लक्ष्य – गीता वाधवानी : Moral stories in hindi

राघव और रश्मि के विवाह को 2 वर्ष बीत चुकेथे। उनके माता-पिता और खुद उन्हें भी अपने आंगन में किलकारी गूंजने का इंतजार था। पर न जानें क्यों रश्मि प्रेग्नेंट नहीं हो पा रही थी। इसी तरह इंतजार करते-करते कुछ समय और बीत गया। माता-पिता से ज्यादा चिंता तो रिश्तेदारों को होने लगी थी। जो भी मिलने आता यही पूछता, रश्मि गुड न्यूज़ कब सुन रही हो। रश्मि मुस्कुरा कर रह जाती। 

अब तो 5 साल हो गए थे। लोगों ने दबी जबान में रश्मि को बांझ कहना शुरूकर दिया था। रश्मि और राघव डॉक्टरके पास गए। डॉक्टर साहिबा ने ढेर सारे परीक्षण करवाए। रिपोर्ट आने पर पता लगा कि सब कुछ नॉर्मलहै। दोनोंमें कोई कमी नहीं है। डॉक्टर साहिबा ने सुझाया टैस्ट ट्यूब बेबी द्वारा संतान पालो। यह बात उसे समय की है जब टैस्टट्यूब बेबी सिर्फ कुछ प्रतिशत ही सफल होता था। 

राघव ने उन लोगों से बात की जो यह प्रक्रिया अपना रहे थे। उन्होंने इसके हैवी डोज और साइड इफैक्ट्सके बारे में बताया। जिसे सुनकर राघव को रश्मिकी चिंता सताने लगी। उसने सोचा कि इससे तो अच्छा है कि हम किसी बच्चे को गोद ले ले। रश्मि भी इस बात के लिए तैयार थी लेकिन माता-पिता का कहना था कि वह बच्चा हमारा खून नहीं होगा। 

राघव ने कुछ सोचते हुए कई अनाथ आश्रमों में फॉर्म भर दिया और आवश्यक कागजातभी जमा करवा दिए। कुछ महीनो बाद उन्हें एक नवजात बच्चा लगभग 2 महीने का बेटे के रूप में मिल गया। कागजी और कानूनी कार्यवाही पूरी होने पर उन्हें बेटा सौंप दिया गया। दोनों बहुत खुश थे। बच्चेका नाम रखा 

“लक्ष्य” 

धीरे-धीरे लक्ष्य ने अपनी भोली-भाली बातों से दादा-दादी का मन मोह लिया। उनके कुछ रिश्तेदार, कुछ पड़ोसी और कुछ करीबी दोस्तों को बच्चा गोद लेने वालीबात पता थी। 

खुशी खुशी जीवन बीतने लगा। लक्ष्य बहुत बुद्धिमान, पढ़ाई में अच्छा, दुनिया की चालाकीसे दूर बच्चा था। वह सब को अपने जैसा अच्छा ही समझता था और इस वजह से दूसरों की बातों पर झट से यकीन कर लेता था। 

उसकी दादी और मम्मी उसे कुछ ना कछ दुनियादारी सिखाती रहती थी। उन लोगों ने सोचाथा कि 23 या 24 सालकी उम्र होने पर हम लक्ष्यको सच बतादेंगे। तब तक इसकी पढ़ाई भी पूरी हो चुकी होगी और यह तब तक मेच्योर भी हो जाएगा और हमारी बात आसानी से समझ सकेगा। लेकिन दुनिया को किसी की हंसी-खुशी बरदाश्त कहां होती है। न जाने किसी रिश्तेदार ने या फिर किसी दोस्त ने, 11वींकक्षा में पढ़ रहीलक्ष्य के मन में माता-पिता के ख़िलाफ़ विष डाल दिया कि तू इनका बेटा नहींहै तभीतो तुझे इतना डांटते हैं और पैसे देने में भी रोक-टोक करते हैं। हालांकि ऐसा कुछ भीनहीं था, और लक्ष्यको ऐसा लगने लगा कि यहीमेरे साथ हो रहा है। 

एक बार उसने राघव से₹20000 मांगे। राघवने कहा-“बेटा, मैं दे दूंगा, पर पहले यह बताओ कि तुम इन पैसों का क्या करोगे?” 

लक्ष्य-“दोस्तों केसाथ घूमने जाऊंगा।” 

राघव-“यह रकम तो बहुत बड़ी है क्या किसी दूसरे शहर घूमने जाओगे?” 

लक्ष्य-“अश्विनी के पापा ने तो झट से पैसे निकाल कर दे दिए और कोई सवाल भी नहीं पूछा। आप तो इतने सवाल पूछ रहे हैं क्योंकि मैं आपकाबेटा नहीं हूं ना इसीलिए।” 

घर वाले यह सुनकर अवाक रह गए। उनकी आंखों में आंसू आ गई। रश्मि तो रो ही पड़ी। राघव समझ गया कि किसीने आग लगाई है। उसने कहा-“हां बेटा, तुमसे यह बात छुपानेका क्या फायदा, वैसे सही समय आने पर हम तुम्हें बताने हीवाले थे। पर तुम्हें यह किसने बताया?” 

