हमें बस आपका आशीर्वाद चाहिए – अर्चना खंडेलवाल   : Moral Stories in Hindi

“रंजन बेटा, तेरे बाबूजी का चश्मा टूट गया है, आज नया बनवाकर ले आना, इन्हें अखबार पढ़ने में बहुत दिक्कत होती है।” निर्मला जी ने अपने बेटे से कहा।

“ठीक है, मम्मी दे दो समय मिला तो बनवा लूंगा, और वो चश्मे का फ्रेम लेकर चला गया।”

निर्मला जी अपने पति और बेटे बहू के साथ एक फ्लैट में रहती है जो उन्हीं के नाम पर है, गांव की सारी जमीन जायदाद बेचकर दोनों ने यहां फ्लैट ले लिया है, ताकि बुढ़ापे में अपने बच्चों के साथ रह सकें, उससे पहले रंजन अपनी पत्नी सीमा और दो बच्चों के साथ

एक किराये के घर में  रहता था, निर्मला जी को बच्चों के साथ रहना था और रंजन को अपने घर में रहना था तो दोनों ने एक साथ एक छत के नीचे रहने का फैसला लिया, पर इस बात से रंजन की पत्नी सीमा खुश नहीं थी, उसे लगता था कि मम्मी जी को फ्लैट रंजन के नाम से ही लेना चाहिए था क्योंकि रंजन ही एक मात्र घर में कमाऊ इंसान हैं, वो अपने परिवार के साथ अपने माता-पिता का भी खर्चा उठा रहा है।

रंजन अपने माता-पिता की मन से सेवा करता था और सीमा उनका हर काम टालने की कोशिश करती थी।

शाम होने से पहले निर्मला जी ने सीमा को फोन करके चश्मे की बात याद दिलाने को कहा, क्योंकि रंजन काम की व्यस्तता में कई बार घर के काम भुल जाता था।

ये सुनकर सीमा भड़क गई,” मम्मी जी पापाजी एक दो दिन अखबार नहीं पड़ेंगे तो कोई पहाड़ नहीं टूट जायेगा, वैसे भी सारा दिन टीवी चलता रहता है, और टीवी की खबरों से मेरा दिमाग पक जाता है, और लाइट का बिल भी तो बहुत आता है, घर में जरा भी शांति नहीं रहती है।”

एक तो फ्लैट आपने हमारे नाम नहीं किया फिर किस हक से आप हमसे हर काम के लिए बोल देते हो?

सीमा के तानें सुनकर निर्मला जी की आंखें भर आई , वो चुपचाप अपने कमरे में आ गई, रंजन ऑफिस से आया तब भी बाहर नहीं आई।  रंजन सीधा 

उनके कमरे में आया , और उसने चश्मा अपने पिताजी को दे दिया, तो कैलाश जी की आंखे खुशी से चमक गई।

“तुझे याद था, तू चश्मा बनवाकर ले आया।”

“हां, पापा मैं आप दोनों का काम कभी नहीं भुल सकता हूं, आप भी तो मेरी छोटी से छोटी चीज याद रखते थे, कभी लाना नहीं भुलते थे, और रंजन ने अपने मम्मी-पापा के पांव छू लिये।

“पापा, कल मुझे एक कंपनी में इंटरव्यू के लिए जाना है, और अभी मै रात को उसकी तैयारी करूंगा, मुझे आप दोनों का आशीर्वाद चाहिए, उसके बिना मुझे सफलता नहीं मिलेगी।”

“बेटा, माता-पिता का आशीर्वाद तो सदैव अपने बच्चों के साथ होता है, उनका तो रोम-रोम अपने बच्चे को आशीर्वाद देता है, कभी कोई माता-पिता अपने बच्चे का बुरा नहीं चाहते हैं, बस बच्चे ही उन्हें बोझ समझने लगते है।”

“पापा, आप ये कैसी बातें कर रहे हो? मैंने कभी आपको बोझ नहीं समझा, बल्कि आपके आशीर्वाद से ही हम फल-फूल रहे हैं।”

रंजन अपने कमरे में आता है और सीमा का मुंह फुला हुआ देखकर कुछ समझ नहीं पाता है, वो आश्चर्य से पूछता है कि,”क्या हुआ? इस तरह मुंह क्यों बना हुआ है?

“आपको अपने मम्मी-पापा का तो हर काम याद रहता है, बस मेरा और बच्चों का काम ही भुल जाते हो, उनका काम तो कभी नहीं भुलते?”

“सीमा, वो जरूरी काम था, और तुम इस तरह शिकायत मत किया करो, मैं तो सबके ही काम करने की कोशिश करता हूं, अब मुझे कल के इंटरव्यू की तैयारी करनी है।” ये कहकर रंजन अपना लैपटॉप खोल लेता है और सीमा करवट लेकर सो जाती है।

सुबह रंजन उठकर तैयार हो जाता है, और अपनी मम्मी का इंतजार करता है जो अभी तक भी मंदिर से नहीं आई थी।

“इंटरव्यू का समय निकल रहा है और आप हो कि जिद पर अड़े हो, अरे! मम्मी जी का आशीर्वाद नहीं लोगे तो कौनसी दुनिया हिल जायेगी? वैसे भी आपको सफलता आपकी मेहनत से ही मिलती है, इसमें मम्मी जी पापाजी का आशीर्वाद क्या करेगा?”

