हैप्पी होली जीजी – शुभ्रा बैनर्जी : Moral stories in hindi

सावन में भाई के ना आने से मुंह फुलाकर बैठी थी सुमन।ससुराल में बहू की इज्जत तभी होती है,जब मायके में उसकी पूछ परख हो।कितने चाव से भाई -भाभी के लिए कपड़े खरीदकर लाई थी। सास-ससुर के बगल वाले कमरे की सफाई भी कर रखी थी,उनके ठहरने के लिए।मां के जाने के बाद पहली बार भाई आने वाला था ,

सुमन के घर।राखी के दो दिन पहले ही शिखा ने फोन किया”जीजी,हमें माफ कर दीजिएगा।आपके भाई को छुट्टी ही नहीं मिल रही है। बहुत परेशान हैं,आपसे बात करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे।कुढ़ रहें‌ हैं मन ही मन।जितनी बार बोला मैंने आपको बताने के लिए,डांट दिया मुझे।कहने लगे,तुम जानती नहीं हो,कितना गुस्सा करेगी।

हजार बात सुनाएगी।उसका हक है खैर।जीजी मुझसे रहा नहीं गया।तुम इतनी तैयारी करती हो ना , बर्बाद नहीं होना चाहिए तुम्हारी तैयारियां।अच्छा मैं‌ रखती हूं अभी।वो आ गएं हैं।बाद में बात करूंगी।और हां उनसे मत कहना आप कि मैंने फोन किया था।एक बात कहूं जीजी-आप राखी वाले दिन फोन कर लेना।इनका जी हल्का हो जाएगा।”

“वाह!!!!!राखी में खुद भाई  बड़ी बहन के घर नहीं आ रहा है,और बात मैं करूं।बड़ी बहन हूं,मां जैसा स्नेह करती हूं।झुकूं मैं ही वाह!यह अच्छा है।बड़बड़ाते हुए सुमन ने शिखा से इतना ही कहा”हां,ठीक है शिखा कर लूंगी।”फोन रखकर बहुत रोई सुमन।जब तक मां थी,हर त्योहार में भाई को भेज देती थी या उसे लिवा ले जाती थी।जब से मां नहीं रही,भाई भी अपनी जिम्मेदारी से मुंह चुराने लगा है।पत्नी को तो पिछले हफ्ते ही मायके लेकर गया था।तब छुट्टी मिल जाती है।मैं क्या समझती नहीं।ठीक है जब उसे लगाव नहीं‌ दीदी से मिलने का तो मैं क्यों मुंह उठाकर जाऊं?नहीं‌ जाऊंगी अब कभी।

घर में सुमन का चेहरा देख सभी समझ गए थे कि भाई नहीं आ रहा है।पति ने भी ताना दिया “तो साले साहब को नहीं मिल रही ना फुर्सत।हां भई अब बीवी आ गई है।सास है नहीं,नचा रही है अपने इशारे पर।तुम्हारा भाई है भी ऐसा ही।”सुमन ने घूरकर देखा पति को तो शांत हो गए।अपने घर‌ की सारी जिम्मेदारी तो निभाती है सुमन।

सास-ससुर की देखभाल,बच्चों की पढ़ाई,पति के नौकरी की‌ तैयारी,नाश्ता बनाकर खुद स्कूल जाती है पढ़ाने।ननदों को‌ बुलवाकर त्योहारों में उचित नेंग देना नहीं भूलती वह।शाम को ही‌ पति से कहा”सुनो जी,विनिता और इशिता के घर जाना है आपको राखी में।मैं‌नहीं‌ जा पाऊंगी। मां-पापा के पास एक को तो रहना पड़ेगा।दामादों और उनके माता-पिता, ननदों,सभी के लिए कपड़े ,मिठाई लाकर रखी हूं।अपने भाई‌ के लिए भी जो लाई थी,लेते जाना। भांजे-भांजियों के हांथ में अलग से देना,लिफाफों के साथ मिठाई।चलो अपनी पैंकिंग करना शुरू करो अब जल्दी।”

