दायित्वों का निर्वहन – पुष्पा जोशी : Moral stories in hindi

दीपक बेटा आप छत पर हैं, और मैं आपको पूरे घर में देख आई, आज मैं बहुत खुश हूँ , आपकी सफलता की खुशी में मैंने आपके लिए आपकी पसन्द का गाजर का हलुआ और आलू की टिकिया बनाई है, जया जी की खुशी उनकी वाणी में स्पष्ट नजर आ रही थी। छत पर सीढ़ियाँ चढ़कर आई थी अत: सॉंस फूलने लगी थी।

दीपक ने कहा- ‘मामी आपको कितनी बार कहा सीढ़ियॉं मत चढ़ा करो पर आप मानती ही नहीं, अब जरा आराम से इस कुर्सी पर बैठो।’ कुछ देर में जया जी की सॉंसे नियंत्रित हो गई। दीपक ने कहा -‘अब ठीक लग रहा है मामी? अगली बार अगर ऐसा मौका आए तो मुझे फोन लगा दिया करो, फोन हमेशा मेरे पास होता है।

आप सीढ़ियाँ मत चढ़ा करो, देखो ना कैसी सॉंस भरने लगती है आपकी।’ दीपक का इस तरह उनकी परवाह करना जया जी के मन को आह्लादित कर गया। वे बोली -‘अब जल्दी चलो नाश्ता ठंडा  हो जाएगा, मैं देख रही हूँ आप कुछ परेशान हो, अपनी मामी को कारण नहीं बताओगे?’ दीपक ने कहा- ‘ऐसी कोई बात नहीं है मामी।

और आपको नहीं बताऊँगा तो किसे बताऊँगा। आज मैं जैसा भी हूँ, आपके कारण हूँ। मेरी सफलता में आपका बहुत योगदान है।’ ‘अच्छा अब ये बातें छोड़ो और नाश्ता  करो बताओ कैसा लगा, आपके मामाजी का फोन‌ आया था, वे कल शाम तक आऐंगे।’अवधेश जी किसी काम से दूसरे गॉंव गए थे। ‘मामी आपने नाश्ता बहुत अच्छा बनाया है।’ जया जी खुश हो गई, बोली – आपने सुमन दीदी को फोन लगाया या नहीं जब वे सुनेंगी उनके बेटे की बैंक में नौकरी लग गई है, तो उन्हें कितनी खुशी  होगी।

‘  दीपक के चेहरे पर उदासी की लकीरें उभर आई थी, उन्हें संयत करते हुए बोला, -‘मामी मैंने फोन लगाया था पर लगा नहीं शायद मम्मी कहीं व्यस्त होगी, थोड़ी देर बाद फिर लगा लूंगा।’ ‘ठीक है बेटा अब आप आराम करो, कई दिनों से आप आराम से बैठे ही नहीं। मैं भी अपने कुछ काम निपटा लेती हूँ।’ मामी चली गई जाते-जाते अपना हाथ दीपक के सिर पर रख कर गई। इतना स्नेहिल स्पर्श, नि:स्वार्थ प्रेम वह अभिभूत हो गया।

जब मामा – मामी ने पूरे समर्पण भाव से उसे पाल पोस कर बड़ा किया, काबिल बनाया तो क्या उसका दायित्व नहीं बनता कि वह अपने मामा मामी का ध्यान रखे? फिर मॉं इस तरह कैसे कह सकती है? उसके कानो में अपनी माँ के शब्द गूंज रहै थे। जो उसने फोन पर दीपक से कहै थे। ‘अच्छा हुआ बेटा !तुम्हारी नौकरी लग गई। तुम्हें बहुत सारी बधाई।  अपने मामा-मामी के पास बहुत रह लिए बेटा , अब अपने माँ-पापा के पास आ जाओ, यह सूना घर काटने‌ के लिए दौड़ता है।

