रिश्ता गुलाब सा – सीमा वर्मा

यह कहानी उस वक्त की है जब मैं जिला स्कूल की क्लास नाइन में पढ़ता था।

हम सब मतलब मैं और मेरा भाई जो मुझसे तीन साल छोटा है तब वो क्लास सिक्स्थ में था।

 उस घटना का प्रभाव मेरे दिल- दिमाग पर बाद के‌ दिनों तक छाया रहा था। क्योंकि तब दुनिया इतनी फैली हुई और विस्तार वादी नहीं हुई थी।

ना ही माहौल , आज की तरह खुला हुआ था।  खास कर  हमारा बिहार प्रान्त तो अधिक पिछड़े श्रेणी में आता था।

बहरहाल ,

उन्हीं दिनों हमारे स्कूल में फिजिक्स की नयी टीचर ‘ कुमकुम सिंह मैडम ‘ आईं थीं।

वो दिखने में बहुत खूबसूरत और अविवाहित थीं। अभी नयी- नयी की ही पासआउट थीं।  यह उनकी पहली नौकरी लगी थी।

वे हमें बहुत अच्छी लगती वो कभी भी हममें से किसी को डांटती नहीं थीं  किसी भी बात को बहुत प्यार से समझातीं।

मेरे स्कूल में हिंदी के एक और टीचर थे ‘ राम नारायण सर’  वे बहुत हंसमुख थे एवं कभी भी किसी स्टूडेंट्स से उन्हें गर्म हो कर बोलते नहीं सुना गया था। बात- बात हंसना-हंसाना यह उनका सबसे प्यारा शगल था।

कुमकुम मैडम और भारती सर की आपस में खूब बनती थी।

यह बात पांच सितम्बर की है। उन दिनों शिक्षक दिवस के दिन स्कूल के सभी शिक्षको को कुछ ना कुछ उपहार देने का रिवाज था।

लिहाज़ा मैं भी गुलाबी रंग का एक बड़ा सा खूबसूरत गुलाब सुनहरे रंग के चमकीले कागज में रैप करके कुमकुम मैडम के लिए ले ले गया था।

जिसे देख कर वे बहुत खुश हुईं फिर एक लंबी सांस लेकर उसकी खुशबू को अपने अंदर खींच फूल टेबल पर यह कहते हुए रख दिया कि ,

” गुलाबी रंग तो प्यार का होता है “

मैं मायूस हो गया मुझे लगा शायद उन्हें पसंद नहीं आया।

लेकिन शायद मेरी मायूसी चेहरे पर झलक गई थी। इसलिए मेरे दुबारा  आग्रह करने पर फिर उन्होंने उस फूल को रामनारायण सर की मदद से अपनी लंबी चोटी में खोंस लिया।

हम बच्चों को बहुत खुशी हुई सभी हंसने लगे जिसमें  रामनारायण सर और कुमकुम मैडम भी शामिल थीं।

उस दिन के बाद से यह सिलसिला जारी रहा।

हमारे घर में मां ने गुलाब की कई झारियां लगा रखी थीं। मैं रोज एक गुलाब कुमकुम मैडम को दिया करता जिसे वे काॅमन रूम में जा कर अपने बालों में खोंस लिया करतीं। उस समय या बाद में जब कभी रामनारायण सर पर उनकी नजर पड़ती तो वे शर्मा जातीं तब उनका चेहरा उस गुलाब की तरह ही गुलाबी हो जाता।




एक बार वे गुलाबी साड़ी पहन कर आई थीं तब क्या बड़े और क्या बच्चे सब उन्हीं की तरफ देख रहे थे जब रामनारायण सर ने कहा था ,

“वाह !! क्या बात है “

उस दिन वे आसमान से उतरी गुलाबी परी लग रही थीं।

यों तो हम बच्चे थे पर इतने भी छोटे नहीं थे कि कुछ समझ नहीं सकें। उनके इश्क के चर्चे आम होने के बाद एक दिन कुमकुम मैडम की मां स्कूल में आई थी ंं और प्रिंसिपल सर के साथ ही सभी स्टाफ मेम्बर्स को उनकी शादी का कार्ड देते वक्त रामनारायण सर के पास ठहर गई थीं ,

