अनचाहे दिल के मेहमान  – रश्मि प्रकाश : Moral stories in hindi

बहुत सालों से अकेले रहने की आदत पड़ जाए तो घर में एक भी इंसान का यूँ अचानक से आना कितना तनाव देने लगता है ये नवल और पुनीता से बेहतर कोई नहीं समझ सकता। 

यहां तक की बच्चों को भी किसी और का आना खलने लग गया था।

दस सालों से उनके पास दूरियों की वजह से कभी कोई आया भी नहीं था पर इस बार की गर्मी की छुट्टियाँ उनके लिए मुसीबत बन कर आने वाली थी या फिर कुछ अलग होने वाला था ये सब तो उन्हें भी पता नहीं था।

‘‘ सुनो इस बार गाँव से माँ बाबूजी यहां आने वाले हैं, बहुत समय से माँ को साँस लेने में तकलीफ़ हो रही है , गाँव में बाबूजी दिखा चुके हैं…पर ठीक नहीं हो रहा ऐसे में एक बार यहाँ बुलाकर दिखा देते हैं..हो सकता है सही इलाज मिले तो ठीक हो जाए…वो लोग दो दिन बाद ही आ रहें है,तुम्हारे स्कूल की भी छुट्टियां चल रही है तो तुम आराम से उनका ध्यान रख सकती हो।बच्चों को बोल देना हमारे कमरे में शिफ्ट हो  जाएँगे…वो कमरा माँ बाबूजी के लिए खाली कर दें।”कहकर नवल ऑफिस निकल गए

नवल ने पुनीता के किसी सवाल जवाब को सुनने तक रूकना मुनासिब न समझा… पुनीता के चेहरे पर तनाव दिखने लगा था …

यूँ तो माँ बाबूजी ही आ रहे थे फिर पुनीता परेशान क्यों हो रही थी।

दो कमरों के घर में छः लोग मुश्किल तो था पर कर भी क्या सकते थे।

बच्चों को जब बोला गया कि अपना सामान शिफ्ट कर लो तो उन दोनों के चेहरे पर भी तनाव आ गया…उफ़ ये क्या मुसीबत..अच्छा खासा हम मजे से रह रहे थे अब मम्मी पापा के कमरे में ऽऽऽ दोनों एक दूसरे का मुँह देख ग़ुस्सा कर रहे थे पर फ़ायदा तो कुछ होना जाना था

फिर भी एक कोशिश करते हुए कुहू और कुश ने एक सुर में कहा,”क्या माँ ऽऽऽऽहमारे कमरे में क्यों रहना उन्हें? बाहर हॉल में व्यवस्था कर दो ना। हम अपना रूम खाली नहीं करने वाले।”

ये अनुभव सबके लिए नया था क्योंकि कभी ये सब चारों के अलावा अपने घर में किसी को रहते हुए देखे भी तो नहीं थे।

खैर समझा बुझाकर पुनीता ने बच्चों के कमरे में सास ससुर के लिए जगह बना दी और दोनों लग गए अपना ज़रूरी सामान शिफ़्ट करने में।

दो दिन बाद मां बाबूजी आ गए।

गाँव से निकल कर शहर की आबोहवा उनके हिसाब से बिल्कुल भिन्न थी।

बड़े बड़े अपार्टमेंट में छोटे छोटे घर, रास्ते भर गाड़ियों की लंबी कतार देख कर दोनों परेशान हो रहे थे पर इलाज करवाना ज़रूरी है ये सोच कर आ गए थे ।

फ्लैट में आते ही उन्हें बंद बंद सा घर लगा ।

पुनीता की माँ ने कहा था गाँव से सास ससुर आने वाले है तो पजामा टीशर्ट नहीं पहनना..साड़ी पहन लेना क्या पता उन्हें अच्छा नहीं लगे तो पुनीता साड़ी पहन कर खड़ी थी ।

सास ससुर आकर फ्रेश होने बाथरूम जाना चाहते थे।

अब वेस्टर्न स्टाइल के बाथरूम में कैसे जाए ये भी उनको समझाना पड़ा।

खैर कोई चारा तो था नहीं। 

मजबूरी में हर वो काम करने पड़ते हैं जो कभी नहीं किए हो…

और ऐसे में तनाव आने वाले को भी होता ही है जब आपकी दैनिक दिनचर्या भी प्रभावित होने लगती हैं या यूँ कहें आदतों को बदलने की मजबूरी हो जाती है ।

रात को जब सोने का समय हुआ…नवल बाहर हॉल में सोने आ गया। 

बाबूजी ने देखा तो बोले ,”बेटा हमारा बिस्तर भी इधर ही लगा दें साथ में सो जाते….बहुत सालों बाद तो तेरे से बात करने का मौका मिला है।”और लगे हाथ कुश को भी अपने पास बुला लिया।

तभी माँ ने कहा,‘‘ बहू तुम चाहो तो कूहू और तुम हम तीनों एक साथ ही एक कमरे में सो जाते है….कुछ बातें भी हो जाएगी और मेरी पोती को जी भर कर देख सकूँगी ।”

