“एक कप चाय तुम्हारे साथ” – ऋतु अग्रवाल

 

      “नीलिमा! कहाँ हो भई? राहुल, मनस्वी, यहाँ आओ।” प्रभात ने दरवाजे से ही आवाज लगाना शुरू कर दिया।

     “आ रही हूँ। क्या बात है, बड़े खुश लग रहे हो? बच्चे जरा बाजार तक गए हैं, नए साल की पार्टी के लिए सामान लेने।” नीलिमा हाथ पोंछते हुए बाहर आई। सप्रभात के हाथ में मिठाई के डब्बे देख कर वह चौंक पड़ी,” अरे! यह मिठाई के डब्बे! किस खुशी में इतनी सारी मिठाई ले आए?”

     “अच्छा! बच्चे बाहर गए हैं।कोई बात नहीं, तुम ऐसा करो, चाय बना लो, साथ में पियेंगे,तभी तुम्हें खुशखबरी भी सुना दूँगा। मैं हाथ मुँह धो कर आता हूँ  तब तक चाय बना लो।” कह प्रभात कमरे की तरफ मुड़ गए।

      “ये क्या? सिर्फ एक कप चाय? तुम्हारी चाय कहाँ है? मैंने कहा था ना कि चाय साथ पियेंगे।” प्रभात सिर्फ एक कप चाय देखकर उदास हो गए।

     “वो, मैंने शाम को चाय पी थी, मधु आई थी कुछ काम से तो उसके साथ ही पी ली। अब दोबारा चाय पीने का मन नहीं है। तुम बताओ ना,क्या खुशखबरी है?”

नीलिमा उदासीन भाव से बोली।

    “नीलिमा! अपनी मनस्वी के लिए बहुत ही अच्छा रिश्ता आया है। वो लोग तो परसों ही सगाई करने के लिए कह रहे थे पर मैंने कह दिया कि मैं अपनी बेटी की रजामंदी और परिवार की सहमति से ही बात आगे



बढ़ाऊँगा। नीलिमा, जानती हो, लड़का डॉक्टर है और अपनी मनस्वी को जानता है। उसने मनस्वी को गिरधर भाई की बिटिया की शादी में देखा था। लड़के के पिता गिरधर भाई के परम मित्र हैं। भाई बता रहे थे कि बहुत अच्छा परिवार है।” प्रभात खुश तो थे पर कुछ अनमना से रहे थे।

     “चलो!अच्छा है, अगर लड़का अच्छा है और मनस्वी को पसंद आया तो हमारी एक जिम्मेदारी तो पूरी हो जाएगी।” कहकर नीलिमा खाने की तैयारी में लग गई।

“ठीक है, मनस्वी से सुबह बात करता हूँ ।” कह प्रभात टीवी देखने लगे।

  “नीलिमा! बच्चों को भी बुला लो और सबके लिए चाय बना लो। चाय साथ बैठ कर चाय पियेंगे और बच्चों को उस रिश्ते के बारे में भी बता दूँगा।”प्रभात ने अखबार उठाते हुए कहा।

   “जी!” कहकर नीलिमा रसोई में चली गई।

  राहुल,मनस्वी और प्रभात बातें कर रहे हैं कि नीलिमा चाय ले आती है।

     ” यह क्या नीलिमा? तीन कप चाय? तुम्हारी चाय कहाँ है” प्रभात खीझ से गए।



      “जी! मैंने तो सुबह उठकर ही पी ली थी। अब दोबारा चाय पीने का मन नहीं है।” नीलिमा ट्रे रखते हुए बोली।

     “नीलिमा! ये क्या बात हुई? तुम कभी भी हम लोगों के साथ चाय नहीं पीती हो। मैं चाहता हूँ कि तुम भी दो घड़ी फुर्सत से हमारे साथ बैठो, हँसो, बोलो बतियाओ पर ऐसा संभव नहीं हो पाता।” प्रभात थोड़ा आवेशित हो गये।

   नीलिमा की आँखों में आँसू आ गए।

   “नीलिमा!”

    “मम्मी! क्या बात है? आप क्यों रो रही हैं?”राहुल ने नीलिमा का  हाथ पकड़ लिया।

    “कुछ नहीं बेटा!” नीलिमा आँसू पोंछने लगी।

    “मम्मी! क्या बात है? बताओ ना, आप रो क्यों रही हो?” मनस्वी ने नीलिमा को पास बिठाते हुए कहा।

     “बेटा! यह एक कप चाय! जानते हो जिस एक कप चाय को साथ पीने के लिए तुम्हारे पापा नाराज हो रहे हैं, उस एक कप चाय के साथ के लिए मैं कितना तरसी हूँ।

जब शादी हुई तो संयुक्त परिवार के चलते, तुम दोनों की परवरिश के चलते तुम्हारे पापा और मैंने कभी भी साथ में चाय नहीं पी। घर के काम, रिश्तेदारों की जिम्मेदारियाँ खत्म ही नहीं होती थीं। तुम्हारे पापा भी सुबह शाम अपना समय अपने माता-पिता, भाई बहनों और तुम दोनों के साथ बिताने में इतना मशगूल रहते थे कि उन्हें कभी महसूस ही नहीं हुआ कि नीलिमा भी दो घड़ी सुकून से उनके साथ बैठकर बिताना चाहती है और फिर कब मुझे अकेले ही चाय पीने की आदत पड़ गई, पता ही नहीं चला। सच कहूँ तो अब याद भी नहीं कि कब तुम्हारे पापा के साथ आखिरी बार साथ बैठकर चाय पी थी।” नीलिमा के अंतर का सारा विषाद आँसुओं के साथ बह गया।

   नीलिमा की बात सुनकर प्रभात हकबकाए से रह गए।

  “नीलिमा मुझे नहीं पता था कि मैंने तुम्हें इस कदर तकलीफ पहुँचाई है। साथ होकर भी तुम अकेलापन झैलती रही। मैं पुराना समय तो वापस नहीं ला सकता पर आज से यह तय रहा कि सुबह और शाम की चाय मैं अपनी प्यारी पत्नी के फूल जैसे मुस्कुराते हुए चेहरे के साथ ही पिऊँगा।” कहकर प्रभात ने नीलिमा के आँसू पोंछ उसकी प्यारे से हाथों को चूम लिया।

मौलिक सृजन

ऋतु अग्रवाल

मेरठ

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