खुशियों की उम्मीद – डॉ .अनुपमा श्रीवास्तवा 

 

आर्मी हॉस्पीटल में लेबर रूम के बाहर विशाल अपनी माँ के साथ बैठा हुआ था तभी अंदर से नर्स अपने हाथों में नवजात शिशु को लेकर बाहर निकली उसे देखते ही दोनों खड़े हो गए। नर्स ने बच्चे को दिखाते हुए कहा-” बधाई हो आंटी जी पोता हुआ है।”

रागिनी जी पोते को लेने के लिए आगे बढ़ी तो नर्स ने बच्चे को छुपाते हुए कहा-” नहीं आंटी पहले आप मुझे मेरा बधाई नेग दीजिये तभी बच्चा आपके गोद में दूँगी ।”

उन्होंने पांच सौ का नोट नर्स को दिया फिर पोते को लेने के लिए हाथ बढ़ाया उनकी आँखें भरी हुई थी। नर्स बच्चे को गोद में देते हुए बोली आंटी जी इसके दादू नहीं आए मुझे उनसे भी बधाई नेग लेना है। रागिनी जी थोड़ी असहज हो गई। तब झट से विशाल आगे बढ़कर पांच सौ का एक और नोट देते हुए बोला-” आप उनके बदले मुझसे ले लीजिए मैडम  इसके दादाजी अभी यहां नहीं हैं।”

अरे! बेटा कोई बात नहीं खुशी का मौका है इसलिए मैंने कहा था। बच्चे को लेकर रागिनी जी उसे बार- बार सीने से लगा रही थीं और एक ही बात दुहरा रहीं थीं-” कहां हैं आप !आकर देखिए तो सही मेरी गोद में हूबहू आप ही जैसा नन्हा सा पोता है। “

अगले दिन सब लोग बच्चे को लेकर घर आ गए। पूरे मुहल्ले में मिठाइयाँ बांटी गई। विशाल हर वक्त माँ के आसपास ही रहता था ताकि कोई उनसे पिताजी के बारे में कुछ पूछ न दे।

विशाल जब दस साल का था तभी उसके पिता जो आर्मी में चीफ कमांडर थे उनकी मौत एक आतंकवादी हमले में हो गई थी। जैसे ही मौत की खबर घर में पहुंची पूरे परिवार में हाहाकार मच गया था। रागिनी जी ने अपना होश हवास खो दिया था। लगभग पंद्रह दिनों तक वे हॉस्पीटल में एडमिट रहीं। उन्हें होश तो आया  पर अपनी यादाश्त खो चुकी थीं कुछ भी याद नहीं था। डॉक्टर का कहना था कि उसी तरह का कोई हादसा होने पर यादाश्त लौटने की उम्मीद की जा सकती है। माँ -पिता और उनके मायके वालों ने उन्हें और बच्चों को सम्भाला था।

वह बहुत छोटा था उसे बस इतना समझ था कि अब पिताजी नहीं आयेंगे। वह अपने देश के लिए भगवान जी के पास  चले गए हैं। परिवार में कोई बड़ा नहीं था इसलिए आर्मी वालों ने इस छोटे से बच्चे से ही मुखाग्नि दिलवाई।सारा मुहल्ला उनके शहीद होने पर गर्व महसूस कर रहा था लेकिन जब लोगों ने इस नन्हे से बच्चे के हाथ से अपने पिता को मुखाग्नि देते देखा तो सब रो पड़े। उस समय रागिनी जी हॉस्पीटल में थीं। विधाता ने इस मासूम की सारी खुशियां छीन ली थी । जब तक क्रिया-कर्म हुआ तब तक रिश्तेदारों का आना जाना लगा रहा उसके बाद धीरे-धीरे सब अपने अपने घर लौट गये।



रागिनी जी हॉस्पीटल से लौट चुकी थीं पर स्वस्थ नहीं थीं उनके पिता ने बहुत  मिन्नतें की बेटी से साथ चलने के लिए पर वह तैयार नहीं हुईं थीं। मायके के दरवाजे सुख में जाने के लिए ही ठीक है अपने दुःख के साथ ससुराल की देहरी ही भली है। 

           विशाल वक्त से पहले ही बड़ा हो गया था। उसने माँ को अपने हाथों में ऐसे थामा जैसे कोई माँ-बाप अपने बच्चों को थाम लेते हैं ।वह अपनी माँ की आंखों में कभी आंसू नहीं देख सकता था। जब कभी वह पति को याद कर रोती  तो  वह आंसुओं को पोंछ कर कहता-”  माँ तुम बिल्कुल चिंता मत करो देखना एक दिन पिताजी अवश्य आयेंगे तब तक मैं हूँ न ! मैं भी बड़ा होकर कर्नल बनूँगा और पापा की तरह…..।”

इतना सुनते ही माँ उसके मूंह पर हाथ रख देती और कहती नहीं -नहीं मैं तुम्हें कहीं नहीं जाने दूँगी । तू भी  कहीं रास्ता भूल गया तो? हॉस्पीटल में सारे डॉक्टर यही कहते थे कि तुम्हारे पिताजी  जंगल में रास्ता भटक गये हैं  । एक न एक दिन वो आयेंगे। हाँ माँ, वे लोग सही कह रहे थे  पिताजी अवश्य आयेंगे और वह माँ से लिपट जाता।  देखो अब मैं बड़ा हो गया हूँ । उस नन्ही जुबान से दिलासा सुनकर रागिनी जी बेटे को कलेजे से लिपटा कर सिसकियाँ लेने लगती। पति की यादों में  डूबते उतराते बच्चों को कलेजे से लिपटाये हुए जाने कब उनकी आँख लग जाती पता ही नहीं चलता।

