जब मैने कोई गलती नही की तो क्यों बर्दाश्त करूं – वीणा सिंह : hindi stories with moral

hindi stories with moral : पूरे दो साल बाद मयंक अपनी मां पापा के साथ मेरे घर समझौते के लिए आए हैं.. मेरे पापा मम्मी मुझे आवाज दे रहे हैं नव्या आ जाओ बेटा.. मैं सधे संतुलित कदमों से तीन साल की बेटी तन्वी को गोद में लिए कमरे में गई.. सास ससुर को संस्कार वश प्रणाम किया… मयंक को अनदेखा कर बैठ गई.. तन्वी अपरिचित चेहरे देख मुझ से चिपक कर बैठ गई…

            मेरे तलाक के नोटिस के मिलने के बाद ये लोग समझौते के लिए मेरे घर आए थे.. मोटी रकम कमाने वाली और बेटे का नखरे उठाने वाली  बहु  बहुत तलाश के बाद भी अभी तक नही मिल पाई थी..मम्मी पापा ने तो साफ मना कर दिया था पर मैंने उन्हें समझाया आने दीजिए उन्हे…

                         सास ससुर तन्वी को अपने पास बुलाने की कोशिश कर रहे थे.. तन्वी रोने लगी थी इसलिए मम्मी उसे लेकर चली गई.. मैने कहा बोलिए क्यों मिलना चाहते थे आप सभी मुझसे.. तीन साल के बाद मेरी याद कैसे आई.. सास ससुर दोनो एक साथ बोल उठे तुम मयंक को माफ कर दो..

तन्वी को भी कदम कदम पर पिता की जरूरत पड़ेगी.. तुम अभी नहीं समझ रही हो नव्या.. तुम्हारे माता पिता कब तक तुम्हारा साथ देंगे.. पति पत्नी में छोटे मोटे झगड़े होते रहते हैं इसका मतलब ये नही है… पत्नी को बर्दाश्त करना हीं पड़ता है..

                          मैने संतुलित नम्र पर दृढ़ स्वर में कहा माफ कीजिएगा अब हम साथ नही रह सकते..#जब मेरी कोई गलती हीं नहीं है तो मैं क्यों बर्दाश्त करूं..#मम्मी भी तन्वी को सुलाकर आ गई थी.. मयंक की मां मम्मी की तरफ मुखातिब हुई आप औरत हो मां हो नव्या को समझाओ.. और अब मेरा धैर्य जवाब दे चुका था..

                 मैं फट पड़ी… शादी के बाद के ये छः साल मैने कैसे गुजारे ये मैं हीं जानती हूं.. और आप कह रही हैं इसे समझाओ.. कैसी औरत हैं आप जो किसी औरत के दर्द को महसूस नहीं कर पा रही हैं…

                मैं भी इंजीनियर हूं आपके बेटे से ज्यादा कमाती हूं… घर संभालना, मयंक को कुक के हाथ का खाना पसंद नही आता तो नाश्ता खाना भी ऑफिस जाने से पहले बनाती थी.. थकी हारी जब ऑफिस से लौटती तो मन करता कोई गर्म कॉफी या चाय पिला दे पर खुद दो कप चाय बना कर लाती…

फिर खाने की तैयारी करती.. उसमे भी मयंक की शिकायतें कम होने का नाम नहीं लेती… सब्जी में स्वाद नहीं है तो दाल पतला है कभी कुछ कभी कुछ कमी निकालते रहते.. चादर पर सलवटें दिख रही है कितनी फूहड़ बीबी हो तुम…अरे मेरे कपड़े नही निकाले अभी तक…तौलिया भी बाथरूम में नही रखा है…ऑफिस में कभी कभी मीटिंग के लिए या किसी कारण से थोड़ी देर तक रुकना पड़ता तो मयंक सब जानते हुए भी बहुत चिल्लाते… ऑफिस से आने का मन नहीं करता.. करता भी कैसे इतने रंगीन हसीन माहौल से आने का… गलत आरोप भी लगाते…

           इसी बीच मेरी तबियत खराब रहने लगी… डॉक्टर को दिखाया तो उसने मां बनने की पुष्टि की… मैने मयंक से कहा जॉब छोड़ देती हूं… बच्चा थोड़ा बड़ा हो जायेगा तब फिर दूसरी जॉब मिल हीं जायेगा… सुनते हीं मयंक चिल्लाने लगे… अभी पैसे की जरूरत है बच्चा गिरवा लो… मैने साफ इंकार कर दिया….

