खूबसूरत रिश्ता – संगीता अग्रवाल

वो बदहवास सी एक दिशा मे दौड़े जा रही थी ना उसे इस बात का पता था कि उसे जाना कहाँ है ना इस बात का भान था कि वो जा कहाँ रही है । डरी सहमी सी थी वो और जहाँ उसके कदम ले जा रहे थे वो भागी जा रही थी बस । अचानक हां अचानक वो एक पत्थर से टकराई पर इससे पहले कि वो मुंह के बल नीचे गिरती दो मजबूत बाजुओं ने उसे थाम लिया । कुछ देर को वो जड़ सी हो गई । डर के मारे उसने अपनी आँखे बंद कर ली थी इसलिए वो खुद को संभालने वाले का चेहरा भी नही देख पाई। धीरे धीरे उसने अपनी उखड़ी साँसों और अपने डर पर काबू पाया और आँखे खोली।

आँख खुलते ही उसे एक मर्दाना कमर नज़र आई क्योकि उसे बचाने वाला शख्स कही जाने को मुड़ चुका था।

” सुनिए !” उसने एक तरफ घबराहट मे देखते हुए उस शख्स को आवाज़ लगाई ।

” जी !” बिना मुड़े उस शख्स ने कहा।

” प्लीज अभी मत जाइये वरना वो लोग !” इतना बोल वो चुप हो गई ।

” कौन लोग आप कौन है यहाँ कैसे आई और किससे डरी हुई है आप ?” उस शख्स ने अभी भी बिना पलटे ही पूछा।

” जी वो लम्बी कहानी है पर प्लीज अभी आप मुझे छोड़ कर मत जाइये !”ये बोल वो खुद उस शख्स के पास आ गई पर जैसे ही उसने उस शख्स के चेहरे की तरफ देखा वो दो कदम पीछे हट गई। पर तभी उसे एक तरफ हलचल सी सुनाई दी तो वो शख्स जल्दी से उसका हाथ पकड़ कर एक तरफ भागा। भागते हुए उस लड़की ने साफ महसूस किया कि उस शख्स के पैर मे दिक्कत है ।

” अब बताइये आपको कहा जाना है मैं छोड़ देता हूँ !” उस शख्स ने थोड़ी देर बाद पूछा।

” मेरा इस शहर मे कोई नही है !” उसने सिर झुका कर कहा।

” फिर आप क्या करेगी , कहा रहेंगी ?” वो शख्स बोला । उस लड़की को चुप देख उसने फिर उसका बाजू पकड़ा और एक दिशा में बढ़ चला। वो लड़की थोड़ा सहमी हुई थी ।

” देखिये मेरा नाम विकास है मैं यही पास मे रहता हूँ घर मे कोई नही मेरे पर आपको विश्वास दिलाता हूँ आप सुरक्षित रहोगी वहाँ !” वो शख्स बोला ।




” जी मेरा नाम नियति है मैं मेरठ की रहने वाली हूँ आज से करीब दो महीने पहले मेरा अपहरण करके एक बदनाम गली मे ले आया गया तबसे खुद को हवस के भेड़ियों से बचाने के लिए जुल्म सह रही हूँ पर आज जबरदस्ती मुझे परोस दिया गया तो मैं किसी तरह उस भेड़िये के चंगुल से भागी उसी के आदमी मेरा पीछा कर रहे थे कि मैं आपसे टकरा गई । पर आपका ये ?” वो लड़की जिसका नाम नियति था अपनी बात अधूरी छोड़ चुप हो गई। तब तक विकास का घर आ गया था ।

” आप यहां आराम से बैठिये ! मैं जानता हूँ मेरा चेहरा देख आप डर गई है । ये मेरा चेहरा एक एक्सीडेंट की देन है जिसमे मैं बच गया पर मेरा चेहरा नही । डॉक्टर ने प्लास्टिक सर्जरी को बोला पर वो मेरी हैसियत से बाहर थी। ” विकास जिसके चेहरे पर जगह जगह टांको और चोट के निशान थे बोला।

” आपका परिवार ?” नियति ने पूछा।

“एक कुरूप और बेरोजगार पति की पत्नी बनना उसे मंजूर नही था माँ बाप का तो पता ही नही था अनाथ जो था पत्नी भी छोड़ गई अकेला था अकेला ही रह गया !” बेहद दर्द भरी आवाज़ मे वो शख्स बोला।

