उसने धीरे से दरवाजा खोल कर देखा। रामेश्वर बाबू…. उसके ताऊ जी….गहरी नींद में थे। एकदम क्लांत चेहरा… घोर थकावट और दुख की गहरी छाया उनके चेहरे पर बिखरी हुई थी। एक बार तो उसे लगा…ना उठाया जाए…सो लेने दिया जाए पर घड़ी पर निगाहें गई तो….अरे शाम के चार बज गए थे,” ताऊ जी! उठिए , बहुत देर हो गई है! अब आप दोनों खाना खा लीजिए! ताईजी भी ऐसे ही बैठी हैं।”
वो अचकचा कर उठे और चुपचाप खाने की टेबल पर बैठ गए। राघव और माधुरी ने बहुत आदर से उनको भोजन परोसा, दोनों सिर झुकाए खा रहे थे।खा क्या रहे थे, खाने की रस्म सी निभा रहे थे। ग्लानि और क्षोभ से ग्रसित उन दोनों के आँसू रुक ही नही रहे थे,
” मैं कैसा जौहरी था जो अपने हीरे को परखने में इतनी चूक कर गया।”
राघव तड़प गया ,” ताऊजी! प्लीज़! अब आप स्वयं को कोसना बंद कीजिए और चैन से भोजन करिए! अब आप अपने सही घर में आ गए हैं और कोई आपको यहाँ से निकाल नही सकता।”
वो कैसे भूल सकता था। इन्हीं ताऊजी ताईजी ने उसके माता पिता की अकाल मृत्यु के बाद उसके सिर पर हाथ रखा था और मोहन भैया के साथ साथ उसका भी लालनपालन हुआ। बस भैया पढ़ाई में तेज थे… पढ़लिख कर आज मुंबई में बढ़िया नौकरी में हैं और वो… उसका मन पढ़ाई में रमा ही नहीं। वो खानदानी जेवरों की दुकान और किराए पर चढ़े सब मकानों की देखरेख करने लगा था। भैया अपनी नौकरी और परिवार में मस्त थे …..धीरे धीरे ताऊजी भी सब जिम्मेदारी उस पर डाल कर निश्चिंत से हो गए। बार बार हर बात के लिए उन्हें तंग ना करना पड़े ,ये सोच कर वो एक दिन कह बैठा था,
“ताऊ जी! सब मकानों की देखरेख के लिए मुझे पॉवर ऑफ़ अटॉर्नी दे दीजिए।”
उसके बोलते ही ताईजी एकदम भड़क गई, ना जाने कब कैसे केकैयी माँ की आत्मा उनमें घुस गई और ताऊ जी की एक ना चली और पॉवर ऑफ़ अटॉर्नी मोहन भैया को दे दी गई।
वो एक झटके से बोली थीं,”
तुमको पावर ऑफ़ अटॉर्नी कैसे दे दें। वो हमारे बेटे मोहन को ही मिलेगी। तुमने अँगुली पकड़ कर पहुँचा कैसे पकड़ लिया न?”
फिर वो भी अपने परिवार के साथ दूसरे घर में शिफ्ट हो गया।
अचानक ताऊजी की आवाज ने उसकी तंद्रा भंग की,”बेटा! कहाँ खो गए! हम तो माफी के लायक भी नही हैं! अपने बेटे ने चुपचाप सब बेच कर हमें बेघर कर दिया और तुमने सहारा दिया।”
उसने दौड़ कर उनके पैरों पर अपना सिर रख दिया,” ऐसा मत सोचिए! मैं भी तो आपका ही बेटा हूँ! मुझ अनाथ को मम्मी पापा के बाद आप दोनों ने ही पाला , अच्छे संस्कार दिए! अब तक आप पितृतुल्य थे, पर अब पिता हैं।”
दूसरी ओर माधुरी ताईजी जी के गले से लिपटी हुई थी।
नीरजा कृष्णा
पटना