स्वाति के कानों में अभी भी अपने पति करण के कहे शब्द गूंज रहे थे ..” तुम हो कौन क्या वजूद है तुम्हारा तुम जो खाना खाती हो या जो महंगे महंगे कपड़े पहनती हो ये सब मेरी बदौलत है वरना तुम्हारे बूढ़े मां बाप की सामर्थ तुम्हे पटरी से सौ रुपए के कपड़े लेकर देने की भी नही है…बड़ी आई मेरे आगे जबान चलाने वाली !
आज की नहीं ये हर दूसरे दिन की बात है हर दूसरे दिन उसे ये एहसास करवाया जाता है कि उससे शादी करके करण ने एहसान किया है उसपर ….स्वाति का खर्च उठाना करण को दिखता पर स्वाति का किया काम नजर नही आता ….क्या सच में घरेलू औरत का कोई वजूद नही होता ….क्या पति जो उनपर खर्च करता वो एहसान होता? क्या पत्नी के बिना पति का घर घर होता है ..? पति का वंश बढ़ाने को पत्नी जान पर खेल जाए। पति के मकान को घर बना दे ….उसके माता पिता की सेवा में जुटी रहे पर तब भी कोई नाम नहीं बस नाम है तो पति का क्योंकि वो कमाता है।
ऐसा पहली बार नही हुआ जब स्वाति का आत्मसम्मान छलनी हुआ हो …गरीब घर में पैदा हुई स्वाति की जिंदगी में एक जो खुशी भरा दिन था वो था करण के घर से रिश्ता आना फूली नही समाई थी स्वाति अभावों में पली बड़ी हुई स्वाति के लिए अमीरी एक सपना था जो अब पूरा होने वाला था। पर स्वाति ये नही जानती थी कि शादी के बाद उसकी जिंदगी खुशनुमा नही होगी बल्कि एक सोने का पिंजरा होगी जहां हर पल उसके वजूद को छलनी किया जाएगा। करण एक नंबर का शराबी है इसलिए गरीब घर की लड़की उसके लिए देखी गई
जो चुपचाप सब सह ले। शादी के बाद करण को अपना गुस्सा निकालने को एक गुड़िया मिल गई थी जब तब उसे जलील करता रहता। करण के घर वालों ने शादी के बाद वैसे ही पल्ला झाड़ अलग कर दिया इन्हे कि तुम जानो तुम्हारा काम जाने। स्वाति भी गरीब मां बाप की सोच सब सहती रही क्योंकि उनका कहना यही था कि बेटा अब वही तुम्हारा घर है हम जो कर सकते थे कर दिया तुम्हारे लिए बस अब तुम वहीं रहो हमे और बच्चे भी तो देखने हैं।
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आज स्वाति को इस सोने के पिंजरे में घुटन होने लगी। ” बस अब और नही …ऐसी जिंदगी से अच्छी तो मौत है…!” ये सोच स्वाति निकल गई घर से बाहर …घूमते घूमते वो समुंद्र के पास आ गई क्योंकि उसका घर मुंबई में समुंद्र के पास ही है….!
उसने कोशिश की के इस शांत समुंद्र की गोद में चुपचाप सो जाऊं जाकर ….पर इससे किसी को क्या कोई फर्क पड़ेगा ? नहीं स्वाति कौन थी कुछ दिनों में लोग भूल जायेंगे…..तो क्यों वो अपनी जान दे… नही वो अपनी जान नही देगी ……तो क्या वापिस उस नर्क में चली जाएगी और रोज अपने शरीर के साथ साथ आत्मा पर भी घाव सहती रहेगी? ….हार मान लेगी?
” नही मैं हार नहीं मानूंगी … ना अपने वजूद अपनी आत्मा को अब छलनी करूंगी …नही सहना अब कुछ भी भले मेहनत मजदूरी करनी पड़े पर ये सब नही सहूंगी !” उसने खुद से कहा।
” पर क्या इस दुनिया में एक लड़की अकेले रह सकती है?” उसे एक आवाज सुनाई दी जो उसके अंतर से ही आई थी।
” हां क्यों नही औरत चाहे तो क्या नही कर सकती …इतनी औरतें अकेली रहती हैं ना मैं भी रह लूंगी ..फिर इतनी एनजीओ हैं जो दुखी महिलाओं की मदद करती मैं उनसे मदद ले लूंगी छोटी मोटी नौकरी कर लूंगी….!” ये बोल उसने समुंद्र किनारे अपना दुपट्टा और फोन गिरा दिया ….जिससे लोगों को लगे उसने आत्महत्या कर ली और करण उसे ढूंढने की भी कोशिश ना करे और खुद घर से कुछ रुपए ले निकल गई एक अनजाने शहर में अपने वजूद की तलाश में। जहां भले महंगे कपड़े जेवर नहीं होंगे पर आत्मसम्मान तो होगा।
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दोस्तों बस यही दुआ है स्वाति आगे की जिंदगी आत्मसम्मान के साथ जी सके और करण कभी उस तक ना पहुंच सके।
अक्सर मैं सुनती देखती शादी के नाम पर औरतें बहुत कुछ सहती और यही कहती मैं क्या कर सकती हूं। यहां मैं सभी बहनों से कहना चाहूंगी अगर किसी का भी आत्मसम्मान शादी के नाम पर छलनी होता है तो अपने लिए अपने वजूद की तलाश के लिए कोई कदम जरूर उठाइए।
आपकी दोस्त
संगीता अग्रवाल