पवित्र रिश्ता – पुष्पा जोशी

उस रिश्ते को मैं क्या नाम दूं, समझ नहीं पा रहा हूँ, उनसे मेरा कुछ तो रिश्ता है, उस रिश्ते को मैं नकार नहीं सकता.न उसका नाम मालुम है,न उम्र .सच माने तो मैंने उन्हेंकभी देखा भी नहीं है.कभी उसे देखने का विचार भी नहीं आया.उनके कंठ  से निकली स्वर लहरी सीधे मेरे दिल में उतरती रही और मैं उन स्वरसाधिका के स्वरों में कभी अपनी मॉं, कभी बहिन कभी अपनी प्रेमिका और कभी अपनी ईष्ट देवी की ध्वनि को महसूस करता रहा.

मैं ४ साल का था और मेरी माँ का साया मेरे सर से उठ गया.कहते हैं मेरी छोटी बहिन पैदा होने के दो घंटे बाद ही शांत हो गई.उसके हृदय की धड़कन कंट्रोल में नहीं आ रही थी, उसकी मृत्यु के सदमे में मॉं भी हमें छोड़ कर चली गई. मेरे पापा ने दूसरी शादी नहीं की .

उन्होंने ही मेरा लालन पालन किया और मुझे किसी चीज की कमी नहीं होने दी. वे हमेशा कहते ‘बेटा राज !मेरी पूरी दुनियाँ तो तू है.’ और मेरे लिए भी वे ही सबकुछ थे.खाली समय में पापा रेडियो सुना करते थे, विविध भारती पर बजने वाले पुराने सदाबहार गीत.छोटा था तो ज्यादा समझता नहीं था, मैं दसवीं कक्षा में आ गया था.अब मुझे भी समझ में आने लगा था कि पापा की ऑंखों में आने वाली नमी और अकेले में बैठकर गीतों को सुनने का कारण. मॉं की कमी उन्हें कितनी महसूस होती होगी, मेरे कारण उन्होंने दूसरा विवाह भी नहीं किया.मेरा मन पापा के लिए श्रद्धा से भरा रहता, और प्यार और विश्वास से उनका और मेरा रिश्ता दिल से दिल तक जाता था.

दिल से याद आया उस आवाज का,  जो रोज सुबह ६ बजे मंदिर की पवित्र घण्टी की तरह दिल पर दस्तक देती और मेरे दैनिक क्रियाकलापों के साथ मुझे ८ बजे तक भक्ति की धारा में बहाती रहती,

 मुझे लगता जैसे मैं किसी मंदिर के प्रांगण में हूँ,  और कोई देवी, तीर्थों का पवित्र जल मेरे सिर पर उढ़ेल रही है, मैं भक्ति में सराबोर हो रहा हूँ और पावन अनुभूति हो रही है.मेरे दिन की शुरुआत भक्तिमय होती.

फिर अपने दैनिक कार्यकलाप ९ बजे विद्यालय में उपस्थित होना, अपने केरियर को लेकर सजग रहना, अपने पापा की उम्मीदों पर खरा उतरने का प्रयास और इनके साथ मन में उठने वाली तरह-तरह की भावनाएं.उम्र का संधी काल था.मन का बहकना और सम्हलना दोनों क्रिया चलती रहती.पापा के दिए संस्कार हमेशा पैरो को अपने धरातल से जोड़े रहते.

और मन कल्पना की उड़ाने भरता. कभी नदियों की चंचल धाराओं सा बहता . ३ बजे स्कूल की छुट्टी होती और मेरे कदम जल्दी-जल्दी घर की ओर बढ़ते, या यूँ समझलो की मैं उस आवाज के वशीभूत हो खिचा चला आता. ४ बजे से फिर संगीत की लहरियॉं गूंजती, उसके लिए मुझे घर के बाहर जाने की आवश्यकता भी नहीं थी, मेरे कमरे की खिड़की से वह आवाज स्पष्ट सुनाई देती थी.उस समय पापा भी घर पर नहीं होते थे, मैं खिड़की के पास बैठा उन स्वर लहरियों मे खोया रहता.मुझे महसूस होता कि दिल के रिक्त कौने में कुछ मिठास घुलती जा रही है.मधुर प्रेम से सने गीत मुझे किसी अलग ही दुनियाँ में ले जाते. 

५ बजे तक मैं उन्हें सुनता.६ बजे पापा आ जाते और फिर हम दोनों साथ में रहते भोजन करते बाते करते और फिर सो जाते.कभी रात को भी वो मीठा संगीत सुनाई देता,और लगता जैसे माँ कहीं दूर से लोरियां सुना रही है.मैं अपने चारों ओर उनकी ममता की छाया का अनुभव करता और मीठी नींद में सो जाता.सुबह ६ बजे प्रभाती की तरह लगती वो आवाज मुझे जगा देती, एक सुकून और शांति का अनुभव होता, मेरी पूरी दिनचर्या में वो आवाज शामिल थी, फिर हुआ ना उससे मेरे दिल का रिश्ता.ये आवाज मेरे घर के सामने बनी पॉंच मंजिला इमारत के पॉंचवे माले से आती थी.मेरे घर से इमारत का पिछला हिस्सा नजर आता था,खिड़की से छनकर रंगबिरंगी रोशनी आती और वह मधुर स्वर लहरी किसी अलौकिक संगीत की तरह.

