अब तुम सम्भाल लोगी बहू….. – सिन्नी पांडेय  Moral stories in hindi

विभा जी एक कुशल गृहिणी थीं और एक सख्त मिज़ाज महिला । यह कहना गलत न होगा कि घर में उनकी ही चलती थी । पति हरीश जी घर गृहस्थी की बातों में ज़्यादा दखलंदाजी नहीं करते थे और बेटी श्रेया की शादी हो चुकी थी । भगवान की कृपा से वो अपने ससुराल में सुखी थी। शायद माँ के द्वारा सख्त अनुशासन में पलने की वजह से श्रेया को ससुराल में अपने को व्यवस्थित करने में कोई कठिनाई नहीं हुई थी।

बेटे व्योम की शादी को बस 1 साल ही हुआ था और बहू पलक आजकल की लड़कियों की तरह थोड़ी सी बेपरवाह और हंसी मजाक पसंद करने वाली लड़की थी। विभाजी हमेशा उसको टोकती रहतीं और वो उनको देखते ही चुप हो जाया करती थी।

पलक के काम करने का तरीका भी विभाजी से एक दम विपरीत था,और काम करने की गति बहुत ही धीमी। आखिर अभी काम उम्र की लड़की ही तो थी पर विभाजी को ये सब पसंद नहीं आता था क्योंकि उन्होंने अपनी बेटी को भी बड़े अच्छे तौर तरीके से काम करना सिखाया था।

जब कभी घर मे मेहमान आ जाते तो पलक के हाथ पांव फूल जाते तब हड़बड़ी के कारण उसके हाथ और धीमे हो जाते और वो विभाजी के कोप का भाजन बनती।

विभाजी काम में साथ ही लगी रहतीं थी पर वो चाहती थीं कि पलक भी अपनी गृहस्थी में निपुण हो जाये और अक्सर उससे कहा करतीं,”तुम कैसे अपनी गृहस्थी चला पाओगी???क्या करोगी अगर सारा काम तुम पर अकेले आ जाये तो???पलक का जवाब होता,”आप हैं न मम्मी,तो मुझे किस बात की चिंता।”

इस पर विभाजी खीझ कर कहतीं,”मैं क्या हमेशा बैठी रहूंगी???अब ज़िम्मेदारी लेना सीखो।”

पलक कहती,”ठीक है मम्मी अब से पूरी कोशिश करूँगी।” और अगले दिन से फिर पहले वाला रवैया रहता…।

लगभग 1 साल बाद अचानक विभाजी को देखने में कुछ समस्या होने लगी और वो आँखों में दवा डालती और आंखों की एक्सरसाइज़ करतीं पर कोई लाभ न हुआ। उनको आंखों की कोई समस्या न थी न ही शुगर थी अभी तक वो बिना चश्मे के पढ़ लिया करतीं थीं। दस पंद्रह दिन तो ऐसे ही समझने में बीत गए फिर व्योम उनको डॉक्टर के पास ले गया और डॉक्टर ने बताया कि इनको मोतियाबिंद हुआ है और बहुत जल्दी ही पक भी गया है तो बिना देर लगाए तुरंत ऑपेरशन करना होगा।

दो तीन दिनों के अंदर ही ऑपरेशन हुआ और विभाजी डॉक्टर की तमाम हिदायतों के साथ घर आ गयीं। एक महीने तक उनको रसोई से दूर रहने को कहा गया था और शैम्पू करना और मुंह धुलने को भी  मना किया गया था।

अब असली इम्तिहान तो पलक का था । अभी तक जिस गृहस्थी को उसने सास के साथ संभाला था वो अब अकेले उसके ऊपर थी। अब उसे वाकई लगता कि कितना कुछ विभाजी अपने ऊपर समेटे हुए थीं और वो कितनी आज़ाद थी।

पलक ने भी ठान लिया था कि वो विभाजी की गृहस्थी को सुचारू रूप से चलाने को पूरी कोशिश करेगी।

अब पलक सुबह जल्दी उठकर सबके लिए नाश्ता बनाती,व्योम को टिफ़िन देती ,फिर खाना बनाती और इसी बीच विभाजी को दवा देती और आंखों में दवा डालती और गरम पानी से निचोड़ के रुई से उनकी आंखें साफ करती ताकि पानी न लगने पाए।

इसी बीच अगर कोई मेहमान आता तो वो उनकी भी आवभगत करने की हर सम्भव कोशिश करती। विभाजी समझ रही थीं कि उनकी मस्तमौला बहू पर इस समय काम का दबाव है तो उन्होंने अपनी टोकने की आदत बिल्कुल रोक दी।

अगले चार दिनों बाद विभाजी की विवाह की वर्षगांठ थी। हर साल विभाजी घर में ही पूजा-कथा करवातीं और आश्रम के सन्यासियों को बुलाकर भोजन कराती थीं। और इसके लिए वो किसी हलवाई को न बुलाकर स्वयं अपने हाथों से भोजन तैयार करतीं थी।

इस बार पलक ने उनको हरीश जी से कहते सुना कि ,” सुनिएजी इस बार तो आश्रम के सन्यासियों को भोजन कराना मुश्किल होगा तो आप ऐसा करो कि आश्रम जाकर सारा सामान और दक्षिणा दे आओ। पलक अकेले नहीं संभाल पाएगी क्योंकि सब मिला कर लगभग 50-55 लोगों का खाना बनेगा।”