सुमन का निर्मल मन देखकर सास भावविभोर हो उठीं”,सुमन कित्ता बड़ा मन है‌ तुम्हारा।ख़ुद राखी नहीं‌ बांध पाओगी इस बार‌ ,पर मेरी बेटियों की राखी खाली नहीं‌ रखोगी तुम।खूब सुखी‌ रहो बेटा।

तुम्हारा मन ऐसा ही‌ निर्मल रहे सदा।”, सुमन अपने आंसू दिखाकर कमजोर नहीं‌ लगना चाहती थी। जल्दी-जल्दी सारी तैयारी कर के पति को स्टेशन भेजा।दोनों ननद एक ही‌ शहर में रहती थीं।दोनों राखी बांध पाएंगी अपने भाई को।भाभियों का भी कितना बड़ा दायित्व होता है,अपनी ननदों के मन की मुराद पूरी करवाने‌ का।

दोपहर को फिर‌ सोचने लगी सुमन,क्या शिखा जोर देकर भाई को नहीं‌ भेज सकती थी।उसकी बात तो काटता नहीं‌ वह। देखते-देखते ही देखते फिर आंखों से आंसू उमड़ पड़े।किससे कहे कि मन कितना बेचैन है???

राखी के दिन फोन किया तो भाई ने फोन ही रिसीव नहीं किया।शिखा ने भी नहीं उठाया कॉल।ना मैसेज‌देख रहा था कोई।बस!अब बहुत हुआ।अब नहीं करेगी फोन किसी को।वो बिजी हैं तो मैं भी फुरसतिया नहीं हूं।तब से सुमन ने भाई -भाभी से बात नहीं की थी।ना चाहते हुए भी मन में बैर पैठ जाता है,जाता ही नहीं।वो बचपन वाला मनमुटाव कहां खो गया,जब बाल पकड़ कर लड़ लेते थे,दांतों से काटकर चमड़ी निकाल लेते‌ थे। मां-पापा की मार पड़ जाती थी उल्टी,पर मना लेते‌ थे भाई -बहनों को‌ और बहन -भाईयों‌ को।

देखते-देखते इतने महीने बीत गए।एक बार भी ना‌ उधर से फोन आया और‌ना ही‌ इधर से‌ कोई खबर।बचपन के सबसे करीबी भाई-बहन के रिश्ते में‌ दाग‌ लग चुका था।बेरंग हो गए‌ थे भाई के‌ साथ रिश्ते।अब सवाल यह था कि पहले कौन करे?

फागुन आ गया था। फागुन के बाद ही राम नवमी।मायके में तो घर के सामने मैदान में देवी बैठाई जाती हैं।भाई कब से बोला था “दीदी ,एक बार आ जा ना बच्चों को लेकर।झूला लगता है बड़ा वाला।खुश हो जाएंगे बच्चे।”मजाल है कि निकल पाई हो कभी।हर बार‌ नया नाटक ,ना जाने का।

अभी होली के दो दिन पहले ही सुमन के छोटे भाई का फोन आया।वह दूसरे देश में रहता है।फोन पर बताया उसने कि बड़े दादा की तबीयत बहुत खराब चल रही थी ,जुलाई से।तब से ड्यूटी नहीं जा पा रहा।तुझे बताने को मना किया था कि कहीं तू उसे खींचकर अपने यहां ना ले आए। ट्रीटमेंट कराएगी,महीनों रखना पड़ेगा।तेरे सास ससुर को कितनी दिक्कत हो जाएगी।यही सोचकर उसने नहीं‌ बताया कि तेरे लिए दोहरी जिम्मेदारी हो जाती।

छोटे भाई की बात सुनकर सुमन की आंखों से पश्चाताप के आंसू निकलने लगे।कैसे आता भाई राखी में?जब कमाई ही नहीं‌ थी ,तो कहां से खरीदता घर भर के लिए कपड़े(अच्छी क्वालिटी),मिठाइयां,लिफाफा‌?

