अपनों का साथ दवाई से ज्यादा असर करता है ! – संगीता अग्रवाल Moral stories in hindi

” हर बीमारी का इलाज सिर्फ दवा नही होती बेटा कभी कभी अपनों का साथ दवा से ज्यादा असर करता है !” महेश जी का परिवारिक डॉक्टर उनके बेटे अतुल से बोला।

” डॉक्टर अंकल हम सब है तो पापा के साथ फिर भी जाने क्यो पापा गुमसुम रहते है !” अतुल बोला।

” बेटा जीवनसाथी की जरूरत जवानी से ज्यादा बुढ़ापे मे होती है क्योकि बुढ़ापे मे इंसान अपने सुख दुख बांट सकता है उससे । उम्र के ऐसे मोड़ पर जीवनसाथी का बिछड़ना सहन नही कर पा रहे महेश जी इसलिए अकेले पड़ गये है यही अकेलापन इनकी बीमारी की वजह है !” डॉक्टर बोले।

” अंकल जितना वक़्त हम दे सकते है उतना दे रहे है बाकी हमारी भी तो अपनी मजबूरिया है नौकरी है बच्चों की पढ़ाई है !” तभी वहाँ अतुल की पत्नी रिचा आकर बोली।

” बेटा रिचा बेटा अतुल मैं तुम्हारे पापा मम्मी का तबसे डॉक्टर हूँ जब तुम पैदा भी नही हुए थे …उन्हे बहुत अच्छे से जानता हूँ । बचपन मे तुम जब भी बीमार पड़ते थे तब अपने पापा को एक पल को नही छोड़ते थे कितने कितने दिन वो तुम्हारे सिरहाने बैठे रहते रातों को तुम्हे गोद मे ले घूमते रहते …मैं ये नही कहूंगा की तुम सब छोड़ सिर्फ अपने पापा का ध्यान रखो पर उनका अकेलापन समझो …बाकी तुम खुद समझदार हो !” डॉक्टर ये बोल चले गये । पीछे अतुल सोच मे पड़ गया सच ही तो कह रहे डॉक्टर अंकल ऐसा ही तो था मैं ।

” रिचा मैं चाहता हूँ पापा के अकेलेपन की बीमारी को कुछ हद तक कम कर सकू क्या तुम मेरा साथ दोगी ?” थोड़ी देर बाद वो पत्नी से बोला।

” क्यो नही अतुल आखिर मैं भी चाहती हूँ पापा पहले की तरह हँसते नज़र आये। वो जिंदगी को भरपूर जीने वाले इंसान है पर माँ के बाद मानो जीना भूल गये है !” रिचा बोली।

” हाँ रिचा इसके लिए हमें कुछ करना होगा जिससे वो अपने गम से बाहर आएं !” अतुल बोला।

दोनो बहुत देर तक बात करते रहे ..!

” पापा मैं सोच रही हूँ आपका कमरा नीचे शिफ्ट कर दूँ! ” कुछ दिन बाद रिचा महेश जी के कमरे मे आ बोली।

” बेटा तुम ऑफिस नही गई अभी तक ..और कमरा क्यो शिफ्ट करना यहाँ दिक्कत है क्या कोई ?” महेश जी बोले।

” वो क्या है ना कि पापा आदित ( रिचा का दस साल का बेटा) को नीचे पढ़ने मे दिक्कत होती है किसी के आने पर डिस्टर्ब होता है उसे …इसलिए सोच रही ये कमरा उसे दे दूँ और आपको उसका कमरा !” रिचा ध्यान से महेश जी को देखते हुए बोली।

” जैसी तुम्हारी मर्जी बेटा !” महेश जी बुझे स्वर मे बोले। रिचा समझ रही थी पापा का कमरा छोड़ने का मन नही है आखिर इसमे उनकी माँ के साथ यादे जो है ।

” ठीक है पापा आप आराम कीजिये मैं वो कमरा आपके लिए तैयार करवाती हूँ आज छुट्टी ली है मैने तो ये काम निपटा लूं !” रिचा ये बोल चली गई। पीछे महेश जी पत्नी की तस्वीर निहारने लगे …”  देख रही हो अतुल की माँ तुम्हे लगता था तुम्हारे बेटा बहु लाखो मे एक है पर वो भी बाकियों की तरह ही निकले …!” वो दुखी हो बोले।

” दादू मैं आज से आपके रूम मे रहूंगा मम्मा ने बोला है !” थोड़ी देर बाद उनका पोता आदित स्कूल से आ बोला।

” हाँ बेटा !” अपनी आँखों के कोरों पर आये आंसू पोंछते हुए महेश जी बोले।

” चलिए पापा अपने नए कमरे मे !” थोड़ी देर बाद रिचा उन्हे सहारा दे नीचे ले गई…कमरे मे जा महेश जी हैरान रह गये वहाँ उनकी और उनकी पत्नी की तस्वीर लगी थी वहाँ उनके आराम की हर चीज मौजूद थी उनकी आँखे भर आई।

