जिंदगी फिर से गुनगुना दी – डॉ  संगीता अग्रवाल : Moral stories in hindi

सीमा जी की आँखें गीली हो उठीं जब उन्होंने अपने बहु बेटों का इतना प्यार देखा।कितनी देर से दोनों को कह रही थीं कि जाओ ,अब तुम दोनों आराम करो अपने कमरे में जाकर पर नन्हे बच्चों की तरह उनके इर्द गिर्द बैठ दोनों ही उनकी सेवा में लगे थे।

आज सुबह से हल्का सा बुखार था उन्हें,बहु तो कभी कुछ फल काट के ला रही थी और जिद करके खिला रही थी,कभी उनके सिर पैर दबा जाती और  जब से बेटा आफिस से आया था,लगा पड़ा  था माँ के पास।उन दोनों का इतना प्यार उन्हें अंदर तक गदगद कर रहा था पर कुछ अजीब भी लग रहा था,बेचारे थके हुए हैं,इन्हें भी तो आराम की जरूरत है।

बड़ी मुश्किल से दोनों को भेजकर,सीमा जी ने गहरी सांस ली और छत पर शून्य में ताकने लगीं।

मन मे रह रहकर कुछ ख्याल बहुत तेज़ी से आ ,जा रहे थे।कहां उनकी जिंदगी में कि तनाव ही तनाव था और कहां अब ये बहू बेटे…

ये ही सब सोचते सोचते,सीमा अतीत की गलियों में  विचरण करने लगी।

सीमा के पिता,रघुवरदास,फिजिक्स के प्रोफेसर थे,बड़े विद्वान, सज्जन और नेकदिल इंसान,चमक दमक से दूर एक संतोषी इंसान।

उसकी मां, मीना देवी बहुत धनाढ्य घर की इकलौती लड़की थीं।पतिप्रिया तो थीं पर उनकी सादगी से उन्हें हमेशा शिकायत रहती।दोनों का स्वभाव बिल्कुल उलट था,उन्हें सजना,संवरना,घूमना फिरना बहुत पसंद था जबकि उसके पापा अपनी किताबी दुनिया मे मस्त व्यस्त रहना पसंद करते।

जब सीमा के लिए लड़का देखने की बात हुई,मां ने सारा जिम्मा अपने हाथ ले लिया,”इसबार मैं आपकी एक न सुनुगी,दोनों बड़ी लड़कियों को आपने अपनी मर्जी से ब्याहा है,मैं चुप रही पर इस बार नहीं।”

मीना देवी ने जब ये कहा तो उसके पिता अवाक रह गए।

“तुम तो ऐसे कह रही हो,जैसे दोनों बेटियां अपने घर खुश न हों,क्या कमी है दोनों को भला?,वो बोले।

“अरे ,दोनों को अपनी तरह टीचर्स से बांध दिया आपने,वो कितना भी कमा लें पर ठाठ कभी नहीं होते उनके,सारी जिंदगी बस जोड़ तोड़ में ही बिताते हैं। ” वो तल्ख आवाज में बोलीं।

सीधा वार,अपने ऊपर देखते हुए,रघुवरदास चुप गए,उनकी यही कमी थी कि वो ऐसी बातों में चुप जाया करते थे और मीना देवी का हौसला बढ़ जाता।

उन्होंने इस बार भी सीमा के लिए अपने ही कॉलेज का एक बहुत होनहार प्रोफेसर देख रखा था जो कभी भी सिविल सर्विस भी क्लियर करने वाला था,उनको बहुत मानता भी था,पर मीना देवी का ये रुख देख कर वो शांत हो गए।वो जानते थे कि ये किसी की नहीं सुनेगी फिर सीमा भी शुरू से अपनी मां के ही ज्यादा करीब थी।