उसकी मजबूरी की तरफ एक बार भी दिमाग क्यों नहीं गया सुमन का।बहन की ससुराल खाली हांथ भी तो नहीं आ सकता।

नहीं‌ इतने दिनों से भाग रही थी अपने रिश्ते से।जब भाई को मेरी सबसे ज्यादा जरूरत रही होगी,तभी मैं नहीं थी उसके पास।हम लड़कियों के मन में भी ना एक समय के बाद अपने सगे संबंधियों के लिए ही बैर आ जाता है।उपहारों की कसौटी पर हम खुद रिश्तों को तौलने लगे हैं अब।तभी फोन की घंटी बजती”हैप्पी होली,जीजी।

प्रणाम लीजिएगा।”शिखा की आवाज थी सहज और स्वाभाविक।सुमन ने भी हैप्पी होली कहा।शिखा फिर बोली”जीजी,ये भी खड़ें हैं पास में बोलने के लिए।”सुमन ने बेमन से कहा “हां ,उसे भी कह देना हैप्पी होली।शिखा इस बार भी रामनवमी का मेला लग रहा है,सामने के मैदान में।”शिखा भी दंग थी कि भाई के बारे में ना जानकर मेले की जानकारी ले रही है जीजी।पति से कहा भी कि जीजी तो आ नहीं पातीं यहां,मेले में से कुछ खरीद लूंगी उनसे पूछकर।शायद उनका मन कर रहा होगा।

प्रणव(सुमन का भाई)ने हंसकर कहा”,तुम नहीं समझोगी जीजी को।वो आ रही है मेले में।मेरी बीमारी की बात जरूर पता चली होगी,तो वो कैसे भी करके आएगी।किसी की नहीं सुनेगी।ऐसी ही है वह।बाहर से सख्त नारियल जैसी और अंदर से मलाई।”शिखा भी खुशी में रो पड़ी।

सुमन के जाने की तैयारी अब सास कर रही थी। भाई भाभी के लिए मिठाई,कपड़े पैक कर बोली सुमन से”कुछ पैसा कौड़ी ज्यादा रखना तुम।ऐन वक्त पर होता नहीं तुम्हारे पास।तुम्हारे डर से उन लोग दे देते होंगे।वहां की जैसी परिस्थिति हो ,उस हिसाब से तुम रहकर आओ।मैं संभाल लूंगी अपने बेटे को।

ट्रेन में बैठकर सुमन ने अपने मन में से बैर का सारा पाप आंखों से बहा दिया। छोटी-छोटी बातों को बतंगड़ बनाकर जीवन भर हम भी तकलीफ़ पातें हैं ,।जब तक मन की गांठ नहीं खुलेगी, भाई-बहन का रिश्ता बेरंग ही रह जाएगा।अब तो इसमें नया रंग भरने का समय आ गया।होली के बाद जा रही हूं,पर अपने मन में प्रेम ,और परवाह का गुलाल लेकर जा रही।

दूरियों को मिटाने का काम यही प्रेम और परवाह की गुलाल करेगी।अरे, स्टेशन भी आ गया।भाई खड़ा हुआ था।रामनवमी का मेला स्टेशन से दिख रहा था।नीचे उतरी तो सूटकेस भाई ही पकड़ा।सुमन ने पूछने की कोशिश की एक बार कि शिखा नहीं आई,पर चुप रही।सामान देखकर जैसे ही पलटी,”हैप्पी होली जीजी!कहकर‌ शिखा ने चेहरा अबीर से लाल कर दिया।स्टेशन पर सब हैरान‌ हो रहे थे कि त्योहार तो अब रामनवमी का है,होली क्यों?

आज रामनवमी के समय ही सही होलिका दहन में सुमन ,अपने मन का सारा पाप दहन कर आई थी।होली के रंगों से कान्हा‌ जी को सबसे पहले रंगाते समय ,वचन दिया था उन्हें,अब रिश्तों को बेरंग नहीं होने देंगे कभी।नया रंग भरते रहेंगे ।

शुभ्रा बैनर्जी 

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