एक घर मेरे नाम का – पूजा गीत  : hindi stories with moral

hindi stories with moral : आज निधि ने अपने सभी घरवालों और मित्रों को पार्टी के लिए आमंत्रित किया था। उसी की तैयारी में लगी हुई थी। पूरा घर जगमगा रहा था और साथ ही जगमगा रहा था बाहर लगा नेम प्लेट भी, जिसमें ऊपर लिखा था “शुचिज़ होम” और नीचे लिखा था “ज्ञान-निधि”।

नियत समय पर सब लोग आ गए और विस्मय से नेमप्लेट और घर को देखे जा रहे थे। निधि सबको बताना चाह रही थी पर पति ज्ञान के आने के बाद। उनके लिए तो ये सबसे बड़ा सरप्राइज था।  जैसे ही वो आये, निधि उनका हाथ पकड़ कर घर के अंदर बने मंदिर में ले गयी और दीपक जलवाया, बेटी शुचि के हाथ का थापा लगवाया।

जहाँ एक ओर 11 वर्षीय बेटी मुस्कुरा रही थी वहीं दूसरी ओर पति आश्चर्य से सब देखे जा रहे थे। फिर पूजा के बाद नाश्ते का कार्यक्रम शुरुआत हो गया। सब नाश्ता किए जा रहे थे और आँखों ही आँखों में निधि से प्रश्न किए जा रहे थे कि ‘अब बताओ भी’। आखिर में निधि ने पति और बेटी का हाथ पकड़ कर बोलना शुरु किया, ये मेरा घर है, इसे मैंने खरीदा है अपनी मेहनत के पैसों से।

जबसे मैंने पोस्ट ग्रेजुएशन पूरा किया भैया को हमेशा कहते सुना “माँ इसको जल्दी शादी कर के इसके घर भेजो”। फिर जब शादी हो के ससुराल आयी तो मांजी ने कहा, बेटा! इसे अपना घर समझना। मैंने तन-मन से घर को संभाल लिया, पर जब भी मैं कोई सामान इधर से उधर करती या नया कुछ लाती, मांजी कहतीं ये मेरा घर है और मुझे किसी तरह का परिवर्तन पसंद नहीं। मैं दुःखी भर हो के रह जाती और फिर उनके घर को सँभालने में लग जाती।

फिर ज्ञान बैंगलोर आ गए और अपना घर ले लिया। मुझे लगा ये है मेरा घर, अपने हिसाब से रखूंगी जैसे माँ रखती है, मांजी रखती हैं। ज्ञान ने भी मुझे पूरा अधिकार दिया, प्यार दिया, पर जब भी वो नाराज होते तो कहते ‘मेरे घर से निकल जाओ’। बुरा लगता पर फिर सोचती गुस्से में कहा है, उनका वो मतलब नहीं था। वास्तव में होता भी ऐसा ही था। ज्ञान का गुस्सा शांत होने पर वो मुझे मनाते, अपनी गलती पर पछतावा भी करते। मुझे भी लगता ये तो हर घर की कहानी है। क्या नाराज रहना!

पर याद है ज्ञान! जब सूची पाँच साल की होने वाली थी और मैंने अपनी पसंद से कुछ तस्वीरें फ्रेम करा के दीवार पर लगाया था। उनमें से ज्यादातर फोटो में आप दोनों थे। पूरे दिन मैं और शुचि उसके बर्थडे सेलिब्रेशन की भूमिका बनाते रहे, वो हर बात पर खुश होती, चहकती रही।

मुझे लगा आपको सरप्राइज करूँगी। शाम को आते ही आप चिल्ला पड़े कि मैंने आपके घर में किस से पूछ के ये सब किया! आपको दीवार में लगी कीलों का दुःख था पर मेरे ह्रदय पर, मेरे आत्म-सम्मान पर लगने वाली चोटों का नहीं! आपका कहा एक-एक शब्द मेरे अंतर्मन में हथोड़े-सा प्रहार कर रहा था। आप अपनी रौ में बोले जा रहे थे, बिना ये देखे समझे कि कामवाली घर में है, सामने वाले बगल वाले पडोसी का दरवाजा खुला है। सच कहूँ तो कुछ दरक गया रहा उस दिन मन के अंदर।