 कभी सोचा ही नहीं कि घूमकर जाऊँ और मंजिल का आगे का हिस्सा देखूँ.६ साल हो गए, इस आवाज को सुनते – सुनते.मैंने बी.काम की परीक्षा पास कर ली थी.पापा की इच्छा थी कि कुछ दिन गॉंव रह कर आऐं, मेरी इच्छा नहीं थी,ऐसा लग रहा था कि कुछ छूट रहा है मेरा यहाँ. मगर पापा की खुशी के लिए मैं भी गॉंव गया, वहाँ मेरे ताऊ और ताई रहते हैं,कुछ खेत हैं हमारे, जिनकी देखभाल भी वे ही करते हैं.गॉंव मे बहुत अच्छा लगा, ताऊ ताई ने बहुत प्यार से रखा मगर, मैं उस आवाज की कमी महसूस कर रहा था.

८ दिन बाद हम फिर अपने घर आए. मेरा मन प्रफुल्लित था कि मुझे फिर उस आवाज का सानिध्य प्राप्त होगा.मगर मुझे निराशा मिली.आज उस पॉंचवे माले पर न रोशनाई थी न कोई स्वर लहरी गूंज रही थी.मन बैचेन हो गया, आज मैं पहली बार गोल घूमकर उस इमारत के सामने की ओर गया. देखा तो सन्नाटा पसरा था बिल्कुल मेरे दिल की तरह. इमारत मे लगे पौधों के पत्ते पीले पड़ गए थे और नीचे झड़े पत्तो पर पैर रखने पर चरर मरर की आवाज आ रही थी.लग रहा था जैसे दिल में कुछ टूट  रहा है.

आसपास पूछने पर मालुम हुआ कि यह मकान बिक गया है यहाँ अब दुकाने बनने वाली है.मै उदास मन से घर आ गया. मेरी उदासी पापा से छुपी नहीं थी.मेरी बैंक में नौकरी लग गई थी, पापा ने सोचा शायद मुझे अकेलापन सता रहा है.मेरी शादी के लिए रिश्ते आ रहै थे.उन्होंने मेरे लिए महिमा का रिश्ता पसंद किया मेरी स्वीकृति मांगी, महिमा सुलझे हुए विचारों की, पढ़ी-लिखी लड़की थी.मुझे भी पसंद आ गई और हमारा विवाह हो गया.मगर उस आवाज से मेरा रिश्ता बना हुआ था, वह आवाज याद आती और मैं उसमें खो जाता.एक दिन महिमा ने कहा-‘ आप कहाँ खो जाते हैं?उस इमारत में ऐसा क्या है जो आप उसे देखते रहते हैं? क्या मुझे नहीं बताएंगे?

मेरे मन में कुछ चोर तो था नहीं कि उससे कुछ बात छिपाता, मैंने उसे सारी बात बता दी.वह बोली ‘अच्छा तो जनाब! ये बात है, अब तो उनसे मिलना पड़ेगा’ मै चौंक गया पूछ बैठा ‘कैसे मिलोगी न कोई पता है न ठिकाना’.’यह मुझे नहीं मालूम मगर मेरा मन कहता है हम उससे मिलेंगे जरूर.’  उस समय उसकी बात सुनकर मुझे हॅंसी आ गई.मैंने कहा ‘ठीक है जब मिलना होगा तब मिलेंगे अभी तो नींद आ रही है सो जाऐं.’

और फिर एक दिन, यह महिमा का विश्वास था, या मेरे अन्दर दबी किसी साध को पूरा करने की ईश्वर की इच्छा.हमारे कॉलेज में  पुराने विद्यार्थियों को मिलाने के लिए एक सम्मेलन का आयोजन हुआ, मुझे भी निमंत्रण मिला था.एक संगीत का कार्यक्रम भी था.महिमा और मैं भी उसमें शामिल होने के लिए पहुँचे.हमें पहुँचने में कुछ देर हो गई थी, और कार्यक्रम शुरू हो गया था, हॉल के दरवाजे पर पहुँच कर मेरे पैर ठिठक गए. वही चिरपरिचित आवाज मेरे कानो में पड़ी.मेरे दिल की धड़कन अचानक बढ़ गई थी, मैने महिमा का हाथ कसकर पकड़ लिया और उससे कहा-‘ यह वही आवाज है… वही आवाज…. ‘वह बोली ‘आप घबरा क्यों रहे हैं, यह तो अच्छी बात है’ उसने शायद मेरे भाव को समझा और मेरे हाथ को कसकर थाम लिया, मुझे अच्छा लगा.सामने मंच पर लाल बार्डर की क्रीम कलर की रेशमी साड़ी पहने वे गा रही थी,घने, लम्बे केश खुले हुए थे.