लक्ष्य-“आपने मुझे गोद लिया है यह बात आपने नहीं बताई, मुझे बाहर से पता लगा। अब मुझे यह जाननाहै कि मेरे असली माता-पिता कौन थे और वह कहां है। आप मुझे कहांसे लाए थे। मैं वहां जाऊंगा पता करने।” 

राघव रश्मि-“बेटा, क्या हम तुम्हारे मम्मी पापा नहीं है। हम तो तुम्हारेप्यार में यह भी भूल गए थे कि हमने तुम्हें गोद लिया है। तुमही हमारे सब कुछ हो। फिर ऐसी बातें क्यों कर रहे हो?” 

लक्ष्य-“जब तक मैं अपने असली मम्मी पापा के बारे में जान नहीं लूंगा, मुझे चैन नहीं आएगा।”ऐसा कहकर लक्ष्य बहुत उदास हो गया। उसके बाद तीन-चार दिन तक उसने ना तो किसी से ठीक से बातचीत की और नाही ठीक से खाया पिया। सबको उसकी चिंता हो रही थी। 

आखिरकार राघवने कहा-“चलो मैं तुम्हारे साथ चलता हूं। तुम कैब बुक करवा दो।”  

लक्ष्य अकेला जाना चाहता था लेकिन राघव ने अकेला भेजने से साफ इनकार कर दिया। तब कहीं जाकर लक्ष्य राघव के साथ जाने को माना। 

दोनों उसी अनाथ आश्रम पहुंचे। वहां जाकर लक्ष्य ने खुद मैनेजरके पास जाकरपूरी बात बताइ। उसने राघव को एक शब्द भीबोलने नहीं दिया। 

मैनेजर नहीं बड़े प्यार से उसे कहा-“बैठो बेटा, मैं अभी पिछला रिकॉर्ड में से आपकी फाइल निकालता हूं।” 

लक्ष्य -“अंकल ,क्या वह फाइल आप मुझे दिखाएं गे।” 

मैनेजर-“हां हां क्योंनहीं।” 

मैनेजर फाइल निकाल कर लक्ष्यको दिखाते हैं। लक्ष्य देखता है अपनी पैदाइश के समय की फोटो। और कुछ कागजात राघव और रश्मि के नामसे। और अंत में रखा था एक सफेद बंद लिफाफा, जो कि इतने वर्षों में पीला हो चुकाथा। 

लक्ष्य ने पूछा-“अंकल क्यामैं इसे खोल सकता हूं?” 

मैनेजर-“हां हां खोलो, इसमेंक्या है हमें भीजानना है।” 

राघव भी पास आकर बैठ गया था। लक्ष्य ने लिफाफा खोला उसमें एक पत्र था। 

“मेरे प्यारे बेटे, अभी तो तुम पैदाही हुए हो और मैं बदनसीब मां, तुम्हें इतने छोटे से बच्चे को इस अनाथ आश्रम के बाहर लगे झूले में डालकर जा रही हूं। मेरी मजबूरी है बेटा, मेरे पास तुम्हारे दूध और दवाई के लिएभी पैसे नहीं है। तुम्हारा बाप मुझे धोखा देकरभाग गया और आगे मेरा क्या होगा, जी पाऊंगी या नहीं कुछ पता नहीं। मैंनेसुना है कि यहां अच्छे परिवारों के लोग बच्चोंको गोद लेने आते हैं। अगर तुम्हें कभी भी यह चिट्ठी मिले, तो मैं तुमसे इतना ही कहूंगी किजिस किसी ने भी तुम्हें गोदलिया है, उनको भरपूर सम्मान देना, वे तुम्हारे माता-पिता नहीं बल्कि तुम्हारे लिए ईश्वर समान है। अपनी अभागी मां को माफ कर देना। ” 

नीचे मां ने अपना नाम तक नहीं लिखा था। 

पत्र पढ़कर लक्ष्य राघव से लपटकर

 रो पड़ा। राघवने कहा-“लक्ष्य बेटा, ऐसे रोते नहीं, हिम्मत रखो। जो बाहर वाली कुर्सी पर बैठो, मैं अभी आता हूं।” 

तब मैनेजर ने कहा-“राघव जीआप घबराइए मत। जो बच्चे गोद लिए जाते हैं, उनके माता-पिता के सामने अक्सर यहप्रॉब्लम आती है। इसीलिए हम बच्चेके साथ झूले में (यदि हो तो) निशानी, जैसे लॉकेट, कोई कंगन या पत्र या कोई और कागज अपने रिकॉर्ड में संभाल कर रखते हैं। अब आप निश्चिंत होकर घर जाइए। सब ठीक हो जाएगा।” 

घर पहुंच कर लक्ष्य ने सबके पैर छूकर माफी मांगी और रश्मि को मम्मी मम्मी कहकर उसके गले से चिपक गया। अब यदि कभी कोई उसे भड़काने की कोशिश करता तो वह हंस कर कहता-“अच्छा, आप सच कह रहे हैं क्या, मुझे तो पता ही नहीं था, अभी घर जाकर पूछता हूं।” 

स्वरचित अप्रकाशित गीता वाधवानी दिल्ली

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