क्या यही होता है बुढ़ापा – मंजू ओमर: Moral Stories in Hindi

मांजी , मम्मी जी लो खाना खा लो सुमित्रा जी के सामने खाने की थाली रखते हुए ममता बोली। ममता सुमित्रा जी के घर पर आठ साल से बर्तन धोने का काम करती है ‌। सुमित्रा जी ने जैसे ही रोटी का निवाला तोड़ा आंख से आंसू आ गए ।ये क्या मांजी तुम रोओ नहीं मैं रखूंगी आपका ख्याल कोई नहीं रख रहा तो अब तो तुम यहीं रहो कहीं मत जाओ।

तुम तो हमारी मां जैसी ही हो ।आज का जमाना ऐसा ही है जिसको पैदा किया ,पाला पोसा पढ़ाया लिखाया वो आज मां को रखने को तैयार नहीं है।और एक तू है बिना लालच के सब करने को तैयार हैं सुमित्रा जी बोली । बुढ़ापे में क्या इतना लाचार हो जाता है इंसान सुना ही था अभी तक आज देख भी लिया।

                        सुमित्रा और रामकुमार जी का छोटा सा परिवार था । पति पत्नी और घर में बूढ़ी सांस थी जब ब्याह कर आई थी। उसके बाद घर दो छोटे बच्चों से भर गया । विवाह के सात साल बाद सांस गुजर गई थीं ।उस समय सुमित्रा के बच्चों की उम्र साढ़े तीन साल के आसपास थी । पति रामकुमार एक फैक्ट्री में नौकरी करते थे घर में थोड़ी पैसे की दिक्कत थी । फिर भी सुमित्रा जी ने अपनी लगन और मेहनत से घर की गाड़ी सुचारू रूप से चलाई ।

बच्चों को अच्छा पढ़ाया लिखाया, सोचती थी बच्चों की शिक्षा दिक्षा में कोई कमी न रखूंगी।और बच्चों ने किया भी बेटे नै आईं आईं टी निकाला और बेटी ने एम बीए किया । इसी बीच बेटी को कुछ प्राब्लम आ गई तो उसका इलाज भी करवाया । धीरे-धीरे किराए का मकान छोड़ कर एक छोटा सा अपना घर बनाया ।

इस बीच अपने लिए कभी सुमित्रा जी ने नहीं सोचा हालांकि ऐसी उम्र थी पहनने ओढ़ने सब चीजों का शौक होता है । अपने को घर गृहस्थी में खपाते खपाते कब बच्चों की उम्र शादी की हों गई पता ही न चला। उम्र के पांच दशक से ज्यादा पार हो गये थे और साथ ही बुढ़ापा भी दस्तक दे रहा था।घर की स्थिति थोड़ी ठीक होने लगी थी दोनों बच्चे नौकरी करने लगे थे ।

                     बेटे की शादी तय हो गई थी लेकिन उसी समय करोना आ गया । बेटे की शादी तो हो गई लेकिन उसी समय सुमित्रा जी पर तो जैसे पहाड़ टूट पड़ा । बेटी बेटे की शादी में आई थी और यहां आकर करोना संक्रमित हो गई और चार दिन बाद उसकी मृत्यु हो गई। अचानक आए इस हादसे से सुमित्रा और रामकुमार जी बिल्कुल टूट गये ।

संभल ही नहीं पा रहे थे । रामकुमार जी बेटी को बहुत चाहते थे और बेटी भी पापा को बहुत प्यार करती थी । बेटी के ग़म में रामकुमार जी गुमशुम से रहने लगे । चुपचाप से बैठे रहते बेटी के ग़म में घुले जा रहे थे ।सोंचते बुढ़ापे में भगवान को इतना बड़ा ग़म देना जरूरी था , जाने की उम्र तो मेरी हो रही थी और बेटी चली गई।

