खून का रिश्ता – डाॅ संजु झा : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : खून का रिश्ता दुनियाँ में सबसे खुबसूरत रिश्ता है।यह रिश्ता चाहे भाई-बहन,माता-पिता,माँ-बेटी या पिता-पुत्र ,चाचा,बुआ का ही क्यों न हो,इन रिश्तों से अपनेपन की सौंधी खुशबू आती रहती है।इसी कारण अंग्रेजी में एक कहावत है’Blood is thicker than water’.अर्थात् खून पानी से गाढ़ा होता है।

खून के रिश्ते में व्यक्ति का पूरा संसार  समाहित रहता है।यह एक जादुई  एहसास है,जो व्यक्ति के जीवन पूर्णतया बदल देता है।परन्तु इसी रिश्ते के कारण व्यक्ति अपनों के हाथों बार-बार छला भी जाता है।

आजकल समाज में खून के रिश्ते तार-तार हो रहे हैं।माता-पिता अपने ही बच्चों द्वारा छले जा रहे हैं। माता-पिता  बुढ़ापे में अपने बच्चों की बेरुखी और बेकद्री से आहत हैं।उनके ही कलेजे का टुकड़ा उनसे धोखा कर बैठता है। सत्य घटना से प्रेरित प्रस्तुत कहानी लिख रही  हूँ।

एक माँ(नीरा)अपनी जिन्दगी दाँव पर लगाकर अपने कलेजे के टुकड़े को जन्म देती है।डाॅक्टर ने बच्चे के जन्म  के पहले से ही आगाह करते हुए कहा था -“बच्चे का जन्म माँ के जीवन के लिए  घातक साबित हो सकता है!”

परन्तु नीरा जी को अपनी जान की परवाह कहाँ थी!उन्हें तो ममत्व के रस में सराबोर  होना था।वात्सल्य रस के समंदर में गोते लगाने थे।उन्होंने अपनी जान की कीमत पर अपने लाड़ले को जन्म देने का निश्चयकिया।ईश्वर की दुआ  भी उनके साथ थी।इस कारण  माँ और बच्चा दोनों सही-सलामत रहें।नीरा जी का घर बेटे की किलकारियों से गूँजने लगा।माता-पिता ने बेटे की झोली में जमाने भर की खुशियाँ डाल दीं।

देखते -देखते समय पंख लगाकर उड़ गया।बेटा बालक से  जवान बन गया ।पढ़ा-लिखकर काबिल बन गया।नीरा दम्पत्ति खुद को दुनियाँ का सबसे खुशनसीब इंसान समझते थे।पिता इस खुशी को ज्यादा दिनों तक नहीं देख पाएँ।अचानक ही हृदयाघात से उनकी मृत्यु हो गई। अब नीरा जी का माँ-बेटे का रिश्ता और प्रगाढ़ हो चला ।

समय के साथ बेटे की शादी हो गई। शनैः-शनैः घर की सत्ता बहू के हाथों में आ गई। जिस आलीशान घर में नीरा जी की हुकूमत चलती थी,वहीं एक कमरे में सिमटकर रह गईं।फिर भी उन्हें अपने बच्चों से कोई शिकायत नहीं थी।वह तो बस बच्चों के लिए दुआएँ करती रहतीं।सचमुच माँ तो वह त्याग की मूर्ति है,जो उसका कलेजा निकाल लेने पर भी बेटे को ठोकर लगने पर पूछती है -” बेटा!तुझे  अधिक चोट तो नहीं आई?”

कुछ समय पश्चात् बेटे ने खुश होते हुए   कहा-” माँ!मुझे परदेस में नौकरी लग गई है!”

नीरा जी ने समझाते हुए कहा -” बेटा !परदेस का मोह छोड़कर अपने ही देश में रहो।अब हमारे देश में भी सारी सुविधाएँ मौजूद हैं!”

परन्तु बेटे ने जिद्द करते हुए कहा -” माँ!आप भी मेरे साथ  चलो।इस घर को भी विदेश जाने से पहले बेच दूँगा।”

बेटे की बात सुनकर नीरा जी का दबा हुआ स्वाभिमान जाग उठा।उन्होंने कहा -” बेटा!जीवन की सांध्यवेला  में मैं अपना घर नहीं छोड़ूँगी।इस घर में तुम्हारी और तुम्हारे पिता की यादें बसी हैं।अपने देश के दिन-रात, सुबह-शाम ,हवा-पानी सब अपने लगते हैं।यहाँ फूल-पौधे,पशु-पक्षी  मानो सभी से मेरा  अटूट रिश्ता बन गया है।मैं अपना घर और वतन छोड़कर सदा के लिए  परदेस नहीं जाऊँगी।”

बेटा नाराज होकर परिवार समेत विदेश चला गया। नीरा जी ने जिस खून के रिश्ते के सहारे शेष जिन्दगी काटने की सोच रखी थी,वह पानी के बुलबुले की तरह छ्द्म निकला।उनकी उम्मीदों का महल एकाएक भरभराकर गिर पड़ा।

