स्नेह की जीत-गीता वाधवानी Moral stories in hindi

 

यह आवश्यक नहीं की अटूटरिश्ता सिर्फ पति-पत्नी का या मां बच्चों का ही हो। भतीजा भतीजी और बुआ का रिश्ता भी अटूट होताहै। बच्चे और बुआ एक दूसरेसे बहुत स्नेह करते हैं और एक दूसरे पर जान छिड़कते हैं। ऐसा हीप्यार था काजल और उसके भतीजे अमोल और भतीजी रिद्धि में।
काजल का भाई विनोद का बन चुका था और काजल ग्यारहवीं कक्षा में थी। सीए बनने के लगभग 2 साल बाद, जब विनोद की मां ने उसके विवाहके लिए बात चलाई, तब विनोद ने अपनीमां को अपनी पसंदकी लड़कीके बारे में बताया। विनोद के पिताजी कुछ साल पहले हीं गुजर चुके थे। मां ने उसकी पसंद की लड़की स्नेहा के माता-पिता से रिश्ते की बात चलाई। दोनों पक्ष राजी थे चट मंगनी और पट ब्याह संपन्न हुआ।
काजल बहुत खुश थी कि उसे स्नेहा भाभी के रूप में एक प्यारी सहेली मिल गई है। धीरे-धीरे समय बिता, स्नेहा ने एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम अमोल रखा और अमोल जब एक वर्षका था तब अमल की दादी अचानक चल बसी। 2 साल बाद रिद्धि का जन्म हुआ।
      अब तक काजल भी प्राइमरी स्कूल की टीचर बन चुकी थी। मां तो गुजरचुकी थी और विनोद को काजलकी शादी की चिंता थी। उसने एक बार इसबारे में काजल से बात की। काजलने मना कर दिया।
काजल स्कूल से आकर अमोल और रिद्धि के साथ पूरा समय बिताती थी। उनके साथ खूब खेलती, उनको अपने हाथ से खाना खिलाती, उनकी देखभाल करती, उन्हें नई-नई पोयम्स सिखाती। बच्चे भी बुआ बुआ करते थकते नहीं थे। विनोद औरस्नेहा को कहीं जाना होता तो बेफिक्र हो कर चले जाते क्योंकि बच्चों को तो काजल बड़े आराम से संभाल  लेती थी।
काजल अपनी सैलरी में से बच्चोंके लिए कपड़े, चॉकलेट और कभी-कभी खिलौने भी ले आती थी। रोज शाम को बच्चों को गार्डन में झूला झुलाने ले जाती थी। उनकी प्यारी-प्यारी औरभोली भाली बातें उसे बहुत अच्छी लगती थी। बच्चेभी अगर किसी दिन  काजल को नहीं देखते थे, तो बुआ कहां गई, कहकर पूरा घर खोजलेते थे।
थोड़े समय बाद विनोद ने फिर सेकाजल को शादी के लिए पूछा। तब काजल ने शरमाते हुए बताया कि उसके साथ पढ़ाने वाले आदित्य ने उसे एक दिन शादी के लिएप्रपोज किया था, पर मैंने उसे अभी कोई जवाब नहीं दिया है। विनोद ने आदित्य से मिलने की इच्छा जताई।
आदित्य के घर में केवल उसकी माताजी ही थी। आदित्य और उसकी माताजी विनोद को बहुत ही सभ्य और संस्कारी लोग  लगे। उन लोगों ने रिश्ता पक्का करके सगाई का दिन तय कर लिया।
सगाई वाले कार्यक्रम में आदित्य जब तैयार होकर आया, तब बहुत ही स्मार्ट लग रहा था। तब विनोदके बेटे अमोल ने स्नेहा से पूछा-“ममा, यह अच्छे वाले अंकल कौन है?”
स्नेहा-“बेटा यह आपके फूफा जी हैं, काजल बुआ के होने वाले पति, अब बुआ शादी करके इनके साथही रहेगी।”
इसके बाद बच्चा अमोल पूरे टाइम उदास रहा और आदित्य को थोड़ी-थोड़ीदेर में घूर रहा था।
सभी मेहमानों के बीच आदित्य ने अमोल को गोद में बिठाते हुए कहा कहां-“बेटा अमोल, आप हमें गुस्से में क्यों देख रहे हो?”
अमोल-“क्योंकि आप अच्छे अंकल नहीं हो।”
आदित्य-“ऐसा क्यों, हमने क्या कियाहै बेटा?”
अमोल-“क्योंकि आप अब हमारी बुआ को ले जाओगे और वह आपके साथ रहेगी।”
सभी लोग बच्चों के भोलेपन पर हंस पड़े और फिर उसे समझाया कि जब भी आप बुआ को फोन करोगे, बुआ आपके पास आ जाएगी। तब जाकर अमोल की नाराजगी दूर हुई।
शादी हुई, काजल ससुराल चली गई। बच्चे काजल को और काजल बच्चों को बहुत यादकरते थे। काजल कभी-कभी स्कूल की छुट्टी होने पर दोपहर में स्कूटी उठाकर मायके बच्चोंसे मिलने आ जाती थी। बच्चों के साथ एक डेढ़ घंटा विताकर वापस चली जाती थी। उसकी सास को इस बात का पता था।
