सोहनलाल हलवाई की दुकान पर जाकर रामप्रसाद जी ने कहा,” सोहनलाल भाई एक किलो कलाकंद, आधा किलो काजू कतली और एक किलो रसगुल्ला तोल दो। “
“रामप्रसाद जी नमस्कार ! बहुत दिनों बाद दर्शन दिए। अभी देता हूँ और नमकीन में क्या बांध दूँ ? आज ही मारवाड़ी नमकीन में ड्राई फ्रूट्स वाली, कुछ-कुछ और सब कुछ के साथ साथ शाही मलका दालमोठ के साथ नवरत्न नमकीन का फ्रेश स्टॉक आया है। “
“शाही मलका दालमोठ , नवरत्न मिक्सचर और मूँग दाल के समोसे दे देना। “
सोहनलाल ने मन्नू से सारा सामान पैक करवा कर रामप्रसाद जी को दिया।
तभी रामप्रसाद जी को ख्याल आया, बोले ” सोहनलाल भाई, पाव भर मावा भी तोल दो। ”
सभी सामान का पैसा चुका कर रामप्रसाद जी घर की ओर चले। बड़े बाजार के पास चौराहे पर आनंदीलाल की नज़र रामप्रसाद जी पर पड़ी।
“रामप्रसाद जी, क्या हो गया जो सुबह-सुबह भागदौड़ मचा रखी है? इतने सारे सामानों को लेकर जा रहे हो , घर में कोई पार्टी वगैरह है क्या ? ” आनंदीलाल जी ने रामप्रसाद जी को बाजार से सामानों से लदाफदा लौटते देख ऊँची आवाज़ लगाकर पूछा
“पार्टी-वार्टी कुछ नहीं है, आनंदीलाल जी बस घर ज़रूरत का सामान है। अभी चलता हूँ, बाद में बात करता हूँ आपसे। आज मनोज आने वाला है होने वाली बहू के साथ। “रामप्रसाद जी ने जल्दी-जल्दी कदम बढ़ाते हुए उत्तर दिया
“अच्छा तभी मैं कहूँ !इतनी तैयारियां चल रही हैं दो- तीन दिनों से। “
” चलो अभी जाता हूँ। तुम भी कल घर आना मनोज और भावी बहू से मिलने । ” कहकर रामप्रसाद जी घर में चले गए
आनंदीलाल जी को छह-सात और परिचित मिल गए। वे बताने लगे कि रामप्रसाद जी का बेटा- होने वाली बहू आ रहे हैं जिस पर कुछ लोग हंसने लगे , कानाफूसी कर कहने लगे, “तभी सब लोग तैयारियां कर रहे हैं भावी बहू के सामने अपना इम्प्रेशन जमाना चाहते हैं।”
वहीँ कुछ लोगों का मत इससे अलग था कि रामप्रसाद जी अपने हिन्दुस्तान से भावी बहू का परिचय जोर-शोर से करा रहे हैं और यह ठीक भी है।
घर में भी बेटे- भावी बहू के लिए जोरो शोरों से सभी काम में लगे हैं। पत्नी सुधा जी रसोई में हैं, तरह- तरह के पकवानों की खुशबू बरबस ही आने जाने वालों को अपनी ओर आकर्षित कर रही है।
बेटी सुमन ड्राइंग रूम को व्यवस्थित करने में व्यस्त है। भाई के साथ-साथ होने वाली भाभी के आने की खुशी उसके चेहरे से ही झलक रही है।
रामप्रसाद जी बाजार से आये तो थोड़ा थक गए। सुमन से बोले,” सुमन एक गिलास पानी आओ। “
“पापा, अभी लाती हूँ। “
पानी लेकर सुमन पहुंची तो देखा रामप्रसाद जी बिस्तर पर टेक लककर अधलेटे से हैं।
” पापा, लगता है आप थक गए हैं। “
” हाँ बेटा , उम्र भी हो चली है। “
” क्या पापा ? पचपन साल में आपकी उम्र हो गयी है! अभी तो मेरे पापा सबसे ज्यादा हैंडसम लगते हैं। हैं ना मम्मी?” दरवाजे से अंदर आती मम्मी के गले में बाहें डालकर सुमन इठला कर बोली
” हाँ हाँ, बस पूरे शहर में हैंडसम तुम्हारे पापा हैं !”
” मम्मी और आप भी मधुबाला लगती हो!’
