सास से माँ तक के सफर में गजरों का योगदान !! – संध्या त्रिपाठी : Moral stories in hindi

 देखिए पापा…. मम्मी कैसे बेला के फूलों के क्यारियों के बीच बैठ कर मुस्कुरा रही हैं…. जैसे किसी पुरानी यादों में खोई हो….! रिमझिम ने मुकुल जी से कहा …। मुकुल जी भी पत्नी नैना को यादों में खोए और फूलों को प्यार से सहलाते हुए देखकर मजाकिये लहजे में पूछा…. अरे नैना जी …किसकी यादों में खोई हैं भाई….?? हम तो इधर ही खड़े हैं… और पिता पुत्री दोनों हंसने लगे….।

वाकई में बहुत खूबसूरत यादें हैं जी….! नैना जी ने भी मुस्कुराते हुए जवाब दिया और इन यादों में … आपकी कहीं जगह नहीं है… ये यादें बस मेरी और सासू माँ के बीच की ही हैं ….।

    जब भी गर्मी का मौसम आता है और बेला के फूलों से क्यारियाँ भर जाती हैं तथा इनकी भीनी खुशबू से पूरा वातावरण सुगंधित हो जाता है…तब इन फूलों को देख कर सासू माँ की बहुत याद आती है मुकुल जी… दोपहर भर सासू माँ फूल तोड़तीं और गजरे बनाती फिर उन्हें फ्रिज में रख देती थीं…।

शाम होते ही हम बहुएं बाल संवार कर सीधे फ्रिज की ओर जाते.. और सासू माँ के द्वारा बनाए गजरे निकाल बालों में लगाकर इधर-उधर इतराते फिरते…! सासू मां को बेहद शौक था हम बहुएँ सज-धज कर रहा करें…।

और फिर आप भी तो मुकुल जी भले ही जुबान से कुछ ना कहते पर आंखों से तो इशारा कर ही देते थे कि गजरा लगाने के बाद बहुत खूबसूरत लग रही हो नैना…।

  गहरे रंग की लिपस्टिक तो सासू माँ को बेहद पसंद थी … वह चाहती थी्ं हम बहुएँ हमेशा सज धज संवर कर रहें…. पर ऐसा कहां संभव था काम करते करते थक जाते थे…. संयुक्त परिवार में बहू के रसोई की जिम्मेदारी भी बहुत होती है घर के सदस्यों के साथ साथ…नौकर चाकर का खाना भी बनाना पड़ता था….।

   कभी-कभी सासू माँ का हम लोगों के प्रति सजने सँवरने के उत्साह को देखकर हमें…फालतू के चोंचले… जब घर में ही रहना है तो इतना सजना क्यों…. जैसा लगता था…. और इन्हीं छोटी मोटी बातों से सासू माँ नाराज हो जाती थीं….! और कभी तो सासू माँ गजरे बना कर रखी हों…. और हम लगाना भूल गए या सोचें… कहीं जाना नहीं है घर में ही रहना है तो रोज क्या फूल गजरा लगाना….. बस यहीं से शुरू होता था सासू माँ का रूठना ….! अगले दो-तीन दिनों तक वह कोई गजरा बनाती ही नहीं थीं… ।

   क्या है ना बेटा सास बहू में पूरे एक पीढ़ी का अंतर होता है… तो सोच- विचार भी कभी-कभी आपस में टकराते ही हैं…. कुछ बातें बहुओं को निरर्थक लगती हैं तो उन्हीं बातों को सासू माँ बहुत ज्यादा तवज्जो देती हैं….! मैं यह भी नहीं कह सकती कि मैं ही गलत थी सासू माँ की सोच बिल्कुल ठीक थी…या मैं ही ठीक थी और सासू माँ बिल्कुल गलत थी….।