पुनीता ने माँ की बात मान ली और सोचने लगी दोनों कमरों में तीन तीन लोग तो आराम से सो ही सकते हैं ।

हॉल से बिस्तर हट गया।

रात को सास ने कहा,”बहू ये साड़ी पहन कर कैसे सो पाएगी ? मुझे तो आदत है शहर में लोग कुछ और पहनते हैं ना तुम तो बस अपने आराम वाले ही कपड़े पहनो….हमारे रहने से खुद को बंधन में मत रखो….बेटा इज्जत इनसे नहीं दिल से दी जाती और वो तो तुम हमें दें ही रही हो…गाँव में रही हूँ बहू ….पर शहर के रहन सहन से बेखबर नहीं हूँ …वो सीरियल में सब देखती हूँ ना” कह कर वो हंस दी थी

पुनीता मन ही मन सासू माँ की सीरियल वाली बात पर हँस कर कपड़े बदल आई सच में वो भी सोच रही थी आदतें बदलने का सोचते ही तनाव घर कर जाता है उसे भी साड़ी पहनने की आदत नहीं थी और सोते वक्त तो उसे भी दिक़्क़त महसूस हो रही थी …अब चैन की नींद आयेगी सोच कर वो सोने की कोशिश करने लगी 

कुहू को तकिए पर पैर रखकर सोने की आदत थी वो तकिया रखे तो जगह कम पर रही थी। दादी ने कहा,”मेरे उपर पैर रख ले कुहू इसी बहाने तुम मेरे पास तो रहोगी।”

कूहू को अजीब तो लगा पर दादी के उपर पैर रखने में उसे मजा भी आया।

पता चला बचपन में पापा की भी यही आदत थी। दादा दादी के मुंह से पापा की बातें सुनकर बच्चों को मजा आ  रहा था।

धीरे धीरे बच्चे दादा दादी के साथ घुल मिल गए। 

इलाज के बाद सास जब भी घर में रहती पुनीता की रसोई में मदद किया करती। कितने पकवान ऐसे बनाएँ जो नवल को पसंद थे पर पुनीता को आते ही नहीं थे। 

बच्चे भी दादी के हाथ का खाना खाकर वाह वाह करते।

पुनीता आज तक एक जैसा ही खाना बनाती आई थी, इतने तरह के स्वाद का आनंद लें कर उसे भी मजा आ रहा था।

जिनके आने से पहले घर में तनाव का माहौल बना हुआ था आज उनके साथ से खुशियां दुगुनी हो गई थी।

नवल ने माँ का इलाज अच्छे से करवा दिया था। 

अब वो काफी हद तक ठीक हो गई थी।

एक दिन दोनों ने नवल से कहा,”बेटा अब हम वापस गाँव जाना चाहते हैं तुम हमारी टिकट करवा दो।”

बच्चे जब सुने तो दौड़ कर आए और कहने लगे,”आपको हमारे साथ रहना अच्छा नहीं लगा? क्यों जाना चाहते हैं आप लोग? हम तो बस आप सब से दो तीन दिन मिलकर चले आते थे पर पहली बार आपके साथ रहने का मौका मिला, आप हमसे इतना प्यार करते हैं फिर भी जाना चाहते हैं?”

 ‘‘ बेटा हमारा घर तो गाँव में है ….हम तो कुछ दिनों के मेहमान बन कर यहाँ आए थे….अब जाना होगा।”दादी ने प्यार से बच्चों के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा

“आप दोनों मेहमान नहीं हैं…ये आपके बेटे का घर है मतलब आपका घर भी हुआ ना …मान लो कल को मैं बड़ा हो जाऊँगा ….पापा मम्मी से दूर रहूँगा और जब वो मेरे पास आएँगे तो क्या मेहमान होंगे?? नहीं ना वो तो उनका भी घर होगा।” कुश के मुँह से इतनी बड़ी बात सुन सब उसकी सोच पर दंग रह गए

दादा दादी से कुछ भी कहते ना बना 

बच्चों के साथ साथ पुनीता ने भी गुज़ारिश की रूकने की पर गाँव  का जमीन जायदाद देखने की बात कह कर वो रूकना नहीं चाहें … हाँ पर उन्होंने एक वादा किया कि साल में एक महीने के लिए ज़रूर वो अपने बच्चों के पास आएँगे।

आखिर सबने एक दूसरे को इतने प्यार से दिल में जो जगह दिया था पहले जिनके आने का सोच कर तनाव हो रहा था अब उनके जाने का सोच कर होने लगा था ।

कभी कभी किसी का आना सुनकर ही मुसीबत लगने लगता है चाहे वो कोई भी हो पर जब उनका व्यवहार देखते हैं तब समझ आता है हम बेवजह ही तनाव लेकर बैठ जाते है.. कुछ लोग सच में तनाव देते भी हैं पर कुछ तनाव कम कर अपनापन दे जाते हैं ।

क्या आपके साथ भी कभी ऐसा हुआ है किसे के आने से तनाव का माहौल बन गया पर उनके आने के बाद महसूस हुआ हम बेकार ही तनाव ले कर बैठे थे?

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धन्यवाद

रश्मि प्रकाश

#तनाव

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