कलयुग नही मतलबी युग चल रहा है – संगीता अग्रवाल

“बेटा तुम्हारी माँ की तबियत सही नहीं है वो हर पल तुम्हे याद करती हैं एक बार तुम आ जाओ गांव वैसे भी दो साल हो गए तुम्हे यहां आए हुए !” हरिहरण जी अपने बेटे सोमेश से फोन पर बोले।

“ओहो बाबूजी मां की तबियत खराब है तो उन्हें डॉक्टरको दिखाओ मेरे आने से क्या होगा। पैसे की जरूरत है तो मैं भेज देता हूं चंदर भैया ( पड़ोसी) से बोल निकलवा लेना आने का समय कहां मेरे पास !” ये बोल सोमेश ने फोन काट दिया।

बेचारे हरिहरण जी फोन को देखते ही रह गये । उन्हें तो ये कहने का मौका भी नहीं दिया बेटे ने कि पैसों से ज्यादा कई बार अपनों के साथ की जरूरत ज्यादा होती है और दवाई से ज्यादा बच्चों का प्यार असर करता है। बेटे को पढ़ाया लिखाया अच्छी परवरिश देने को खुद को भूल गए मां बाप। शहर में नौकरी लगी अपनी पसंद से शादी की सबमें मां बाप साथ रहे पर उसके बाद बेटे ने मां बाप को साथ नहीं रखा और आज जब माँ को बेटे की जरूरत है तो बेटे ने कहा दिया उसके पास समय नहीं । कैसा घोर कलयुग चल रहा है कलयुग क्या मतलबी युग चल रहा है ये तो जहां कुछ लोग खून के रिश्ते भी मतलब से निभाते हैं।

” हैलो सोमेश चंदर बोल रहा हूं तुम्हारी माँ और हमारी चाचीजी परलोक सिधार गई तुम जितनी जल्दी हो सके आ जाओ !” कुछ दिन बाद सोमेश के पास पड़ोसी का फोन आया।

“ओहो… भैया आप सब इंतजाम कीजिए मैं आता हूं ज्यादा समय नहीं इसलिए एक दिन में सब निपटाना पड़ेगा !” सोमेश बोला।

“देखो सोमेश परिवार को साथ लेकर आना गांव का मामला है बाकी तुम खुद समझदार हो !” ये बोल चंदर ने फोन काट दिया।

किसी तरह पत्नी को समझा कर( क्योंकि पत्नी मानसी को गांव जाना पसंद नहीं था ) बेटे और उसे ले सोमेश गांव को रवाना हुआ। सब काम निपटा कर चार दिन बाद सोमेश पिता से विदा लेने आया।

” बाबूजी अब हम चलेंगे वहां नौकरी है तो ज्यादा छुट्टी नहीं ले सकते हम दोनों !” सोमेश हरिहरण जी से बोला।



“बेटा मुझे भी साथ ले चल तेरी माँ भी नहीं रही मैं अकेला यहां क्या करूंगा !” रोते रोते हरिहरण जी केवल इतना बोले।

” बाबूजी अकेले कहां हो आप सब अपने ही तो हैं यहां फिर इस घर में माँ की यादें है !” सोमेश पत्नी को देखता हुआ बोला।

” सब हैं पर मेरा बेटा नहीं होगा यहां तो मैं क्या करूंगा तू ले चल मुझे तेरी माँ की तरह मैं भी तुझे देखने को तरसते हुए इस दुनिया से नहीं जाना चाहता !” हरिहरण जी बेटे से लिपट कर बोले ।

सोमेश ने असहाय दृष्टि से मानसी को देखा। उसने अपने पिता को इतना लाचार कभी नही देखा था शायद माँ के जाने का ज्यादा ही सदमा लगा था उन्हे।

” सुनो सोमेश वहां इनके लिए जगह कहां है तीन कमरों का तो घर है हमारा वैसे भी मैं ये सब नहीं चाहती मुझसे नहीं होगा बन्धन में रहना अब तुम किसी तरह इन्हे टाल दो!” मानसी सोमेश को कौने में ले जा बोली।