तभी पलक अंदर आयी और अपने सास ससुर से बोली,”मम्मी पापा आप जो इतने सालों से करते आ रहे हैं उसको रोक क्यों रहे हैं? इस बार मैं कोशिश करूँगी आपकी शुरू की गई प्रथा को आगे बढाने की।”

विभाजी बीच में ही बोलीं,”बेटा इतने लोगों का खाना तुम अकेले कैसे बना पाओगी और वैसे भी इस समय तुम्हारे ऊपर काम ज़्यादा पड़ रहा है। मेरे भी काम तुमको ही करने पड़ रहे हैं।”

पलक ने विभाजी को आश्वासन दिया कि,”मम्मी मैं कर लूँगी आप भरोसा रखिये सब हो जाएगा । बस आप सारा सामान मंगवा दीजिये और बाकी मुझ पर छोड़ दीजिए।”

विभाजी परेशान हो गईं तो हरीशजी ने कहा,”विभा बच्चे अगर कुछ करना चाहते हैं तो उनपर भरोसा करना सीखो।”

विभाजी ने सारा सामान मंगवा दिया और पलक को सब समझा दिया कि क्याक्या बनेगा और बिना प्याज़ लहसुन के बनेगा।

पलक ने एक दिन पहले ही अपनी कामवाली को रोककर शाम को सारी सब्ज़ियां कटवा लीं और बर्तन निकाल कर धुलवा कर पोंछ कर रख दिये।

विभाजी पूजा भोग का सारा सामान मंगवा चुकी थीं। रात में व्योम मिठाई और फल ले आये।

पलक ने सुबह 4 बजे उठकर पूजा और भोग का सारा सामान एक जगह लगा दिया और खीर बनाने को चढ़ा दी।और तब तक सब्ज़ियों के लिए टमाटर पीस लिए।

जब तक विभाजी उठीं तब तक खीर बन चुकी थी और गैस पर सब्जियां दोनों तरफ चढ़ी हुई थीं। दो सब्ज़ियां बनाने के बाद एक सब्ज़ी और रायता बचा हुआ था।

बीच में पलक ने सबके लिए चाय चढ़ाई और हरीश जी ने  सबके लिए टोस्टर में ब्रेड सेंकी और विभाजी ने मख्खन लगाया ।विभाजी ने सिर्फ चाय पी क्योंकि उन्हें पूजा में बैठना था और सबने चाय नाश्ता किया और थोड़ी ही देर में पंडितजी आ गए और पूजा पाठ शुरू हो गया।इसी बीच पलक ने एक और सब्जी और रायता भी तैयार कर दिया। पूजा सम्पन्न होने के बाद पलक ने सारा खाना और खीर एक जगह लगा दी और इसके बाद सिर्फ पूरियां निकालने का काम रह गया था। पलक ने कुछ पूरियां पहले ही बेल कर रख ली थीं और साथ साथ बेलती जा रही थी,जैसे ही सब भोजन के लिए बैठे वैसे ही पलक गरम गरम पूरियां निकालने लगीं और सबने प्रेम से भोजन किया और खीर खाई। इसके बाद हरीश जी ने सब सन्यासियों को फल और दक्षिणा दी और पाँव छूकर विदा किया।

पलक ने अब घर के लोगों का खाना लगाया और इसके बाद सब सामान समेटना शुरू किया और बर्तन धोने को लगा दिये और खाना परोस कर रख दिया और कामवाली से रसोई साफ करवा दी। ये सब करते करते वो बहुत थक चुकी थी तभी व्योम आया और बोला,”अब तुम थोड़ी देर बैठ लो मैं बढ़िया सी कड़कदार चाय बना कर लाता हूँ जिससे तुम्हारी थकान छूमंतर हो जाये।”

व्योम चाय लेकर आया और पलक को आवाज़ लगाई तो विभाजी बोलीं,”जल्दी आओ बेटा चाय पी लो बहुत थक गयी होगी तुम।”

पलक बैठकर चाय पीने लगी तो विभाजी सबके सामने बोलीं,”आज भरोसा हो गया मुझे कि मेरी बहू अब घर संभाल लेगी। अब मेरी गृहस्थी सुरक्षित हाथों में है।”

हरीश जी बोले,”वाकई आज जैसे निपुणता से पलक ने काम निपटाया वो बहुत बड़ी बात है क्योंकि जिसने कभी चार लोगों का खाना अकेले न बनाया हो वो इतने लोगों के लिए खाना बनाये वो भी इतना स्वादिष्ट तो तारीफ तो बनती है।”

व्योम भी अपनी पत्नी की प्रशंसा से गदगद हो उठा था और अपने सास ससुर से इतनी तारीफ सुनकर पलक की थकान कहाँ गायब हो गयी पता ही न चला। उसने मन ही मन प्रण किया कि अब इस भरोसे को कभी टूटने नहीं दूंगी मैं।।।।

सिन्नी पांडेय

2 thoughts on “अब तुम सम्भाल लोगी बहू….. – सिन्नी पांडेय  Moral stories in hindi”

  1. हम बहुत जल्दी आकलन मूल्यांकन कर लेते हैं, आज की जनरेशन समझदार है ।

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