मैंने आपसे बहुत प्यार किया है ज्ञान पर उस दिन आप ज्यादा बोल गए। ये बात मुझसे ज्यादा शुचि ने महसूस किया। दुःख और गुस्से में मैं माँ के घर चली तो गयी पर वहाँ जा के दो दिन में समझ आ गया कि वो भी मेरा घर नहीं है। फिर आपने अफ़सोस जताया और हम वापस आ गए। मैं आपके साथ रह तो रही थी मन में एक टीस लिए अपने घर की। आपके व्यवहार में बहुत परिवर्तन आ चुका था। उसके बाद कभी भी आपने मुझे मेरे घर वाली कोई बात नहीं कही। हाँ, मेरे मन में ये बात फांस की तरह चुभ गयी थी।

एक दिन शुचि की टीचर ने मुझे अमेरिका में रह रहे कुछ भारतीय बच्चों को ऑनलाइन हिंदी, संस्कृत पढ़ाने का सुझाव दिया। उनके परिवारवालों से बात कर के मैं बच्चों को पढ़ाने लगी। धीरे-धीरे बहुत सारे बच्चे हो गए और मेरी आमदनी भी बढ़ गयी। ये सब मैं आप के ऑफिस जाने के बाद करती और आपके वापस आने से पहले मेरा काम ख़त्म हो चुका होता था।

सब पैसे मैं जमा करती रही। फिर पापा ने जो मेरे नाम पर फिक्स्ड डिपाजिट किया था उसे तोड़ कर और बैंक से लोन लेकर मैंने ये दो कमरों का फ्लैट खरीदा। इसी महीने इसकी आखिरी किश्त चुकाई है और घर के पेपर मुझे मिले हैं तो आज गृह प्रवेश का कार्यक्रम बना लिया।

आप सब के चेहरे के बनते-बिगड़ते हाव-भाव से मैं समझ पा रही हूँ कि आप क्या सोच रहे हैं! ज्ञान से मुझे कोई शिकायत नहीं है, मुझे इनके इतना प्यार कोई नहीं कर सकता। पर हमेशा से “ये तुम्हारा घर नहीं है, बेटी तो को एक दिन पराये घर जाना है” ऐसी बातें मुझे बहुत गलत लगती थीं। मैंने भी ये सब कभी नहीं सोचा था,

वो तो शुचि के सहयोग और इसकी टीचर के सुझाव से मुझे कुछ करने की प्रेरणा मिली। इसका परिणाम आप सबके सामने है। किसी को नीचा दिखाना, खुद को बड़ा जताना मेरा उद्देश्य नहीं था। बस अपने नाम का एक घर चाहती थी और शुचि के लिए भी प्रेरणास्रोत बनना चाहती थी, ताकि कल को उसे कोई काम असंभव न लगे। मेरी इस मेहनत से उसे हमेशा प्रेरणा मिलती रहे।

मुझे माफ करना ज्ञान, अगर आपके मन को तनिक भी ठेस पहुंची हो तो। ज्ञान ने आगे बढ़कर ताली बजायी और ख़ुशी जताते हुए कहा, निधि! मुझे सब पता था। शुचि ने मुझे बातों बातों में सब बता दिया था और तुमको न जताने का वादा भी लिया था। शुरुआत में मुझे बुरा लगता था तुमको इतनी मेहनत करते देख के, पर तुम्हारे बढ़ते आत्म-विश्वास से मैं खुश था।

मैंने तुम्हारी कोई सहायता नहीं की पर तुम्हारे साथ हरपल था। मुझे तुम पर गर्व है, बस अब अपने घर के गृह प्रवेश में मुझे कुछ खा लेने दो। अपने नहीं पापा “हमारा घर” और शुचि के इतना कहते ही समवेत स्वर में हँसी सुनाई थी। निधि सबको हँसते देख रही थी और ज्ञान निधि को खुश देख के बहुत खुश था।

पूजा गीत

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