सड़क पर भंडारा- नेकराम Moral Stories in Hindi

मालती थोड़ी कंजूस तरह की महिला है पैसों की बचत करना खूब अच्छी तरह से उसे आता है आसपास के मोहल्ले में होने वाले भंडारे की भनक उसे लग जाती तो घर के सब बच्चों को और स्वयं भंडारे की लंबी लाइन में लगकर छक कर खाती और बच्चों से भी कहती यहीं पर पेट भर के खा,,, लो ,,,
आज घर में खाना नहीं बनेगा पूरी सब्जी हलवा खीर प्लास्टिक की थैलियों में हलवाई से भरवा कर घर पर इकट्ठा कर लेती
भंडारा खत्म ना हो जाए इस चक्कर में लाइन के आगे ही खड़े रहना उसका स्वभाव था
उसके मोहल्ले का प्रसिद्ध देवी प्रसाद हर नए साल को धूमधाम से भंडारा करवाता था आज फिर नया साल आया है देवी प्रसाद ने अपने घर के बाहर काफी बड़ा टेंट लगवाया हलवाई सुबह से ही ,,,पूरी, खीर और आलू की सब्जी पकाने में लगे हुए थे दोपहर के 1:00 बजे तक भंडारा चालू हो जाएगा यह बात मोहल्ले के सब लोगों को मालूम थी क्योंकि देवी प्रसाद का हर नए साल का यही नियम था
मालती ने हमेशा की तरह अपने बच्चों को भूखा रखा और बच्चों से कहा दोपहर का भंडारा होगा वहां पर पेट भर के खा लेना 2 दिन का भंडारा घर पर इकट्ठा कर लेंगे दो दिन मुझे खाना भी नहीं पकाना पड़ेगा
तभी दरवाजे की बेल बजी मालती ने दरवाजा खोला सामने छेनी हथौड़ी हाथ में लिए एक सादे से कपड़ों में एक व्यक्ति खड़ा हुआ था उस व्यक्ति ने कहा बाथरूम का नल खराब हो गया है शायद नल जाम हो गया है साहब कल शाम को हमारी दुकान पर आए थे उन्होंने यहां का मुझे पता दिया था
ठीक है,,,,, भाई साहब अंदर आ जाइए मालती उसे बाथरूम की ओर ले जाते हुए बोली,,,,
मिस्त्री नल ठीक करने में लग गया मालती वहीं कुर्सी डालकर बैठ गई बैठे-बैठे मालती बोर होने लगी उसने उस मिस्त्री से पूछा,,,, क्या तुम मोहल्ले के सभी घरों में नल ठीक करने के लिए जाते हो मिस्त्री ने तपाक से उत्तर दिया,,, हां हां परसों ही मोहल्ले के प्रसिद्ध देवी प्रसाद के घर उनके बाथरूम के पुराने नल को निकाल कर नया नल लगाने के लिए गया था बेचारे बड़े ही सीधे सरल सहृदय प्राणी है मैं बाथरूम में नल ठीक कर रहा था और बाथरूम के बाहर कमरे से जोर-जोर से आवाज़ें आ रही थी
उनकी धर्मपत्नी कह रही थी बहुत सालों पहले तुम्हारा बिजनेस ठीक चलता था इसलिए भंडारा कर देते थे लेकिन 2 सालों से बिजनेस बिल्कुल ठप पड़ा हुआ है
बच्चों के कॉलेज की पढ़ाई का खर्चा
घर में एक ड्राइवर है उसके महीने की पगार
रसोई में खाना बनाने वाली सुलभो आंटी की तनख्वाह
मोहल्ले की गली के बाहर जो चौकीदार बैठे हुए हैं महीने की उनकी सैलरी
मैं कैसे खींचतान कर सब कुछ मैनेज करती हूं मैं ही जानती हूं और तुम्हें भंडारे की लगी हुई है हर साल तुम्हें भंडारा करना है जैसे कि मोहल्ले वाले तुम्हें कोई मेडल दे देंगे मैं कुछ नहीं जानती अब से कोई भंडारा नहीं होगा फालतू का खर्चा करना बंद करो रिश्तेदार आएंगे तुम्हारी तारीफ करेंगे चले जाएंगे लेकिन एक आटे की बोरी भी दे नहीं पाते कि चलो उनसे कुछ मदद हो जाए मोहल्ले के आधे से ज्यादा घरों में तो चूल्हे भी नहीं जलते हैं सब हमारे ही भंडारे के भरोसे बैठे रहते हैं
,,, पता नहीं तुम्हें कब अक्ल आएगी ,,