मीना की सारी सहेलियां हाई सोसाइटी की थीं जिनके बेटे ,दामाद ,बड़ी पोस्ट पर थे या एन आर आई थे।उनका भी सपना था कि मेरी बेटी किसी प्रवासी भारतीय जो बहुत धनवान हो,बड़ा व्यवसाय हो जिसका,उसकी जीवनसंगिनी बने।

इस काम को अंजाम देने के लिए वो अपनी सारी सहेलियों से यदाकदा सीमा का जिक्र करती रहतीं थीं और बढ़ाचढ़ा के उसके गुणगान करतीं।सीमा को उन्होंने आधुनिक तरीके से ही पाला पोसा था।

आज बहुत दिनों बाद,मीना देवी से अपनी खुशी संभाले नहीं सम्भल रही थी,जबसे उनकी किसी सहेली के दूर के रिश्तेदार का बेटा सीमा को देखने आ रहा था।वो  यू एस ए में किसी मल्टी नेशनल कम्पनी में काम करता था।

हर्षित नाम था उसका,जैसा नाम वैसा गुण,मुस्कराता हुआ चेहरा,सुदर्शन वयक्तित्व,छह फुट लम्बा,गौर वर्ण,स्मार्ट लड़का जब अपनी लेक्सस लग्जरी गाड़ी से उतरा तो सब देखते रह गए।

सीमा की मां ,जहां अपनी खुशियां छिपा नहीं पा रहीं थीं,सीमा का लाज से चेहरा गुलाबी हुआ जा रहा था,हर्षित की बेबाक बातें उसके दिल में हज़ारों फुलझड़ियां जला रहीं थीं पर उससे आंखे मिला पाना उसके लिए दूभर हो रहा था।

उस वक्त तो उसकी जान ही निकल गयी जब हर्षित ने उसकी मां से कहा,”आपकी इजाजत हो तो मैं सीमा को कुछ देर बाहर ले जाऊं अपने साथ।”

अंदर ही अंदर ,कितने लड्डू फूट गए उसके मन में,पर साथ ही दिल तेज़ी से धड़कने लगा।

थोड़ी देर में, उसकी चमचमाती गाड़ी हवा से बातें कर रही थी,सीमा सिमटी हुई गाड़ी में चुपचाप बैठी थी,हर्षित कनखियों से उसकी सुंदरता का रसपान कर रहा था।

बहुत देर चुप्पी के बाद,हर्षित ने सीमा से पूछा,

“आपको बोलना तो आता है न?”

अचानक से पूछे गए सवाल पर वो हड़बड़ा गयी,एकदम से बोली:”मैं तो बहुत चुलबुली हूँ,सब कहते हैं।”

दोनों की नज़रें मिलीं और  दोनो ही खिलखिला दिए।

कुछ देर में, दोनों काफी करीब आ गए,हर्षित की लच्छेदार ,मीठी बातें सीमा के दिल में वीणा के तार छेड़ रहीं थीं और वो मंत्रमुग्ध हो उसके साथ घूमती रही।

हर्षित बहुत कम वक्त को इंडिया आया था,वो चाहता था कि उनकी शादी जल्द से जल्द हो जाये।

रघुवरदास को ये सब कुछ अटपटा सा लग रहा था।एक बार दबी जुबान में उन्होंने पत्नि को समझाना भी चाहा,हर चमकती चीज सोना नहीं होती,लड़के के बारे में कुछ खोजबीन कर लेनी चाहिए पर मीना देवी और सीमा की आंखों पर बंधी  उसके धन वैभव की पट्टी ने उनकी सलाह को  जरा हवा न दी।

वो तो जैसे मदमस्त हो चली थीं,पूरी तरह से हर्षित के प्यार में गिरफ्त सीमा को अपने पापा अपने और अपने प्यार के दुश्मन नज़र आते और बाकी साथ देने को उसकी मां थी ही।

हर्षित रोज उसे घुमाने ले जाता,कभी मंहगे रेस्तरां में लंच करते तो रात में डिस्को क्लब और लांग ड्राइव पर दूर निकल जाते।सीमा जैसे किसी सपनीली दुनिया मे थी उसके साथ,सब कुछ इतना हसीन और खुशनुमा कि वो कुछ सोचना,समझना ही नहीं चाहती थी अब।