” क्या हुआ पापा कमरा अच्छा नही लगा ?” तभी वहाँ अतुल आकर बोला।

” नही कमरा अच्छा है पर तुम इस समय मेरे कमरे मे कैसे ?” महेश जी बिस्तर पर बैठते हुए बोले।

” वो पापा समोसे लाया था आपकी पसंद के सोचा आज की चाय आपके कमरे मे ही पी ली जाये !” अतुल बोला। इतने घरेलू सहायिका चाय और समोसे ले आ गई जिसे अतुल ही चाय बना कर लाने को बोल कर आया था।

महेश जी कुछ बोले नही पर उनकी आँखों मे चमक आ गई । आदित भी नीचे आ गया सबने साथ बैठ चाय पी काफी दिनों बाद आज महेश जी के कमरे मे रौनक थी उनका उनका कमरा ऊपर था तो अतुल रात को ही वहाँ जाता था।

कुछ दिन रोज शाम की चाय महेश जी के कमरे मे पी जाती महेश जी से रिचा , आदित और अतुल खूब बाते करते …धीरे धीरे उनके चेहरे पर रौनक लौटने लगी उनकी तबियत मे भी सुधार होने लगा अब तो वो रात का खाना और सुबह का नाश्ता तो बाहर आ परिवार के साथ करने लगे।

” चलिए पापा आज पार्क चलते है !” छुट्टी वाले दिन अतुल महेश जी को पार्क ले गया बहुत दिनों बाद खुली हवा मे आये थे महेश जी उन्हे बहुत अच्छा लग रहा था शरीर भी तरोताज़ा सा महसूस हो रहा था। अब तो हर छुट्टी पर अतुल कभी महेश जी को पार्क ले जाता कभी सभी साथ घूमने निकल जाते।

घर मे कोई भी आता तो महेश जी भी उससे बोलते बतियाते वरना ऊपर रहने के कारण आधे रिश्तेदार बिन मिले चले जाते थे। नीचे आने के दो महीने बाद ही महेश जी तंदरुस्त हो गये अब तो वो आदित के साथ बाहर भी खेलते थे।

” अरे वाह महेश तुम तो पहले से ज्यादा हष्ट पुष्ट लगने लगे हो अब लगता है मेरी दवाई असर कर गई  !” एक दिन आदित के साथ महेश जी को बॉल से खेलते रही उनका डॉक्टर आ बोला।

” ये तेरी दवाई का असर नही है डॉक्टर ये तो मेरे बच्चों के प्यार का असर है !”  महेश जी हंस कर बोले।

” अच्छा मतलब मेरी दवाई बेकार है ऐसा क्या जादू किया बच्चो के प्यार ने !” डॉक्टर महेश जी की हंसी मे शामिल हो हंस कर बोले।

” डॉक्टर जब बहु ने मुझे नीचे का कमरा दिया था तब एक बार तो लगा था मैं बच्चों के लिए बेकार हो गया अब इसलिए मुझसे मेरा कमरा भी छीना जा रहा है पर बाद मे एहसास हुआ ये तो मेरे बच्चों का प्यार है …वो मुझे अकेलेपन से दूर रखने को नीचे लाये थे जिससे मैं घर मे सबसे घुलु मिलूँ… मेरे बच्चे मेरे पास रहे ….सच बहुत ख़ुशक़िस्मत हूँ मैं जो मुझे ऐसे बच्चे मिले !” महेश जी नम आँखों से बोले।

” पापा आपके नीचे आ जाने से हमें भी तो आपका साथ और आशीर्वाद पहले से ज्यादा मिल रहा है !” तभी रिचा वहाँ चाय लाती हुई बोली।

” हाँ और आदित को भी एक दोस्त मिल गया साथ ही हम निश्चिंत हो ऑफिस जाते है !” अतुल भी वहाँ आ बोला।

” बेटा अतुल मुझे लगता है अब तुम्हारे पिता को मेरी जरूरत नही !” डॉक्टर मुस्कुराते हुए बोले।

” ओये डॉक्टर की भले ना हो पर तेरे जैसे यार की जरूरत तो है ना !” महेश जी बोले।

” हाँ अंकल साथ ही हमें भी तो आप जैसे शुभचिंतक की जरूरत है । अगर आप हमें एहसास ना दिलाते तो हमें एहसास होता ही ना कि पापा कितने अकेले है !” अतुल बोला।

” ओह्हो ये बड़े लोग भी बस एक दूसरे की तारीफे शुरु कर देते है मैने अपना कमरा दादू को दिया उसका क्रेडिट कोई नही दे रहा मुझे !” इतनी देर से चुप आदित बोला तो सब हंस दिये ।

” अरे आदित बेटा तू तो मेरा सबसे प्यारा बच्चा है मम्मी पापा के ऑफिस जाने के बाद तू ही तो मुझे संभालता है !” महेश जी बोले तो आदित दादा के गले लग गया।

दोस्तों ये सच है हमारे बड़े बूढ़ो को बुढ़ापे मे परिवार के साथ की जरूरत होती है । अपनों का साथ और प्यार दवाई से ज्यादा असर करता है ।

आपकी दोस्त 

संगीता अग्रवाल

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