पुनः एक बार – श्वेता सोनी : Moral Stories in Hindi

रात नींद के आगोश में समाने ही जा रही थी कि मोबाइल के पटल पर प्रकाश जगमगा उठा, नाम पढ़ा.. अनुराधा.. उंगलियों ने अपने कदम पीछे हटा लिए आज इतने दिनों बाद कैसे अनु ने फोन किया था, स्मिता समझने की कोशिश कर नहीं पाई कि फोन कट गया.. वापस फोन लगाने की हिम्मत ही नहीं हुई, कितना लंबा वक्त बीत गया ना, इतने बरस..लगभग छः या सात वर्षों तक स्मिता का कोई संपर्क नहीं रहा अनु से.

मन अनायास बीते दिनों के गलियारे में घूम आया.. अनु स्मिता की छोटी बहन थी, बुआ की लड़की,मगर बहन से कहीं बढ़कर रिश्ता था उनके बीच, स्मिता बहुत चाहती थी अनु को, उम्र का अंतराल उन दोनों के बीच कभी नहीं आया. अनु हर बात कह लेती थी स्मिता से, स्मिता सब कुछ बाँट लेती थी..अनु से.

 बहन तो होती ही है दोस्त मगर इसे दोस्ती की तरह निभा भी ले जाए यह बड़ी बात होती है. कुछ कारण बन गए ऐसे कि बुआ और पापा का मतभेद हो गया, कुछ इतनी भी बड़ी बात नहीं थी बाद में यह दूर भी हुआ मगर शिग़ाफ रह गया,मन का भेद मिट भी जाए, लगाव में वह तासीर नहीं रह जाती, पहले सी

 इस बीच वक्त अपनी रफ्तार से बीता, स्मिता विवाह बंधन में बँध गई और दो-चार साल बाद अनु भी, मगर दोनों ही दोनों की ही शादी में शरीक़ ना हो पाईं, वक्त का क्या फैसला होगा यह कोई नहीं जानता वरना अनु ने अपनी स्मिता दीदी की शादी में जीजा जी के जूते चुराने का सपना देखा था.. स्मिता ने अपने छोटे  बहनोई के द्वार छिकाई का ख्वाब देखा था.. मगर.. 

खैर..

इधर स्मिता अपनी शादी के बाद पति, बच्चों में मशगूल हो गई, अनु की शादी की खबर मिली तो थी उसे मगर आमंत्रण नहीं मिला, बहुत मन था उसका जाने का,मन मसोस कर रह गई,कारण यह भी था कि स्मिता की अपनी कोई छोटी बहन न थी.

 फिर किसी ने किसी को न पूछा समय बीतता रहा,अचानक किसी रिश्तेदार से पता चला था कि अनु की शादी एक गलत इंसान से और गलत परिवार में हो गई हाँलाकि शादी तो बहुत धूमधाम से हुई,बुआ ने औकात से बाहर जाकर दहेज दिया, शादी की मगर जाने क्यों अनु के पति ने उसे पत्नी वाला दर्जा दिया ही नहीं,ठीक से स्मिता को भी कुछ पता नहीं था मगर मन में अनु से बात करने की चाह ने उसे इधर-उधर भटकाया और उसका नंबर मिला, कॉल भी किया मगर किसी ने नहीं उठाया,, कई-कई बार फोन मिलाया मगर कोई उत्तर नहीं, हार कर स्मिता ने फोन करना छोड़ दिया.

 चाहती थी कि अनु से कहे.. क्या हुआ अगर कोई तुम्हें पसंद नहीं करता वह तुम्हें छोड़ें, इससे पहले तुम उसे अस्वीकार कर दो. मगर मन का मन में ही धरा रह गया.

 एकाद बार बुआ से मिलना भी हुआ मगर उन्होंने भी ठीक से कुछ नहीं बताया.. कुछ अधकही सी बातों में यह जरूर कहा कि हमारे घर में लड़कियाँ मान मर्यादा को ताक पर नहीं रखती,अपनी जान की हद तक सहन करने की कूबत रखती हैं, अगर रिश्ता टूट गया तो..लोग क्या कहेंगे और जाने क्या-क्या..इस बीच पाँच बरस बीत गए फिर एक दिन पता चला कि अनु को बुआ और फूफा वापस ले आए हैं..लड़के वालों से हर रिश्ता तोड़कर.