हर्षित जल्दी ही उसे दुल्हन बना के ले जाना चाहता था,बस सीमा के वीज़ा के लिए अप्लाई कर रखा था,उम्मीद थी कि जाने से पहले मिल जाएगा।

मीना देवी भी यंत्रचालित सी सब बातें माने जा रही थीं,बड़ी धूमधाम से दोनों की शादी हो गयी थी।सब कुछ एक सुंदर सपना सच होने जैसा था।

एक शानदार होटल में ही रुका हुआ था हर्षित तो फिलहाल वहीं सीमा उसके साथ थी।हर्षित के घरवालों के नाम पर एक भैया भाभी थे जो खुद यू के में सेटल्ड थे और शादी बाद जा चुके थे।

आज हर्षित को लौट के जाना था और सीमा का वीज़ा अभी नहीं बन पाया था।उसका रो रोकर बुरा हाल था,हर्षित से एक पल की भी जुदाई उससे सहन नहीं होनी थी,वो जानती थी।

हर्षित प्यार से उसे समझाता,कुछ दिनों की बाद है,”हनी,फिर तुम हमेशा के लिए मेरे पास होगी।”

सीमा उससे लिपटी रोये जा रही थी,”इतने कम दिनों में तुम्हारी कैसी आदत हो गयी है मुझे,मैं कैसे रहूंगी यहां तुम्हारे बिना।”

हर्षित ने उसके माथे पर अपना प्यार अंकित किया,हौले से उसका हाथ दबाया और चल दिया,उसकी फ्लाइट की आखिरी कॉल हो रही थी।

सीमा डबडबाई आंखों से उसे हाथ हिला कर तबतक विदा करती रही जब तक वो आंख से ओझल न हो गया।

जब से हर्षित गया था ,सीमा खोई खोई उसका इंतजार करती रहती,उसे बहुत बेसब्री से अपने वीज़ा का इंतजार था।एक दिन कुछ सहेलियां आई हुई थीं और उसे छेड़ रही थीं कि जीजू की याद में विरहन बन गयी हमारी सीमा।उनके संग हंसते बोलते अचानक उसकी तबियत बिगड़ी और डॉक्टर ने बताया कि वो मां बनने वाली है।

उसकी मां ,जहां एक ओर खुश थी वहीं उसे फिक्र हुई कि अब उसे हर्षित संग ही होना चाहिए।उसका वीज़ा भी आ गया था और जल्दी ही वो दिन भी आ गया जब वो अपने प्रिययम के पास जा रही थी।

उसके मन में अपना घर परिवार छोड़ने का दुख भी था ,संग ही दूसरे देश जाने के नाम कहीं धुकधुक सी भी थी पर हर्षित के पास होने का अहसास इतना मादक था जो अन्य सभी बातों पर हावी था।

उसने हर्षित को अपने आने की खबर तो दी पर दूसरी खुशखबरी उससे छिपा ली,वो उसे सरप्राइज देना चाहती थी और वो खुशी उसके चेहरे पर खुद महसूस करना चाहती थी।

पहली बार,अपनी धरती से दूर,वो भी अकेले सफर करना,सीमा के लिए बहुत चुनौतीपूर्ण था पर हर्षित से मिलने के नाम वो बाबली सी हुई जा रही थी और आखिर पहुंच ही गयी अपने साजन के नगर।हर्षित खुद नहीं आ पाया था,उसका मेसेज आया था कि वो कैब से आ जाये।पहला झटका सीमा को ये ही लगा फिर घर पहुंच के भी वो नहीं मिला ,उसे अगले दिन आना था,कहीं जरूरी काम से बाहर था।

