सड़क का पायलट- नेकराम Moral Stories in Hindi

शहर में सबसे बड़ा फ्लैट भानु प्रताप का है ,,,क्यों ना हो,,, हवाई जहाज के पायलट जो है घर के बाहर एक बड़ी सी गाड़ी उन्ही की खड़ी हुई है रात के करीब 11:00 बजने वाले हैं भानु प्रताप ने गाड़ी में एक बड़ा सा गिफ्ट रखते हुए अपनी पत्नी शारदा से कहा ,,,मित्र की सालगिरह पर जा रहा हूं दरवाजे को अंदर से लॉक कर लो,,
भानु प्रताप जल्द से जल्द अपने मित्र की सालगिरह में पहुंचाना चाहते थे गाड़ी की स्पीड भी थोड़ी ज्यादा थी आगे एक बड़ी सी लाल बत्ती का चौराहा आया चौराहे पर एक रिक्शावाला जिसके चेहरे और वेशभूषा से पता चल रहा था शायद चालिस के आसपास उम्र का होगा
वह बूढ़ा रिक्शावाला उसके रिक्शा में कोई सवारी ना बैठी थी शायद दिन भर रिक्शा चलाकर थक गया होगा अब रात हो चुकी है उसे घर जाना होगा वह सड़क पार कर ही रहा था कि भानु प्रताप की गाड़ी उस रिक्शे से जा टकराई रिक्शा पलट गया रिक्शा वाले को काफी चोटे आई ,,
रिक्शावाला वह बूढ़ा उठकर खड़ा होते होते सोचने लगा गाड़ी वाले साहब ने मेरा रिक्शा तोड़ दिया है रिक्शा का आगे वाला पहिया तो पूरा ही टूट चुका है गाड़ी वाले साहब से,,, सौ ,,,,दो सौ रुपए मांग लूंगा ,,
उन रूपयो से अपना रिक्शा को फिर से नया बनवा लूंगा ,,,,
भानु प्रताप गाड़ी से बाहर निकले रिक्शे वाले के दो चार चाटें गाल पर जड़ते हुए कहने लगे जब तुम्हें रिक्शा चलाना आता ही नहीं तो क्यों सड़कों पर आ जाते हो मरने के लिए
रिक्शा वाले के कपड़े फाड़ दिए और बोले सड़कों पर सबसे ज्यादा गंदगी तुम जैसे ही लोगों से होती है,,
चौराहे पर पब्लिक मुंह बंद किए तमाशा देखती रही
फटे पुराने कपड़े पहने हुए वह गरीब रिक्शावाला पिटता रहा
सूट बूट पहने हुए गाड़ी के साहब उसे पीटते रहे
भानु प्रताप तुरंत अपनी गाड़ी में बैठे और साइड से अपनी गाड़ी निकाल कर वहां से ओझल हो गए
कुछ लोगों ने मिलकर तुरंत रिक्शा वाले बूढ़े को सड़क के किनारे सुरक्षित बिठा दिया,,,
उस रिक्शा वाले का नाम रामू काका है पास में ही एक कच्ची झोपड़ी में कई बरसों से अपनी पत्नी के साथ रह रहा है बच्चों का सुख ईश्वर ने नहीं दिया लेकिन मोहल्ले के बच्चों को देखकर ही वह रामू आनंद प्राप्त कर लेता
किसी तरह रामू काका रिक्शा को धीरे-धीरे घसीटते हुए अपनी झोपड़ी तक ले आया झोपड़ी का किवाड़ खटखटाया पत्नी ने दरवाजा खोलते हुए कहा,,
आज बड़ी देर लगा दी और यह क्या हालत कर ली कपड़े कैसे फट गए तुम्हारा एक्सीडेंट हुआ है कितनी चोटे आई है शरीर में ,,
पत्नी के बहुत पूछने पर भी रामू रिक्शा वाले ने उस घटना का जिक्र किसी को नहीं बताया ,,
संदूक में दो हजार रुपए रखे थे जो बड़ी कठिनाई से जोड़े थे अगली सुबह उन्हीं पैसों से रिक्शे की मरम्मत करवा के रिक्शा ठीक हो गया चार-पांच दिन के आराम से रामू रिक्शावाला अब थोड़ा बहुत स्वस्थ महसूस कर रहा था,,
