फेर समय का – प्राची अग्रवाल: Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : आज नव्या एक उच्च अधिकारी है और मनीष उसी के ऑफिस में बाबू पद पर कार्यरत है। मनीष को नव्या मैडम के सामने सम्मानजनक व्यवहार प्रस्तुत करना होता था। उससे बड़ी कोफ्त महसूस होती है जब वह नव्या के केविन में किसी औपचारिक कार्य से जाता। उसका इगो बार-बार हर्ट होता है कि जिसका उसने तिरस्कार किया आज वह ही उसे ऊंचे पद पर सेवायत है।

रह-रह है के अतीत की स्मृतियां मनीष को घेर लेती।

मनीष के पिताजी नवीन और नव्या के पिता मुकेश दोनों ही पक्के मित्र थे। इतने पक्के कि घर भी दोनों ने मिलकर एक ही पास बनाया । दोनों के बच्चे भी साथ खेल कूद कर ही बड़े हुए। नवीन का बेटा मनीष और मुकेश की बेटी नव्या साथ-साथ ही पढ़ें।

दोनों परिवारों में अच्छा खासा मेल मिलाप बना हुआ था। बच्चे बड़े हुए तो दोनों ही परिवारों की मंशा थी कि मनीष और नव्या का विवाह कर दिया जाएगा। मन ही मन रिश्ता पक्का सा था बस औपचारिकता मात्र करनी थी क्योंकि अभी मनीष अपनी तैयारी कर रहा था प्रतियोगी परीक्षाओं की। दोनों परिवारों का मन था कि मनीष की नौकरी लग जाए तो विवाह कर दिया जाएगा।

मनीष के घर पर खुशियों का पारावार ना रहा जब मनीष का चयन सरकारी बाबू के रूप में हो गया।

फिर क्या था। मनीष के परिवार की टोन ही बदल गई। गर्व अब घमंड में परिवर्तित होने लगा। नवीन का परिवार मुकेश के परिवार से उपेक्षित सा व्यवहार करने लगा।

मनीष के लिए अब बड़े घरों से रिश्ते जो आने लगे थे। लड़का सरकारी नौकरी पर जो लग गया था। कहावत है ना “सरकारी नौकर सरकार के दामाद जैसा ही तो होता है”। 

मनीष के परिवार वालों में बड़े घर से विवाह करने के अरमान जगने लगे थे।

मनीष भी नव्या से काम की व्यस्तता का बहाना बनाकर दूरी बनाने लगा।

नव्या समझ रही थी सब। अपने परिवार वालों के दर्द को भी महसूस कर रही थी।

आज नव्या ने पक्का निश्चय कर लिया इस बोझ बने संबंध को खत्म करने का। नव्या मनीष के घर जाती है तो सब उसे कन्नी सी काटने लगते हैं। नव्या कहती है, “मैं यहां आपसे कुछ लेने नहीं आई हूँ। बल्कि आजाद करने आई हूंँ आप सभी को इस रिश्ते के बोझ से। अच्छा हुआ जो गिरगिट की तरह रंग बदलने वाला इंसान जो मेरा जीवन साथी ना बना। भगवान जो करता है अच्छा करता है जो समय रहते ही मुझे आप सब लोगों की असलियत मालूम पड़ गई। अगर विवाह के बाद यह सब हुआ होता तो आप लोगों का असली चेहरा छुपा ही रह जाता” ।

मनीष के परिवार वालों पर घड़ो पानी पड़ जाता है। नव्या तेजी से मनीष के घर से बाहर निकल जाती है। अपनी मंजिल को तलाशने जिसका रास्ता किताबों से गुजरता है।

नव्या अपने परिवार की तकलीफों को समझती थी। उसने दिन रात एक कर दिए किताबों की दुनियाँ में। 2 साल के अथक परिश्रम के पश्चात उसकी मेहनत रंग लाई और उसका चयन उच्च सरकारी सिविल अधिकारी के रूप में हो गया।

समय का चक्र देखो कैसे घूमता है। मनीष का परिवार मनीष की सरकारी नौकरी पर जो इतना इतरा रहा था आज वही मनीष नव्या के अधीन कार्यरत था। इसलिए मनीष को नव्या के सामने पड़ने पर शर्मिंदगी महसूस होती ।

मनीष के परिवार वालों ने सामने से नव्या के परिवार से दोवारा रिश्ते की बात की। लेकिन नव्या ने सख़्ती से मना कर दिया।

वह किसी ऐसे व्यक्ति की #गृहलक्ष्मी नहीं बनना चाहती थी जो जरा सा पद और लक्ष्मी प्राप्त होते ही उससे मुंह फेर गया।

बेटियां कन्या रूप में स्वयं लक्ष्मी होती हैं और विवाह के पश्चात अपने घर को संभालने के साथ-साथ बन जाती है वह गृहलक्ष्मियाँ। जो संभालती है सारे दायित्व, निभाती है विभिन्न प्रकार के रिश्ते, भरती है रिश्तो में समरसता और मिठास बिल्कुल दिवाली की मिठाइयों की तरह।

#गृहलक्ष्मी

#प्राची_अग्रवाल

#खुर्जा_उत्तर प्रदेश

#गृहलक्ष्मी

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!