सीमा को सब कुछ नया लग रहा था और मन किसी अनजान आशंका से धड़क रहा था।

अगले दिन हर्षित आया,आते ही उसे अपनी बाहों के घेरे में बांध लिया,सीमा पलभर को सब भुला बैठी और नन्ही बच्ची की तरह उसके सीने से लग कर सुबकती रही।

जब दोनों का मिलना,रूठना मनाना निबट गया तो हर्षित ने उसे अपनी फ्रेंड सिल्विया से मिलवाया जो उसीके साथ कंपनी में थी और उसके साथ ये फ्लैट भी शेयर करती थी।

सीमा थोड़ी चौंक गई,पर अपनी भावनाओं को दबा के मुस्कराने लगी और सिल्विया को ऊपर से नीचे तक गौर से देखने लगी।उसका पहनावा,रंग ढंग और खुलापन देख वो दिल में कांप गयी।वो जितनी बेतकलुफ्फी से हर्षित से चिपक रही थी और उसपर अधिकार जता रही थी,वो भी सीमा के सामने भी,तो वो डर गई।

उसने सोचा कि मैं हर्षित से शुरू में ही साफ कर दूंगी:”अब ये सब नहीं चलेगा,आखिर तुम भी तो हिंदुस्तानी हो जहां ये सब नहीं चलता।”

पर उसकी सारी बातें दिल में ही रह गईं क्योंकि हर्षित ,सिल्विया को लेकर एक कमरे में बंद हो गया,उससे ये कहकर:”डार्लिंग,हमें बहुत इमोर्टेन्ट प्रोजेक्ट आज ही खत्म करना है,तुम थकी होगी,सो जाना पर हां,अपने हाथ की मस्त कॉफी भिजवा देना  पहले प्लीज।”

वो ठगी सी रह गयी,ये वो ही हर्षित है जो इंडिया में उसका आशिक बन कर उसकी तारीफों के पुल बांध रहा था,क्या उसे यहां अपनी नौकरानी बना के लाया है?नहीं,नहीं,वो ऐसा नहीं है,मैं गलत सोच रही हूं,यहां, शायद,ये सब सामान्य बात हो,मैं ज्यादा पससेसिव हो रही हूं।

सारी रात इसी तरह वो खुद से लड़ती रही,कभी रोती,कभी खुद को समझाती,काफी देर से आंख लगी,सुबह उठी तो 10 बज रहा था।बाहर आई तो हर्षित का वॉइस मेसेज सुना, “डार्लिंग,हम चले गए सुबह,तुम सोई हुई थीं इसलिए उठाया नहीं,रात को मिलते हैं,डिनर रेडी रखना।”

सीमा समझ गयी थी अब कि हर्षित वैसा नहीं है जैसा उसने सोचा था,यहां की जिंदगी से सामंजस्य बैठाने में उसे बहुत वक्त लगने वाला था।

अगले दिन हर्षित ने उसके आने की खुशी में एक पार्टी रखी थी,अपने दोस्तों को बुलाया था,कुछ अन्य भारतीय परिवार भी थे,सीमा को उनसे मिलकर थोड़ी राहत मिली,कोई तो है जिससे वो बात कर सकती थी।रोहन और उसकी वाइफ उसे बहुत अच्छे लगे।उसने सोचा कि इनके नजदीक रहके मैं यहां के रंग ढंग जल्दी सीख जाऊंगी।

उस दिन बहुत थक गई थी वो,सारी पार्टी का मेन्यू तैयार करना,सबके सामने बहुत फॉर्मल रहना और उस रात भी हर्षित का साथ न पा सकने से वो टूट सी रही थी।उसे समझ नहीं आता कि वो क्या करे,हर्षित से बात करे खुलकर या अभी और इंतजार करे।

अभी तक वो हर्षित को वो खुशखबरी भी न दे पाई थी,देती भी कैसे,कभी कोई एकांत मिला ही नहीं था।

उस दिन वो दंग रह गयी जब हर्षित किसी बात पर अपने दोस्त की खिल्ली उड़ा रहा था ये कहकर कि कितना बेबकूफ है वो,अभी शादी किये दो साल भी हुए नहीं और बाप बनने जा रहा है।

