती है और तू तो परमानेंट मायके मे आ गई है !” अचानक उसकी दोस्त शालू घर आई और बोली।

” हाँ मजे ही तो है !” सविता दुखी स्वर मे बोली।

” क्या बात है इतना दुखी क्यो है और ये क्या तेरी आँख मे आंसू …क्या हुआ यार ऐसा ?” शालू परेशान हो बोली।

” कुछ नही बस डायरी लिख रही थी कि अचानक तू आ गई !” सविता बात को टालते हुए बोली।

” नही नही कुछ तो हुआ है बता ना डायरी लिखते हुए कोई कैसे रो सकता है !” शालू बोली।

” रो सकता है ना जब माँ के बारे मे लिखा जा रहा हो वो भी उस माँ के जो दुनिया मे नही तो आंसू खुद ब खुद बह जाते है ।” सविता बोली।

” ओह्ह पर यार तू ये सोच कर खुश हो ना कि तुझे तो शादी के इतने सालो बाद फिर से पीहर रहने का मौका मिल रहा है वरना किसको मिलता है ऐसे !” शालू उसका मन बहलाती हुई बोली।




” शालू ये सुनने मे बहुत अच्छा लगता है कि पीहर मे रहने का मौका मिल रहा है पर सही बताऊं एक तो जहाँ इतने साल रहकर आएं हो उस जगह को भूलना आसान नही होता दूसरी बात एक बेटी का सौभाग्य है कि उसे अपने पिता की सेवा का मौका मिल रहा है पर ये भी सच है कि अपने पिता और अपनी बहनो की माँ बनना आसान नही है । उम्र के इस मोड़ पर जब खुद की जिंदगी ठहराव चाहती है तब नई जिम्मेदारियों की चादर ओढ़ना आसान नही होता !” सविता उदास स्वर मे बोली।

” ओह्ह मतलब तू यहां खुश नही !” शालू बोली।

” ऐसा भी नही शालू कि पिता की सेवा कर मैं खुश नही अपने सास ससुर की भी की थी जबतक वो थे । अपने फर्ज से मुंह नही मोड़ती मैं कभी पर ये भी सच है जिस घर मे माँ की यादे चप्पे चप्पे मे हो वहाँ खुद को माँ की जगह देना आसान नही होता। पहले कभी ससुराल मे उकता जाती थी या थोड़ा सुकून ढूंढती थी तो मायके खिंची आती थी अब देखा जाये वो भी खत्म हो गया क्योकि मैं खुद अपनी बहनो का मायका बन गई हूँ ।” सविता बोली।

” ये तो सही कहा तुमने पर मैं यही कहूँगी ईश्वर ने तुम्हे इस काम के लिए सोच समझ कर ही चुना होगा ।” शालू बोली।

” वो मैं जानती हूँ क्योकि माता पिता की सेवा भी नसीब वालों को मिलती है पर फिर भी ईश्वर से ये दुआ करूंगी किसी बेटी के सामने ऐसी परिस्थिति मत लाना कि उसे अपने मायके आना पड़े अपनी बहनो की अपने पिता की माँ का किरदार निभाना पड़े बल्कि हर बेटी अपने मायके आये तो उसे उसकी माँ मिले उसके लाड लड़ाती उसकी भाभी मिले उसके साथ मुस्कुराती !” सविता बोली।

” तू सही बोल रही है पर यार तू सबकुछ तो अच्छे से निभा रही है मानती हूँ तेरे ऊपर जिम्मेदारियां है लेकिन तू कितनो की प्रेरणा भी तो है ! कितनी बेटियां सोचती है उन्हे ये सौभाग्य मिले कि वो माँ बाप की सेवा कर सके तुझे तो मिला है ये मौका समाज से , अपनों से लड़कर तू यहाँ आई है फिर भी खुश नही !” शालू बोली।




” शालू ये सच है मैं अपने रिश्तेदारो , समाज सबसे लड़कर अपनी मर्जी से यहाँ आई हूँ पर यहाँ कण कण मे माँ की यादे बसी है नौ साल पहले के सभी दृश्य फिर मेरी आँखों के आगे तैरते है । रातो को नींद मे उठ बैठती हूँ । कभी सोचती हूँ मुझसे कोई चूक ना हो जाये । कभी लगता है ये जिम्मेदारिया मैं निभा भी पाउंगी । कभी बहुत थक जाती हूँ सब करते करते तब लगता है कि कोई मेरे भी नाज़ उठाये । मैं दो बच्चो की माँ थी अब भले बहनो की भी माँ बन उनका मायका जिंदा किया फिर से पर हूँ तो मैं भी इंसान ही मुझे भी तो माँ चाहिए जो सिर्फ इस घर मे महसूस होती है पर है नही कही नही !” सविता लगभग रो पड़ी।

” समझ सकती हूँ मैं दोस्त तेरे मन के हाल पर जो समाज से अलग कुछ करते है वही इतिहास लिखते है और तू भी एक इतिहास लिख रही है साथ ही एक ऐसा बदलाव कर रही है जिसमे माँ बाप बुढ़ापे का सहारा सिर्फ बेटे को नही बेटी को भी बोलेंगे । और तू क्यो सोचती है तेरा कोई नही तेरी माँ है ना भले दिखती नही !” शालू बोली।

” सच कहा माँ है और उसी माँ से वादा है मेरा मैं एक अच्छी बेटी होने के साथ साथ एक अच्छी माँ बनकर दिखाउंगी उनकी जगह नही ले सकती पर उनके घर को हमेशा संभालूंगी !” सविता अपने मन की बात कर हल्की हो गई थी इसलिए मुस्कुरा दी। 

” ये हुई ना बात !” शालू उसे गले लगाते हुए बोली।




दोस्तों सुनने मे भले ये बहुत अच्छा लगता है कि बेटी होकर सब फर्ज निभा रही या माँ बाप की सेवा का मौका मिला खुशनसीब है पर ये एक बेटी ही जानती है वो इस तरह मायके आ ना तो बेटी का फर्ज निभाती है ना बेटे का वो तो बन जाती है एक माँ अपने पिता की माँ अपने भाई बहनो की माँ । जिसके लिए उसे शाबाशी तो मिलती है पर ये वो ही जानती है ऐसा करना आसान नही होता। पर ये भी सच है आसान काम करने वाले इतिहास नही लिखते और समाज मे बदलाव लाने के लिए कुछ तो खोना पड़ता है। वैसे भी इस जिम्मेदारी का भी अपना मजा है । 

आपकी दोस्त

संगीता ( स्वरचित)

साहित्य जो दिल को छू जायें के लिए

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