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आप मुझसे पहले विदा होना – डी अरुणा 

राधिका जी का भरा पूरा परिवार। हरे कृष्णा दो बेटे, दो बहुएं, चार पोते, पोतियां।साथ में थे राधिका जी के उम्र दराज सास-ससुर।

 अचानक सास की मृत्यु से ससुर जी गुमसुम हो गए। जिस वक्त जीवनसाथी की सबसे अधिक आवश्यकता थी जीवन साथी ने उनका साथ छोड़ दिया। ससुर जी के सारे कार्य सास ही किया करती थी। कभी ना बहू को ना बेटी को कहा और ना ही किसी का किया काम ससुर जी को पसंद आता था।

 4 महीने होते ना होते ससुर जी ने भी साथ छोड़ दिया। राधिका और हरे कृष्ण जी ने बहुत कोशिश की इसके बावजूद उनकी खामोशी ना टूटी। रिटायरमेंट के बाद पिछले 10 साल से साए की तरह उनकी पत्नी उनके साथ थी। अकेलापन उन्हें अंदर तक तोड़ गया। जीने की इच्छा खत्म हो गई थी।

 राधिका सास के बाद ससुर जी का सारा काम देखती थी। राधिका ने महसूस किया धीरे-धीरे उनके पति हरे कृष्ण भी अपने पिता के ही नक्शे कदमों पर चल पड़े हैं। हर छोटी छोटी बात के लिए राधिका का मुंह ताकते ।

हरे कृष्ण जी की दिनचर्या राधिका द्वारा बनाए एक कप चाय से होती सुबह 6:00 बजे। कम दूध में हल्की चाय होती थी। फल काट कर देना दवाई, गर्म पानी सब राधिका ही करती थी।

 बहू खाना परोसती थी पर खुद राधिका पास में बैठती, जब तक कि उनका भोजन समाप्त ना होता। किसी चीज की आवश्यकता को भी राधिका ही समझ कर परोसती पर हरे कृष्ण जी मुंह न खोलते।



 1 दिन राधिका को तेज ज्वर हो गया ।सुबह की चाय हरे कृष्ण जी को 7:30 बजे बहू ने बना कर दिया।हरे कृष्ण जी को पसंद न आई । बहू  परेशान, सास तेज ज्वर से पीड़ित.. हरे कृष्ण जी ना कुछ बोले ना कुछ खाए …सिर्फ टुकुर-टुकुर अपनी अर्धांगिनी की ओर देखते रहे ।

अम्मा जी को कुछ हो गया तो बाबूजी को कौन संभालेगा? हमसे तो न संभलेंगे। बहू ने हथियार डाल दिए। सुबह की चाय न पी,नाश्ता आधा छोड़ दिया, खाना खाए नहीं अभी तक… 1 दिन भी नहीं गुजरा.. कौन संभाले इनके नखरे?

 राधिका जी की आंखें बंद थी कान तो खुले थे। बातें सुनाई पड़ रही थी। उसने भी तो अपने ससुर की सेवा की कभी उसके मन में ऐसे विचार ना आए थे। अभी तो एक ही दिन बीता है। आंखों से आंसू बहने लगे । 

हरे कृष्ण जी उनके एक हाथ को थाम सहलाते कोरों से आंसू पोंछ दिए।

 दूसरी सुबह ज्वर कम हुआ। सुबह उठते ही बिस्तर में सोए पति के पैरों में गिर कर रोते-रोते बोली,” आप मुझसे पहले चले जाना। मैं आपको अपने सामने ही विदा होते देखना चाहती हूं ताकि मैं शांति से मर सकूं। मेरे जाने के बाद आपको कोई संभाल नहीं पाएगा।

 प्रेम की ऐसी पराकाष्ठा शायद किसी ने ना सुनी होगी ना देखी होगी। पत्नी का पति के प्रति अगाध प्रेम ने ही उनके मुंह से ऐसे वचन कहलवाये।



 पत्नी हर परिस्थिति में अपने आप को ढाल लेती है। सहने की क्षमता स्त्रियों में अधिक होती है। लेकिन पुरुष ऐसा नहीं कर पाते। बढ़ती उम्र के साथ तो और भी नहीं। मैं नहीं चाहती मेरे बाद आप की दुर्दशा हो। मैं तो परलोक में भी चैन से न रह पाऊंगी। इसलिए आप मुझसे पहले विदा हो जाना ।

पति कुछ ना बोले चुपचाप पत्नी को ताकते रहे।

अचानक उनके दोनों हाथ जुड़ गए। राधिका के लिए नहीं उस सृष्टिकर्ता के लिए जिसने स्त्री की रचना की। मां के रूप में हो या पत्नी के रूप में… निस्वार्थ भाव से ही सोचती है। कितना सही कह रही है ..मेरी नस नस से वाकिफ है ।मैं राधिका के बिना शायद एक सांस भी ना ले पाऊं ।बेटे बहू के साथ रहने का सवाल ही नहीं।

 “मैं शायद दुनिया की पहली ऐसी अभागन हूं जो पति को अपने से पहले विदा होते देखना चाहती है”राधिका बोली ।

हर शादीशुदा महिला सुहागन ही जाना पसंद करती है और ईश्वर से भी यही प्रार्थना करती है। लेकिन यह ऐसी महिला की कहानी है जो अपने पति को अपने से पहले विदा करना चाहती है।

 कैसी लगी मेरी यह कहानी। एक 85 वर्षीय वृद्धा के कथन को मैंने कहानी का रूप दिया धन्यवाद।

#प्रेम#

डी अरुणा 

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