 सुनकर सुकून मिला, लगा कि जैसे यही स्मिता चाह रही थी, वह खुद भी तो एक अनचाहे बंधन को निभा रही थी मगर उसके तो पापा है नहीं, मां अकेली क्या ही करेगी.

कभी-कभी जो हम अपने लिए नहीं कर पाते,उसे दूसरों के लिए होते देखना एक सुखद अनुभूति होती है. अनु बहुत सीधी थी गाय जैसी,क्यों कर वह किसी का अत्याचार सहे.

 बात करने की फिर कोशिश की थी स्मिता ने जब वह ससुराल से वापस आई थी लेकिन अनु ने फोन ही नहीं उठाया. पता चला था कि वह अवसाद ग्रस्त हो गई है.उसके जैसी भावनाओं में बह जाने वाली लड़कियाँ जल्दी किसी भी फैसले के साथ जीना शुरु नहीं कर पातीं. स्मिता तड़पती थी उसे बहुत कुछ समझाने के लिए मगर वह बात ही नहीं करती थी.

आज अचानक उसी का फोन आया था.. दूसरे दिन सुबह स्मिता ने अनु को फोन मिलाया.. दूसरी तरफ से उसकी आवाज़ आई ..आवाज़ भी.. शब्द भी.. और आँखें भी..गीली हो आई. कुछ देर तक उसने बातें की,कहा,..दीदी मेरे नसीब में ही कोई खुशी नहीं है,मैं उसके लायक नहीं थी या वही मेरे योग्य नहीं था मगर दोनों में नुकसान एक अकेले मेरा ही तो है. इतने बरस तक मैं उस घर में नौकरानी बनकर रही,सास से लेकर देवर तक सब मुझे आदेश देते रहे, पति ने कभी पत्नी वाला सुख दिया ही नहीं, मैं पाँच बरस उस घर में केवल घर का काम ही करती रह गई, दीदी..इसी डर से कि वापस मायके आ गई तो लोग क्या कहेंगें.. फिर धैर्य ने जवाब दे ही दिया.. मैं वहां रहती तो मर ही जाती.. शायद.

 मुझे लगा कि क्या जीवन इस एक सवाल पर कुर्बान कर देना चाहिए कि लोग क्या कहेंगें..

 नहीं,, बिल्कुल नहीं,गुड्डो.. यह जीवन सिर्फ हमारे अपने सवालों का जवाबदेह है,दुनिया के नहीं. तुमने लौटकर सही किया और अब वापस जाकर गलत मत करना…

स्मिता ने बरसों से दबी मन की बात एक साँस में कह दी.

“मगर दीदी जब से यहाँ आई हूँ बीमार ही हूँ  बाहर निकलती हूँ तो नज़रें झुका कर अड़ोस पड़ोस वालों की नजर का सवाल चुभता है…क्या बात हुई होगी…

 भविष्य के लिए कुछ भी सोच नहीं पाती..हँसती हूँ तो लोग कहते हैं कि इतने बड़े दुःख में हँस कैसे रही है.. रोती हूँ तो लोगों के ताने..अब रोने से भी क्या फायदा..अब तो जिंदगी बर्बाद हो ही गई.. कुछ करने जाती हूँ तो लोग पूछते हैं..अनु अब यही रहेगी क्या..

 दीदी, मैं क्या करूँ, समझ में नहीं आता..

अनु बेबसी से बोली..

स्मिता ने कहा.. अनु,लोगों के पास तुम्हारे जख्मों पर छिड़कने के लिए नमक तो बहुत होता है, मरहम की कमी होती है.. तुम अपनी आगे की पढ़ाई को पूरी कर लो कुछ भी होने और पाने के लिए आत्म विश्वास एक मात्र अवलंब है.. इसे हारना मत.

 अनु से बातें करके मन भारमुक्त हो गया.ईश्वर से यही मनाती रही कि जीवन पथ पर निरंतर चलती रहे वह अबाध.. और कहीं.. किसी मोड़ पर.. कोई सच्चा सहचर.. उसे मुस्कुराता हुआ खड़ा मिले.. जीवन शुरू किया जा सकता है… पुनः एक बार..

         आज अनु ने मैसेज किया था…

दीदी,,मेरा भविष्य,, अब मुझे अपने सपने में मुस्कुराता हुआ मिलता है.

              श्वेता सोनी

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