उम्मीद का दीया – शकुंतला अग्रवाल ‘शकुन’

प्राची से लालिमा प्रस्फुटित हो जैसे ही वसुधा को चूमने लगती है, प्रकृति विभोर हो झूमने लगती है। उषा-काल की प्रथम किरण को अपने आगोश में समेटने का हेतल का नियम ही था।    ऐसा कोई दिन नहीं निकलता था जब उसने सूर्योदय की पहली किरण का आचमन नहीं किया हो। शायद कोई किरण उसके … Read more

उम्मीद कामिनी हजेला

एक सड़क  दुर्घटना में   कमला   के पति और इकलौते पुत्र  की मृत्य  होगई  थी। उसे लगा दुनिया दुनियां ही खत्म  हो गई। थोड़े दिन  शोक मनाने के बाद  कमला ने पुनः नये सिरे से जीवन जीने का  फैसला लिया । उसने  पति की बैंको की धनराशि ,घर सब अपने नाम  करवाने का प्रयास  … Read more

“एक कप चाय तुम्हारे साथ” – ऋतु अग्रवाल

        “नीलिमा! कहाँ हो भई? राहुल, मनस्वी, यहाँ आओ।” प्रभात ने दरवाजे से ही आवाज लगाना शुरू कर दिया।      “आ रही हूँ। क्या बात है, बड़े खुश लग रहे हो? बच्चे जरा बाजार तक गए हैं, नए साल की पार्टी के लिए सामान लेने।” नीलिमा हाथ पोंछते हुए बाहर आई। सप्रभात के हाथ में मिठाई … Read more

बहु को बेटी मानना आसान नहीं – आरती खुराना (आसवानी)

“बेटी तो बहुत कमजोर लग रही, तुम तो कह रही थी अच्छे पैसेवाले इज्जतदार लोग है। बड़ी बेटी कांता से भी ज्यादा दहेज तुमने पूनम को दिया फिर … दिन विन चढ़े हुए है शायद ” पड़ोसन शर्मिला अपने कयास लगाती रही कमला जी बिना कुछ जवाब दिए जबरदस्ती की एक मुस्कान के साथ वापस … Read more

कौन घर परिवार के झंझट में पड़े –  चाँदनी झा 

देखो संध्या, यहां पूछ-पूछ कर सब काम करती रहोगी, तो बस जिंदगी भर पूछते रह जाओगी। मेरी बात मानो, जो मन में आए करो, और देवर जी से भी कहो, वो अच्छा कमाते हैं, तुम्हें अपने साथ रखे। मंजू, संध्या की जेठानी,  संध्या को समझा रही थी। हां जीजी, पर….पर-वर कुछ नहीं, मैं तुमसे पहले … Read more

अकेली मां बेहतर है या धोखेबाज पिता का साथ – नीतिका गुप्ता 

सुबह-सुबह की आपाधापी में श्रुति अपने सारे काम जल्दी जल्दी निपटा रही थी। बेटी काव्या को स्कूल बस में बैठा दिया था और अब वह चाय का कप हाथ में लेकर काव्या का दोपहर का लंच और अपने लिए टिफिन भी तैयार कर रही थी। श्रुति की रोज की यही दिनचर्या थी सुबह जल्दी उठकर … Read more

…तो रिश्ता एक तरफा कैसे ? – संगीता अग्रवाल 

” कैसी हो बेटा ? ससुराल में सब ठीक तो हैं ना कोई परेशानी तो नहीं !” संध्या जी ने अभी दो महीने पहले ब्याही बेटी शीना से फोन पर पूछा। ” मम्मी बस पूछो मत दो महीने में ही इस ससुराल नाम से इतना उकता गई हूं कि सोचती हूं शादी ही क्यों की … Read more

सोच पर पड़े पत्थर कब हटाओगी? – सविता गोयल 

“ये देखो, फिर रास्ते में ये खिलौने बिखरे पड़े हैं। इस बहू को पता नहीं कब अकल आएगी। इतना भी ध्यान नहीं रख सकती कि कोई इनमें उलझ कर गिर जाएगा। मालती जी गुस्से में जोर से बोलीं तो उनकी बहु नैना भागती हुई आई और खिलौने समेटने लगी। “मां जी वो चीकू बार-बार बिखेर … Read more

खुशियों की उम्मीद – डॉ .अनुपमा श्रीवास्तवा 

  आर्मी हॉस्पीटल में लेबर रूम के बाहर विशाल अपनी माँ के साथ बैठा हुआ था तभी अंदर से नर्स अपने हाथों में नवजात शिशु को लेकर बाहर निकली उसे देखते ही दोनों खड़े हो गए। नर्स ने बच्चे को दिखाते हुए कहा-” बधाई हो आंटी जी पोता हुआ है।” रागिनी जी पोते को लेने … Read more

मेरी बहुओं ने मुझे कहाँ फँसाकर छोड़ दिया है? – गीतू महाजन

कमलजीत कौर बहुत खुश थी..उसकी खुशी का कारण यह था कि उसके छोटे बेटे परमिंदर की शादी बहुत अच्छे से हुई थी। पिछले कुछ दिनों से वह अपने छोटे बेटे की शादी में व्यस्त थी और अब सभी रिश्तेदार भी खुश हैं। शादी बहुत अच्छी हुई और लड़कियों ने भी पार्टी का बहुत अच्छे से … Read more

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