” ओह!” नियति सिर्फ इतना बोल पाई।

” आपको भूख लगी होगी मैं कुछ लाता हूँ !” विकास बोला।

” नही नही आप मुझे रसोई बता दीजिये मैं बनाती हूँकुछ ।”नियति बोली। विकास के बहुत मना करने पर भी जब नियति नही मानी तो उसने उसे रसोई दिखा दी । नियति जल्दी से खाना बना लाई और विकास को दिया साथ ही खुद भी खाने लगी ।

” बहुत स्वादिष्ट खाना है आज कितने समय बाद खाने को मिला है !” खाना खाते हुए विकास बोला। नियति जो उसके चेहरे को देख पहले खौफजदा थी अब उसे डर नही लग रहा था बल्कि अब उसे विकास पर तरस सा आ रहा था वो अपने गम से दुखी है पर ये शख्स तो शायद उससे ज्यादा दुखी होगा उसने तो फिर भी अपनी इज़्ज़त बचा ली पर इस शख्स पर तो शायद कुछ नही बचा। ये सोच उसके गालों पर आंसू लुढ़क आये।

” आप घबराइए मत कल मैं आपको आपके घर भेजने की कोशिश करता हूँ क्या आपके पास आपके घर का फोन नंबर होगा ?” विकास अचानक बोला। उसकी बात सुन नियति को होश आया कि उसे अपने घर फोन भी तो करना है।




” जी आप मुझे अपना फोन दे सकते है ?” खाना एक तरफ रख नियति अधीरता से बोली। विकास ने उसे फोन दे दिया वो साइड मे जाकर नंबर मिलाने लगी।

” हेलो माँ मैं नियति !” फोन मिला नियति ने बोला पर वहाँ से फोन कट गया नियति कभी फोन को कभी विकास को देखने लगी उसकी आँखों से आंसू बहने लगे। विकास अपना खाना खत्म कर नियति के पास आया और फोन ले वही नंबर मिलाया और उसे स्पीकर पर डाल दिया। दो बार मिलाने के बाद तीसरी बार फोन उठा। इस बार कोई मरदाना आवाज थी।

” हम किसी नियति को नही जानते आइंदा यहाँ फोन मत करना और हां यहां आने की जुर्रत तो बिल्कुल ना करना क्योकि दुनिया वालों और हमारी नज़र मे नियति मर चुकी है !” वहाँ से आवाज़ आई।

” पापा मेरी बात तो सुनिए मेरा अपहरण हुआ था !” नियति रोते हुए बोली।

” अब बाते मत बना मैं तेरा पापा नही अब तू अपने यार साथ ही रह और हमें भी शांति से रहने दे !”ये बोल वहाँ से फोन काट दिया गया।

नियति धम से वही बैठ गई । ये क्या बोल रहे है पापा यार के साथ ?पर मैं भागी थोड़ी थी। अब क्या करूँ कहाँ जाऊं मैं ! रोते हुए उसके मन मे अनेक सवाल थे।  विकास ने उसे थोड़ी देर रोने दिया । फिर उसकी खाने की प्लेट ला उसके पास बैठ गया और उसे खिलाने लगा।

” देखो नियति कुछ घटनाएं हमारी जिंदगी मे ऐसी घटती है जिनपर हमारा जोर नही होता कसुरवार ना होते हुए भी हमें उस घटना की सजा  भुगतनी पड़ती है । पर इससे जिंदगी खत्म नही होती हमें जीना पड़ता है और जीने के लिए खाना तो खाना पड़ेगा ना !” विकास बोला । विकास की बातों ने मानो जादू का सा असर किया नियति ने मुंह खोल दिया अपना। थोड़ा सा खाना खा नियति ने प्लेट ले ली विकास के हाथ से और रसोई मे चली गई।




” आप आराम कीजिये विकास जी और मेरी चिंता मत कीजिये मैं अपना कोई बंदोबस्त कर लूंगी !” वापिस आ नियति बोली।

” यहां तुम सो जाओ नियति मैं बाहर सोफे पर सोता हूँ तुम दरवाजा बंद कर लेना और हां खबरदार जो कुछ गलत करने की सोची खुद के साथ । तुम इस घर मे जब तक चाहो रह सकती हो एक दोस्त की हैसियत से । मेरा चेहरा भले अच्छा नही पर मैं दोस्त बहुत अच्छा हूँ!” विकास आखिरी लाइन बोलते हुए हंस दिया जवाब मे नियति भी फीकी हंसी हंसदी।

अगले दिन नियति ने वहाँ से जाने की इच्छा जाहिर की पर विकास ने उसे जाने ना दिया । विकास का काम घर से ही चलता था तो वो सारा दिन अपने काम मे लगा रहता नियति घर संभालती। मोहल्ले मे किसी को भनक तक नही थी कि इस घर मे कोई औरत भी रहती है । क्योकि विकास के घर कोई आता नही था और अभी नियति भी बाहर नही निकलती थी।