शादीके कुछ महीने बाद एक बार आदित्य अपने एक दोस्त से मिलने गया। वापसी में उसकी बाइक के सामने अचानक एक कुत्ता आ गया और उसे बचाने के चक्कर में आदित्य का बैलेंस बिगड़ गया और वह गिर गया। हेलमेट उतारकरदूर जा गिरा, इस कारण उसे सिर में बहुत गहरी चोट आई और एक हाथ की हड्डीभी टूट गई। लोगों ने उसे उठाकर अस्पताल पहुंचाया और उसके मोबाइल से किसीने काजल को खबर कर दी। काजल भागी भागी अस्पताल पहुंची और अपने भाई विनोद को भी फोन कर दिया।
बहुत खून बहजाने के कारण आदित्य को खून की जरूरत थी। विनोद ने तुरंत अस्पताल में पैसे जमा किए और खून का भी इंतजाम करवाया। सब कुछ करने केबाद भी आदित्य कोबचाया न जा सका। सबसे बड़ी बात यहथी कि उसे समय काजल 4 महीने की गर्भवती थी। आदित्य की माताजी का रो-रो कर बुरा हाल था। काजल भी बुरी तरह टूट चुकी थी। इस दुर्घटनाके बाद काजल की सास बीमार रहने लगी थी और बार-बार एक ही बात कहती थी कि-“मैंने अपनी जिंदगी में कभी किसी का दिल नहीं दुखाया, फिर भगवान ने मुझे इतना बड़ा दुख क्यों दिया, इससे तो अच्छा होता कि आदित्य की बजाय मुझे अपने पासबुला लेता, मेरा बच्चा तो अपनीसंतान का मुख भी नहीं देख पाया।”
अब काजल उनको छोड़कर मायके नहीं जाती थी। बच्चों की याद आने पर उन्हें फोन कर लेती थी। फिर आया एक ऐसा समय, जिसमें काजल ने आदित्य को बहुत मिस किया, जब उसने एक प्यारी सी गुड़िया राशि को जन्म दिया। विनोद और स्नेहा ने उस समय काजल का भरपूर साथ दिया।
फिर एक ऐसा समय आया जिसने दुनिया के लोगों को उनके ही घरों में कैद कर दिया। स्नेहा को भी सांस लेने में दिक्कत हो रही थी। उसे कोरोना हो गया था। विनोद उसके कारण अस्पताल के चक्कर काट रहा था। बच्चों की देखभाल के लिए उसने काजल को बुलाया, लेकिन काजल ने कहा-“भैया, मैं तो नहीं आ सकती क्योंकि माताजी को भी देखना है आप बच्चों को मेरे पास छोड़ जाओ।”
विनोद को यह बात बिल्कुल सही लगी और उसने बच्चों को काजल के पास छोड़ दिया और निश्चिंत होकर स्नेहा की देखभाल करने लगा, पर होनी को कौन टाल सकता है अतः स्नेहा को उस महामारी ने निगल लिया और विनोद को भी अपनी चपेट में ले लिया। विनोद ने भी दुनिया को अलविदा कह दिया। काजल पर तो दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करूं क्या नहीं। छोटे-छोटे दो बच्चे और अपनी भी एक बेटी सब की जिम्मेदारी काजल ने उठा ली। बच्चों की चहल-पहल के कारण काजल की सास कुछ वर्षों तक और जी सकी और फिर एक दिन वह भी चली गई।
कुछ साल बीत गए। बच्चे अब बड़े हो गए थे। काजल ने अमोल और रिद्धि की देखभाल पूरे की जान से एक मां की तरह की थी। बच्चे भी समझदार थे, सब समझते थे। काजल ने मायके वाला घर किराए पर देकर थोड़ा पैसा बच्चों की पढ़ाई पर खर्च किया था और कुछ जोड़ा भी था ताकि बच्चों के भविष्य में उनके काम आ सके।
इधर काजल को कुछ समय से चक्कर महसूस हो रहे थे और ब्रेस्टमें कुछ दर्दभी महसूस हो रहा था, लेकिन उसने इस बात पर ज्यादा गौर नहीं किया। एक दिन बच्चों की छुट्टी वाले दिन काजल काम करते-करते अचानक चक्कर खाकर गिर गई। राशि तो डर के मारेरोने लगी। रिद्धि ने कॉल करके डॉक्टर को बलाया और डॉक्टर ने कुछ जरूरी परीक्षण करवाने को कहा।
होश में आने पर काजल के मना करने के बावजूद अमोल और रिद्धि नहीं माने और उसे जबरदस्ती अगले दिन सारे परीक्षण करवानेके लिए ले गए।
डॉक्टर को जिस बात का डर था, वह डर सच साबित हुआ कि काजल को ब्रेस्ट कैंसर है। राशि तो  यह सुनकर हिम्मत हार बैठी। अमोल और रिद्धि ने उसे बहुत हौसला दिया और तुरंत काजल का इलाज शुरू करवादिया।
मैमोग्राफी से लेकर कीमोथेरेपी तक उन लोगों ने बहुत भागदौड़ की। दोनों ने बुआ की हर तरह से सेवा की। काजल को लग रहा था कि वह बचेगी भी या नहीं, लेकिन बच्चों ने उसे कभी निराश होने नहीं दिया और उसे हमेशा सकारात्मक बातें करके हिम्मत देते थे।
आखिर स्नेह कीजीत हई और कैंसर हार गया और साथ ही बुआ से बच्चोंका अटूट बंधन और भी अटूट हो गया।
स्वरचित, अप्रकाशित गीता वाधवानी दिल्ली

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