दहेज – शुभ्रा बनर्जी: Moral stories in hindi

शिप्रा अपनी ननद की बेटी की शादी में आई थी।इकलौती मामी थी वह रिमझिम की।शिप्रा के बेटे से चार महीने छोटी थी रिमझिम।जन्म के बाद ननद की तबीयत खराब हो गई थी,तो शिप्रा ने अपना दूध पिलाया था उसे।सास हमेशा कहतीं”तुमने दूध पिलाया है ना,इसलिए ममता ज्यादा है।”पता नहीं ,पर सच तो यही था कि शिप्रा की लाड़ली थी रिमझिम।शादी को लेकर बहुत उत्साह था उसमें।ज़िद करके एक हफ्ते पहले ही बुलवा लिया था मामी को उसने।

स्टेशन पर ननदोई और भांजा आए थे लेने।ननदोई को ध्यान से देखा शिप्रा ने तो बेटी के ब्याह की चिंता की लकीरें माथे पर स्पष्ट झलक रही थीं।शिप्रा समझ सकती थी उनकी चिंता।घर पहुंची तो,रिमझिम लिपट गई आकर।मामी के आने से उसका चेहरा खिल गया था।दोपहर  के खाने के बाद रिमझिम ने अपनी शादी की तैयारियां दिखानी शुरू कीं।

हांथ में एक डायरी और पेन लेकर सामने बैठकर बोली”मामी,अच्छे से देख लो,जहां कुछ कम लगे बताना।ये देखो-बनारसी,सास की साड़ी,ननद की साड़ी——–“।शिप्रा खुश होकर बोली “अरे,तुमने तो जबरदस्त शॉपिंग की है।हर चीज लाजवाब है।कहीं कोई कमी नहीं है।वाह!!!!मानना पड़ेगा तुम्हें।”

उसने खुश होकर कहा”थैंक यू मामी।तुम्हारा टेस्ट ज़रा हट के है।तुम्हें अच्छा लगा है ,मतलब अच्छा ही होगा।मामी आज शाम को मेरे ऑफिस के सहकर्मी आ रहें हैं सामान देखने।तुम मम्मी के साथ मिलकर कोई अच्छी सी डिश बना देना।”शिप्रा ने सहमति जताई।इतनी जल्दी उसने सारा सामान तो देखा नहीं था।

सोचा,शाम को सबके साथ देख लेगी।रिमझिम अपने पापा के साथ बाकी की तैयारियों पर चर्चा कर रही थी।शिप्रा को खुद की बेटी को शादी की भी चिंता होने लगी।इतनी तैयारी कैसे करेगी वह।अब लड़का देखना शुरू करना पड़ेगा।

ननद का बेटा एक कोने में गुमसुम खड़ा था।रिमझिम से चार साल छोटा था उम्र में,पर परिपक्व ज्यादा था।उसे गुमसुम देखकर शिप्रा को लगा कि, दीदी के ससुराल चले जाने का सोचकर दुखी होगा।शाम को रिमझिम के ऑफिस की पूरी टीम पहुंची। रिमझिम खुश होकर अपनी शादी का  सामान दिखा रही थी।

ननद भी सबका स्वागत कर रही थी उत्साहित होकर।ननद का बेटा भाग-भाग कर सबकी खातिर कर रहा था।सारा सामान देखकर तो,शिप्रा की आंखें फटी की फटी रह गई।इतना दहेज।पूरा बाजार ही मौजूद हैं यहां तो।रात को छत पर टहलते हुए शिप्रा ने ननद के बेटे रिषभ से हॉल,बैंड, आतिशबाज़ी और टैंट के बारे में पूछा,तो उसने कहा”मामी,सब हो गया है।एडवांस भी दे दिया है।बस दो दिन पहले टैंट भी लग जाएगा।”

शिप्रा ने उसका उत्साह बढ़ाने के लिए कहा-रिषभ,तुमने बहुत बढ़िया इंतजाम किया है।देखना  तुम्हारी बीवी भी बहुत सुंदर आएगी।प्रीति बहुत खुश है। रुपए -पैसों की कोई मुसीबत तो नहीं है,बेटा?”

रिषभ दुखी होकर बोला”नहीं मामीजी।सब इंतजाम हो गया है।फूल और मिठाई का बस पक्का करना है।दीदी ने एक -एक सामान अपनी पसंद का लिया है। मम्मी के साथ पिछले चार महीनों से शॉपिंग चल रही उसकी।”रिषभ के स्वर में एक मौन दर्द था,जिसे शिप्रा चाहकर भी अनसुना ना कर सकी।

उसने भी सोचा क्यों यह सब पूछ रही है?अगले दिन कॉलोनी वालों को न्यौता दे दिया गया था दहेज का सामान देखने का।चाय -नाश्ते का इंतजाम सुबह से ही कर रही थी,ननद।शाम को कॉलोनी की महिलाओं ने आकर रिमझिम के शादी की बधाई दी, गाने गाए।शिप्रा का ननद ने परिचय करवाया।

