पतिदेव! मैंने सारी उम्र तो घर की जिम्मेदारियां उठाने में ही गुजार दी – सीमा रस्तोगी
- Betiyan Team
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- on Dec 31, 2022
“विनीत! इस बार हम सभी किटी महिलाओं का ग्रुप वनारस जाने का प्लान बना रहा है, मैंने भी अपना नाम लिखा दिया है! सौरांगी ने विनित के पार्क से आने के बाद चाय का प्याला हाथ में पकड़ाते हुए कहा और अपनी चाय भी वहीं हाथ में लेकर बैठ गई..
“सौरांगी! हर काम तुम अपनी मर्जी से कर लेती हो, कम से कम एक बार मुझसे या बहु से पूछ तो लिया होता, अब तुम चली जाओगी, तो पीछे से बंटी को और घर को कौन संभालेगा, जाती तो हो घूमने किटी,मंदिर और पार्क में, क्या जरूरी है कि शहर से बाहर ही घूमने जाओ?” विनीत बहुत जोर से गुस्साकर बोले.
“विनीत! आप इसको घूमना कहते हैं, क्या कभी किसी का आउट ऑफ स्टेशन जाने का मन नहीं करता, भगवान ने ससुराल-मायका भी एक ही शहर में दे दिया, नहीं तो ससुराल और मायके के ही नाम पर घूम लेती और फिर पूरी जिंदगी तो मैंने अपनी इस घर की जिम्मेदारियों को ही उठाने में ही लगा दी, कभी अपनी ख्वाहिश को पूरा करने का मौका ही नहीं मिला, शादी के पहले सब लोग कहते थे, कि शादी के बाद पति के साथ घूमना, शादी के बाद आपको अपनी नौकरी से ही छुट्टियां नहीं थीं, फिर बच्चे हो गए, तो सिर पर बच्चों के परवरिश की जिम्मेदारियां आ गईं, फिर सोचा कि जब बच्चे ब्याह जाएंगें और आप रिटायर हो जाएंगें, तब घूम-घाम लेंगें, लेकिन ईश्वर ने बहु भी नौकरी वाली दे दी,
अब भी घर की जिम्दारियां सिर पर आन पड़ीं और अब तो बंटी की भी जिम्मेदारी हमारी, बहु तो सुबह की घर से निकली रात को ही वापस आती है, ऐसे तो क्या मैं भगवान के घर अपनी अधूरी ख्वाहिशों को लेकर चली जाऊंगीं, आपकी तो टूरिंग जॉब थी, आप तो इसी बहाने खूब घूमे-फिरे, लेकिन आपने कभी धोखे से भी हमारी ख्वाहिशों के बारे में नहीं सोचा, क्या अपनी पत्नी की खुशियों के बारे में सोचना एक पति का फर्ज नहीं है! इतना कहते-कहते सौरांगी का गला भर आया और उसकी आवाज भर्रा गई “अब दोस्तों के साथ मौका मिल रहा है, तब तो घूम आऊं और रही घर और बंटी को संभालने की तो निष्ठा दो-चार दिन की ऑफिस से छुट्टी ले लेगी, वैसे भी आखिर जब वो मायके या कहीं और घूमने-फिरने जाती है, तब भी तो ऑफिस से छुट्टियां लेती ही हैं ना!
“पापा जी! बिल्कुल सही कह रहीं हैं मम्मी जी! आखिर हम सब तो लोग घूम-फिर लेते हैं, बस मम्मी जी ही कहीं नहीं जा पातीं, उनको भी अपनी जिंदगी में कुछ खूबसूरत पल चाहिएं, अफसोस कि हम लोगों ने मम्मी जी की खुशी के बारे में नहीं सोचा, मम्मी जी! आप चिंता ना करिए, मैं ऑफिस से दो-चार दिन की छुट्टी ले लूंगीं, आप अपने दोस्तों के साथ जी भरकर इंजॉय कीजिए जाकर, अब नहीं घूमेंगीं-फिरेंगीं, फिर कब घूमेंगीं! उन दोनों की बातों को सुनकर निष्ठा भी वहीं पास में आकर बैठ गई
“सही बात पापा! निष्ठा बिल्कुल सही कह रही है, मम्मी जी को भी अपनी व्यस्त जिंदगी से कुछ तो सुकून के पल चाहिएं ही चाहिएं! बेटा नमित बोला
“जाओ सिमरन! जी लो अपनी जिंदगी! तुम भी क्या याद करोगी! विनीत मुस्कुराते हुए माहौल को हल्का करने के इरादे से मजाक करते हुए बोले…. और सौरांगी मुस्कुराते हुए चाय की चुस्कियां लेने लगी…
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ये कहानी पूर्णतया स्वरचित है
मौलिक है
दोस्तों एक स्त्री अपनी पूरी जिंदगी, घर-गृहस्थी की जिम्मेदारियों में व्यतीत कर देती है, लेकिन जब वो अपनी ख्वाहिशों को पूरी करने का सोचती है, तो लोग खुशी-खुशी उसकी इजाजत नहीं देते… इस विषय पर आपको मेरी कहानी कैसी लगी, लाइक और कमेंट्स के द्वारा अवश्य बताइएगा और प्लीज मुझको फॉलो भी कीजिएगा।
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आपकी सखी
सीमा रस्तोगी