गंवार  – मनीषा गुप्ता: Moral Stories in Hindi

शालिनी गांव की कम पढ़ी-लिखी परंतु सुंदर सुशील लड़की थी, रामदास जी को शालिनी में पता नहींऐसा क्या पसंद आया कि उन्होंने अपने बेटे शेखर के लिए शालिनी को पसंद कर लिया।

परिवार के अन्य सदस्य सास, देवर और ननद को वह अधिक पसंद नहीं थी। पति शेखर को उसका सीधापन और सादगी पसंद आ गई थी।

गांव से आई शालिनी ससुराल में अपने आप को व्यवस्थित करने का पूरा प्रयास कर रही थी परंतु शहरी तौर तरीके सीखने में उसे थोड़ा वक्त लग रहा था, तो अक्सर देवर या ननद उसे ‘गंवार’ कहकर हंसने लगते , शालिनी की सास अक्सर कहती कि पता नहीं तुम्हारे पिता ने इसमें क्या देखा जो इसे पसंद किया शेखर के लिए परंतु शालिनी कभी किसी को पलट कर कोई जवाब ना देती। वह हर उस काम को सीखने की कोशिश करती जो उसे नहीं आता था।

शादी के कुछ समय बाद ही शेखर की नौकरी छूट गई, ससुर जी की पेंशन से ही घर खर्चा चल रहा था घर में आर्थिक तंगी रहने लगी, ऐसे में कई बार शालिनी को ताने सुनने को मिलते कि अगर वह पढ़ी-लिखी होती तो उसे कोई नौकरी मिल जाती।

शालिनी को लगा अब उसे घर परिवार के लिए कुछ करना ही पड़ेगा उसने घर के ही छोटे से कमरे से हस्तशिल्प का काम करना शुरू किया। सिलाई बुनाई कढ़ाई का काम जो उसने अपनी मां से सीखा था, बचपन के हुनर को अब उसने व्यावसायिक रूप दे दिया था। धीरे-धीरे उसके हाथ के बने हुए दुपट्टे, चादर पर सुंदर राजस्थानी कलाकृति को उकेरने लगी थी। राजस्थानी बंधेज और कसीदा गिरी का काम ग्राहकों को बहुत पसंद आने लगा

था। वह घर का सभी काम खत्म करके अपना बाकी का समय इस काम में लगाने लगी। काम अच्छा चलने पर उसने एक दुकान किराए पर ले ली और शेखर भी अब उसके साथ इस काम में मदद करने लगा। अब शेखर और शालिनी दोनों ने मिलकर घर की सभी जिम्मेदारियां अपने ऊपर ले ली थी। धीरे-धीरे उसका व्यापार बढ़ने लगा और सामान शहर से बाहर जाने लगा। अब रूपए पैसे की कोई कमी नहीं रही ।

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शालिनी ने अपनी ननद का विवाह भी खूब धूमधाम से कर दिया। शालिनी ने अपनी ननद की विदाई के समय सभी रिश्तेदारों को हैंडलूम 

की एक-एक चद्दर भेंट की, सभी उसकी तारीफ करते नहीं थक रहे थे। रामदास जी ने अपनी पत्नी को देखते हुए कहा अब पता चला तुम्हें मैंने शालिनी को क्यों पसंद किया था मैंने एक नजर में ही इसके गुणो को पहचान लिया था मुझे पता था यह हमारे पूरे घर को संभाल लेगी और अच्छी बहु साबित होगी।

मेरा बस चला तो मैं अपने छोटे बेटे के लिए भी ऐसी ही ‘गंवार’ बहू लाऊंगा, यह कहकर हंसते हुए बाहर चले गए।

 

अप्रकाशित रचना

मनीषा गुप्ता

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