चालिस पेंतालिस की उम्र होगी उनकी, प्रथम द्रष्टया उनके प्रति मेरे मन में श्रद्धा का भाव आया.लगा जैसे वै कोई दैवी है और मैं उनका पुजारी.मेरी आँखे बंद हो गई, और मैं उन स्वर लहरियों में खो गया था.तालियों की गड़गड़ाहट से मेरा ध्यान भंग हुआ.उन्होंने उपस्थित सभी जनो का अभिवादन किया और वे चली गई.फिर सभी मित्र आपस में मिले और सबने भोजन किया, महिमा किसी से मिलने का कहकर कुछ देर के लिए मुझसे दूर गई, इतने समय बाद सब मित्रों से मिलकर मन प्रसन्न था.कुछ देर वहाँ रूक कर हम घर आ गए. मन में कुछ उमड़ घुमड़ रहा था,वह कैसा भाव था मुझे भी समझ में नहीं आया.




शाम को लगभग छह बजी थी किसी ने द्वार पर दस्तक दी, महिमा ने दरवाजा खोला,मैंने देखा तो मेरे आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा.वे मेरे घर आई थी.एक सौम्य प्रतिमूर्ति.मैं अचकचा कर खड़ा हो गया कुछ समझ ही नहीं पा रहा था, कि यह क्या हो रहा है.महिमा ने कहा- ‘ये माया देवी हैं, मैने  इनको  निमंत्रण देकर बुलाया है, इनके पास समय नहीं था मगर मेरे आग्रह को मानकर ये हमारे घर आई मैं बहुत खुश हूँ.’ मैंने हाथ जोड़कर उनका अभिवादन किया. महिमा ने फिर उनसे कहा ‘ माया जी आपकी संगीत लहरियां इनके जीवन की अमूल्य निधि है, ये हमेशा उसे याद करते हैं,

 उस इमारत को देखते रहते हैं.माया जी उठी और खिड़की के पास जाकर उस इमारत को देखने लगी, उनकी ऑंखों मे नमी तैर गई थी.वे फिर अपनी जगह आकर बैठ  गई. महिमा नाश्ता लेने गई तो एक चुप्पी सी छा गई. फिर हिम्मत करके मैंने कहा- ‘सुना है कि यह मकान बिक गया है आप और यह… मकान…. ‘  मेरे शब्द लड़खड़ा रहै थे.महिमा  नाश्ता लेकर  आ गई थी.एक लम्बी सांस लेकर उन्होंने कहा- ‘यह हमारा पैतृक मकान था, पापा की सरकारी नौकरी थी और तबादला होता रहता था.यह मकान किराये से दे रखा था.उनके रिटायर होने के बाद सोचा था यहाँ आकर रहेंगे.

मगर एक एक्सिडेंट मे उनका देहांत हो गया, माँ और मैं इस मकान में आए और ६ साल ही रह पाए.मेरे दोनों भाई ने मकान पर दावा लगा दिया था.दोनों को सिर्फ पैसो से मतलब था. माँ मेरे साथ ही रहती थी, मैं एक प्राइवेट स्कूल में संगीत शिक्षिका हूँ.जब भाइयों ने मकान पर दावा लगाया तो माँ को पेरालिस़िस का अटेक आ गया.मैं कोर्ट कचहरी में पढ़ना नहीं चाहती थी,

 इसलिए मकान बेचकर उन भाइयों का हिस्सा उन्हें दे दिया और माँ को लेकर दूसरे गाँव में छोटा मकान लेकर रहने लगी.मॉं का बहुत इलाज कराया.मगर वे भी मुझे छोड़ कर चली गई’ .उनकी ऑंखों से ऑंसू रहै थे,बह  वे बोली ‘जब महिमा ने घर का पता बताया तो अपने इस मकान को एक बार नजर भरकर देखने की इच्छा हुई और मैं आ गई.पता नहीं कब यह इमारत ढह जाएगी. अब चलती हूँ.महिमा और मेरा मन भी भारी हो गया था, महिमा ने उनका पता ले लिया था.जब वे जाने लगी मुझे पता नहीं क्या हुआ मैने झुककर उनके दोनों चरण पकड़ लिए, उनका भी हाथ मेरे सिर पर था, उनकी ऑंखों के अश्रु और मेरे अश्रु का क्या संबंध था, नहीं जानता पर ये दोनों पवित्र थे.वे चली गई और..

#एक_रिश्ता 

प्रेषक-

पुष्पा जोशी

स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित

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