उम्मीद का दीया – शकुंतला अग्रवाल ‘शकुन’

प्राची से लालिमा प्रस्फुटित हो जैसे ही वसुधा को चूमने लगती है, प्रकृति विभोर हो झूमने लगती है।

उषा-काल की प्रथम किरण को अपने आगोश में समेटने का हेतल का नियम ही था।

ऐसा कोई दिन नहीं निकलता था जब उसने सूर्योदय की पहली किरण का आचमन नहीं किया हो।

शायद कोई किरण उसके जीवन में भी खुशियों की सौगात ले आए। वह इसी उम्मीद से तो जी रही थी। 

एक दिन सहेलियों ने पूछ ही लिया था “शहनाई कब बजेगी?”

हेतल यही कह पाई थी “जब प्रभु की कृपा होगी।”

मन में आशा का दीप जलाए हुए, जयशंकर की बाट निहारती रहती थी। 

एक दिन अचानक जयशंकर के बचपन का दोस्त समीर मिलने के लिए आ गया। दोनों की नौकरी एक ही रेजिमेंट में थी। इसलिए दोनों का आत्मिक स्नेह,परवान चढ़ता रहा था।

मातृभूमि की रक्षार्थ जयशंकर जब अन्तिम साँस ले रहा था तब समीर से उसने जो वादा लिया था उसको निभाने का वक्त आ गया था। लेकिन उस वादे को निभाने की राह में अनगिनत रोड़े थे, जिनको हटा कर राह बनानी थी।

इधर हेतल उम्मीद लगाए बैठी थी कि जयशंकर अवश्य आएगा। वो मानने को ही तैयार नहीं थी जय शंकर इस दुनिया में नहीं है।

उसको समझाना आसान ही नहीं बल्कि असम्भव था।




समीर अकेला था उसके माता-पिता का निधन हो चुका था।

कोई और नाम लेने वाला भी नहीं था इसलिए रिश्तों के नाम पर कोई अड़चन नहीं थी।

लेकिन इस सूरत का क्या करे? जो जय शंकर से अलग है।

उसने हेतल के पिताजी को सारी बात बताना उचित समझ कर चला आया था।

पापाजी! “आपसे एक बात बतानी थी।”

“कहो , बेटा! क्या बात है?”

“कहना इतना आसान नहीं, पर कहना तो पड़ेगा। जयशंकर से जो वादा किया था उसको पूर्ण करना तो।” समीर के मन में विचारों की उठा-पटक होते देखकर—–।

“मेरे लिए तुम जय शंकर जैसे ही हो, निसंकोच कह दो।” रामप्रसाद जी आश्वस्त करते हुए बोले।

“वो, वो—– जय शंकर ने अन्तिम समय में कहा था कि मेरे दोस्त एक मेहरबानी करना। 

“हेतल का हाथ थाम लेना। मैंने मना भी किया था वो तुम्हारी मंगेतर है, मैं ऐसा नहीं कर सकता। तब वो बोला हेतल बहुत भोली है और जमाना खराब है, क्या पता कैसा लड़का मिले हेतल को खुश भी रखे की न रखे, क्या पता? तुझ पर पूर्ण विश्वास है इसलिए वादा कर ,हेतल से शादी करेगा? उसके लिए चाहे कुछ भी करना पड़े।” आखिर उसकी खुशी के लिए हाँ कर दी।

लेकिन हेतल तो यह आस लगाए है उसका जयशंकर आएगा, इसलिए वो किसी और से शादी करने को राजी भी नहीं है। आप ही बताए,मैं जयशंकर कैसे बनूँ, मैं करूँ तो क्या करूँ?” 

सारी बात सुनकर रामप्रसाद जी बेचैन होकर बोले—–

“यह कैसे सम्भव है?”




” असम्भव को ही तो सम्भव करना है। मैं ही कुछ सोचता हूँ, कोई रास्ता निकल आए।”  

कुछ दिनों के बाद समीर डॉक्टर से मिला और अपनी समस्या उनके सामने रखी।

तब डॉक्टर बोले।

एक उपाय है “आप प्लास्टिक सर्जरी से अपना चेहरा जयशंकर के जैसा बनवा सकते हो।” डॉक्टर ने उम्मीद की एक किरण दिखाई।

कुछ समय पश्चात प्लास्टिक सर्जरी से समीर,जयशंकर बन गया।

फिर हेतल के पिताजी के पास चला आया। रामप्रसाद जी उसको देखकर चौंक गए।

“जय शंकर तुम!”

“नहीं , मैं समीर हूँ लेकिन आप इस राज को अपने सीने में दफन रखिएगा।”

“ठीक है, कहकर रामप्रसाद जी ने समीर को गले लगा लिया।

जल्द ही शहनाई बज उठी, हेतल के हाथों पर जयशंकर के नाम की मेहँदी रच गई।

समय पंख लगाकर उड़ रहा था दोनों खुशियों के समंदर में गोते लगा रहे थे कि अचानक एक दिन हेतल के हाथ समीर नाम की अंकतालिका लग गई हालांकि समीर ने नौकरी छोड़कर दूसरे शहर में व्यापार कर लिया था परंतु कहते है ना कि होनी को कोई नहीं टाल सकता। छोटी-सी भूल तूफान ले आई।

हेतल ने जब पूछा कि आप जयशंकर नहीं, समीर हो?  तब यकायक समीर कुछ नहीं बोल पाया। बोलता भी क्या उसको तो समझ ही नहीं आ रहा था आखिर हेतल को पता कैसे लगा? कुछ बोलने का साहस करता भी तो,  हेतल ,समीर को झूठा, मक्कार कहकर चुप करा देती, नतीजा यह हुआ कि हेतल मायके चली आई।



अप्रत्याशित बेटी को आया देखकर पिता घबरा उठे।

“हेतल! सब ठीक तो है।” 

“खाक ठीक है। वो आपका दामाद, जय शंकर नहीं ,समीर है। इतना बड़ा धोखा—–।”

“बेटा! यह बताओ क्या अब-तक तुम खुश नहीं थी?” क्या समीर ने कभी तुम्हें तकलीफ दी?”

“नहीं ,पापा! लेकिन इतना बड़ा धोखा?”

“कोई धोखा नहीं दिया, मुझे बतला कर ही उसने आगे कदम बढ़ाया था। जयशंकर की अन्तिम इच्छा थी कि समीर ही तुमसे शादी करे। अत: अपने दोस्त से किए वादे को पूरा करने के लिये ही समीर ने ऐसा किया, वर्ना आजकल  कौन किसके लिए इतनी तकलीफ उठाता है?” उसने जो किया तुम्हारी  खुशी के लिए किया था। जाओ जाकर समीर से माफी माँगो।”

“कहीं जाने की जरूरत नहीं, मैं हाजिर हूँ। लेकिन पापा जी!  एक बात पक्की है आज आप नहीं होते तो देवी जी हमें कचहरी में खड़ा करवा देती।”

समीर! मुझे माफ कर दो, कहकर हेतल गले लग गई।

सर्वाधिकार सुरक्षित

स्व रचित व मौलिक

शकुंतला अग्रवाल ‘शकुन’

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