मतलब,मैं इसे अब ,जब ये खबर सुनाऊँगी तो मुझे भी…,ये सोचकर सीमा का दिल जोर से धड़क गया।जिसे वो अपना ट्रम्प कार्ड माने बैठी थी वो तो उसका माइनस पॉइंट बन गया था,उसे बहुत झुंझलाहट हुई सोचकर,क्या ये मेरा अकेला फैसला था,ये मर्द इतने बेदर्द कैसे हो सकते हैं,प्यार के नाम पर हमें छलते हैं पहले ,फिर मासूम बन पल्ला झाड़ लेते हैं।शायद,गलती हम लेडीज़ की भी होती है जो बिना कुछ सोचे समझे,खुद को सौंप देती हैं उन्हें।

एक दिन,सुबह उसे उल्टियां होने लगीं,वो दृढ़ निश्चय करके हर्षित को बताने चली कि सच्चाई क्या है पर सिल्विया और हर्षित को अनुचित पोजिशन में देखकर बिलबिला उठी और आवेश में उल्टा सीधा बोल गई।

हर्षित ने,गुस्से में ,उसपर हाथ उठा दिया और चीखने लगा:”ब्लडी इंडियन लेडी,तुम्हारे दिमाग में भूसा भरा है,कुएं की मेढ़क हो बिल्कुल,ऐसे ही रहना था तो मुझसे शादी क्यों की,चाहती हो तुम्हारे पल्लू से बंधा बैठा रहूं बस।”

वो रोती रही और मन ही मन कुछ कड़ा निर्णय लिया,उसी दिन,उन दोनों के जाने के बाद उसने रोहन से रिक्वेस्ट की कि वो उसका वापिसी का टिकट करा दे,वो ज्यादा दिन यहां रही तो घुट के मर जाएगी और अपने बच्चे को वो इतना गन्दा वातावरण नहीं देना चाहती।

एक माह उसने कैसे काटा,वो ही जानती थी ,फिर एक दिन वो हर्षित को बिना बताए वापिस आ गयी अपने देश।उसने सोचा:”की गयी गलती को जितना जल्दी सुधार लिया जाए ,अच्छा है।एन आर आई से शादी करना,उसका सपना जरूर था लेकिन इतने समझौते वो नहीं कर पाई।*

जब उसके मां पापा को इस बारे में पता चला,वो सहन न कर पाए और टूट से गये,दोनों ने चारपाई पकड़ ली।पिता पछताते कि मैं कहाँ इन दोनों की बातों में आ गया,और उसकी माँ भी सारे दिन रोती,अपनी महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए मैंने अपनी बेटी की जिंदगी दांव पर लगा दी।

सीमा ने पूरी हिम्मत जुटा कर अपने मां बाप को संभाला,एक छोटी सी टीचर की जॉब पकड़ी,समय पर एक सुंदर,स्वस्थ बेटे को जन्म दिया।

सारी जिंदगी उस बच्चे को अच्छे संस्कार दे पाला और आज वही बेटा,अपनी पत्नि के साथ उसकी इतनी देखभाल कर रहा था।

सीमा की फिर से आंखे भर आईं,कि भले ही हर्षित ने उसे जरा नहीं समझा पर उसकी औलाद उसका पूरा ध्यान रखती है जिसे उसने हमेशा अपने खून से सींच कर पाला और अच्छे संस्कार दिए।लगता है,भगवान को उसे शुरू में रुलाना था पर अब उसके तनाव के दिन बीत गए थे।

डॉ  संगीता अग्रवाल

 

1 thought on “जिंदगी फिर से गुनगुना दी – डॉ  संगीता अग्रवाल : Moral stories in hindi”

  1. पता नहीं टीचर को क्यों हेय दृष्टि से देखा जाता है, और किसने कहा है जोड़ जोड़ कर मरते है ।

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