साथ रहते रहते और एक दूसरे की आदत देख दोनो मे एक रिश्ता सा बन गया था। नियति को अब विकास का चेहरा कुरूप नही लगता था बल्कि उसकी शराफत और अच्छाई देख अब उसे वो दुनिया का सबसे खूबसूरत शख्स लगता था। अब दोनो एक दूसरे से खुलने लगे थे । घंटो बाते करने लगे थे कभी अपने बचपन की कभी खुद के साथ हुए हादसे की। दोनो मे जो रिश्ता बना था उसका कोई नाम नही था पर था बहुत खूबसूरत ।

“विकास जी ऐसे मैं कब तक आप पर बोझ बनी रहूंगी चार महीने बीत गये मुझे यहाँ रहते। अब मुझे लगता है मुझे कोई काम तलाशना चाहिए !” एक दिन नियति बोली।

” नियति तुम मुझपर बोझ नही हो बल्कि तुम्हारे आने से तो मैं फिर से जीने लगा हूँ ये मेरा घर अब घर लगने लगा है मैं जानता हूँ मेरा तुम पर कोई  हक नही कोई रिश्ता जो नही तुमसे पर फिर भी मैं तुमसे वादा करता हूँ तुम्हे यहाँ सारी जिंदगी कोई कष्ट नही होगा !” भावनाओं मे बह विकास दिल कीबात बोल गया । नियति उसे एकटक देख रही थी। उसे भी विकास के साथ की आदत पड़ गई थी वैसे भी एक औरत जिसकी छत्र छाया मे खुद को सुरक्षित महसूस करे जो शख्स उसे इज़्ज़त दे वो शख्स भले कैसा भी हो उस औरत के लिए परफेक्ट होता है।

” हक नही है तो हक जता दीजिये ना !” नियति उसकी तरफ देख बोली।

“मतलब !!” विकास हैरानी से बोला।

” मतलब हमारे बीच कोई रिश्ता ना होकर भी एक रिश्ता बन गया है भले बेनाम तो अगर आप चाहे तो इसे खूबसूरत नाम दे सकते है !” नियति ये बोल वहाँ से अंदर आ गई। विकास उसकी बातो का अर्थ समझ एक पल को खुश हो गया क्योकि मन ही मन चाहने लगा था वो नियति को ।लेकिन तुरंत उसे अपनी स्थिति का भान हुआ तो वो अंदर भागा।

” पर नियति मैं कैसे मतलब हमारे बीच कैसे कोई रिश्ता जुड़ सकता है मेरा चेहरा !” विकास इतना बोल रुक गया।

” विकास जी मैं जिन बदनाम गलियो से आई हूँ उनसे आने वालियों को ये समाज स्वीकार नही करता मेरे माँ बाप तक ने मुझसे रिश्ता तोड़ दिया पर आपने मुझे ना केवल अपने घर मे जगह दी बल्कि मान भी दिया अब इस रिश्ते को एक खूबसूरत नाम दे दीजिये और मुझे अपने घर के साथ जिंदगी मे भी जगह दे दीजिये !” ये बोल नियति ने विकास की पत्नी की सिंदूर की डिब्बी इसके सामने कर सिर झुका लिया विकास ने उसमे से सिंदूर उठाया पर कुछ सोच रुक गया।

” नियति ये फैसला भावनाओं मे बहकर तो नही ले रही तुम कभी कल को तुम्हे अफ़सोस हो अपने फैसले पर !” विकास बोला।

” मुझे इस खूबसूरत रिश्ते पर हमेशा गुमान रहेगा !” ये बोल नियति ने सिर झुका दिया चुटकी मे लिया सिंदूर विकास ने उसकी मांग मे भर दिया और अपने और नियति के बीच के रिश्ते को एक नाम दे दिया। नियति विकास के गले लग गई विकास ने उसे यूँ बाहो मे भर लिया मानो वो बहुत अनमोल है। सिंदूर भरने के बाद भी विकास ने उसपर हक नही जताया बल्कि उसने नियति को उसके माता पिता से मिलाने की इच्छा जाहिर की जिसे नियति ने नकार दिया जो माँ बाप उसे मरा मान चुके उनके पास जा खुद और उन्हे वो दुख नही देना चाहती थी। अगले दिन दोनो ने मंदिर मे विधिवत विवाह किया तब जाकर उनका खूबसूरत रिश्ता एक सुखद अंजाम पर पहुंचा।

#एक_रिश्ता

आपकी दोस्त

संगीता ( स्वरचित और अप्रकाशित )

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