धिक्कार है ऐसे बेटो पर – अर्चना खंडेलवाल : Moral stories in hindi

भारती जी के आंसू लगातार बह रहे थे, अस्पताल के बाहर अकेले बैठी उनकी सिसकियां रूकने का नाम नहीं ले रही थी, बूढ़ी आंखों पर लगा चश्मा भीग रहा था, जिसे उतारकर वो अपनी  साड़ी के पल्लू से बार-बार पौंछ रही थी, अंदर उनके पति कैलाश जी का ऑपरेशन चल रहा था और वो उनकी सांसों के लिए लगातार अपने इष्ट देव से प्रार्थना किये जा रही थी, सुबह से कुछ खाया भी नहीं था, लेकिन उनके मुंह में दो निवाला देने वाला, उनके आंसू पौछने वाला, उन्हें सहारा देने वाला जब उनके अपने बेटे ही पराये हो गये तो वो किस रिश्तेदार से आस लगाती।

कैलाश जी दिल की बीमारी से लगातार जुझ रहे थे, कल रात ही उन्हें अचानक दिल का दौरा पड़ा, वो पडौसी की सहायता से उन्हें अस्पताल ले आई, वो सब भी अपने काम धंधे पर ये कहकर लौट गये कि मांजी अपने बेटो को बुला लीजिए, उन्होंने मोबाइल से

फोन किया  पर फोन बार-बार काटा जा रहा था, तो उन्होंने फिर से किया नहीं।

कुछ घंटे बाद डॉक्टर आये और उन्होंने हाथ खड़े कर दिए, सालों का साथ एक पल में छूट गया, पति के जाने पर एक पत्नी को कितना दर्द होता है, दुख होता है वो शब्दों में लिखना संभव नहीं है, आज वो अकेली ही इस दुख से गुजर रही थी।

उनके घर तक शव पहुंचा दिया, और पड़ौसी उनके बेटो के आने का इंतजार करने लगे,  एक बेटा तो घंटे दो घंटे की ही दूरी पर रहता था और दूसरा विदेश रहता था, सुबह से शाम हो आई पर पास में रह रहा बेटे का कहीं अता-पता नहीं था, उनकी बूढ़ी आंखें भी थक गई थी, आखिर उन्होंने ही अपने पति को मुखाग्नि देने का निर्णय लिया।

तभी सब रिश्तेदार और पड़ौसी बातें बनाने लगे, जब बेटे है तो बेटे ही मुखाग्नि देगे, किसी पत्नी को तो पति को मुखाग्नि देते हुए नहीं सुना ना ही देखा है, इधर भारती जी पुरानी बातें  याद कर करके रोए जा रही थी।

परिवार की इकलौती बेटी भारती अल्हड़ उम्र में कैलाश जी के साथ ब्याह दी गई थी, ससुराल में सबका बहुत प्यार मिला, भारती ने अपने काम और व्यवहार से सबका दिल जीत लिया था, कैलाश जी का घर उन्होंने पूरी समझदारी के साथ चलाया था, समय के साथ वो दो बेटों की मां बन गई थी।

दो -दो बेटे की मां है बुढ़ापे में राज करेगी, सभी भारती जी के भाग्य की सराहना करते थे, उन्होंने भी अपने 

बड़ा बेटा विकास पढ़ाई में होशियार था, इंजीनियरिंग करके वो विदेश में ही रहने लगा था और वहीं की लड़की से उसने शादी कर ली थी।

छोटा बेटा सुरेश पढ़ाई में सामान्य था, उसने अपनी पढ़ाई पूरी करके व्यापार में समय दिया और उसका व्यापार चारों ओर फैलने लगा था, और वो भी अपने परिवार को लेकर बड़े शहर में बस गया,  वो अधिकांश बिजनस टूर पर रहता था, भारती जी और कैलाश जी घर में अकेले रह गये थे।

दोनों बेटे अपने परिवार के साथ सुखी जीवन व्यतीत कर रहे थे, पर वो दोनों ही अपने माता-पिता को अपने पास में नहीं बुलाते थे, उनकी पत्नियां दोनों की जिम्मेदारी नहीं उठाना चाहती थी।