देवेश भी लंदन चला गया है, तुम्हारी राजी दीदी भी कभी-कभी एक दिन के लिए ही आ पाती है, उसे ससुराल से फुर्सत ही नहीं मिल पाती, बेटा हमारी उम्र ढल रही है, तुम्हारा दायित्व है कि तुम हमें सम्हालो।’ फोन पर दीपक कुछ नहीं बोल पाया मगर माँ की बातों ने उसके मन को आहत किया था। कई प्रश्न उठ रहैं थे उसके अन्तस में । वह अपने आपसे बातें कर रहा था, आज माँ चाहती है कि मैं उनके प्रति अपने दायित्वों को निभाऊं, मैं निभाऊंगा भी, वे जन्मदाता है।

मगर क्या आज माँ का इस तरह बोलना सही था, उसके मामा-मामी ने एक बेटे की तरह उसे पाला है। मामी को कितनी बार कहा कि मामी आप मुझे आप मत कहा करो मगर उनके मन में मॉं- पापा के प्रति कितना सम्मान है,या उनके संस्कार है कि   ननन्द के बेटे से उन्होंने हमेशा आप करके बात की। मगर स्नेह और सहयोग देने में किसी तरह की कोई कमी नहीं की, न कभी यह अधिकार जताया कि वह उनका बेटा है।

मामा-मामी ने दीपक को सिर्फ दिया ही दिया है कुछ भी नहीं लिया। आज उनकी भी ढलती उम्र है, वह उनके प्रति अपने दायित्वों को छोड़कर कैसे अपने माँ पापा के पास लौट जाए? माँ ऐसा सोच भी कैसे सकती हैं। माँ ने स्वयं मुझे मामी की गोदी में डाला था और कहा था, भाभी यह आपका बेटा है? कोई कागजी कार्यवाही नहीं हुई और मैं मामा- मामी का बेटा बन गया। उस समय माँ की मजबूरी थी। राजी दीदी सिर्फ तीन साल की थी,और मेरा और देवेश का जन्म हुआ।

दोनों जुड़वा थे, वह स्वस्थ था और मैं कमजोर था। माँ के लिए दोनों को सम्हालना कठिन था इसलिए मॉ ने मुझे मामी की गोद में डाल दिया।मामा मामी के बच्चे नहीं हैं।। आज मॉं का इस तरह मुझपर अधिकार जताना क्या सही है? वह इन्हीं विचारों में उलझा रहा। तीन दिन तक उसने माँ को फोन नहीं लगाया तो माँ का फोन मामी के पास आया। शायद कुछ गलत कहा था मॉं ने।मामी उस दिन दिनभर रोती रही ।

जब दीपक ने अपनी कसम डालकर पूछा तो उन्होंने बस इतना ही कहा- बेटा तुम अब दीदी के पास चले जाओ, महिनेभर बाद तुम्हें नौकरी ज्वाइन करनी है, पता नहीं कहाँ पोस्टिंग होगी। कुछ दिन दीदी जीजाजी के साथ रह लो। अपना सारा सामान पेक कर लेना। बातें करते समय वे दीपक के सामने देख नहीं पा रही थी, उनकी आवाज में नमी थी। दीपक समझ गया था कि माँ की किसी बात से मामी के दिल को ठेस लगी है।

वह मामी के कदमों के पास बैठ गया, उनके हाथों को अपने हाथों में लेकर बोला- ‘मामी आपने मुझे पराया कर दिया, आपने सोच भी कैसे लिया कि मैं आप दोनों को छोड़कर जाऊँगा। मेरा सामान यहीं रहने दो, मैं माँ पापा से मिलकर आता हूँ। मेरी पोस्टिंग जहाँ भी होगी  आप और मामा मेरे साथ रहेंगे।

माँ- पापा को भी मैं अपने साथ रखूँगा। मेरे मॉं-पापा के प्रति जो दायित्व है वैसे ही आपके प्रति भी है। आपका आशीर्वाद और साथ मुझे हमेशा चाहिए। एक महिने बाद दीपक की पोस्टिंग जिस शहर में हुई उस शहर में उसने अपने माँ-पापा और मामा-मामी सभी को अपने साथ रखा और अपने सारे दायित्वों का निर्वहन किया।

प्रेषक-
पुष्पा जोशी
स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित

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