जीवन अमूल्य है – गीता वाधवानी : Moral stories in hindi

तनाव एक छोटा सा शब्द और न जाने कितनी छोटी-छोटी बातें इसे हमारे जीवन में फ्री फंड में ले आती है। आज पानी नहीं आया तनाव, मेड नहीं आई तनाव, घर से निकलनेमें देरी की वजह से ऑफिस पहुंचने में देरी फिर तनाव, बच्चे पढ़ नहीं रहे तनाव, किसी से तू तू मैं मैंहो गई तनाव। यह तो हुई छोटी-छोटीबातें, लेकिन जीवन में कभी-कभी ऐसी समस्याएं आ जाती है कि तनाव भयंकर रूप धारण कर लेता है और इंसान कई बार गलत कदमउठाने के बारे में सोचने लगता है। उस समय उसे यह भी याद नहीं रहता की कि उसके बिना उसके परिवार पर क्या बीतेगी। 

ऐसे ही तनाव में थी लतिका। उसके माता-पिता चाहते थे कि वह पढ़ाई लिखाई करके डॉक्टर बने। गरीब दंपति पूरी मेहनत करके उसकी पढ़ाईके लिए पैसा जमा कर रहे थे। लतिका का एक छोटा भाई और एक छोटी बहन भी थी। भाई आठवीं कक्षा में और बहन छठी क्लास में पढ़ती थी। 

लतिका फैशन डिजाइनिंग का कोर्स करनाचाहती थी, पर मम्मी-पापा से कह नहीं पा रही थी। उनके ऊपर और दो बच्चों की जिम्मेदारी भी थीं। उन्हेंभी तो पढाना था। लतिका ने एमबीबीएस के लिए बेमन से प्रवेश परीक्षा दी और उसका परिणाम अच्छा नहीं आया। वह बहुत तनावमें थी। उसके कारण मम्मी-पापा उदास थे यह बात उसे बहुत खल रही थी। 

उसके मम्मीपापा ने घर की छत पर उसकी पढ़ाई के लिए एक छप्पर डालकर छोटा सा कमरा बनवा दिया था। वह वहां बैठकर अपनी असफलता पर रोती रही। उसकी मम्मी ने उसे खाना खाने के लिए आवाज़ लगाई, जब वह नीचे आई, तब उसकी सूजी हुई आंखें देख कर उसके पापाने कहा-“इतना उदास होने की क्या जरूरत हैबेटा, अगली बार और मेहनत करना, फिरपरीक्षा देना।” 

लतिका ने कुछ नहीं कहा। सुबह जब लतिका के पापा जागे तो देखा कि लतिका फैशन डिजाइनिंग के बारे में मोबाइल में कुछ देख रही है। उन्होंने ज्यादा गौर नहीं किया। उन्हें लगा  

 

कि बच्चे मोबाइल में कुछ ना कुछ देखते ही रहते हैं। वह अपनी दुकान पर चले गए। 

लतिका ने दोबारा पेपर दिया, इस बार भी असफलता हाथ लगी। अबउसे लगने लगा कि मैं अपने माता-पिता के सपने को कभी पूरा नहीं कर सकती। मैं एक असफल लड़की हूं। मैं नाकारा हूं। मैं छोटे भाई बहन के लिए कभीकुछ नहीं कर पाऊंगी। बार-बार असफलहोने वाले व्यक्ति का जीवन व्यर्थ है। वह बहुत ज्यादा तनाव में थी। वह सारी बातें एक कागज पर लिखती जा रही थी और उसने खुद को समाप्त करने का पूरा मन बना लिया था। 

अगली सुबह जब टीवी में समाचार चल रहे थे। लतिका के मम्मी-पापा भी समाचार देख रहे थे, तभी पढ़ाई का दबाव ना सह सकने के कारण एक बच्चे ने आत्महत्या की, ऐसा एक समाचार आया और फिर उसके बाद एक्सपोर्ट्स की राय। बच्चों पर दबाव न डालें। हर बच्चा अलग होता है। हर बच्चे की प्रतिभा भी अलग होती है। बच्चों पर अपनी इच्छाएं ना थोपे और बच्चोंके लिए सलाह बच्चों जीवन से बड़ा कुछभी नहीं, हमेशा सकारात्मक सोचो, जीवन अमूल्य है। हमेशा पढ़ाई केमामले में दो तीन चॉइस लेकर आगे बढ़ो। एक लाइन में सफल नहीं हुए तो क्या, दूसरी लाइन पकड़ो, दूसरी नहीं तो तीसरी मे सफलता ढूंढो। जीवन समाप्त करना कोई हल नहीं। अगर डॉक्टर नहीं बन पाए तो क्या, टीचर बनो, इंजीनियर बनो, शेफ बनो, बिजनेस करो, बुटीक खोलो पार्लर चलाओ। कुछ ना कुछ करो, लेकिन हार कभी मत मानो। 

यह सब सुनकर लतिका के पापा सब समझ गए और उन्होंने लतिका को बुलाकर पूछा -“बिटिया, कहीं ऐसातो नहीं कि तुम डॉक्टर ना बन कर कुछ और बनना चाहती हो, इसीलिए प्रवेश परीक्षा में असफल हुई हो। और हमारी इच्छा का मान रखने के लिए कोशिश कर रही हो।” 

लतिका की आंखों में आंसू आ गए और उसने धीरे से गर्दन हिलाकर”हां “कहा। 

लतिका के पापा-“अरे मेरी पगली बिटिया, कितना सोचती है हमारेबारे में, हमें बताया क्यों नहीं, कि तुम कुछ और पढ़ना चाहती हो। बेटी यह हमारी ज़िद नहीं कि तुम डॉक्टर ही बनो। इतने दिनों से टेंशनमें हो, पर कह नहीं रही हो। बेटा हम तुम्हारे मम्मी पापा हैं, हमसे ना कहोगी तो किससे कहोगी।” 

लतिका रो कर पापा के गले लग गई और बोली-“पापा मुझे फैशन डिजाइनिंग में बहुत इंट्रेस्ट है। वही कोर्स करनाचाहती हूं।” 

पापाने कहा-“अच्छा ठीक है, सब कुछ पता करो और हमें बताओ, हम तुम्हेंफीस के पैसे दे देंगे। बेटा, बस जो कुछ भी पढ़ो, मन लगाकर पढ़ो, ताकि सफलता तुम्हारे कदम चूमे।” 

लतिका बहुत खुश थी और बिल्कुल तनावमुक्त। 

स्वरचित अप्रकाशित गीता वाधवानी दिल्ली

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