आधी रात को नींद उचट गई… कोई दूर में बांसुरी बजा रहा था। बांसुरी की मीठी करुण धुन राधिका उठ बैठी। बगल में पति यश मीठी नींद ले रहे थे… होंठो पर मुस्कान… शायद प्यारा सपना देख रहे हों।
गंगा किनारे बसे गाँव में यश राधिका को गौना कराकर ले आया था। सुबह यश बोला, “राधिका मेरी छुट्टियाँ समाप्त हो रही है… अगले रविवार को शहर जाऊंगा! “
अभी तक नवपरिणीता सुख-सौभाग्य में खोई हुई थी… विवाह के तीसरे वर्ष गौने कराकर आई थी। मायके की याद भूली न थी लेकिन पति का सानिंध्य, ससुराल में तालमेल बैठाने की कोशिश में जी-जान से जुटी हुई थी।
“इतनी जल्दी “राधिका चौंक पड़ी।
पत्नी की मृगनयनी अंखियां और प्यारा साथ… मन तो उसका भी नहीं था। लेकिन वकालत का आखिरी साल था अतः हंसकर बोला, “जाना पड़ेगा रानी… पढाई पूरी नहीं करुंगा तो ससुर जी कहेंगे…कैसे नकारा से बेटी व्याह दिया। “
“धत् “कह राधिका पति के सीने से लग गयी।
दिन भर पति के जाने की तैयारी में व्यतीत हो गया… घर गृहस्थी के हजारों काम।
उन दिनों बिजली का आगमन नहीं हुआ था… आषाढ़ की पहली बारिश… तपती गर्मी से राहत मिली। देश आजादी की सपने देख रहा था। महात्मा गांधी… बड़े बडे़ प्रभावशाली देशभक्तों की अगुवाई में हजारों युवक युवतियां स्वतंत्रता की लड़ाई में कूद पड़े थे।
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आधी रात्रि को नींद में बांसुरी की आवाज़ सुन राधिका की आंखें खुल गई। उत्सुकता वश खिड़की के पास खडी़ हो गयी।बाहर बड़े बडे़ पेडों का झुरमुट… हवा की सायं-सायं…दूर बांसुरी की जादुई आवाज।
कौन बजाता है इस रात को… किससे पूछूं! पति करवट बदलकर गहरी नींद में सोया है।
बहुत देर तक राधिका बांसुरी की मधुर ध्वनि में खोई रही। कौन दिलजला बजाता है…।
पति के जाने के बाद एक सूनापन सा महसूस होने लगा। जिसके भरोसे वह अपने माता-पिता भाई-बहनों को छोड़ ससुराल आई थी… वही चला गया। आंखें भर आती… कुछ भी अच्छा न लगता।
ननद रानी गौने में आई थी… अब ससुराल जाने का समय आ गया।
अब राधिका से रहा न गया, “दीदी, एक बात पूछूं। “
“पूछो, पूछो “ननद ने प्यार से कहा।
“आधी रात को बांसुरी कौन बजाता है,नींद खुल जाती है…बहुत मीठी धुन… । “
“अरे वाह! तुम्हें अच्छा लगता है… हमें कोई असर नहीं पड़ता। “ननद रानी झटके से निकल गई।
थोड़ी देर में ड्योढ़ी से आवाज लगाई, “देखो भाभी… बांसुरी बजैया … यही है तुम्हारा गुनाहगार… आधी रात को जगाने वाला “!
सामने सांवला सलोना हृष्ट पुष्ट युवक खड़ा था, “गोर लागी बहुरिया। “
राधिका शर्म से छुई मुई… सिर हिला दी।
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बिरजू उनका मेहनती वफादार धांगड़ था …अपने माता-पिता, पत्नी बच्चे के साथ झोपड़ी में रहता था… बांसुरी पर अच्छी पकड़ थी अतः कभी-कभी रात्रि में बजाया करता। दिन भर गाय बैल की देखभाल करता !
दिन बीतने लगे। यश की लंबी-लंबी चिट्ठियां आती राधिका अपनी ओर से जवाब भेजती… कहावत है चिट्ठीयों से आधी मुलाकात हो जाती है।
पहले प्रेम प्यार मनुहार से खत भरे रहते थे फिर विषय बदलने लगा, “मैने पढाई छोड़ दी है… स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़ा हूं… तुम भी पास-पड़ोस की स्त्रियों के संग स्वतंत्रता का महत्व समझाओ, विदेशी वस्तुओं का वहिष्कार करो,स्वदेशी अपनाओ… गुलामी के पकवान से बेहतर आजादी का रुखा-सूखा ।”
पति का आदेश सिर-माथे पर। राधिका सास-ससुर की सहमति से परदे में ही बाहर निकलने लगी। साथ में बिरजू रहता।
यश को ब्रिटिश सरकार ने गिरफ्तार कर लिया। वृद्ध माता-पिता सब समझते हुये भी बेटे के लिए चिंतित हो उठे। वैसे में राधिका का दायित्व बढ गया था। कभी सास-ससुर को ढाढस बंधाती…कभी पति की सलामती… बाहर स्त्री मोर्चा कमजोर न पड़े इसका भी ख्याल। हर घड़ी साये की तरह साथ रहता वफादार बिरजू ।बांसुरी बजाना छूट गया था ।मायके से बुलावा आया… राधिका ने इंकार कर दिया, “ये आ जाते हैं फिर आउंगी। “
“यहाँ अकेले कैसे संभालोगी। “
“क्यों मां -बाबूजी हैं और बिरजू है ना… वह सब संभाल लेगा। “ऐसा अटूट विश्वास स्वामिभक्त बिरजू पर।
बिरजू ने शपथ लिया था,”जब देश आजाद होगा, छोटे मालिक लौटेंगे… सुख-शांति के पश्चात ही बांसुरी होंठो पर रखूंगा। “
करोडों भारतीय का संघर्ष… दृढ इच्छाशक्ति देश आजाद हुआ। यश रिहा होकर घर आये।
इसी बीच देश के बंटवारे का त्रासदी… सबकुछ सामान्य होने में समय लगा। वृद्ध माता-पिता स्वर्ग सिधार गये।
बदलाव की बयार बह चली। लोग नवनिर्माण में व्यस्त हो गये।
लेकिन नहीं बदला तो यश, राधिका, बिरजू का आपसी सहयोग… सद्भाव और साथ निभाने की प्रतिबद्धता।
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आज सड़क निर्माण के खुदाई में बिरजू का बांसुरी निकला… पुरानी यादें ताजा हो गई। उसे चौपाल में संभालकर रखा है।
अब न यश हैं न राधिका न बिरजू… लेकिन उनकी आपसी निःस्वार्थ बंधन का लोग मिसाल देते हैं।
रात्रि के नीरवता में आज भी गंगा किनारे बंशी की तान सुनाई देती है…लोग कहते हैं, “बिरजू की वंशी की आवाज़ है “।
आज बात-बात पर अलगाव है वहीं कैसा अटूट बंधन था जो ताउम्र उनको बांधे रखा।
उधर रेडियो में गाना बज रहा है, “बंशी वाले बंशी बजा। “
सर्वाधिकार सुरक्षित मौलिक रचना -डाॅ उर्मिला सिन्हा। ©®