अचानक एक महिला ने ननद से पूछा”कैश कितना दे रहें हैं आप लोग?”ननद तुनककर बोलीं”लड़के वालों ने कुछ भी नहीं मांगा है।हमारे यहां कैश नहीं मांगते।”उस महिला ने तब भुन्नाते हुए कहा”अच्छा,तो इतना सारा सामान बिन मांगें ही दे रहीं हैं आप?सुई से लेकर सिलाई मशीन कुछ भी तो नहीं छोड़ा आपने। हमने सोचा जरूर दवाब होगा वहां से।”पार्टी खत्म होने पर शिप्रा ने भी यही सवाल किया ननद से। उसने हंसकर कहा”भाभी,

आपको तो पता है, कितनी शौकीन हैं रिमझिम।हर चीज का शौक है।शादी को लेकर बचपन से सपने देखती थी।अब एक बार ही तो देना है।जिस चीज पर हांथ रखा उसने,मैंने दिलवा दिया।”अपनी मां की बात बीच में ही काटकर रिमझिम बोली”मामी, ससुराल में अगर इज्जत चाहिए,तो खूब सारा दहेज लेकर जाना चाहिए।

कोई कुछ बोले,उससे पहले ही उनका मुंह बंद कर दो।ये देखो ना,सास के लिए सबसे मंहगी साड़ी ली है मैंने।व्यवहार में अगर कान का या अंगूठी मिली,तो वह भी रख देंगे।बस!मुंह नहीं खोल पाएंगी‌।नुक़्स नहीं निकाल पाएंगी।ननद के लिए भी पूरा सूटकेस भरकर सामान खरीदा है मैंने।”

शिप्रा अचंभित हो गई यह सोचकर कि आजकल बेटियों को अपनी शादी का दहेज इतना प्रिय है।तभी रिषभ को आता देखकर,ननद ने एक डिबिया छिपा दी।रिषभ मां से रुपये लेकर पिता के साथ शायद बाहर जा रहा था।उसके जाते ही रिमझिम ने मां के हांथ से लेकर वह डिबिया शिप्रा को दिखाई। उफ्फ़!!!इतना सुंदर और मंहगा ब्रेसलेट।शिप्रा का मुंह खुला का खुला रह गया। रिमझिम ने शिप्रा से लड़ियाते हुए पूछा”कहो मामी,कैसा लगा यह ब्रेसलेट?है ना खूबसूरत?तुम्हारे दामाद की फैलती बंद हो जाएगी।”

शिप्रा सचमुच फैन हो रही थी रिमझिम की।इतनी छोटी,पर इतनी बुद्धि।चेन के बदले में यह सुंदर ब्रेसलेट अतुलनीय है।ननद ने रहस्योद्घाटन किया”चेन तो हमने बनवाया ही है,सगाई के लिए।यह ब्रेसलेट रिमझिम देगी अपनी तरफ से गिफ्ट किशोर(दामाद)को। अपनी सैलरी के पैसे से खरीदी है इसने।

“शिप्रा रिमझिम की बुद्धिमत्ता की कायल हो चुकी थी।अगले दिन सुबह-सुबह घर पर एक सज्जन से बात कर रहे थे ननदोई।बेटा रिषभ नाराज सा खड़ा था।शिप्रा ने देखा,एक बड़ा सा पैकेट उस सज्जन ने ननदोई के हांथ में थमाया,बदले में कुछ कागजात पर दस्तखत करवाए।ननद से इस बारे में पूछना उचित नहीं लगा।

संगीत का आयोजन  एक बड़े से मैरिज हॉल में किया गया था।सगाई,हल्दी,शादी यहीं से होनी थी।

संगीत के बीच में ही रिषभ ने अपनी मां को बुलाया।काफी देर तक जब वह लौटकर नहीं आई तो शिप्रा को चिंता हुई।बगल के कमरे से रिषभ और ननद के बहस की आवाज आ रही थी।रिषभ के पापा(ननदोई) चुपचाप बैठे थे कुर्सी पर।शिप्रा को देखकर ननद ने बेटे को चुप रहने का इशारा किया तो वह शिप्रा को खींचकर अंदर ले आया और बोला”मामी,आप ही समझाओ मम्मी को।

पानी सर से ऊपर चला गया है अब।हर दिन नई-नई फरमाइशों से तंग आ चुकें हैं मैं और पापा।दीदी की बेफिजूल ख्वाहिशों को तूल दे -देकर मम्मी ने इतना पैसा खर्च करवा दिया है कि, अब पापा हार गएं हैं।मैं तो छोटा हूं।जब भी दीदी को या मम्मी से कुछ कहता हूं,दोनों चुप करा देतें हैं।

