नई बहारें – निभा राजीव “निर्वी” : Moral stories in hindi

पार्टी बस शुरू ही होने वाली थी। आईपीएस अधिकारी अंजलि तैयार हो चुकी थी। चौड़े बॉर्डर की पीली वाली साड़ी में उनका सांवला सलोना रूप दमक कर और भी निखर रहा था। उसने अपना पर्नेल नेकलेस पहना और अपने आप को आईने में देखा तो अचानक अतीत के पृष्ठ खुलकर उसकी आंखों के सामने फड़फड़ाने लगे।

             अंजलि के पिता रामेश्वर जी दो भाई थे। दोनों भाई एक ही शहर में रहते थे अगर दोनों की आर्थिक स्थिति भिन्न थी। जहां बड़े भाई सोमेश्वर जी एक सरकारी अधिकारी थे, और अत्यंत ठाट बाट से रहते थे, वहीं रामेश्वर जी की अपनी एक छोटी सी किराने की दुकान थी जिससे उनका खर्च चलता था। सोमेश्वर बाबू के परिवार में उनकी पत्नी माधुरी जी उनका पुत्र अजीत और उनकी पुत्री रूपा थी। और रामेश्वर बाबू के परिवार में उनकी पत्नी और उनकी एकमात्र संतान अंजलि ही थी।

छोटा सा मगर सुखी परिवार था उनका। मगर न जाने उनके इस सुख को किसकी नजर लग गई। एक बार जब वह परिवार के साथ बाजार से वापस आ रहे थे, तभी अचानक उनकी गाड़ी सामने से तीव्र गति से आते ट्रक से टकराकर दुर्घटनाग्रस्त हो गई। दुर्घटना स्थल पर ही अंजलि के माता और पिता काल के गाल में समा गए।

आनन फानन में सोमेश्वर बाबू को इसकी सूचना दी गई। सारे क्रिया कर्म के बाद सोमेश्वर बाबू अंजलि को अपने साथ अपने घर ले आए। रामेश्वर बाबू की दुकान सोमेश्वर बाबू ने बेच दी। सांवली सलोनी नन्ही सी अंजलि सोमेश्वर बाबू के साथ आ तो गई थी लेकिन वह उनकी पत्नी और उनके बच्चों को फूटी आंख नहीं सुहाती थी। उन सब को यही लगता था कि ये अनावश्यक मुसीबत उनके गले पड़ गई है, जिसका खर्च उन्हें वहन करना पड़ रहा है। नन्ही सी अंजलि स्नेह और प्यार के लिए तरसती रह गई।

           गोरी चिट्टी रूपा सदैव अंजलि को उसके रूप रंग को लेकर अपमानित करती रहती थी। अंजलि का नन्हा सा हृदय आहत होकर विदीर्ण हो जाता था मगर शांत स्वभाव की अंजलि सब सहन कर लेती थी और कुछ भी नहीं बोलती थी।

                माधुरी जी जहां अजीत और रूपा को अच्छी-अच्छी चीजें खाने को देती थी, वहीं अंजलि के हिस्से बची खुची चीज ही आती थी और पहनने को रूपा की उतरन ही उसके हिस्से आती थी। धीरे-धीरे घर के सारे काम भी उसी के जिम्मे में थमा दिए गए।

               एक बार उसने अपने बालों में लाल रिबन बांध लिया था तो उसे देखते ही रूपा बहुत जोरों से खिलखिला कर हंसी और कहा

 “-पता है अंजलि.. यह रिबन लगाकर तू कैसी लग रही है..लग रहा है जैसे कोयले की खान में आग लग गई हो….. काली कलूटी बैगन लूटी…” वहीं बैठी माधुरी जी और अजीत भी खूब जोरों से हंस पड़े। अपमान से अंजलि का सांवला चेहरा और स्याह हो गया। वह चुपचाप अपने बिस्तर पर चली गई। बालों से रिबन नोच कर फेंक दिया और तकिए को सीने से भींच कर बहुत देर तक सुबकती रही।  

           धीरे-धीरे उसने इसी अपमान के साथ अपना जीवन जीना सीख लिया। अपमान और दुख से उबरने के लिए उसने अपने आप को पढ़ाई में डुबो दिया। वह हर वर्ष कक्षा में प्रथम आने लगी जिससे माधुरी जी, रूपा और अजीत और भी चिढ़ने लगे। और परिणामस्वरुप उसके ऊपर कामों का बोझ बढ़ता ही गया। एक दो बार सोमेश्वर जी ने उसका पक्ष लेने की कोशिश की तो घर में और भी कलह पसर गया। फिर धीरे-धीरे उन्होंने भी इस मामले में बोलना छोड़ दिया। और इसी स्थिति में साल दर साल बीत गए। 

               उस दिन रूपा को देखने लड़के वाले आने वाले थे। घर में उन सब के स्वागत की तैयारी चल रही थी। आज अंजलि का काम और भी बढ़ा हुआ था। ढेर सारे पकवान उसने घर में बनाए थे।  