नीरा जी को खून के रिश्तों का भ्रम टूट गया।जो कलेजे का टुकड़ा था,वही बेगाना हो गया।उन्हें बहुत गुरुर था अपने बेटे पर।जिन्दगी भर जिस खून के रिश्ते के पीछे दौड़ लगाई ,वही खोखला निकल गया।बेटे के तिरस्कृत व्यवहार से  मानो हजारों तीर माँ के सीने में  धँस गए।माँ का दिल दर्द से कराह उठा।नीरा जी स्तब्ध-सी होकर  कुछ ही पलों में अतीत में विचरण करने लगीं।बेटा का बालपन  रह-रहकर स्मृति-पटल पर अंकित हो उठता।जिस बेटे के लिए  वे जीती रहीं,वही बेटा उम्र के इस पड़ाव पर उन्हें छोड़कर चला गया।वे अन्दर-ही-अन्दर घुटती रहीं।घुटन की अंतर्वेदना  जब असहनीय हो गई, तब उन्होंने खुद को खत्म करना चाहा।उनका मन  उसी प्रकार बोझिल था,जैसे कोई वीर रणभूमि से हारकर वापस लौटने की अपेक्षा मृत्यु को वरण करना चाहता है।नीरा जी बेटे  के विश्वासघात से बिल्कुल टूट चुकीं थीं।बेटे के कहे शब्द उनके कानों में पिघले शीशे की मानिंद लग रहे थे।आँखें लगातार बरसती जा रहीं थीं।अपनी जिन्दगी में उन्होंने कभी भी खुद को इतना बेबस नहीं समझा,जितना बेटे के जाने के बाद  महसूस हो रहा था।खून के रिश्ते के बेगानापन से उनका कलेजा छलनी हुए जा रहा था।

अतीत की यादों से वर्त्तमान में लौटने पर भी उनकी जिन्दगी की कश्मकश खत्म नहीं हो रही थी।बेटे -बहू,पोते के जाने के कुछ दिनों बाद  तक दिन-रात बावरी बनी डोलती फिरती थीं।हर समय  बेटे-बहू,पोते की यादों का मकड़जाल  उन्हें घेरे रहता था।पूरी-पूरी रात अतीत की यादों की उधेड़-बुन में निकल जाती।वे पसीने-पसीने हो उठतीं,साँसें धौंकनी की तरह चलने लगतीं।उन्होंने ऐसे भविष्य की तो कल्पना सपने में भी नहीं की थी।मन में दबा दुःख आँसुओं के सैलाब  के रूप में निकलता रहता।मन को उदासी डराने लगी।बेटे का बिछोह तन-मन को खोखला कर गया।जीवन में कभी न भरनेवाला शून्य आकर उपस्थित  हो गया।

बेटे ने फोन करना भी बन्द कर दिया था,जिसके कारण अवसादग्रस्त जिन्दगी में चिड़चिड़ापन  और चिल्लाहट  ने घर कर लिया।इसके कारण सभी नौकर काम छोड़कर चले गए। बेटे के बिना सूनी निगाहों से टुकुर-टुकुर फोन को देखती रहतीं,परन्तु खून का रिश्ता तो पानी हो चुका था,भला फोन कैसे आता?नीरा जी दिन में कई  बार फोन उठा देखतीं कि कहीं फोन तो खराब नहीं हो गया है!

 नीरा जी ने बेटे के वियोग में  धीरे-धीरे  खाना-पीना और दवाई लेनी छोड़ दी।बेटे का वियोग उनसे सहन नहीं हो रहा था।कोई अन्य भी उनकी सुधि लेनेवाला नहीं था।इसी क्रम में कब उनकी साँसें हलक में अटक गईं?कब  उनका शरीर सूखे पत्तों की तरह फड़फड़ा गया?कब उनके जीवन का सूर्य अस्त हो गया,कुछ पता ही नहीं चला?

एक साल बाद जब बेटा परदेस से लौटा,तो  नीराजी बिछावन पर कंकाल के रूप में इंतजार करतीं मिलीं।माँ का प्यार  तो गहन और निस्वार्थ  था,परन्तु माँ का कंकाल  खून के रिश्ते की स्वार्थपरता और निर्लज्जता की कहानी बयां कर रही थी।

एक माँ की जीवनलीला समाप्त हो चुकी थी।नीराजी की मौत की खबर से समाज में नाराजगी थी,परन्तु समाज की जुबान पर भी ताला लगा हुआ था।बड़े -बुजुर्गों की उपेक्षा हर घर की कहानी बन चुकी है।

इतना तो निःसंदेह कहा जा सकता है कि नीरा जी की मौत आधुनिक  स्वार्थी युवा पीढ़ी के मुँह पर करारा तमाचा है। आधुनिक  समय में 

खून के रिश्तों के पानी बनने की कहानी है।

उपरोक्त लिखी कहानी सत्य घटना से प्रेरित है।

समाप्त।  

लेखिका-डाॅ संजु झा (स्वरचित)

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