 सीमा थोड़ा तुनककर बोलती है पर रंजन नहीं सुनता है वो अपनी मम्मी का मंदिर से आने का इंतजार करता है।

“मैंने आज तक कोई भी काम बिना मम्मी -पापा के आशीर्वाद के बिना नहीं किया है, और आज मै उनका आशीर्वाद लेकर ही जाऊंगा।” रंजन कहता है।

दस मिनट बाद निर्मला जी मंदिर से आती है और बेटे को बहुत सा सफलता का आशीर्वाद देती है, वो अपने पिताजी से भी आशीर्वाद लेकर चला जाता है।

“मम्मी जी, आज आपकी वजह से रंजन को देरी हो गई है, मै तो सोच रही थी कि ये नौकरी मिल जाती, तनख्वाह  भी बढ़ जाती और रंजन भी मुझे मेरे नाम से एक फ्लैट खरीद देते, पर आप तो चाहती ही नहीं कि हम भी अपने फ्लैट  में रहे, सीमा ने फिर ताना दिया ।

“सीमा, मै रंजन की नौकरी और लंबी उम्र के लिए ही भगवान से प्रार्थना करने रोज मंदिर जाती हूं, और रही फ्लैट की बात तो हमारे जाने के बाद ये फ्लैट तुम्हारा ही होगा, ये तो तुम्हारे पापाजी की इच्छा थी, इसलिए उन्होंने मेरे नाम से लिया है।” 

“मै, आज ही उनसे बात करके फ्लैट तुम्हारे नाम करवा देती हूं, तुम दोनों खुश रहो, हमारा तो यही आशीर्वाद है।” निर्मला जी ने उसे दिलासा दी।

शाम को रंजन थका-हारा घर लौटता है, और थोड़ी सी परेशानी उसके चेहरे पर छलकती है।

सीमा फिर से गुस्सा करती है,” कहीं आशीर्वाद लेने के चक्कर में इंटरव्यू की जगह समय नहीं पहुंच पायें? लगता है आपने इंटरव्यू दिया ही नहीं? इतना अच्छा मौका छोड़ दिया और झुंझलाने लगी।

“हां, सीमा मेरा इंटरव्यू नहीं हो पाया पर आज मै मम्मी -पापा के आशीर्वाद के कारण जीवन की जंग जीत गया हूं, मै घर से निकला तो दस मिनट देर हो गई थी, मै रोज जिस बस से जाता हूं वो छूट गई थी, मैंने रास्ते के लिए ऑटो पकड़ा और थोड़ी ही दूर गया था, आगे जाम था, वहां जाकर देखा तो जिस बस से मै रोज जाता हूं , उसकी बड़े से ट्रक से टक्कर हो गई थी,

उसमें  कई लोगो की सांसे थम गई और कई यात्री दर्द के मारे तड़प रहे थे, उनकी लोग मदद कर रहे थे तो मै भी ऑटो से उतरकर उनकी मदद करने में लग गया, आज मै मम्मी के आशीर्वाद के बिना निकल जाता तो मै भी उनमें से एक होता और सड़क पर पड़ा तड़प रहा होता।”

“रंजन की बातें सुनकर सबने ईश्वर को धन्यवाद दिया, तभी सीमा बोली,” जब आप बच गये थे तो इंटरव्यू के लिए निकल जाते, इतना अच्छा मौका गंवा दिया।’

“ये तुम कैसी बातें कर रही हो सीमा? आज मै भी उनमें से होता तो मै भी उम्मीद रखता कि कोई तो मुझे बचाने आयेगा, लोग मुझे देखकर यूं ही निकल जाते तो मुझे और भी तकलीफ होती, मैंने भी पीड़ितों को अस्पताल पहुंचाने में मदद की, जब मै अस्पताल में भागादौड़ी कर रहा था, उनमे से कई बुजुर्ग आये और उन्होंने मुझे धन्यवाद दिया और बहुत सारा आशीर्वाद भी ।”

“उन्होंने कहा कि, मैंने उनके घर का चिराग बचा लिया, उनके बुढ़ापे का सहारा बचा लिया, वो जीवन भर मुझे आशीर्वाद देंगे, ये आशीर्वाद बड़ा अनमोल होता है, जिसे मिलता है वो धन्य हो जाता है, नौकरी तो ओर भी कभी मिल जायेगी, पर आशीर्वाद जीवन भर साथ रहेगा।” मै भी उस बस में दुर्घटना ग्रस्त होता और कोई मुझे नहीं बचाता तो तुम्हें कैसा लगता ?

ये सुनकर सीमा की नजरें शर्म से झुक गई।

“रंजन, तूने बहुत अच्छा काम किया है, हमें तुझ पर गर्व है, हमारा आशीर्वाद सदा तेरे साथ है, दोनों ने एक साथ अपने बेटे से कहा।

थोडी देर बाद निर्मला जी फ्लैट के पेपर लेकर आती है और रंजन को कहती हैं,” हमने फ्लैट तेरे नाम करने का निर्णय लिया है।”

रंजन आश्चर्यचकित हो जाता है, तभी सीमा निर्मला जी के पांव पड़ती है,” मम्मी जी मुझे माफ कर दीजिए, मुझे ये फ्लैट नहीं बल्कि आप दोनों का आशीर्वाद चाहिए, आज आपकी वजह से इनकी जान बची है, मै ये क्यों भुल गई कि आपने तो इनको जन्म दिया है, आपके कारण इनके जीवन में कुछ गलत नहीं हो सकता है,  आप मुझे माफ कर दीजिए , मै अब तक के व्यवहार के लिए आपसे माफी मांगती हूं, मै अब आपसे कभी बुरा व्यवहार नहीं करूंगी, आप बस अपना आशीर्वाद हम पर बनाये रखें।”

निर्मला जी और कैलाश जी दोनों अपने बहू-बेटे को आशीर्वाद देते हैं और सीमा को माफ कर देते हैं।

धन्यवाद 

लेखिका

अर्चना खंडेलवाल

मौलिक रचना सर्वाधिकार सुरक्षित

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