बहु को बेटी मानना आसान नहीं – आरती खुराना (आसवानी)

“बेटी तो बहुत कमजोर लग रही, तुम तो कह रही थी अच्छे पैसेवाले इज्जतदार लोग है। बड़ी बेटी कांता से भी ज्यादा दहेज तुमने पूनम को दिया फिर … दिन विन चढ़े हुए है शायद ” पड़ोसन शर्मिला अपने कयास लगाती रही कमला जी बिना कुछ जवाब दिए जबरदस्ती की एक मुस्कान के साथ वापस चली गई।

कमला जी मन मन में बड़बड़ाती हुई अंदर आई चाय का भगोना सिंक में जोर से फेंकी।

“क्या हुआ श्रीमती जी, बाहर चाय पति फेंकने गई थी कौन मिल गया जो इतना गुस्से में आ रही। ” कमला के पति प्रकाश धीरे से बोले।

“चार दिन से ज्यादा बेटी मायके रुक जाए तो पड़ोसी सवाल करने लग जाते है। लोग बाते न बनाए इसी चक्कर में जाने कितनी बेटियां गम खाकर मायके में कुछ नहीं बताती,मेहमान की तरह आती है और चली जाती है। अपना दुःख मां को नहीं बताएंगी तो किसे बताए। जब पूनम की कमजोरी पड़ोसियों को दिखाई दे रही सोचो मां का कलेजा तो मुंह को आ रहा।” कमला आंसू बहाने लगी।

“क्या करे भाग्यवान हमारा समाज इस सोच से कब बाहर आएगा कि शादी के बाद भी मायका उसी बेटी का घर होता है। ससुराल में सम्मान या आराम न मिले तो कहां जायेगी,हमने तो कांता के टाइम भी जवाई जी ठीक करने की कोशिश की थी। जब वो लेने आए हमने बोल दिया था एक नौकर रख लीजिए इतना बड़ा परिवार सारा काम नई बहु पर कैसे सौंप सकते है। तुम्हारी बेटी ही जाकर पति के साथ ऑटो में बैठ गई थी। पापा अब वही मेरा घर है मैं देख लूंगी कैसे काम करना है अभी ये लेने आए तो मैं तो जाऊंगी” प्रकाश झल्लाते हुए बोले।

“क्या करे हम बेटियों की परवरिश ही इस तरह करते है ससुराल ही तेरा असली घर है सास ससुर की माता पिता की तरह सेवा करना हमारे परिवार का मान बढ़ाना, तेरे व्यवहार से तेरे संस्कारों पर अगर अंगुली उठाई गई तो वो हमारी हार होगी। लेकिन जो कांता पर काम का बोझ था उसे आराम नहीं मिल पाता था। लेकिन कुछ सालो में सब अलग हुए सब ठीक होगया। परन्तु पूनम के साथ मसला सम्मान का है वो चुप रह कर जली कटी सुनती है अंदर ही अंदर घुटती है तो शरीर पर असर पड़ेगा ही।” कमला बेटी का दुःख समझ रही।

प्रकाश ने पूनम को बुलाया ,”बेटा, हमने तुम दोनो बेटियों को पढ़ाया लिखाया इस काबिल बनाया कि तुम अपने फर्ज के साथ अपने अधिकारों को भी समझो अपने सम्मान के लिए बोल सको, अन्याय चुपचाप सहना अन्याय को बढ़ावा देना है  हमे नहीं बताना चाहती मत बताओ लेकिन अपनी लड़ाई खुद लड़ो”



पूनम का दर्द आंखो से झलक गया,”शादी के बाद सबकुछ बहुत अच्छा था पापा

लेकिन धीरे धीरे सब का असली चेहरा सामने आने लगा। विनीत अच्छे और समझदार हमसफर है। मेरा दर्द समझते भीं हैं लेकिन न अपने माता पिता को कुछ कहते है ना मुझे कहने देते है। कुछ कहो तो बोलेंगे जब देखो अपने दुखड़े रोने लगती हो, माता पिता है मेरे अब जैसा भी स्वभाव है उन्हे छोड़ तो नहीं सकता। फिर मैंने कुछ कहना ही छोड़ दिया। हर काम में टोकना , सास ससुर ननद कुल मिलाकर तीन सास है। अब काम में निपुण बहु चाहिए थी तो नौकरानी से शादी कर लेनी थी। खाने में ,कपड़े प्रेस में, मेरे बैठने उठने के तरीके में हर बात में ज्ञान दिया जाता है। मुझे ससुराल में इतना अनुशासन का पाठ मिलता है। बाहर घूमने का नाम सुनते ही सब परेशान हो जाते है अब खाना कौन बनाएगा अरे मेरे आने से पहले कौन बनाता था। बोलते है छोटी बहु आ जाए तब तुम मायके रुकने की सोचना उससे पहले नहीं अब यही तुम्हारा घर है।”

“विनीत क्या कहता है,” प्रकाश।

“देखो!!!आदि और विद्या की पढ़ाई चल रही है, मां अब तक सबका करती आई है अब उन्हें आराम की जरूरत है। विद्या आज नहीं तो कल ससुराल चली जायेगी फिर उसे अपना घर तो संभालना है जो कॉलेज के बाद उससे काम करवाए अच्छा नहीं लगता सो तुम आदि की शादी के बाद ही मायके रुकने की सोचना”पूनम ने पति के विचार रखे।

“कमला जी हमको तो बेटा ही नहीं सो कभी बहु आयेगी भी नही फिर हमारे घर का काम कैसे चल रहा” प्रकाश जी सोचते हुए।