रामू अपना रिक्शा लेकर मोहल्ले की गलियों में फिर से निकल पड़ा
छः महीने बीत चुके थे,,,,
रामू काका अपना रिक्शा लेकर चौराहे के किनारे खड़े होकर सवारी की प्रतीक्षा करने लगा दोपहर में बहुत सी लड़कियां रामू काका के रिक्शा में बैठकर अपने कॉलेज जाया करती थी दिन भर जो भी कमाई होती उसी से रामू काका अपने परिवार का खर्चा चला लेता था
तभी उसके सामने से एक कार निकली और आगे जाकर रुक गई
उस कार को देखकर रामू काका तुरंत पहचान गए अरे यह तो वही गाड़ी है जो छः महीने पहले मेरे रिक्शे को तोड़कर चली गई थी
उस गाड़ी का नंबर रामू काका के दिल में छप चुका था गाड़ी में बैठे साहब ने मुझे बुरी तरह पीटा था गुस्से में रामू काका ने अपना मुंह दूसरी तरफ फेर लिया,,
रामू काका से रहा ना गया उसने फिर उस कार को घूर-घूर कर देखना शुरू कर दिया ,,,,,,
उस कार के भीतर से एक जींस पहने हुए एक लड़की निकली
वह रामू काका की तरफ बढ़ते हुए बोली ,,
रिक्शा वाले अंकल जी,,, मेरी गाड़ी खराब हो गई है मुझे कॉलेज जाना है और मेरे पास पैसे भी नहीं है मुझे मालूम नहीं था गाड़ी रास्ते में धोखा दे देगी ,,
आज मेरी परीक्षा है मेरा परीक्षा का समय निकल जाएगा ,,,कॉलेज तक छोड़ देंगे आप
रामू काका के मुंह से आवाज ना निकली अब तक वह लड़की रिक्शा में बैठ चुकी थी
रिक्शा सड़क पर दौड़ने लगा
रामू के मन ही मन कई सवाल एक साथ उठने लगे
अबे तू पागल हो गया है ,,,यह वही गाड़ी है जिसने तेरे रिक्शा को तोड़फोड़ दिया था
और यह बेटी जरूर उन्ही साहब की बेटी होगी
इस लड़की को रिक्शे से उतार दे परीक्षा में जब नहीं बैठेगी तो पता चलेगा उन साहब को,,,,,
बुरे वक्त में उन्होंने मेरी मदद नहीं की थी उल्टा मुझे बीच सड़क पर जलील करके बिना रुपए दिए चले गए थे
आज मौका अच्छा है ईश्वर ने मुझें यह मौका दिया है उन साहब से बदला लेने के लिए
जैसे-जैसे रामू काका सोचते जा रहा था वैसे-वैसे ही रिक्शा की स्पीड तेज होती जा रही थी रिक्शा के पहिए और तेज और तेज सड़क में घूम रहे थे
रामू काका की सांस फूल चुकी थी वह जोरों से हांफ रहा था
लेकिन रिक्शा हवा से बातें कर रहा था
रामू काका के मन से फिर एक बार आवाज आई ,, यह दुश्मन की बेटी है और तू इसकी मदद कर रहा है
रामू काका के चेहरे पर अब तक पसीना ही पसीना फैल चुका था पसीने की वजह से रामू काका के कपड़े भी अंदर तक भीग चुके थे
तभी रिक्शे पर बैठी कन्या ने जवाब दिया कॉलेज आ गया है रिक्शा यही रोक दो,,,
और धन्यवाद देते हुए कहने लगी मेरा नाम आशा है
मुझे परीक्षा में 2 घंटे का समय लगेगा उसके बाद में घर कैसे जाऊंगी तुम मुझे मेरे घर तक भी छोड़ देना,,
रामू काका को वही रिक्शा पर बैठे-बैठे 2 घंटे से ज्यादा हो गए
कॉलेज से बहुत लड़कियां परीक्षा देकर बाहर निकली
