दुखवा मैं कासे कहूं – संध्या त्रिपाठी : Moral stories in hindi

क्या तुम मेरी मदद कर सकते हो सिद्धांत….?? क्या बात है समीक्षा…. फिर तुम कहीं वही घिसे पीटे राग तो नहीं अलाप रही हो ना …..मम्मी जी ये …मम्मी जी वो …..

तो मैं  साफ साफ बता दूं …इस मामले में मैं तुम्हारी कोई मदद नहीं कर सकता ….तुम्हें खुद सामने आकर अपनी समस्याओं को निपटाना पड़ेगा…..!

पहले मेरी बात भी सुनोगे या तुम भी वही घिसा-पिटा जवाब दोगे…. जानती हूं ये मेरा ससुराल है… मेरा घर है ….और मम्मी जी भी बुरी नहीं है मैं उनको गलत भी नही बोल रही हूँ …….बस वो क्या है ना ….मुझे अपनी बात रखने की पूरी स्वतंत्रता नहीं है…..! आदर सम्मान करना अपनी जगह है…. पर अपने विचारों की अभिव्यक्ति अपने ही घर में करने में संकोच……..

     मम्मी जी ने जो कह दिया या जो मान लिया बस वही सही होगा… अरे यार मैं भी तो…. मेरे भी अपने विचार हैं अपनी सोच है….. सिर्फ हां में हां मिलाकर कब तक उनको संतुष्ट करती रहूंगी….

  मुझे लग रहा है मेरे स्वयं का अस्तित्व …मम्मी जी की प्रतिछाया बन कर रह गई है……

किसी भी विषय पर मेरी अपनी धारणाएं , अपना दृष्टिकोण अपना नजरिया होता है जो कभी-कभी मम्मी जी के विचारों से मेल नहीं खाता… पर क्या है ना सिद्धांत मम्मी जी ने मुझे इतना स्पेस ही नहीं दिया कि मैं आसानी से अपनी बात रख सकूं या उन्हें समझा सकूं… बस इसी मामले में थोड़ी सी स्वतंत्रता चाहिए थी..।

पर तुम चिंता मत करो सिद्धांत …..मैंने एक युक्ति खोज निकाली है…. चहकते हुए समीक्षा ने सस्पेंस जारी रखा….. और खुश होती हुई बोली….. मैंने सोचा ये रोज की तू तू मैं मैं से बेहतर कोई उपाय सोचा जाए …और वो उपाय मुझे मिल भी गया…..

अच्छा तो मोहतरमा ये युक्ति…ये उपाय… हमें भी बताया जाए…. जहां हींग लगे न फिटकरी और माल चोखा हो जाए….. बिना बोले तुम्हारे विचार मम्मी तक पहुंच भी जाए और तुम दोनों में कुछ मतभेद भी ना हो ……सिद्धांत ने भी मजाकिये अंदाज में पूछ ही लिया…..।

जानते हो सिद्धांत…. मैंने बेटियाँ. in में अपने विचारों को कहानी का रूप देकर पात्रों और चरित्रों के नाम में कुछ फेरबदल कर…… अपने ही घर की कहानी लिख दी है…. बस अब मम्मी जी उसे पढ़ भर लें….. आपको ना सिध्दांत …यहीं पर मेरी मदद करनी है कि ….. किसी तरह मम्मी जी मेरे इस कहानी को पढ़ ले….!

अरे इतनी सी बात है…. हो जाएगा ….मम्मी जी पढ़ेगीं ….जरूर पढ़ेगीं….. सिद्धांत थम्सअप दिखाते हुए…. डन कहकर बाहर निकल गया….।

बात आई गई और खत्म हो गई…

     अगले ही दिन बातों ही बातों में मम्मी जी ने कहा… जानती हो समीक्षा…. मैंने कल एक कहानी पढ़ी….. ” दुखवा कासे कहूं ” ….जिसमें आरवी का किरदार गजब का सशक्त किरदार था….  और कहानी लिखने का तरीका भी गजब का था…..ये सुनते ही समीक्षा दंग रह गई अरे ये तो मम्मी जी मेरी ही कहानी की बात कर रही हैं…..