“जी,हम तो आज दो लोग है कल चार थे….तभी सब अपना काम खुद करते थे…. आज भी खुद ही करते है , किसी पर निर्भर नहीं… “कमला जी गुस्से से बोली

“मतलब बहु के आते ही सब सदस्य अपनी जिम्मेदारी से यूं मुक्त हो जाते है बिना सैलेरी का नौकर आ गया अब इसे रिश्तों की दुहाई दे देकर बहु का फर्ज याद दिला कर शोषण करते रहेंगे। पूनम तुझे ही बहु की परिभाषा बदलनी होगी । अंदर अंदर घुटना किसी समस्या का हल नहीं। किसी न किसी को तो शुरुवात करनी होगी। तुम नहीं करोगी तो आने वाली बहु करेगी । परिवार का मतलब मिलजुलकर साथ रहना ही नहीं होता मिलजुलकर काम करना भी होता है। तुम्हे ऐसे मदद नहीं मिल रही तुम जॉब करने की इच्छा जाहिर करो। कुछ घंटे बाहर रहोगी तो दिमाग को शांति मिलेगी और चार पैसे घर आते किसी को बुरे नहीं लगते। फिर तुम्हे खुद से सास और ननद की मदद मिलेगी या तो  विनीत बाबू खुद मदद के लिए कहेंगे घर बैठी औरत कितना ही काम कर ले किसी को नहीं दिखता।”पिता की बात सुन पूनम के दिमाग में बिजली से कौंधी।



“सही कहा पापा, मेरा तो नेट का सर्टिफिकेट भी लेने में मुझे कॉलेज बुलाया गया है, मैं विनीत के साथ जाकर उसी कॉलेज में जॉब की बात  कर लूंगी… ये बात मेरे दिमाग में क्यों नहीं आई” पूनम उछल कर बोली।

“तुम्हारी सास ने शुरू में ही कहा था पढ़ी लिखी घरेलू लड़की चहिए अब तो जॉब के लिए मानेगी” कमला जी सोचते हुए।

“सासू मां नहीं पर ससुर जी मान जायेंगे वो थोड़े लालची है और ये भी  बोलते है मेरे लिए बहु बेटी दोनो बराबर है ,जब विद्या बीएड के बाद जॉब करेगी तो मैं तो नेट क्वालिफाइड हूं उससे ज्यादा सैलरी मिलेगी, मैं उनको मना लूंगी अब अपने लिए बोलने का टाइम आ गया है थैंक्यू पापा…” पूनम पिता को गले मिल अपने कमरे में भागी।

“सुनो जी, आपने बेटी को बहकाया अब इसके ससुराल में पंगे न हो, कि मायके वाले सिखाते है।” कमला चिंता व्यक्त करते हुए।

“भाग्यवान बेटी की चेहरे की खुशी नहीं देखी भविष्य की चिंता करने लगी। पंगे आज नहीं तो कल होते, जरूरी नहीं पूनम की देवरानी पूनम की तरह शांत निकले हमारी बेटी दबती आई तो दबती ही रहेगी।बहु को बेटी बोलना आसान होता है मनाना मुश्किल देखे इसके ससुर जी क्या फैसला सुनाते हैं।” प्रकाश कुछ सोचते हुए



आज तीन महीने बाद पूनम मायके आई। पड़ोस की  शर्मिला आंटी ,”क्या बात है पूनम तेरी तो पर्सनलिटी चेंज हो गई। कैसी मरी मरी सी आई थी पिछली बार … पानी लग गया ससुराल का..या रंग चढ़ गया पिया के प्यार का” पूनम शरमाते हुए अंदर चली गई।

कमला ने पूनम की मिर्ची ले नजर उतारी। पूनम माता पिता से गले मिली ।

“वैसे हाल चाल तो दिख रहे… फिर भी और सुना… किसी चल रही जॉब….”प्रकाश जी।

“पापा गजब हो गया, मेरे ससुर ने न केवल जॉब के लिए हां करी मुझे आगे पढ़ने मतलब पी एच डी की भी परमिशन दे दी। सुबह सुबह निकल जाती हूं। शाम तक आती हूं , सारे दिन की किच किच से छुट्टी, अब कैसे हो रहे काम पता नही … बस एक दिन हिम्मत कर ससुर से बात कर ली। अब सास ननद भी ऐतराज नहीं कर पाए क्योंकि कल जब खुद के घर की बेटी जॉब करेगी तो उसकी सास ननद से मदद की उम्मीद की जायेगी। सो

दिल से खुश हो न हो पर मुझे नाराजगी नहीं दिखा पा रही।मेरे हर काम में मुझे मदद मिल रही वो भी बिना नाराजगी”

प्रकाश और कमला आज बेटी को खुश देख खुश है। कांता पूनम दोनो उन्ही की बेटियां दोनो को एक जैसी शिक्षा दी गई । बात जब सहनशिलता से बाहर हो जाए तो तकलीफ जाहिर करनी चाहिएं आवाज उठानी चाहिए लेकिन कांता ने आवाज नहीं उठाई कई कष्ट भरे साल झेले लेकिन पूनम ने सही समय में आवाज उठाई तो आज सुखी है।

धन्यवाद दोस्तो

ये मेरी स्वरचित कहानी है। जिसमे मैंने शिक्षित और आत्मनिर्भर होने में फर्क को दर्शाया है। शिक्षा अपने हक के लिए लड़ना सिखाती है तो आत्म निर्भरता अपना सम्मान करवाना सिखाती है।

आपकी दोस्त

आरती खुराना (आसवानी)

 

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