                 दुःख तो बेटी का सुमित्रा जी को भी बहुत था लेकिन घर की महिलाओं पर बहुत सी जिम्मेदारी यां होती है सो थोड़ा घर की देखभाल में और रामकुमार जी को देखने में उनका समय निकल जाता था । सुमित्रा जी ने सोचा चलों बहू आ गई है तो बेटी जैसी ही है हम लोगों का दर्द समझेगी अपनी बेटी को दी है हमने।पर उसको कोई फर्क नहीं पड़ता था ।बेटा बहू दिल्ली में रहते थे।और सुमित्रा जी और रामकुमार अपने घर में ।बहू को सास-ससुर के पास कुछ दिन भी रहना अच्छा नहीं लगता था।

               सुमित्रा जी बहुत जुझारू किस्म की महिला थी । सारे काम कै सलीके से करने वाली पढ़ी लिखी सलीके से रहने वाली ,घर को काफी अच्छे से मैनेज कर रखा था बहुत होशियार और हर काम को बड़ी तल्लीनता से करने वाली थी । पहले तो कोई काम वाली भी नहीं लगा रखी थी अभी बेटे की शादी के समय से ममता को बर्तन धोने को लगाया था

बाकी सारा काम वो खुद ही करती थी। बहूं सुमित्रा जी को पता नहीं क्यों पसंद नहीं करती थी जबकि सुमित्रा जी का स्वभाव बहुत अच्छा था काफी मिलन सार स्वभाव था कभी किसी से लड़ाई झगडे की तो बात ही नहीं थी। ममता कहती थी इतनी सुघड़ और इतना काम करने वाली सांस पाकर भी बहूं रानी तुमसे खुश नहीं रहती मांजी।

बहू तो तुम्हें आजतक कभी कुछ बना कर ही नहीं देती तुम्हीं सबका बनाती रहती हो । सुमित्रा बोलती अरे क्या हो गया हम तो सबको प्यार से रखना चाहते हैं पर वो रहना ही नहीं चाहती तो क्या करें । सबका बनाती हूं तो बहू के लिए भी बना दिया तो क्या हो गया। ममता बोली अरे तुम्हारा भी तो बुढ़ापा आ रहा है कब तक करती रहोगी ,अरे छोड़ो ममता क्या बेकार की बात लेकर बैठ गई हो।

               बेटी के ग़म में घुलते घुलते तीन साल बाद रामकुमार जी को हार्ट अटैक आ गया और सुमित्रा जी को अकेले छोड़ कर चले गए। सुमित्रा जी बिल्कुल अकेली हो गई।घर खाने को दौड़ने लगा । सारे काम रामकुमार जी के हो जाने के बाद बेटे बहू दिल्ली चले गए । सुमित्रा जी को अकेले छोड़ गए।

                     करीब महीने भर बाद एक दिन बेटे से बात करते करते सुमित्रा जी रो पड़ी ।घर खाने को दौड़ता है बेटा क्या करें अब तो अकेले खाना बनाने का भी मन नहीं करता। सुमित्रा जी ने तब भी नहीं कहा बेटे से कि मुझे अपने साथ ले चलो क्यों कि वो बहू का रवैया जानती थी।

                       दीवाली में जब बेटा बहू घर आए तो सुमित्रा की उदासी देखकर बेटा कहने लगा चलो मम्मी कुछ दिन हमारे साथ रह लो तो थोड़ा मन बदल जाएगा। सुमित्रा जी ने सोचा अब कोई तो बचा नहीं है अब किसके सहारे जिंदगी बीतेगी जो कुछ है बेटा ही है उन्होंने जाने का मन बना लिया।

                 दूसरे दिन सुबह जब सुमित्रा जी जगी तो देखा चाय वाय का कोई इंतजाम नहीं है बेटा बहू सोने में लगे ।घर पर थे नहीं तो दूध भी नहीं था। रविवार था तो ग्यारह बजे तक सोते रहे ।जब बहू बेटा उठे तो सुमित्रा जी ने कहा सुबह से उठी हूं न चाय का कुछ पता है न नाश्ता का ।मैं डायबिटिक हूं तो कुछ चाहिए होता है सुबह से खाने को । इतनी सुबह-सुबह कौन खाता है मम्मी ,अरे बारह बज रहे हें ऐ सुबह सुबह है ।अब यहां तो ऐसे ही चलता है मम्मी । अच्छा दूध वगैरह मंगाकर रख दें तो मैं बना लिया करूंगी।

