अपनी बेटी शासन चलाएं, दूसरों की बेटी दासी बन जाए – रोनिता कुंडु : Moral stories in hindi

राधिका पूरे घर में भाग भाग कर काम कर रही थी… आज घर में जागरण था तो उसी में राधिका पूरी व्यस्त थी… उसकी सास तारा जी के घुटनों में दर्द रहता था इसलिए वह ज्यादा भाग दौड़ नहीं कर सकती और ननद मायरा जो की बस रिल्स और वीडियो बनाने में ही व्यस्त रहती थी… तारा जी उससे कुछ नहीं कहती थी क्योंकि उन्हें अपनी बेटी की यह अवगुण नजर नहीं आते थे…

या यूं कह ले कि जब बहू कर ही रही है तो खामनखा बेटी को क्यों परेशान करना..? जागरण में राधिका कभी किसी को पानी देती तो कभी किसी को चाय या शरबत और वही मायरा बस अपने फोन लिए वीडियो बना रही थी… जागरण में मौजूद सभी राधिका को बड़ी तारीफ कह रहे थे, जिसे सुनकर तारा जी को बड़ा बुरा लग रहा था क्योंकि यह इंसानी स्वभाव है कि चाहे अपनी बेटी की कोई बड़ाई ना करें, पर बहू की तारीफ बड़ी चुभती है… पर इससे तारा जी लोगों की आंखों में पट्टी तो नहीं बांध सकती थी ना और ना ही उनके जुबान पर ताला लगा सकती थी… 

कुछ दिनों बाद तारा जी राधिका से कहती है.. राधिका कल तुम्हारी बुआ जी मायरा के लिए एक रिश्ता भेज रही है… तो जो मैं बनाने को कहूं वह बना देना और मायरा को अच्छे से तैयार कर देना… राधिका:  जी मम्मी जी

तारा जी: और हां सुनो एक और बात… खाना तो तुम ही बनाओगी पर मैं मेहमानों के सामने कहूंगी कि सब मायरा ने बनाया है… अब तुम्हें तो पता ही है मायरा को यह सब नहीं आता, पर शादी तक सीख जाएगी, कौन सा कल ही शादी है..?

अगले दिन मायरा को देखने लड़के वाले आते हैं… राधिका उन्हें चाय नाश्ता परोस कर मायरा को तैयार कर उनके सामने ले आती है… मायरा को देखकर लड़के की मां अनुपमा जी कहती है… बड़ी सुंदर है जैसा सुना था बिल्कुल वैसी ही है… 

तारा जी:   बहन जी.. सिर्फ रूप से ही नहीं गुण से भी संपन्न है मेरी बेटी… यह आज का पूरा नाश्ता सब इसी ने बनाया है… इस घर को इतना साफ सुथरा और सजा धजा कर इसी ने रखा है… पढ़ाई में भी बड़ी होशियार है मेरी बच्ची… चलिए खाना भी तैयार है आप लोग जब चखेंगे तब पता चलेगा कि सर्वगुण संपन्न है मेरी बेटी… 

उसके बाद सभी खाने चले जाते हैं… खाने में बहुत सारे पकवान थे जिसे देखकर खुद मायरा भी हैरान थी… उसे तो पता भी नहीं था कि आज खाने में बना क्या है..? खैर सब खाने लगे तभी लड़के के पिता अशोक जी ने राधिका से कहा… बेटा तुम भी हमारे साथ ही बैठ जाओ… जो जो लेना था हमने ले लिया, सब साथ में मिलकर खाएंगे तो अच्छा लगेगा, तुम्हें भी तो भूख लगी होगी, पूरे दिन इतनी मेहनत किया है…

 तारा जी:   अरे भाई साहब यह तो बहुत खुशकिस्मत है जो ऐसी ननद मिली इसे, जो खुद ही घर के पूरे काम अकेले ही कर लेती है… यह तो दिन भर बस मोबाइल में ही लगी रहती है.. 