मामी,दीदी के ससुराल वाले इतने सभ्य और संस्कारी हैं कि शादी में कुछ भी नहीं मांगा।जीजाजी ने मम्मी और पापा से साफ-साफ कह दिया था कि मुझे सिर्फ आपकी बेटी चाहिए।फिर भी अनावश्यक दिखावे के चक्कर में लाखों रुपए बर्बाद हो चुकें हैं पापा के।अभी पूरी शादी बची है।”रिषभ हांफ रहा था बोलते-बोलते।पिछले कई दिनों से इसी तनाव में था शायद वह,तभी खोया-खोया लग रहा था।

शिप्रा ने ननद की ओर देखा तो वह बेटी की तरफदारी करती हुई बोली”अब क्या करूं मैं भाभी?खाना बनाना पसंद नहीं उसे बचपन से,तो किचन के सारे गैजेट्स देना पड़ा।रोटी कभी गोल बिलती नहीं,तो रोटी मेकर खरीदी है।सजने संवरने का भी तो कितना शौक है उसे।

मैंचिंग किए बिना कहां कोई ड्रेस पहनती है।ससुराल वालों की जली-कटी सुन थोड़े पाएगी।किशोर और उसके पेरेंट्स ने अभी तो कह दिया कुछ नहीं चाहिए,बाद में बात सुनाएंगे तो क्या वह रुक पाएगी वहां? बहुत स्वाभिमानी है मेरी बेटी।रिषभ जबरदस्ती बात का बतंगड़ बना रहा।बेटी की शादी तो एक बार ही होती है,थोड़ा बहुत उधार तो होगा ही।”

ननदोई जो अभी तक चुप थे, चिल्लाकर बोले”अपनी बेटी को कभी घर के काम सिखाया है तुमने?कभी बताया है कि घर खर्च कैसे पूरा होता है?सुबह से उसकी आया बन आगे -पीछे घूमती रही तुम।अब क्यों डर रही हो बेटी को ससुराल भेजने से।लड़कियां कितनी भी पढ़ी-लिखी हों ,

नौकरीपेशा हों, आधुनिक हों, ससुराल में कुछ काम उन्हीं को शोभा देते हैं।तुम्हें क्या लगता है,बेटी को भर-भरकर सामान दे देने से उसके दोष ढंक जाएंगे।आज सिर्फ शाम के स्नैक्स और रात के डिनर में पता भी है उसने कितना पैसा लगा दिया है?दो जगह से बीस टका ब्याज पर उधार लिया है।अब आगे से कोई और नहीं देगा,ना ही मैं चुंकि पाऊंगा।

अरे,हम कोई बिड़ला,टाटा और अंबानी नहीं हैं।उनका भाग्य और है।अपनी बेटी की हर जायज़ -नाजायज मांग पूरी कर-करके,तुमने खुद के पैरों में कुल्हाड़ी मारी है।मैं अब और बर्दाश्त नहीं कर सकता।भाभी की भी तो बेटी है।देखा है ना तुमने,बचपन से घर के सारे काम करती है।पढ़ाई में होशियार है, बुद्धिमान भी है। तुम्हारी बेटी की तरह नहीं।”

शिप्रा वास्तव में आज गर्वित हो रही थी,अपनी बेटी पर।शादी अभी हुई नहीं थी,पर शिप्रा अपनी परवरिश से निश्चिंत थी।

ये जो ससुराल वालों को हम दोष देते हैं दहेज मांगने के लिए,हर समय यह सही नहीं होता। बेटों की सोच अब बदल रही है,दहेज के सख़्त ख़िलाफ़ हो रहें हैं।दामाद अपनी ससुराल का सम्मान करना सीख रहें हैं अब।

आजकल लड़कियां दहेज चाहती है, इसलिए नहीं कि उन्हें मोह है दहेज का, बल्कि इसलिए कि ससुराल‌ वालों को दहेज के भार में जिंदगी भर दबा सकें। मध्यमवर्गीय परिवार से होकर बड़े-बड़े सैलिब्रिटीज की नकल करना फैशन बन गया है। ताम-झाम और चकाचौंध वाली शादी का तमाशा दिखाकर या तो ऐसी बेटियां अपना तमाशा बनातीं हैं ,या अपने माता पिता का।

दहेज प्रथा समाप्त तभी हो सकती है ,जब बेटियां “ना “कहें दहेज के लिए।आज शिप्रा की ननद की बेटे का विद्रोह देखकर शिप्रा को बड़ी सीख मिली।अपनी बेटियों को दहेज में अच्छे संस्कार व ससुराल वालों के प्रति आदर का भाव रखना सिखाना ही पर्याप्त दहेज है।बेटियों की कमी छिपाने के लिए “दहेज”का दोष ससुराल वालों पर थोपना सरासर पाप है।बेटी यदि अपने पिता की आर्थिक स्थिति नहीं समझ सकती तो,दामाद से उम्मीद करना यथोचित नहीं।

शुभ्रा बनर्जी

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