…तो रिश्ता एक तरफा कैसे ? – संगीता अग्रवाल 

” कैसी हो बेटा ? ससुराल में सब ठीक तो हैं ना कोई परेशानी तो नहीं !” संध्या जी ने अभी दो महीने पहले ब्याही बेटी शीना से फोन पर पूछा।

” मम्मी बस पूछो मत दो महीने में ही इस ससुराल नाम से इतना उकता गई हूं कि सोचती हूं शादी ही क्यों की …!” शीना बोली।

” अरे ऐसा क्या हुआ किसी ने कुछ कहा क्या ?” संध्या जी चिंतित हो बोली।

” मम्मी इतना बड़ा परिवार और बहुओं की सब जिम्मेदारी ऊपर से बच्चों का शोर उफ्फ आप कैसे संभालती थी सब आप भी तो संयुक्त परिवार में रही हैं क्या कोई जादू मंत्र था आपके पास जिससे सब आपके बस में हो गए थे क्योंकि मैने तो सबके मुंह से आपकी तारीफ सुनी है  !” शीना हैरान हो बोली।

“बेटा ज्यादा कुछ नहीं करना होता इसके लिए। तुम कल आ रही हो ना यहां फिर बताती हूं सबको अपने बस में करने का मूल मंत्र!” संध्या जी मुस्कुराते हुए बोली।

संध्या जी समझ गई थी बेटी नए माहौल में खुद को ढाल नहीं पा रही और इसमें कुछ कमी जरूर बेटी की तरफ से ही है क्योंकि वो अपने दामाद और उसके परिवार को अच्छे से पहचान गई थी कि वो सुलझे हुए लोग हैं । बहुत खूबसूरत सी बगिया है उनके परिवार की । संयुक्त परिवार है जहां सबके दिलों में प्यार है बस अब बेटी को उस परिवार की फुलवारी का महकता गुलाब बनाना था।

अगले दिन….

“हां तो बेटा अब बोलो क्या कह रही थी ? ” शीना के आने पर चाय नाश्ते के बाद संध्या जी उसे अपने कमरे में ले जाकर बोली।

” मम्मी बताओ ना आपने कैसे ससुराल में सबको अपने बस में किया था आपके लिए सब इतना अच्छा कैसे था ?” शीना बोली।



” बेटा एक हाथ से ताली बजाना जरा !” संध्या जी शीना का एक हाथ पकड़ कर बोली।

” अरे मम्मी एक हाथ से ताली कैसे बज सकती है आप भी हद करती हो !” शीना तनिक गुस्सा हो बोली।

” बेटा तुम एक हाथ से ताली तो बजा नहीं पा रही और चाह रही हो रिश्तों की गाड़ी एक तरफ से खींच जाए !” संध्या जी मुस्कुरा कर उसका हाथ छोड़ती हुई बोली।

” मतलब?”  शीना ने मां से हैरानी से पूछा।

” बेटा सफर मेरे लिए भी कभी आसान नहीं था पर मैने उसे आसान बनाया है… अपनी तरफ से एक हाथ बढ़ाया तो सबने दूसरी तरफ से हाथ दिया …. ऐसे और बज गई खुशियों की ताली और चल पड़ी रिश्तों की गाड़ी !” संध्या जी दोनों हाथों से ताली बजाते हुए समझाने लगी।

 

“????” शीना सवालिया नज़रों से मां को देख रही थी।



” बेटा ससुराल में एक बहू बाहर से आती है बाकी सब वहीं रह रहे होते …अब बहू आकर सबके साथ घुलना jमिलना नहीं चाहेगी तो बाकी सब क्यों कोशिश करेंगे ….रही जिम्मेदारियों की बात वो तो सब घर में बहुओं के हिस्से आती ही हैं…जिन बच्चों के शोर से तुम परेशान हो उनकी तुम चाची हो कल को तुम्हारे बच्चे होंगे वो शोर नहीं करेंगे क्या ? संयुक्त परिवार में रहना भले थोड़ा मुश्किल है पर एक बार सबके दिलों में जगह बना लोगी तो तुम्हे वहीं प्यारा लगने लगेगा। तुम अपनी तरफ से कोशिश करके तो देखो और अपनी तरफ से एक हाथ बढ़ाओ !” संध्या जी बोली ।

” सच में मम्मी जब मैं कोशिश करूंगी तो मेरे लिए भी सब आसान हो जाएगा …क्या इसी जादू से आपने सबको अपना बनाया है …यही मूल मंत्र है आपका सबकी प्यारी बने रहने का !” शीना मां के गले में बाहें डाल बोली।

” बिल्कुल मेरी बच्ची किसी को भी प्यार के जादू से अपना बनाया जाता है फिर वो चाहे दो साल का बच्चा हो या 60 साल का बूढ़ा !” संध्या जी बेटी का माथा चूमते हुए बोली।

” मम्मी अब देखना मैं भी ऐसे ताली बजाऊंगी और अपने घर में खुशियों का मधुर संगीत भर दूंगी फिर मेरे घर में भी रिश्तों की गाड़ी स्पीड से भागेगी !” शीना ताली बजाते हुए हंसती हुई बोली!

मां ने बेटी को गले लगा लिया उन्हें तसल्ली थी बेटी अब उस घर में अपनी जगह बना लेगी।

दोस्तों शादी के बाद किसी भी लड़की का जीवन आसान नहीं होता बस थोड़ी सी समझ की जरूरत है वहां अपनी जगह बनाने के लिए संयुक्त परिवार से आजकल लड़कियां विमुख हो रही हैं पर ये भी सच है संयुक्त परिवार का भी अपना मज़ा है। एक हाथ आप बढ़ाओ एक आपके नए घर के लोग फिर देखो खुशियों की ताली भी बजेगी और रिश्तों की गाड़ी भी चलेगी वो भी बिन परेशानी के।

दोस्तों ये मेरी अपनी सोच है सभी इससे इत्तेफाक रखते हों ये भी जरूरी नहीं है।

आपकी दोस्त

संगीता अग्रवाल 

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!