                   दूसरे दिन जब सुमित्रा जी रसोई में गई तो देखा चाय बनाने के एक भी बर्तन नहीं है ।चार पैन है चाय बनाने के चूंकि दोनों बार बार काफी पीते हैं तो चारों बर्तन सिंक में रखा है धोना तो है नहीं। सुमित्रा जी ने एक बर्तन धोकर चाय बनाई ।जब बहू उठी तो सुमित्रा जी ने कहा कोई बतनन नहीं था

चाय बनाने को तो धो लेती न ,अब क्या मैं सुबह से उठकर आपके लिए बर्तन धोऊगी क्या जब काम वाली आएगी तो वो धोयेगी ।और नाश्ता कब बनेगा अरे मम्मी जब खाना बनाने वाली आयेगी तब बनेगा । सुमित्रा जी को ये सब पसंद नहीं था हर चीज समय पर होनी चाहिए नाश्ते और खाने का भी एक समय होता है ।

                फिलहाल सुमित्रा जी ने देखा खाना बना कर रखा है कोई पूछता ही नहीं था खाने को अपने आप ख्यालों लेकर।बेटा अपनी नौकरी में व्यस्त और बहू रानी मोबाइल लेकर कमरे में लेटी रहती।

                    पंद्रह दिन तक यही रूटीन देखते देखते सुमित्रा जी परेशान हो गई । यहां तो अपने घर से ज्यादा दिक्कत आने लगी ।तो बेटे से कहा ऐसे कैसे रहूंगी मैं यहां दिनभर कमरे में बैठी रहती हूं न कोई खाना नाश्ता को पूछता है न कोई बात करता है इससे तो मैं अपने घर में अच्छी थी ।

वहां कोई न कोई जान पहचान का मिल जाता है ,पास में मंदिर है वहां चले जाओ यहां तो जब तुम ले जाओ तभी जा सकते हैं ।इतने में बहू बोली पड़ी यहां तो ऐसे ही चलता है आपको नहीं रहना यहां तो जा सकती है । हां मम्मी देख लो आप जैसा ठीक लगे आपको बेटे बहू के मुंह से ऐसी बात सुनकर सुमित्रा जी हतप्रभ रह गई ।सोचा था बुढ़ापे में बेटा सहारा बनेगा लेकिन ये तो ,,,,,,,,,।

                सुमित्रा जी ने अपना सामान समेटा और स्टेशन आ गई ।वो एक पढ़ी लिखी होशियार महिला थी अकेले सफर करने की आदी थी और आ गई अपने घर ।

              यहां आकर सोचने लगी क्या सच में बुढ़ापा एक बोझ है । आजकल किसी पर तो क्या बच्चों पर भी आप भरोसा नहीं कर सकते। परायों का थोड़ा सा मदद कर दे तो आपका वो इससे ज्यादा ख्याल रखने को तैयार हैं ।आज ममता सुमित्रा जी के सामने खड़ी है ।आप परेशान न हों मम्मी कोई जरूरत हो तो आप हमसे कहो ।

                 सुमित्रा जी आज ममता की बेटी की शादी में आशिर्वाद देने उसके घर गई है । रूपये पैसे से भी अच्छी मदद की है ।आज ममता का पूरा परिवार सुमित्रा जी के लिए खड़ा होने को तैयार हैं ।

पाठकों आप क्या कहते हैं पराए अच्छे हैं कि अपने आपकी क्या राय है ।

धन्यवाद 

मंजू ओमर

झांसी उत्तर प्रदेश

#बुढ़ापा

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