विकास का कहना था कि यहां विदेश में हमारा रहना ही मुश्किल है, इतनी महंगाई है तो हम तो मां -बाबूजी को अपने पास नहीं रख सकते हैं, उधर सुरेश का कहना था कि जब बड़े भैया ही जिम्मेदारी नहीं ले रहे है तो मै क्यों मां -बाबूजी की सेवा करूं? दोनों आर्थिक रूप से भी उन्हें कोई सहायता नहीं देते थे, दो बेटो की मां राज करेगी ये बातें याद आते ही भारती जी की आंखें भीग आती थी।

आखिर भारती जी ने ही अपने पति को मुखाग्नि दी और पति की तेरहवीं चल रही थी कि अचानक देखा दोनों बेटे सामने खड़े थे, उनकी नजरें अपनी बहू और पोते-पोतियों को ढूंढ रही थी, पर वो दोनों अकेले ही आये थे।

भारती जी एकदम पत्थर हो गई, उनके आंसू भी सूख चुके थे, वो एकदम तेज आवाज में बोली, ” धिक्कार है तुम दोनों पर, जो अपने पिता की बीमारी में उन्हें संभालने नहीं आये, उनकी मृत्यु हो गई, अंतिम दर्शन करने नहीं आये, अपनी मां के आंसू पौछने नहीं आये तो अब किसलिए आये हो? तुम दोनों वही खड़े रहो, अंदर कदम रखने की जरूरत नहीं है।”

“मां, मै तो विदेश में था, कैसे आता? अब पिताजी तो जा चुके थे, तब आता या अब आया उससे क्या फर्क पड़ गया है, मैंने सोचा सारे काम एक साथ ही निपटा आऊंगा, विकास ने कहा।

“मां,  बड़े भैया नहीं आये क्योंकि उनकी मजबूरी थी तो मेरी भी मजबूरी थी, बहुत जरूरी बिजनस मीटिंग थी, मै नहीं जाता तो लाखों का नुक़सान हो जाता, अब तो आ गया हूं, सुरेश भावशून्य होकर बोला।”

“धिक्कार है मेरी कोख पर जो मैंने तुम जैसे नालायकों को जन्म दिया, विकास तू इतना भी दूर नहीं रहता कि एक दिन में आ नहीं सके और सुरेश तू  पास में भी रहकर नहीं आया तो अब तुम दोनों क्या लेने आये हो? अब तो सब काम खत्म हो चुके हैं, अब मुझे तुम दोनों की जरूरत नहीं है, भारती जी ने उसी तेज स्वर में कहा।

मां, हम दोनो जायदाद का बंटवारा लेने आये है, आज सभी रिश्तेदार भी है, इनके सामने ही फैसला हो जायेगा, बाद में कुछ ऊंच-नीच हो गई तो सब बातें बनायेंगे, विकास भैया तो चले जायेंगे, मुझे ही सुनना पड़ेगा, सुरेश बोला।

“कौनसी जायदाद? कौनसा बंटवारा? यहां कुछ नहीं हो रहा, भारती जी बोली।

“मां, पिताजी के खेत थे और ये घर भी है, हमें दो दिन पहले ही पता चला है कि यहां थोड़े किलोमीटर दूर एयरपोर्ट बन रहा है और हमारा घर और खेत बीच में आ रहा है, हमें सरकार से चौगुनी धनराशि मिलेगी, आप अकेले कैसे इतने सारे करोड़ों रुपए संभालोगी, आपको हमारी जरूरत पड़ेगी, विकास बोला।

ये सुनकर भारती जी हंसने लगी, “अगर यहां पर एयरपोर्ट नहीं आता तो तुम दोनों तो आते ही नहीं,

मैंने अपने बीमार पति के शव को अकेले संभाल लिया तो मै कुछ भी संभाल सकती हूं, मैंने अपना बुढ़ापा अकेले संभाल लिया तो मै कुछ भी कर सकती हूं, तुम दोनों चले जाओ, मुझे तुम्हारी कोई जरूरत नहीं है, ये घर, ये खेत, करोड़ों रूपए मै खुद संभाल लूंगी, मैं ये सब वृद्धाश्रम में दान करके जाऊंगी क्योंकि तुम जैसे बेटे जिस माता-पिता के हो जाएं तो उनका अंतिम सहारा वृद्धाश्रम ही तो होता है, और उन्होंने घर का दरवाजा बंद कर दिया, दोनों बेटे मां का ये रूप देखकर दंग रह गए और चुपचाप चले गए।

अर्चना खंडेलवाल

मौलिक अप्रकाशित रचना

#धिक्कार

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