आप के पास फोन करते तो आप समझाती थी औकात में रखो नही तो नौकरी कर रही है बाद में तुम्हे औकात में रखेगी… अभी नही दबा के रखोगे तब पूरी जिंदगी दब के रहना पड़ेगा… दाढ़ी बनाते वक्त मयंक स्पीकर पर फोन कर के बात कर रहे थे और मैं अचानक से बॉथरूम के पास गई तो आप दोनो को बातें सुनी…

               आप भी औरत हैं मुझे आपसे ये जानना है आपके बेटे के बराबर कमा रही हूं… घर भी संभाल रही हूं.. क्या आपको अपने बेटे को ये नहीं समझाना  चाहिए की नव्या का हाथ बटाओ घर के कामों में.. उसके साथ अच्छा व्यवहार करो. उसी वक्त ये समझाया होता तो ये नौबत नहीं आती…

मयंक अब कभी कभी हाथ भी उठाने लगे थे…. पति पत्नी पर हाथ उठाता है तो शरीर पर कम मन आत्मा और दिल पर बहुत गहरी चोट लगती है… ऐसे हीं एक दिन मम्मी का फोन आया और मैं रो पड़ी… मम्मी से मैने अपनी अब तक की व्यथा सुना दी.. मम्मी फोन काट दी.. मैं हताश हो गई शायद मम्मी भी मुझे गलत समझ रही है…

थोड़ी देर में मोबाईल पर मैसेज आया.. फ्लाईट का टिकट.. और मैं मयंक को बिना बताए ऑफिस में इनफॉर्म कर वापस मम्मी पापा के पास आ गई.. मम्मी पापा ने मुझे छोटे बच्चे सा संभाला क्योंकि मैं टूट चुकी थी… मम्मी बोली बेटा अब वो समय गया जब बेटी को विदा करते समय माताएं कहती थी डोली से जा रही हो और….

नही एक हद तक पति और ससुराल वालों को बर्दाश्त करो पर बिना गलती का घुट घुट कर जीना ये बीते दिनों की बात हो गई… तुम्हारे माता पिता तुम्हारे साथ खड़े हैं जीवन संग्राम में..

             और देखिए छः महीने से फिर से नौकरी कर रही हूं.. तन्वी प्ले स्कूल जाने लगी है.. और आज मैं दृढ़ता से ये कह सकती हूं #जब मेरी गलती हीं नहीं है तो मैं मयंक की जयादतियों को क्यों बर्दाश्त करूं #अब हमारी मुलाकात कोर्ट में होगी.. आप जा सकते हैं मैं हाथ जोड़कर कमरे से बाहर आ गई..

      

#स्वलिखित सर्वाधिकार सुरक्षित #

            

Veena singh

4 thoughts on “जब मैने कोई गलती नही की तो क्यों बर्दाश्त करूं – वीणा सिंह : hindi stories with moral”

  1. पुरुष हो या स्त्री, अपनी अस्मिता से समझौता नही करना चाहिए। क्षणिक आवेश में निर्णय लेने पर पछतावा हो सकता है किन्तु सोच समझकर परिणाम का आंकलन करने के बाद लिया गया निर्णय इच्छाशक्ति को प्रबल करता है। पति पत्नी के बीच असहमति मुद्दो पर हो तो कटुता पैदा नही होती, अहम की बजह से असहमति हो तो अलग हो जाना ही बेहतर है।

    Reply
  2. आत्मसम्मान स्त्री के 16 श्रृंगार में से सबसे पहलाश्रृंगार है।उसका होना स्त्री के लिए अत्यंत आवश्यक है उसके बिना स्त्री अपूर्ण है।

    Reply
  3. Pariwar se ghar banta hai ghar me sab barabar ka adhikar rakhte hai to dono ko ek dusre ka maan rakhna chahie jo na rakhe aise rishtey ko laat maar dena chahie

    Reply

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!