समय अपनी गति से भी तेज पंख लगा कर उड़ता जा रहा था। दिन महीने में और महीना साल में बदल रहा था पर उनकी आँखों  को अब भी इंतजार था पति  के लौट  आने की। इस सच्चाई से अनजान कि उनके पति जहां गये हैं वहाँ से वापसी के रास्ते किसी को नहीं पता । उन्हें आर्मी स्कूल में टीचर की नौकरी मिल गई थी।उन्होंने अपने दोनों बच्चों का पालन पोषण माँ-बाप  दोनों  बनकर  किया। कभी भी कोई कमी नहीं होने दी।  दोनों बच्चे पढ़- लिखकर आगे बढ़ते गये। संयोग से विशाल अपने पापा की तरह सेना में अधिकारी बना। रागिनी जी तो नहीं चाहती थीं पर बच्चे की खुशी के लिए  उन्होंने कोई विरोध नहीं किया। पोस्टिंग हो गई थी। जाने से पहले भरे  गले से उन्होंने बस इतना ही कहा कि बेटा पिता की तरह घर का रास्ता मत भूल जाना । विशाल माँ के गले से लग गया।

  जाने से पहले विशाल ने हाथ जोड़कर आस -परोस  सबसे निवेदन किया था कि कोई उसकी माँ को पिता की मौत की सच्चाई ना बताये क्युकि माँ की जिंदगी पिताजी के आने की उम्मीद पर टिकी है। और हमारी जिन्दगी हमारी माँ है। उसके अलावा हमारा कोई भी नहीं है ।

खैर, वैसा कोई नहीं होगा जिसे इन बच्चों की खुशी से जलन हो। देखते-देखते विशाल की शादी  हो गई। रागिनी जी की बहू बड़ी ही अच्छी और नेक दिल की थी। जितना सुंदर मुखड़ा था उतना ही स्वभाव  की भली थी । विशाल ने उसे सारी सच्चाई बता दी थी और उसे इस बात को राज ही रखने की दुहाई  दी थी।



आज घर में खुशियां ही खुशियां थी। रागिनी जी ने अपने पोते के जन्मदिवस पर पूजा रखा था ।समूचा घर मेहमानों से भरा हुआ था। सारे मेहमानों में बहू के माता- पिता भी थे। बहू की माँ रागिनी जी को सजे -सवरे हुए देख कर मूंह टेढ़ी करते हुए बोली- ” कैसा घोर कलयुग आ गया है विधवा भी सधवा बनी फिर रही है ।” 

बहू ने झट से माँ की जुबान पर हाथ रख दिया और गंभीरता से बोली-” माँ तुम खुशी में आई हो न! तो बस इन्जॉय करो कोई ऐसी बात मत बोलो जिससे  माँ जी को दुःख पहुंचे ,झूठा ही सही कम से कम उन्हें उम्मीद तो है की पापाजी जीवित है । हमे उनकी खुशी से मतलब है। कितने दर्द से गुजरी होगीं वो अकेले जिंदगी के सफर में। आज थोड़ी खुशियां उनके हिस्से आई है उसको जी लेने दो। “

बेटी की बात सुनकर उसकी माँ तिलमिला उठी। मूंह घुमाते हुए बोली -“हूंह” बड़ी तरफदारी कर रही है अपनी सास की। मुझसे तो यह देखा नहीं जा रहा है।”

बहू ने कहा-” सुनो माँ ,मेरी बात तुम्हें बूरी लग सकती है पर यदि तुम उनकी उम्मीद तोड़ने आई हो तो तुम वापस जा सकती हो ।”

सत्यनारायण भगवान की पूजा शुरू हो चुका था। पंडित जी ने विशाल और बहू को बच्चा गोद में लेकर पूजा पर बैठने के लिए कहा। पंडित जी की बात को काटते हुए विशाल ने कहा-” पूजा पर माँ ही बैठेगी पंडित जी ।”

और  फिर माँ को देखकर बोला-” माँ पोते को लेकर तुम ही बैठ जाओ न पूजा करने के लिए। “

पहले तो रागिनी जी तैयार नहीं हुईं पर बेटे की मनुहार पर मान गईं। उस समय बच्चा बहू की माँ की गोद में था। बहू जैसे ही माँ की गोद से सास की गोद में बच्चे को देने लगी बहू की माँ बोल पड़ी -” अरे! बिटिया यह क्या कर रही हो यह शुभ काम तुम लोग स्वयं करो विधवा के हाथों से क्यूँ करवा रही हो? “

इतना सुनना था कि रागिनी जी बदहवास सी सबको देखने लगी। सब लोग कुछ समझ पाते इससे पहले ही वो चक्कर खाकर  वहीं जमीन पर गिर पड़ी। एक बार फिर  घर की खुशियां और उनकी जिंदगी की उम्मीद चकनाचूर हो गईं ।

स्वरचित एवं मौलिक

डॉ .अनुपमा श्रीवास्तवा

मुजफ्फरपुर ,बिहार

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