“मम्मी दादू मेरे कमरे में रह लेंगे यहां अकेले कैसे रहेंगे अब वो पहले तो फिर भी दादीजी थी !” पंद्रह वर्षीय तुषार बोला।

” तुम बड़ों के बीच मत बोलो तुषार तुम्हे अंदाज़ा भी है तुम्हारे रूम में दादा रहेंगे तो तुम्हारी पढ़ाई पर कितना असर पड़ेगा !” मानसी तुषार को आंख दिखाती हुई बोली।

खैर हरिहरण जी को अगली बार ले चलने का कह बहला फुसला कर सोमेश अपने परिवार के साथ चला गया। हरिहरण जी कितनी बार फोन करते “बेटा मुझे आकर ले जा ” पर सोमेश हर बार टाल जाता । पता नहीं एक बेटा अपना फर्ज भूल गया था या पत्नी के कारण उसकी मजबूरी थी।

वक़्त गुजरने लगा आठ साल बीत गए इस बीच सोमेश 2-3 बार अकेला ही गांव गया हर बार पिता बेटे से वहीं कहते “मुझे भी अपने साथ ले चल” पर बेटा हर बार टाल जाता। अब तो पोता भी जवान हो गया था। इंजिनियर बन गया था।




” मम्मी मेरा कैंपस प्लेसमेंट हो गया है पूरे 25 लाख का पैकेज है !” एक दिन तुषार ने घर आ ये खुशखबरी सुनाई ।

” बस बेटे ऐसे ही तरक्की करते रहो!” मां बाप दोनों ने आशीर्वाद दिया।

” मम्मी मैने एक फ्लैट देखा है डॉउन पेमेंट का भी दे दी है !” अर्श ने कुछ महीनों बाद एक और खुशखबरी सुनाई।

” अरे वाह मतलब अब हम ये तीन कमरों के छोटे से घर से निकल कर बड़े फ्लैट में जाएंगे !” मानसी खुश होते हुए बोली।

“मम्मी मेरे घर में आप लोगों के लिए जगह नहीं वो फ्लैट तो मैने दादू के लिए लिया है कल ही जा रहा हूं मैं उन्हें लेने गांव से !” तुषार सपाट लहजे में बोला।

“ये क्या कह रहा है बेटा हमने तुझे पढ़ाया लिखाया इस काबिल बनाया और आज तेरे घर में हमारे लिए जगह नहीं !” सोमेश आहत हो बोला।

“पापा पढ़ाया तो दादी दादा ने भी था आपको पर आपके घर में उनके लिए जगह नहीं मैने दादी के मरने पर दादू की लाचार आंखे देखी थी जो बेटे के साथ को तरस रही थी। उस वक़्त मैं छोटा था कुछ कर नहीं सकता था पर तभी मैने सोच लिया था बड़ा होकर दादू के लिए घर बनाऊंगा .. !” तुषार बोला।

“पर बेटा हम तुम्हारे बिना कैसे रहेंगे?” मानसी आंख में आंसू ला बोली।

“ऐसे ही जैसे दादू रह रहे अब तक … मैं दादू को लेने जा रहा हूं चार दिन बाद मेरे दादू के घर हरिहरण सदन का मुहरत है आपके पास फुरसत हो तो जरूर आइएगा एड्रेस मैं भेज दूंगा आपको !” ये बोल तुषार निकल गया। मानसी और सोमेश आंखों में आंसू और पश्चाताप लिए उसे जाते देखते रहे।

दोस्तों बच्चे वहीं सीखते जो देखते अगर आप चाहते भविष्य में आपके बच्चे आपके साथ रहें तो आप अपने माता पिता के लिए भी अपने घर और दिल दोनों में जगह रखिए। अगर आज आप सोमेश और मानसी जैसे बेटा बहू हैं तो कल तुषार जैसा बेटा होने पर आपको गिला करने का हक नहीं।

तुषार का फैसला सही था या गलत ये मैं आपसे पूछती हूं? उम्मीद है जवाब जरूर मिलेगा।

आपकी दोस्त

संगीता

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