थोड़ी देर में आशा भी खुशी-खुशी आते हुए रिक्शा पर बैठ गई चलो काका मैं तुम्हें रास्ता बताती हूं अपने फ्लैट का
आशा रास्ता बताते हुए जा रही थी
रामू काका रिक्शा चलाते हुए आशा के बताए हुए फ्लैट के पास ले आया
आशा जल्दी से अंदर गई भानु प्रताप खिड़की के पास रखी हुई कुर्सी पर बैठकर अखबार को ध्यान से पढ़ रहे थे
आशा ने तुरंत डैडी को कार खराब होने से लेकर यहां फ्लैट तक आने की सारी घटना बता दी
भानु प्रताप ने तुरंत कहा यह तो कमाल हो गया जिस रिक्शा वाले ने
तुम्हारी मदद की है घर में बहुत से कपड़े हैं कुछ मेरे जूते भी रखे हुए हैं
जाकर दे आओ 100 रूपए ज्यादा दे देना
आशा दो जोड़ी जूते,,, और तीन जोड़ी कपड़े लेकर मुठ्ठी में एक सौ का नोट दबाए पिता के साथ फ्लैट के बाहर पहुंची
इधर-उधर नजर दौड़ाई मगर वहा कोई दिखाई ना दिया,,
भानु प्रताप अपनी बेटी आशा के साथ वापस फ्लैट के अंदर पहुंचते हुए सोचने लगे यह रिक्शावाला कहीं वह रिक्शावाला तो नहीं था जिसके साथ मैंने उस दिन गलत बर्ताव किया था
भानु प्रताप अपनी बेटी आशा को लेकर तुरंत मोहल्ले की एक दुकान पर पहुंचे जहां नए बैटरी रिक्शा चमचमाते हुए खड़े थे
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रात के 12:00 बज चुके थे कच्ची सी झोपड़ी में कुछ बातें हो रही थी
रामू खाट पर लेटे-लेटे अपनी बुढ़िया से कहने लगा अब रिक्शा खींचा नहीं जाता मोहल्ले में कितने लोगों ने बैटरी वाले नये रिक्शे खरीद लिए हैं अधिकतर सवारी तो बैटरी रिक्शा में ही बैठकर जाती है
मेरे पास तो दिन भर में केवल दो-चार सवारी ही आती है
पैडल वाले रिक्शे को अब कौन पूछता है,,
रामू की पत्नी बोली मेरे पास तो कोई गहने भी नहीं है कि मैं बेंच कर तुम्हारे लिए नया ई-रिक्शा खरीद कर दिलवा दूं
बातों बातों में रात कब बीती पता ही ना चला
सुबह होते ही रामू रोज की तरह झोपड़ी से बाहर निकला तो सामने एक नया ई रिक्शा खड़ा पाया उस ई रिक्शा पर एक लेटर भी चिपका हुआ था
उस लेटर पर लिखा हुआ था,,
मैं भानु प्रताप एक पायलट होकर भी आज अपने आप को बहुत छोटा महसूस कर रहा हूं खिड़की से मैंने तुम्हें देख कर पहचान लिया था सोचा था फ्लैट से बाहर आकर तुमसे माफी मांग लूंगा
लेकिन तुम वहां से जा चुके थे
मैं तुमसे आंख से आंख नहीं मिला सकता
मोहल्ले की गलियों में ढूंढते हुए हमने तुम्हारी झोपड़ी का पता खोज निकाला
यह मेरी नहीं मेरी बेटी आशा की तरफ से एक छोटी सी भेंट है जिसे तुम्हें स्वीकार करनी होगी
कभी कोई रास्ते में मुसीबत में हो और उनके पास रुपए ना हो तो उन्हें उनकी मंजिल तक पहुंचाने के लिए इस देश को तुम जैसे ईमानदार और खुद्दार लोगों की जरूरत है
मुझे आज पता चल गया है कितना खास होता है
,,, सड़क का पायलट ,,,
नेकराम सिक्योरिटी गार्ड
स्वरचित रचना मुखर्जी नगर दिल्ली से

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