          नियत समय पर लड़के वाले आ गए। लड़का अर्णव एक जिलाधिकारी था। 

रूपा अंदर तैयार हो रही थी। आदतन उसने झिड़क़ते हुए अंजलि से कहा, 

“-अरे तू खड़ी खड़ी मुंह क्या देख रही है….जल्दी से मेरी सैंडल लेकर आ.. शक्ल की तरह अक्ल भी स्याह हो गई है क्या!” लेकिन आदत के कारण उसका स्वर इतना तेज था कि बैठक तक सुनाई दे गया। अर्णव और उसके पिता एक दूसरे की तरफ देख कर रह गए। सोमेश्वर बाबू खिसियानी हंसी हंसते हुए बोले

“- बहुत नाजों से पली है ना… कभी-कभी इससे गुस्सा आ जाता है मगर दिल की इतनी भली है कि मैं क्या कहूं..” 

          अंजलि अश्रु बिंदुओं को छुपाने का प्रयास करती हुई रूपा की सैंडल लाने चली गई।  

               माधुरी जी ने रूपा को उन सब के समक्ष ले जाकर बिठा दिया। माधुरी जी खूब बढ़ा चढ़ा कर रूपा की प्रशंसा करने लगीं। 

“- यह सारे पकवान रूपा ने अपने हाथों से बनाए हैं। गृह कार्यों में बहुत ही दक्ष है मेरी रूपा और पढ़ाई लिखाई में भी हमेशा अव्वल आती रही है।”

        लेकिन तभी पानी लेकर आई अंजलि के हाथों पर गरम तेल से बने ताजे फफोले कुछ और ही कहानी कह रहे थे। कुछ देर बातें करने के बाद अर्णव ने अपने पिता के कान में कुछ कहा। 

                थोड़ी देर के बाद अर्णव के पिता बोले,

“- सोमेश्वर बाबू, हमें अर्णव के लिए आपकी छोटी बेटी अंजलि बहुत पसंद है। अगर आपको कोई आपत्ति ना हो तो हम अंजलि को अपने घर की बहू बनना चाहेंगे।”

                प्रत्यक्ष में सोमेश्वर बाबू कुछ बोल नहीं पाए। और उन्होंने हाथ जोड़कर इस विवाह के लिए हामी भर दी। इसके बाद अर्णव और उसके पिता ने जाने की अनुमति मांगी।

                  सबके जाने के बाद घर में जैसे तूफान आ गया। माधुरी जी, रूपा और अजीत सब मिलकर निर्दोष अंजलि को कोसने लगे। माधुरी जी ने तड़प कर कोसते हुए कहा,

 “- इस काली कलूटी में ऐसे कौन से सुर्खाब के पर लगे थे जो हमारी दूध से उजली रूपा को छोड़कर इसको पसंद कर लिया। यह तो जानबूझकर सामने गई होगी जादू चलाने के लिए! डायन कहीं की!” 

          मगर अब किया भी क्या जा सकता था, सोमेश्वर बाबू हां कर चुके थे। इसके लिए वह भी माधुरी जी के कोपभाजन का ग्रास बन गए।

                अंजलि अर्णव की धर्मपत्नी बनकर उसके घर आ गई। विवाहोपरांत अंजलि की सारी कहानी सुनकर अर्णव का दिल भर आया। उसने अंजलि को अपने बलिष्ठ भुजपाश में लेते हुए कहा,

“-  तुम्हारी सादगी और तुम्हारा यह सांवला सलोना रूप ही मेरे दिल को भा गया। तुमने अपने अतीत में जो भोगा वह भोगा मगर अब तुम्हारे साथ मैं हूं…तुम्हारे साथ तुम्हारी प्रतिभा और तुम्हारी मेधा है…. तुम प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करो.. मैं तुम्हारा साथ दूंगा।”

                   उसने भी अर्णव की देखरेख में अपनी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी प्रारंभ कर दी।

परीक्षा देने के बाद जिस दिन परिणाम आया, उस दिन उससे ज्यादा प्रसन्न अर्णव था। उसने हर्षातिरेक अंजलि को गोद में उठा लिया, 

“- आज कोई कुछ बोल कर जरा तो दिखाए। मेरी अंजलि आईपीएस बन चुकी है… सब की छुट्टी कर डालेगी!”

अर्णव का प्यार पाकर अंजलि की दुनिया में जैसे नई बहारें आ गई थीं।

               इसी खुशी में आज अर्णव ने पार्टी रखी है। तभी अर्णव के स्वर से उसकी तंद्रा भंग हुई,

“- अरे अंजलि !  कहां हो??.. जल्दी आओ भई…सारे मेहमान आने शुरू हो गए।”

“-हां अभी आई!” कह कर अपना पल्लू संभालती हुए अंजलि मेहमानों के स्वागत के लिए चल पड़ी।

निभा राजीव “निर्वी”

सिंदरी, धनबाद, झारखंड

स्वरचित और मौलिक रचना

#6th_ बेटियाँ_जन्मोत्सव 

पांचवी कहानी

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