ख़त – अनु मित्तल ‘इंदु ‘

कुमुद ने  भी अपने  पिता की मर्ज़ी के आगे सर झुका दिया था । लड़के वाले आये थे देखने । लड़का देखने में सुँदर पढ़ा लिखा था , परिवार भी संपन्न था । परिवार से भी उसकी  मम्मी की पुरानी पहचान निकल आई थी। लड़के की भाभी कुमुद के मम्मी को जानती थीं  ।दोनों  एक ही  शहर  से  थीं।  सबसे अच्छी बात तो यह थी कि उसकी  अपनी ही जाति का था , और मँगलीक भी।कुमुद के घरवालों के हिसाब से सब परफेक्ट था।  अरुण को कुमुद  पहली  ही  नज़र  में  भा  गई। 

जल्दी ही शादी पक्की हो गई । और 15 दिन के अंदर ही शादी हो गई और अपने ससुराल आ गई ।

लेकिन शादी से दो  दिन पहले  उसने  रवि  के  सारे ख़त और उसकी एक तस्वीर सब इकट्ठा करके जला डाले । वह  नहीं चाहती थी कि कोई भी ऐसी चीज़ उसके  पास रहे जो उसे  रवि की  याद दिलाये ।

इतना प्यार करने वाला पति मिला तो कुमुद  भी अपनी गृहस्थी में रम गई । पहले ही वर्ष में बेटी और फिर दो वर्ष बाद बेटा । सब कुछ तो मिला था जिंदगी में ।

बच्चों की परवरिश , उनकी शिक्षा, सास ससुर की छत्र छाया में इतने वर्ष बीत गये , पता ही नहीं चला । बच्चों की शादियाँ हो गईं ।नानी , दादी सब बनी वो।  सब अपनी अपनी गृहस्थी में सुखी हैँ ।

क़रीब छः  वर्ष पहले जब उसने  कलम पकड़ी और लिखना शुरू किया तो नहीं जानती थी कि वो सारे ख़त जो उसने  शादी से पहले जला डाले थे , वो तो जले ही नहीं थे

वो सब तो उसके ज़ेहन में बड़े करीने से रखे हुये थे , किसी मुफलिस की पूंजी की तरह । वो ख़त तो बड़े ख़ूबसूरत ख़्याल बन गये थे , जिनके कारण उसने  कितनी ही ग़ज़लें , नज्में और कहानियों का सृजन किया ।

ये यादें ही होतीं हैँ जो लेखक की लेखनी का आधार होती हैँ ।उसकी प्रेरणा होती हैं ।  ये ख़त कभी नहीं जलते । हमेशा महफूज़ रहते हैँ

अनु मित्तल ‘इंदु ‘

 

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