कौन घर परिवार के झंझट में पड़े –  चाँदनी झा 

देखो संध्या, यहां पूछ-पूछ कर सब काम करती रहोगी, तो बस जिंदगी भर पूछते रह जाओगी। मेरी बात मानो, जो मन में आए करो, और देवर जी से भी कहो, वो अच्छा कमाते हैं, तुम्हें अपने साथ रखे। मंजू, संध्या की जेठानी,  संध्या को समझा रही थी।

हां जीजी, पर….पर-वर कुछ नहीं, मैं तुमसे पहले आई हूं, मैं इस घर को अच्छे से जान चुकी हूं। तुम्हारे भले के लिए कह रही हूं। पर जीजी आप तो सबकुछ पूछ कर ही करती हैं, अरे, तुम्हारे जेठ की आमदनी देवर जी के इतनी नहीं है न इसलिए।

नहीं जीजी परिवार में कम और ज्यादा कमाने से अलग सम्मान नहीं होता, सभी बराबर होते हैं। और हां, सासू मां के व्यवहार से मुझे ऐसा न लगा कभी की, जेठ जी को कम और सुशांत(संध्या का पति) को ज्यादा प्यार करती हैं।

हूं, मैं तुम्हें सतर्क कर रही हूं, बाकी, मानना, न मानना तुम्हारा काम।

दरअसल…..मंजू, परिवार में रहना नहीं चाहती, अपने पति के साथ अलग रहना चाहती थी, जहां उसकी खुद को मिल्कियत होगी, खुद का सबकुछ, खुद का सपना, खुद का अधिकार, खुद का आदेश।

और हां विनय(मंजू का पति) अपने परिवार की एकता में विश्वास करता था। परिवार बहुत ही सुलझा हुआ था। कुछ दिन पहले छोटे भाई सुशांत की शादी हुई और, संध्या घर की छोटी बहु बन आ गई। अब मंजू ने संध्या के कंधे पर बंदूक रख, गोली चलाने का सोचा। कौन घर-परिवार के झंझट में पड़े। सारे लोगों का खाना, अनुशासन, रिश्तेदार, औपचारिकता, परिवार में तो निभानी ही पड़ती है। पर मंजू तो….बस मौज-मस्ती कर, जिम्मेदारी से बचना चाहती थी। नई बहु संध्या ने अभी ठीक से परिवार को समझा भी नहीं था की, जेठानी….उसे सपने दिखाने लगी। वैसे भी ससुराल में, पति के बाद, जेठानी पर ही भरोसा होता है। आखिर वो भी हमारी तरह दूसरे घर से आती है।



संध्या ने अपने पति से कहा…मैं आपके साथ शहर में रहना चाहती। सुशांत ने संध्या को प्यार से समझाया, देखो संध्या, अभी कुछ दिन यहां रह लो, मां के भी अरमान पूरे हो जाएंगे, मैं शनिवार, रविवार आ ही जाता हूं, हां ज्यादा दूर यदि, तबादला होगा तो मैं तुम्हें अपने साथ ले जाऊंगा। और हां, भाभी को भी बुरा लगेगा, की नई आई बहु पति के साथ….रहने लगी, और मैं…? इसलिए तुम कुछ दिन ससुराल के भी मजे ले लो। हूं, संध्या ने सहमति में सिर हिलाया।

मंजू….संध्या से….बात किया तुमने देवर जी से? हां जीजी, उन्होंने कहा, तबादला होगा तब ले जाऊंगा। अरे! ऐसे भी कोई नई शादी के बाद बात करता है, तुम दोनो को सप्ताह में दो दिन नहीं, हर दिन साथ रहना चाहिए। क्या देवर जी बहाने बना रहे हैं। संध्या को समझ न आता था, जेठानी को उसकी सचमुच चिंता है, या….बात कुछ और है

सासू मां ने भी एक दिन कहा, देखो संध्या, विनय यहां दुकान चलाता है तो बड़ी बहू मंजू यहीं रहती है, पर…सुशांत शहर में रहता है, तुम चाहो तो…उसके साथ शहर जा सकती हो। अब मंजू ने फिर से अकेले में, संध्या को, देखो मैंने तुम्हारे आने से पहले चार साल अकेले काम किया है, अब तुम यहां अकेले काम करो, मैं अपने पति को शहर जाने के लिए मनाऊंगी।

संध्या को समझ न आ रहा था, जिस जेठानी को उसकी चिंता थी, वो आज….फिर भी उसने कुछ न बोला। संध्या भी अब कुछ हद तक सबको पहचानने लगी। वह अपनी जेठानी के मकसद को समझ चुकी थी, वह संध्या को शहर भेजकर, खुद भी सास को बोलकर जाना चाहती थी। अब, जब सास ने उसे जाने कहा, और मंजू के पति यहीं रहते वह नहीं जाएगी, तो वह नहीं चाहती थी की संध्या भी जाए। पर वह समझदारी से हर रिश्ते को निभा रही थी। जेठानी ने कहा, देखो संध्या, तुम….मांजी से बोलो की तुम बाहर जाओगी, और मैं यहां, उनकी पेंशन, खेतों का अनाज आदि उपयोग करूंगी, इसलिए मैं भी बाहर जाऊं। अब तो संध्या को गुस्सा आ गया। उसने कहा, जीजी, हद होती है, मुझे जो कुछ भी कह रहे हैं। 

आपको जो भी बोलना है सबके सामने बोलो।” आखिर सबको आपकी हकीकत का पता तो चले। ये क्या, दिल में कुछ, और जुबां पर कुछ। मुझे बुद्धू न समझिए। और हां, परिवार को जब तक आप परिवार न समझेंगी, ऐसे ही ख्याल आते रहेंगे, आप बड़ी है, आप मुझे घर तोड़ने नहीं, घर जोड़ने सिखाइए। ऊंची आवाज में बोल रही थी संध्या। उसकी आवाज सुन, सास भी आ गई। पर संध्या ने कुछ न कहा, मंजू भी चुपचाप कमरे से निकल गई। शायद उसके पास अपने घर को संवारने, इसे प्यार करने के आलावा कोई कार्य न बचा था।

 चाँदनी झा 

 

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!