   रिमझिम तू हमेशा पूछती है ना बेटा… दादी के बारे में आपकी क्या राय है ….मतलब दादी कैसी थीं मम्मी…? तो मेरा जवाब होता था…. रौबदार व्यक्तित्व की स्वामिनी थी हमारी सासू माँ…. कुछ कुछ शहद सी मीठी और कुछ कुछ नीम सी कड़वी भी थीं…।

पर अब जब मैं भी …जिंदगी में सास बनने के पड़ाव पर पहुंच चुकी हूं… तो लगता है एक संयुक्त परिवार की गृहस्थी को चलाने के लिए कभी-कभी नीम सा कड़वा बनना भी पड़ता है… सासू माँ के कुछ निर्णय हमें क्षणिक दुखी तो करते थे… पर दूरगामी परिणाम हमेशा बेहतर ही होते थे….।

   बेटा संयुक्त परिवार चलाना भी इतना आसान नहीं होता है सबकी भावनाओं का ख्याल रखना पड़ता है और इसमें घर की स्त्री (मुखिया) की जिम्मेदारी प्रमुख होती है…।

  अब मैं बेहिचक कह सकती हूं कि मेरी सासू माँ में वे सारी चीजें (गुण ) थी… जो एक माँ में होती हैं…। खाना खाते वक्त हमेशा बोलना …अच्छे से खाया करो… और रोटी ले लो… मॉडल बनना है क्या ..?? शरीर में ताकत रहेगी तभी तो काम धाम कर सकोगी….! छोटी-छोटी बातें जो उस समय झुंझलाहट पैदा करती थीं .. पर अब समझ में आता है वो तो सासूमाँ का प्यार था….।

    आप पूछते हैं ना मुकुल जी.. तुम टिफिन इतने अच्छे से पैक करती हो रसेदार सब्जी भी कभी नहीं गिरती… तो आपको बताऊं जी …सासू माँ जब टिफिन पैक करती थीं… तब ध्यान से देखा गया सासू मां का ट्रिक … अब मेरे काम आ रहा है….।

सासू माँ की ना जाने कितनी सीख हमारे साथ हमारे आसपास ही है…।

बालों में फूल लगाना भी गजब का शौक है… जब बेला के फूलों का सीजन खत्म हो जाता था ..तो सासू माँ गुलाब की कलियां… फूल …हमारे लिए तोड़ कर रख देती थीं जिसे लगाने के बाद सच में हमारी सुंदरता तो बढ़ ही जाती थी….। बालों में फूल या गजरा लगाने का रुझान तो सासू माँ की ही देन है….। दिन भर हमारे लिए ही तो मेहनत करती थीं…।

   समय बीत जाने के बाद बहुत सारी चीजें समझ में आती हैं मुकुल जी….. काश… उस समय सासू माँ के हमारे सौंदर्य के प्रति उत्साह को सिर्फ उत्साह ना समझ… माँ का प्यार समझा होता….।

  कभी कभी जिंदगी में बड़ों की कुछ कड़वी बातों को…. जाने दो… अरे हो गया….या छोड़ो भी…. जैसे शब्दों से भी अपनी सोच बनानी चाहिए…! क्षणिक आवेश में …कुछ कड़वा बोल कर रिश्तों में दरार आने से रोकना चाहिए ….और हम बड़ों को भी बहुओं की छोटी-छोटी खुशी का ध्यान रखना चाहिए… उनकी खुशी का कारण बनने का यथासंभव प्रयास करना चाहिए…।

चाहें इस सफर में ( सासू मां से मां बनने तक ) गजरा ही मुख्य किरदार क्यों ना हो…! उसके योगदान को भुलाना नहीं चाहिए…! तभी तो हमारी अगली पीढ़ी हमारे ना रहते हुए भी हमें एहसास कर मंद मंद मुस्कुराएगी…।

साथियों मेरी भावनाओं पर अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें…!

( स्वरचित मौलिक एवं सर्वाधिकार  सुरक्षित रचना)

संध्या त्रिपाठी

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