अनुपमा जी:   अच्छा मायरा बेटा… यह गोभी की सब्जी तो बड़ी ही स्वादिष्ट बनाई है… इसकी खुशबू भी लाजवाब है… क्या खड़े मसाले डाले हैं इसमें..? 

मायरा एकदम से इस सवाल की उम्मीद नहीं कर रही थी, तो इस सवाल से वह सकपकाने लगी और कभी हां तो कभी ना में सिर हिलाने लगी… तारा जी इस बात को संभालते हुए कहती है… वह क्या है ना बहन जी… थोड़ी घबरा रही है 

अनुपमा जी: पता है मुझे बहन जी… यह सारा कुछ मायरा ने नहीं आपकी बहू ने बनाया है… मायरा को कोई घर के काम नहीं आते और वह सिर्फ फोन चलाती है, राधिका के चर्चे तो हर जगह है और साथ ही में मायरा के भी, यह सब कुछ जानते हुए भी हम यहां आए क्योंकि हम पुराने विचारों वाले नहीं है… हमें पता है कि आजकल की लड़कियां घरेलू काम में उतनी निपुण नहीं होती… पर यह जरूरी नहीं कि वह शादी से पहले ही सब कुछ सीख ले… शादी के बाद भी वह सीख सकती है.. पर दिक्कत कहां है पता है बहन जी..?

हम अपनी बेटी के खिलाफ या उसकी कोई कमी नहीं सुन सकते, चाहे उसके लिए हमें बहू की खूबियों को भी ढकना क्यों ना पड़ जाए..? बहन जी हम बेटी देते वक्त उम्मीद करते हैं उसे अपने ससुराल में रानी की तरह रखा जाए, पर वही दूसरे की बेटी लाते वक्त उसे नौकरानी बनाकर रखने के बारे में ही सोचते हैं… पर जब हम अपनी बहू को भी रानी बनाकर रखेंगे तो हमारी बेटी भी रानी और नौकरानी में फर्क जानेगी…

नहीं तो उसे गलत आदत हो जाएगी कि मुझे यहां नौकरो वाले सुलूक मिलते हैं, मैं यहां नहीं रहूंगी, मेरी मां ने मुझे कभी यह नहीं करवाया, तो मैं यहां क्यों करूं..? बस आजकल ज्यादातर रिश्तों के टूटने का कारण भी यही है… बहन जी हर माता-पिता को उसके बच्चे प्यारे होते हैं, बड़ी अजीब बात है ना, बचपन में हम उन्हें आत्मनिर्भर बनना सीखाते हैं, पर फिर बड़े होने पर हम ही उन्हें अपाहिज बनाने लगते हैं, उन्हें पढ़ाने लिखाने के साथ-साथ घर के काम भी सीखाने जरूरी होते हैं चाहे लड़का हो या लड़की…

आजकल लड़कियां भी पैसे कमाकर घर चला रही है यह बहुत अच्छी बात है… पर वही अगर घर के काम उसे ना आए तो पैसे होते हुए भी दो रोटी के लिए उसे किसी का मुंह ताकना पड़ेगा… कम से कम इतना तो आना ही चाहिए कि कभी जरूरत पड़े तो दो रोटी खुद के लिए बना सके… बाकी हमें मायरा पसंद है और मैं इसे सिखा दूंगी रोटियां कैसे बनाते हैं..? जैसे मैंने अपने बेटे को सिखाया है.. अब आप लोगों का फैसला जानना है… 

तारा जी बड़ी लज्जित और निशब्द हो जाती है और थोड़ी देर बाद चुप रहने के बाद वह कहती है… मायरा मेरी कितनी खुशनसीब है, जो उसे आप जैसी सास मिलेगी, जो की सास कम और मां ज्यादा है और आज से मैं अपनी बहू की भी मां ही बनूंगी और गर्व करूंगी उस पर, फिर वहां मौजूद सभी एक दूसरे को बधाई देने लगते हैं.. 

धन्यवाद 

#खिलाफ 

रोनिता कुंडु

1 thought on “अपनी बेटी शासन चलाएं, दूसरों की बेटी दासी बन जाए – रोनिता कुंडु : Moral stories in hindi”

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!