लगता है मम्मी जी ने मेरी कहानी पढ़ ली है…

और आरवी के किरदार को सशक्त बताकर प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से मम्मी जी ने मेरी और मेरे लेखनी की तारीफ कर ही दी…..।

     कौतूहल वश समीक्षा ने पूछ लिया …..आपने कहानी कहां पढ़ी मम्मी जी …..मुझे बताइए ना… मैं भी पढ़ूगी…….

        मम्मी जी… मम्मी जी है भाई….. उन्होंने भी आसानी से थोड़ी ना बताया ……वो तो मुस्कुराकर बस इतना ही बोली….

तुमने तो कहानी गढ़ भी लिया है और पढ़ भी लिया है ….अब आगे मेरी कहानी पढ़ना….. बड़े इत्मीनान से मम्मी जी ने कहा….

मम्मी जी आपकी कहानी…?

  कौतूहल वश जैसे ही मैंने बेटियाँ. in खोला… ….मम्मी जी की कहानी…. कुछ देर पहले ही प्रकाशित हुई थी ….

उनकी पहली कहानी…..” दुखवा माँ से कहो “…….

मम्मी जी ने बड़े अच्छे ढंग से कहानी का रूप देखकर अपने मन की व्यथा का चित्रण किया था…… मैंने तो अपनी कहानी में किरदार का नाम भी बदल दिया था ….पर मम्मी जी ने तो नायिका का नाम भी समीक्षा ही रखा था….।

वो सारी बातें जो मैंने कहानी के माध्यम से कहना चाहा था ……मम्मी जी ने भी बड़े स्वाभाविक ढंग से कहानी के माध्यम से अपने दिल की बात परत दर परत खोल कर रख दी थी…. मेरे हर सवाल का जवाब बड़ी बेबाकी से और बड़ी सच्चाई से कहानी के माध्यम से उन्होंने समझाई थी….।

मोबाइल हाथ में लिए मम्मी जी के रूम में दाखिल हुई उनके हाथ में भी मोबाइल था… वो बेटियाँ. in पर कहानी पढ़ रही थी ……..मम्मी जी आप बहुत अच्छा लिखती हैं ……समीक्षा ने संकोचाते हुए कहा …..

सास किसकी हूँ…. मम्मी जी ने भी मुस्कुराते हुए जवाब दिया….।

दोनों को अपने अपने सवालों के जवाब सुंदर तरीके से मिल गए थे ….अभी तक जो एक दूसरे के खूबियों के बारे में अनभिज्ञ थे ….अब उनकी काबिलियत से भी रूबरू हो गए…..!

   सिद्धांत के घर आते ही समीक्षा ने पूछा ….थैंक्स सिद्धांत ……पर तुमने इतनी जल्दी में ये सब कैसे किया…. अरे वो तुम्हारी ही सास हैं….. जब बहू अपना टैलेंट दिखा रही हो तो सास पीछे कैसे रह सकती हैं…..!

बस उन्हें बताने भर की तो देर थी……

फिर क्या था… वर्षों से छूटी ये लिखने की कला…. एक बार फिर माँ को इसका अवसर मिल गया….

सास बहू दोनों ने तो बेटियाँ.in को धन्यवाद दिया ही… सिद्धांत ने भी इसकी भरपूर सराहना की ….जिन्होंने घर में शांति बनाने में व एक दूसरे को समझने में महत्वपूर्ण योगदान दिया….।

साथियों… मेरे विचार पर आपके प्रतिक्रिया का इंतजार रहेगा….!

( स्वरचित मौलिक एवं सर्वाधिकार  सुरक्षित रचना )

संध्या त्रिपाठी

2 thoughts on “दुखवा मैं कासे कहूं – संध्या त्रिपाठी : Moral stories in hindi”

  1. बहुत ही सुन्दर सन्देश उत्तम विचार प्रस्तुति करने की पृष्ठभूमि पर अपने विचारों का आदान-प्रदान करते हुए सुखी गृहस्थ जीवन व्यतीत करें 🙏

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