सासु मां के ताने – मंजू तिवारी

बहू-मम्मी आज तो बड़ी ठंड है देखो मेरे हाथ कितने ठंडे हो गए।   सास-ठंड है तो इसमें क्या कर सकते हैं हाथों को क्या देखना। बेटी-मम्मी आज तो बड़ी ठंड है देखो मेरे हाथ कितने ठंडे हो गए।                  मां-तेरे हाथ तो बहुत ठंडे है अच्छे से कपड़े पहन लो नहीं तो बीमार पड़ जाओगी बहुत … Read more

जींस  – कमलेश राणा

 मेरे बच्चों और पतिदेव को जानवरों से बड़ा प्यार है,,,पर मुझे उन्हें छूने में बड़ा डर लगता है इसलिए मैं दूर ही रहना पसंद करती हूँ,,,  एक बार बेटे के मित्र के पिताजी का ट्रांसफर जबलपुर हो गया,,,उनके पास डाबरमैन प्रजाति का कुत्ता था,,देखने में ही बड़ा खूंख्वार लगता था  ,,,वैसे भी यह भेड़िया प्रजाति … Read more

ख़त – अनु मित्तल ‘इंदु ‘

कुमुद ने  भी अपने  पिता की मर्ज़ी के आगे सर झुका दिया था । लड़के वाले आये थे देखने । लड़का देखने में सुँदर पढ़ा लिखा था , परिवार भी संपन्न था । परिवार से भी उसकी  मम्मी की पुरानी पहचान निकल आई थी। लड़के की भाभी कुमुद के मम्मी को जानती थीं  ।दोनों  एक … Read more

ज़िंदगी मिलेगी दोबारा – रश्मि स्थापक

“कुछ भी कहो कर्नल…चमक रहे हो आजकल…भई बात क्या है?” कहते हुए नरेंद्र ने जोरदार ठहाका लगाया। ये दोनों सेवानिवृत्त दोस्तों की सुबह की सैर की बातचीत थी। “अरे यार ….तुम भी अच्छा मज़ाक करते हो …इस पचहत्तर की उम्र में अब क्या चमकेंगे और तुम्हारी भाभी के बाद तो जैसे सब चला गया।” “वो … Read more

हौसला एक पिता का – अनुपमा #लघुकथा

बहुत सुदूर प्रकृति की गोद मैं एक छोटा सा गांव था ,बहुत ही दुर्गम पहाड़ी इलाका था , वहां तक पहुंचने के लिए ही आठ दिन लगते थे वो भी पैदल पक्की सड़क से , हर वक्त बारिश और ठंड हो रही होती थी वहां। जब पूरे देश मैं लॉक डाउन हुआ तो वहां की … Read more

एक पिता ऐसे भी –  लतिका श्रीवास्तव #लघुकथा

……शादी की धूम धाम समाप्ति पर थी,मुझको  दो दिन हो गए थे ससुराल में आए हुए सुबह से लेकर शाम रात तक बहु देखने और मिलने वालों का तांता लगा हुआ था…अभी तक तो मैं अपने इस नए घर अपनी ससुराल के सभी कक्षों से ही परिचित नहीं हो पाई थी तो फिर घर के … Read more

अब आप ही मेरे पिता हैं – नीरजा कृष्णा #लघुकथा

उसने धीरे से दरवाजा खोल कर देखा। रामेश्वर बाबू…. उसके ताऊ जी….गहरी नींद में थे। एकदम क्लांत चेहरा… घोर थकावट और दुख की गहरी छाया उनके चेहरे पर बिखरी हुई थी। एक बार तो उसे लगा…ना उठाया जाए…सो लेने दिया जाए पर घड़ी पर निगाहें गई तो….अरे शाम के चार बज गए थे,” ताऊ जी! … Read more

मैनेजर – भगवती सक्सेना गौड़ #लघुकथा

मैनेजर नाम का मजदूर दीवाली की सफाई बड़े मन से कर रहा था। रश्मि अकेली घर पर थी, दोनो बेटे दिल्ली में कार्यरत थे, दीवाली में सबके आने का कार्यक्रम था। थोड़ी थोड़ी देर में आकर काम का मुआयना कर लेती थी, अचानक उसकी नजर गयी,  मैनेजर बड़े ध्यान से टेबल पर रखी अश्विन संघी … Read more

प्रसाद – दीप्ति सिंह #लघुकथा

राशि का गोलमटोल बेटा शुभ जब से घुटने चलने लगा है माँ को खूब दौड़ाता है गिरी हुई वस्तुओं को नियत स्थान पर रखते -रखते राशि थक जाती है कभी कभार तो भोजन करना भी दूभर हो जाता है। “राशि …राशि ”  की आवाज लगाते हुए मकान मालकिन रचना ऊपर आयी।  “क्या बात है दीदी … Read more

नासूर – डा. मधु आंधीवाल

प्रखर एक अच्छे घर का इकलौता  लड़का था । अभी तो बचपन से निकल कर किशोरावस्था में कदम रखे थे । मोहल्ले का माहौल सही नहीं था । मां पापा भी उसे हमेशा समझाते कि बेटा दोस्ती अच्छी होनी चाहिए । मोहल्ले के इन बिगड़ैल बच्चों से थोड़ी दूरी बना कर रखा करो । घर … Read more

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