” बेटे, तुम शादी में जरूर आना “

कुमकुम मैडम और रामनारायण सर की जाति अलग- अलग थी।

कुमकुम मैडम का रोते- रोते बुरा हाल था। वे बिल्कुल गुलाब के फूल की तरह कुम्हला गई थीं।

उसके बाद से रामनारायण सर भी रोज स्कूल आते तो थे पर वो बात नहीं रही। उनका सब हंसना- हंसाना गायब हो गया था। बिल्कुल गुमसुम से रहते।

उनकी दाढ़ी बढ़ गई थी और रंग सांवला पड़ गया था।

हम स्टूडेंट्स को जरा भी अच्छा नहीं लगता ।

मैं गुलाब का फूल तो रोज लाता था पर मैडम को देनें की हिम्मत नहीं पड़ती लिहाजा बैग में पड़े- पड़े ही वे मुर्झा जाते।

रविवार के दिन मां ने बस्ते की धुलाई करते वक्त उसमें ढ़ेर सारे मुर्झाए गुलाब देख कर मेरी ओर ताका था।

तो मेरी आंख से आंसू निकल पड़े।

मां समझ गई थी क्योंकि तब पटना जैसे छोटे शहर में कोई भी चर्चा तुरंत खास से आम हो जाया करती।

बहरहाल ,

शादी तय हो जाने और शादी की तारीख नजदीक आ जाने से कुमकुम मैडम लंबी छुट्टी में चली गई थीं।

अचानक से रामनारायण सर ने भी स्कूल आना बंद कर दिया।

पूरे शहर में तरह- तरह की चर्चा होने लगी थी।

स्कूल में हम सब परेशान थे। चारो तरफ तरह- तरह के अफवाहों के बाजार गर्म थे। हमारी परीक्षाएं भी प्रारंभ होने वाली थीं।

एक दिन सुबह – सुबह मेरी नज़र अख़बार में उन दोनों की छपी मनमोहक तस्वीर पड़ पड़ी थी ।

उन दोनों ने पहले सिविल कोर्ट जा कर कोर्ट मैरिज फिर आर्यसमाज मंदिर में विधिवत् शादी कर ली थी।

गुलाबी रंग के गुलाब की जगह दोनों के गले में लाल रंग के गुलाबों की बड़ी सी माला थी।

पूरे शहर में मानों भूचाल आ गया था। फि जिस पर धीरे – धीरे विराम लगा। जब कंपन कम होने लगा तब  उन दोनों ने फिर से स्कूल ज्वाइन कर लिया था।

जब पहले दिन वो दोनों एक साथ स्कूल में आए ऐसेम्बली में प्रेयर चल रहा था। हम स्टूडेंट्स की आंखें तो बंद थी पर सर की हंसी गुंजायमान हो रही थी।

लगभग सभी आंखें खोल कर उन्हें निहार रहे थे आज प्रिंसिपल सर भी हमारी इस गुस्ताखी पर हंस रहे थे।

कुमकुम मैडम के प्रवेश करते ही हमने जोर से हो… करते हुए उनका स्वागत किया।

रिटर्न में उन्होंने भी दोनों हाथ हिलाते हुए हमारे स्नेह पूर्ण रिश्ते के अभिवादन को स्वीकार करते हुए मेरी ओर देख कर मुस्कुराई।

आख़िर मैं उनका प्रिय स्टूडेंट् था।

उस दिन उन्होंने बालों में गुलाब के फूल तो नहीं लगाए थे पर मांग में भरे लाल सिंदूर की वजह से खुद ही गुलाब का फूल दीख रही थीं।

सीमा वर्मा / नोएडा

स्वरचित

#एक_रिश्ता 

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