फिर देवी प्रसाद साहब की आवाज आई मैं यह भंडारा क्यों करता हूं हर साल ,,,
तुम जानना चाहती हो हमारे मोहल्ले के निकट कुछ दूरी पर बहुत सी झोपड़पट्टियां है
जिन्हें दो वक्त का खाना भी ठीक से नहीं मिलता उन्हें महीनों बीत जाते हैं घर की सूखी रोटियां खाते-खाते वह भी तो हमारी तरह इंसान है अच्छे-अच्छे पकवान खाने का उनका भी तो मन करता होगा नए साल के बहाने उनके घरों से जब छोटे-छोटे बच्चे बढ़िया स्वाद का खाना खीर और हलवा खाते हैं तो एक अलग ही आनंद आता है लेकिन भंडारे की लाइन में कुछ ऐसे स्त्री पुरुष भी लग जाते हैं जो अपना और अपने बच्चों का पेट भरने में समक्ष है
उन्हें हम लाइन से निकाल तो सकते नहीं , इंसानियत के नाते हम चुप रहते हैं इसीलिए उन झोपड़पट्टी में रहने वाले गरीब बच्चों के हक का खाना ,, किसी दूसरे के पेट में चला जाता है ,,
मरने के बाद ना यह महल साथ जाएगा,,, ना यह दौलत साथ जाएगी लोगों की तरह अगर हम भी कठोर हृदय हो जाएं तब मानव को मानव कौन कहेगा फिर तो हम पशु समान हैं भंडारे के केवल दो दिन रह गए हैं बैंक में 1 रूपया भी नहीं है
तुम्हारे पास सोने के आभूषण रखे हुए हैं तुम उन्हें गिरवी रखकर
मुझे 6 लाख रुपए दे सकती हो
,, तुम्हारे गहनों पर मेरा कोई अधिकार नहीं है ,,
लेकिन तुम चाहोगी तो इस साल भी 2024 का भंडारा बड़ी धूमधाम से मनाया जा सकता है
कुछ देर तक तो घर में सन्नाटा पसरा रहा फिर उनकी धर्मपत्नी कहने लगी घर में किसी को इस बात का ना पता चले
जब तुम्हारा बिजनेस ठीक से चलने लगेगा तब मेरे गहने मुझे वापस लौटा देना
मिस्त्री हथौड़ी से ठक-ठक करते हुए फिर एक बार कहने लगा देवी प्रसाद तो देवता है जो अपने घर की परेशानियों को झेलते हुए भी इतना बड़ा भंडारा करवा रहे हैं
मालती की आंखों की पलकें भीग चुकी थी मिस्त्री की बातें सुनकर तुरंत कुर्सी से उठी कंजूसी की वजह से अलमारी में जो उसने बहुत से रुपए जमा कर रखे थे उनमें से कुछ रुपए निकाल कर तुरंत किराने की दुकान पर पहुंची
दुकानदार — आइए मालती बहन क्या चाहिए
मालती — एक आटे की बोरी चाहिए और इस पते पर पहुंचा दीजिए
दुकानदार ने सर हिलाते हुए कहा — ठीक है पहुंचा देंगे और मालती से आटे की बोरी के रुपए ले लिए
रिक्शावाला आटे की बोरी रिक्शे में लादे हुए देवी प्रसाद के
,, भंडारे की तरफ चल पड़ा ,,
मालती जल्दी-जल्दी लंबे-लंबे कदम रखते हुए घर पहुंची गैस चूल्हे पर दाल पकाने के लिए चढ़ा दी और बाथरूम में पहुंची अब तक मिस्त्री नल ठीक कर चुका था मालती ने मिस्त्री से कहा ,,, भैया खाना खाकर जाना तुम्हारे नाम का खाना बन चुका है
मालती तुरंत रसोई घर में पहुंची और आटा गूंधकर रोटियां सेंकने लगी
तभी बच्चों ने कहा ,,मां भंडारे का समय शुरू हो गया है
क्या हम भंडारा ले आए ,,,,,
मालती रोटियां सेंकते हुए बच्चों से बोली मैं चाहती हूं तुम भी बड़े होकर देवी प्रसाद की तरह दीन दुखी और मजबूर लोग जिनके घर में एक वक्त का चूल्हा भी ठीक से नहीं जलता है उनके लिए तुम भी करवाओ
,,, सड़क पर भंडारा ,,,
नेकराम सिक्योरिटी गार्ड दिल्ली से सूर्य रचित रचना

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