“खुशियों की झालर” – कविता भड़ाना   : Moral Stories in Hindi

“मानवी बेटा जल्दी से तैयार हों जाओ तुम्हारे सब दोस्त आते ही होंगे”… शिप्रा ने अपनी बारह साल की बेटी से कहा और बाहर लॉन में पार्टी की तैयारियां देखने चली गई। 

शिप्रा अभी बाहर आई ही थी की मानवी मम्मा मम्मा पुकारती हुई शिप्रा के पास आई और गुस्से से बोली, क्या मम्मा ये चमकीली झालर वाली आउटडेटेड ड्रेस मैं अपने जन्मदिन पर पहनूंगी? मेरे सारे दोस्त मेरा कितना मज़ाक उड़ाएंगे की मुझे जरा भी फैशन सेंस नहीं है और एक गुलाबी रंग की झिलमिलाती हुई फ्रॉक को मेज पर पटकते हुए वापस अपने कमरे में चली गई।

शिप्रा भी पीछे पीछे मानवी के कमरे में पहुंची और बड़े प्यार से बोली, बेटा ये ड्रेस तुम्हारी नानी ने बहुत प्यार से अपने “आशीर्वाद” के साथ भेजी है, तुम ये पहनोगी तो वो बहुत खुश हो जाएंगी। पर मानवी ने अपनी ज़िद नहीं छोड़ी और अपनी बुआ की लाई हुई ड्रेस को पहन जन्मदिन मनाया। शिप्रा को मानवी का ये व्यवहार और नानी के दिए हुए गिफ्ट का ये अपमान करना बिल्कुल अच्छा नहीं लगा।

अगले दिन बेटी को स्कूल छोड़कर शिप्रा जब घर आ रही थी तो रेड सिग्नल होने पर गाड़ी रोक ली तभी उसकी नज़र एक दस बारह साल की बच्ची पर पड़ी जो ट्रैफिक सिग्नल पर भीख मांग रही थी, शिप्रा ने देखा वो बच्ची एक ट्रक के पीछे लगी हुई रंग बिरंगी सजावटी झालरों को अपने ऊपर लगा लगा कर देख रही थी और उस समय उसके चेहरे पर खुशी और चमक देखते ही बन रही थी,

पीछे से आती हॉर्न की आवाज़ से शिप्रा ने जल्दी से गाड़ी आगे बढ़ाई और एक तरफ खड़ी करके उस बच्ची को इशारे से अपने पास बुलाया, कुछ अच्छा मिलने की उम्मीद से बच्ची दौड़ी हुई आई और कार के अंदर झांकने लगी। बेटा तुम्हारा नाम क्या है? शिप्रा ने पूछा तो बच्ची बोली “आशा” ….

रहती कहा हो तुम? शिप्रा ने फिर पूछा तो आशा ने उंगली से सड़क किनारे बसी झुगियों की तरफ इशारा कर दिया। अब शिप्रा ने गाड़ी में रखे हुए चॉकलेट और बच्चों के बचे हुए रिटर्न गिफ्ट शिप्रा को दे दिए तो वो खुशी से झूम उठी और बोली आंटी आज मेरा जन्मदिन है मां ने बोला था वो मुझे बाजार से झालर वाली फ्रॉक दिलवाएगी पर बापू ने सारे पैसे छीन लिए उदास होती हुई आशा बोली।

तभी कुछ सोचती हुई शिप्रा ने आशा से कहा आधे घंटे बाद तुम मुझे यही मिलना और जब शिप्रा वापस आई तो उसके हाथ में वही झिलमिलाती गुलाबी फ्रॉक थी जो कल उसकी बेटी ने आउटडेटेड बोलकल पहनने से मना कर दिया था साथ ही केक, समोसे और खाने पीने का अन्य सामान आशा को देकर कहा… बेटा ये सब मेरा प्यार और आशीर्वाद समझ कर रखो और अपना जन्मदिन अच्छे से मनाओ। ऐसा कहकर आत्मतृप्ति अनुभव करती हुई शिप्रा ने गाड़ी अपने घर की ओर बढ़ा दी। 

स्वरचित मौलिक रचना

#आशीर्वाद

कविता भड़ाना

2 thoughts on ““खुशियों की झालर” – कविता भड़ाना   : Moral Stories in Hindi”

  1. Very nice Aaj kal bacche sach mein sab ho tho sir par baithte Hain unhe kisi bhi cheez ka value nahi hai par jiske pass kuch nahi uske liye mamooli cheez bhi heere se kam nahi

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