” चल हट नटखट, हमेशा शैतानी में ही दिमाग लगा रहता है। ” मम्मी ने लाड़ से सुमन के गाल पर चपत लगाई।
दरअसल मनोज उच्च शिक्षा प्राप्ति के लिए इंग्लैंड गया था फिर उसे वहीं बढ़िया जॉब मिल गयी। रामप्रसाद जी का सीना गर्व से चौड़ा हो गया था। छोटे शहर में अचानक से सभी उन्हें जानने लगे। कई अच्छे रिश्तों की बाढ़ आ गई। रामप्रसाद जी ने सभी को कहा कि मनोज की इच्छा से निर्णय लेंगे। मनोज से उन्होंने पूछा तो उसने बताया कि उसने साथ काम करने वाली अंग्रेज लड़की शर्लिन से प्यार हो गया है और शीघ्र ही उनसे मिलवाने के लिए भारत आएगा।
कुछ समय पश्चात् मनोज ने बताया कि उसे और शर्लिन को छुट्टियां मिल गईं हैं और वे लोग आने का टिकट करा रहे हैं। बुकिंग कराकर उसने बता दिया कि वे लोग अगले हफ्ते सोमवार को आ रहे हैं।
आज रविवार है , मनोज शर्लिन के साथ कल आने वाला है। उसी की तैयारियों में वे तीनों लगे हुए हैं।
अगले दिन एक टैक्सी सुबह घर के बाहर रुकी। मनोज और शर्लिन के इंतज़ार में रामप्रसाद जी, सुधा जी और सुमन तीनों खड़े थे।
उन तीनों को एक सुखद झटका लगा जब उन्होंने शर्लिन को देखा। शर्लिन उनकी उम्मीदों के विपरीत कुर्ती – चूड़ीदार पजामी में थी। आते ही उसने हाथ जोड़कर दोनों को नमस्कार किया फिर मनोज को माता -पिता के पैर छूते देख स्वयं भी झुककर पैर छुए। सुमन से गले लग कर आत्मीयता से मिली। सुधा जी को तो शर्लिन बिलकुल बेटी की तरह चुलबुली व हंसमुख लगी। सभी अंदर आ गए। रामप्रसाद जी तो शर्लिन से बात कर रहे थे , सुमन भी शर्लिन को इंग्लिश में बता रही थी। बस सुधा जी मुँह सिलकर बैठी थीं, वो भी बहुत कुछ बोलना चाह तो रही थीं परन्तु अंग्रेजी भाषा में पारंगत नहीं होने से थोड़ा बहुत ही बोल पाई और फिर चुप हो गईं और उन लोगों की बातें सुनने लगीं।
मनोज ने माँ से पहले की तरह चुहलबाज़ी शुरू कर दी। सुधा जी दो-एक बातें कर रसोई में चली गईं। शर्लिन और मनोज फ्रेश होकर जब तक आए , सुधा जी और सुमन ने नाश्ता लगा दिया।
नाश्ता रखकर सुधा जी रसोई में जाने को मुड़ी कि शर्लिन ने उनका हाथ पकड़कर कहा, ” मम्मीजी , आप भी बैठिये ब्रेकफास्ट साथ में करेंगे। ” ब्रिटिश एक्सेंट में बोली गयी हिंदी सुनकर वहां मौजूद सभी जन आश्चर्यचकित रह गए।
मनोज ने मम्मी का चेहरा पढ़ लिया।
वह बोला,” मम्मी,शर्लिन हिंदी में बात करना जानती है, हिंदी समझ लेती है, बस लिख नहीं पाती है। “
सभी के मुँह खुले के खुले रह गए।
मनोज ने आगे बताया,” शर्लिन ने हिंदी स्पीकिंग का कोर्स किया है। “
सुधा की तो खुशी का ठिकाना न रहा। कहां वो सोच रही थी कि शर्लिन से कैसे बात कर पायेगी क्योंकि अंग्रेजी ना वो बोल पाती है ना ही उनके पल्ले पड़ती है। बेटे मनोज को जी-जान से चाहती है तो उसकी पसंद सबकी पसंद है परन्तु यहां तो भाषा संबधित जो भारी-भरकम कठिनाई उन्हें आती वो भी शर्लिन की समझदारी से हवा हो गयी। पल भर में ही सुधा जी की सारी परेशानी का हल मिल गया। उन्हें चिंता इसी बात की तो थी कि शर्लिन परदेश की है तो वह उतनी आत्मीयता से उससे कैसे बात कर पाएंगी पर यहाँ तो भाषा का बैरियर यानि अवरोध ही समाप्त हो गया।
थोड़े दिनों बाद तो ऐसा होने लगा कि शर्लिन और सुधा की तो दिन भर बातें खत्म नहीं होती थी , सुधा जी ने उसे हिंदी भाषा में और परफेक्ट कर दिया है। शर्लिन ने होने वाली सासुमाँ को इंग्लिश में कामचलाऊ बोलना सीखा दिया। रोज़ एक-एक घंटा दोनों एक दूसरे की क्लास लिया करती हैं। मनोज देखकर बहुत खुश है कि उसकी पसंद को सबने खुले दिल से अपनाया है।
लेखिका की कलम से
दोस्तों, जहां दिल मिले होते हैं वहां भाषा बीच में बाधा नहीं रहती है। एकदम से जब कुछ अप्रत्याशित होता है वो भी सुखद तो ताउम्र याद रह जाता है जैसा सुधा जी के साथ हुआ। आप भी कुछ अपने ऐसे अनुभव जब आप आश्चर्यचकित रह गए हों, कमेंट सेक्शन में साझा करें। ऐसी ही मन को छूने वाली रचनाओं के लिए आप मुझे फॉलो भी कर सकते हैं। यदि आपको मेरी यह कहानी पसंद आई है तो कृपया लाइक, शेयर एवं कमेंट अवश्य कीजिए।
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धन्यवाद।
प्रियंका सक्सेना
( मौलिक व स्वरचित)
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(कहानी -4 )
nice story